समकालीन पंजाबी साहित्य की उत्कृष्ट कृतियों की तलाश

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Saturday, March 23, 2013

पंजाबी उपन्यास



''साउथाल'' इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत अटवाल का यह चौथा उपन्यास है। इससे पूर्व उनके तीन उपन्यास - 'वन वे', 'रेत', और 'सवारी' चर्चित हो चुके हैं। ''साउथाल'' इंग्लैंड में एक शहर का नाम है जहाँ अधिकतर भारत से गए सिक्ख और पंजाबी परिवार बसते हैं। यहाँ अवस्थित पंजाबी परिवारों के जीवन को बेहद बारीकी से रेखांकित करता हरजीत अटवाल का यह उपन्यास इसलिए दिलचस्प और महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से हम उन भारतीय लोगों की पीड़ा से रू-ब-रू होते हैं जो काम-धंधे और अधिक धन कमाने की मंशा से अपना वतन छोड़ कर विदेशों में जा बसते हैं और वर्षों वहाँ रहने के बावजूद वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।

साउथाल
हरजीत अटवाल

हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव


तेंतालीस

प्रदुमण सिंह फैक्टरी में काम करने वाले लड़कों के साथ सदैव ही उनकी उम्र वाले मज़ाक करता रहता है। परंतु अब कुछ समय से वह उनके साथ गंभीर रहने लग पड़ा है क्योंकि उसके बच्चे भी बराबर के हो गए हैं। बड़ा बेटा हालाँकि फैक्टरी में नहीं आता, पर छोटा आ जाता है और छुट्टी वाले दिन लड़कियाँ भी आ जाती हैं। इसलिए उसने काम करते लड़कों के संग बातचीत करना कम कर दिया है। सिर्फ़ मतलब की बात ही करता है। परंतु मीके जैसे मुँहफट कब रुकते हैं। एक दिन वह कहता है -
      ''अंकल, कुलबीरो हाथ नहीं रखने देती।''
      ''मीके, कोई अक्ल की बात कर। तू उसे बदनाम न कर देना, अच्छी-भली लड़की है।''
      ''अंकल, तेरे पास इतनी हैं, मैं एक भी नहीं रख सकता!''
      मीके की बात पर पहले तो प्रदुमण को गुस्सा आता है, पर फिर शांत होकर कहता है-
      ''बेटा, बाहर हाथ-पैर मारता रह। मैं भी अब रिटायर हो गया हूँ, ये काम छोड़ दिए हैं।''
      ''अंकल, शेर भी शिकार करना छोड़ सकता है भला ! सच बताना, कुलबीरो पर हाथ फेरा कि नहीं ?''
      ''नहीं, बिलकुल नहीं।''
      ''यह भला कैसे हो सकता है, हाथ फेरने में तो तुम्हें महारत है।''
      ''उम्र उम्र की बात होती है, उम्र गुज़र गई, अब वो बात नहीं रही।''
      ''फिर ये सुल्ली फरीदा किस सहारे खींचे घूमता है ?''
      ''वह तो मेरी हमउम्र है। और फिर अब पुरानी यारी है। पुरानी यारी और पुराने ज़ख्म, ये उम्रों के साथ ही निभते हैं।''
      ''फिर कुलबीरो का क्या बनेगा ?''
      ''उसका क्या बनना!''
      ''उसको बंदा चाहिए, पर मुझे करीब नहीं फटकने देती।''
      ''तुझे कहा न कि फैक्टरी में ये काम नहीं किया करते।''
      ''अंकल, उसका अकेले घूमते नहीं देखा जाता मुझसे।''
      ''अकेली नहीं, एक आदमी उसको लेने तो आया करता है।''
      ''अंकल, मैं जानता हूँ उसको। वो रोशू है जो अपने आप को साउथाल का बदमाश समझता है। साला मेरा, मेरे एक झटके की मार है।''
      ''मीके, यूँ ही न पंगा ले लेना। बताते हैं कि वह आदमी बहुत ख़तरनाक है।''
      ''मेरे आगे कुछ नहीं अंकल! मुझे सब पता है उसका। साला पूरा सालीबाज़ है। साल भर बाद इंडिया से नई साली बुलाकर यहाँ पक्की करवाता है। अब कुलबीरो को बुला रखा है। इसे नोचता होगा। यंग लड़की है, इसे मेरे जैसा यंग ब्लॅड चाहिए।''
      प्रदुमण सिंह कुछ नहीं बोलता। उसको कुलबीरो पर दया आने लगती है। वह सोचता है कि रोशू पता नहीं उसके साथ कैसा व्यवहार करता होगा जो वह चुप-चुप रहती है। वह कहता है-
      ''मीके, हमें क्या ? अगर कुलबीरो रोशू के साथ खुश है तो कोई क्या करे।''
      ''अंकल, खुश कहाँ है। बस डरी बैठी है। मुझे तो लगता है कि ये यहाँ पक्की नहीं होगी। अंकल, बेचारी को यहाँ पक्का ही करवा दो किसी तरह।''
      मीका जैसे कुलबीरो को लेकर कुछ अधिक ही चिंतित हो। प्रदुमण सिंह कहता है-
      ''मीके, तुझे साधू से क्या, तुझे चोर से क्या, तू अपनी निपटा, किसी ओर से क्या।''
      ''अंकल, ज्यादती नहीं झेली जाती।''
      मीका उदास होने की एक्टिंग करता है। प्रदुमण सिंह उसको चले जाने का इशारा करते हुए कहता है-
      ''ओ बड़े कामरेड ! काम कर कोई। लोगों की औरतों के बारे में सोचना छोड़ दे।''
      मीका हँसते हुए चला जाता है। प्रदुमण सिंह कुलबीरो के बारे में सोचना चाहता है, पर इस समय उसके दिलो-दिमाग पर तारिक़ छाया हुआ है। वह सोचता है कि यह जो तारिक़ के साथ 'तू तू-मैं मैं' हुई है, इसकी वजह से वह अब उसको परेशान करेगा। उसकी दुकानें तोड़ेगा। वहाँ अपना माल रखने की कोशिश करेगा। उसको हानि पहुँचाएगा। वह स्वयं को आने वाले समय के लिए तैयार करने लगता है। वह सोचता है कि यदि तारिक़ कंपीटीशन करता है तो ऐसा ही सही। वह भी अपने समोसे की कीमत कम कर देगा और वह किसी अन्य इलाके में अपनी मार्किट तैयार करेगा।
      शाम को घर जाते समय ज्ञान कौर कहती है-
      ''जी मीके को समझाओ, कुलबीरो को तंग न करे।''
      ''कुछ गलत कहता था ?''
      ''गलत तो नहीं, मजाक करता रहता है, उसको अच्छा नहीं लगता।''
      ''इस कुलबीरो को हुआ क्या है जो इतनी चुप हो जाती है ?''
      प्रदुमण सिंह पत्नी को कुरेदने का प्रयास करता है। वह जानता है कि कुलबीरो उसके सामने पेट की बातें साझा कर लेती होगी। ज्ञान कौर कहती है-
      ''हमें क्या, देखो, हमारा कितना काम करती है। जब मैं इंडिया गई तो इसने फैक्टरी संभाल ली थी।''
      ''पर इसकी प्रॉब्लम क्या है ? क्या बताती है ?''
      ''इसका जीजा इसको तंग करता है।''
      ''उसने क्या तंग करना। अगर इसको हाथ भी डाल लेता होगा तो अब तक तो आदी हो जाना चाहिए। और फिर उसने इसको अपनी घरवाली बनाकर इधर बुलाया है तो इतना हक़ तो उसका बनता ही है।''
      ''इतना ही नहीं, इससे पैसे भी मांगता रहता है।''
      ''दिए जाए। उसने इसको इंग्लैंड बुलाया, यहाँ पक्का करवाया।''
      ''पक्की भी नहीं करवा रहा, इसके पैसे खाए जाता है। यह पक्की होने के लालच में खिलाए जाती है। मुझे तो इसकी बहुत चिंता है।''
      ''चल ज्ञान कौरे, तू कुलबीरो के बारे सोचना छोड़कर अपने बच्चों के बारे में चिंता किया कर।''
      ज्ञान कौर का ध्यान अभी भी कुलबीरो की तरफ़ है। वह कहती है-
      ''रोशू कुलबीरो को पीटने भी लग पड़ता है। सीधे गले को पड़ता है।''
      ''और रोशू की अपनी वाइफ़ ?''
      ''वो भी है। चार बच्चे भी हैं। बड़ी लड़की पंद्रह साल की है, पर रोशू दरिंदे को किसी की परवाह नहीं। जब उसको गुस्सा आ जाए तो दुनिया इधर की उधर कर डालता है।''
      बात करते हुए ज्ञान कौर बहुत दुखी है। प्रदुमण सिंह उसके दोनों कंधे पकड़कर कहता है-
      ''लोगों की बातों में अपने आप को अधिक नहीं उलझाया करते।''
      वह कुछ ऊँची आवाज़ में बोलता है ताकि ज्ञान कौर शांत हो जाए। उसे तारिक़ को लेकर अधिक चिंता है कि वह उस पर वार करने की तैयारी में होगा।
      मीका फेरा लगाकर लौटने पर कहता है-
      ''अंकल, तेरी सुल्ली का सुल्ला कर गया धोखा, दिखा गया अपना असली रूप।''
      प्रदुमण सिंह समझते हुए भी पूछता है-
      ''क्या हो गया ?''
      ''होना क्या था, भैण देनी का दुकानों पर अपने समोसे रख गया।''
      मीका तारिक़ को गालियाँ निकाल ही रहा था कि निम्मा आ जाता है। तारिक़ वाला राउंड अब निम्मा लगाता है। निम्मा कहता है-
      ''अंकल, तारिक़ सभी दुकानों पर घूम गया, अपना माल फ्री में रख गया।''
      प्रदुमण सिंह को बड़ा झटका लगता है। वह जानता है कि बिजनेस में यह हो सकता है, पर पहले कभी इसे इतनी शिद्दत से महसूस नहीं किया। बलबीर ने अपनी फैक्टरी यद्यपि लगाई है, पर उसकी दुकानों पर कभी नहीं जाता। लेकिन तारिक़ पूरा धोखेबाज़ निकला। मीका कहने लगता है-
      ''अंकल, फरीदा ने भी तुम्हारी यारी की लाज नहीं रखी।''
      मीके द्वारा यूँ मुँह फाड़कर यह बात कह देना उसको बहुत बुरा लगता है, पर वह उसकी ओर ध्यान दिए बग़ैर कहता है-
      ''इसको सबक सिखाना ही पड़ेगा।''
      ''अंकल, इस साले तारिक़ को मीके की दोस्ती का तो पता है, पर दुश्मनी का नहीं पता।'' मीका कहता है।
      प्रदुमण सिंह पहले उसकी ओर और फिर निम्मे की ओर देखता है। फिर निम्मा भी हामी भरता है। वह उन दोनों को ऊपर अपने दफ्तर में ले जाता है। बोतल खोलता है। वह दफ्तर में हमेशा ही व्हिस्की रखता है। बोतल को वे तीनों ही जल्दी-जल्दी ख़त्म करते हैं और तारिक़ की फैक्टरी की ओर चल पड़ते हैं। राह में से एक बोतल और खरीदते हैं और उसकी फैक्टरी पर पहुँचने से पहले उसे भी ख़त्म कर देते हैं। प्रदुमण सिंह को पता है कि वे ज्यादा शराबी हो गए हैं और लड़ाई करने योग्य नहीं रहे, पर उसको यह भी यकीन है कि तारिक़ उनके मुकाबले पर नहीं आएगा। उसकी सेहत लड़ाई-झगड़े लायक नहीं।
      फैक्टरी पहुँचकर प्रदुमण सिंह दरवाजे क़ो धक्का मारकर गाली निकालता है। तारिक़ बाहर निकलता है। मीका देखते ही तारिक़ को मुक्के जड़ने आरंभ कर देता है। तारिक़ बांहों से मुँह को बचाते हुए गिर पड़ता है। तब तक फैक्टरी के दूसरे कामगार भी बाहर निकल आते हैं। फरीदा उन तीनों को गालियाँ बकने लगती है।
(जारी…)