समकालीन पंजाबी साहित्य की उत्कृष्ट कृतियों की तलाश

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Wednesday, December 18, 2013

पंजाबी उपन्यास



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'साउथाल'' इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत अटवाल का यह चौथा उपन्यास है। इससे पूर्व उनके तीन उपन्यास - 'वन वे', 'रेत', और 'सवारी' चर्चित हो चुके हैं। ''साउथाल'' इंग्लैंड में एक शहर का नाम है जहाँ अधिकतर भारत से गए सिक्ख और पंजाबी परिवार बसते हैं। यहाँ अवस्थित पंजाबी
परिवारों के जीवन को बेहद बारीकी से रेखांकित करता हरजीत अटवाल का यह उपन्यास इसलिए दिलचस्प और महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से हम उन भारतीय लोगों की पीड़ा से रू-ब-रू होते हैं जो काम-धंधे और अधिक धन कमाने की मंशा से अपना वतन छोड़ कर विदेशों में जा बसते हैं और वर्षों वहाँ रहने के बावजूद वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।

साउथाल
हरजीत अटवाल

हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

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पाला सिंह सुबह-सुबह गुरुद्वारे से लौटता है। बस-स्टॉप के सामने फिर एक बहुत ही गंदा पोस्टर लगा हुआ है। एक नंगी औरत खड़ी अपनी कच्छी में देख रही है और लिखा है कि हमारे पास बाल रंगने के लिए इतना बढ़िया रंग है कि तुम अपने बालों का असली रंग भूल जाओगे। और असली रंग देखने के लिए तुम्हें गुप्तांग के बालों पर नज़र डालनी पड़ेगी। पाला सिंह कुछ देर खड़े होकर पढ़ता है और हँसता हुआ आगे बढ़ जाता है। वह जानता है कि इस पोस्टर से सेमे और अनवर को बहुत तकलीफ़ होगी। पहले तो वे पोस्टर को पेंट करके इस औरत को कपड़े पहना देंगे। इसपर भी जब उनकी तसल्ली नहीं होगी तो फिर पोस्टर फाड़ देंगे।
      वह घर पहुँचता है। रसोई में से आ रही चाय की सुगंध से समझ जाता है कि मनिंदर उठ गई है। फिर पोर्च में जाकर देखता है कि मनिंदर जा चुकी है, क्योंकि उसकी जूती पोर्च में नहीं पड़ी। मनिंदर सवेरे जल्दी चली जाती है और रात को देर से लौटती है। कालेज के बाद कहीं काम करती है। पाला सिंह बहुत कहता है कि उसको काम करने की ज़रूरत नहीं है। उसके पास रुपया-पैसा है, पर वह नहीं मानती। वह अपनी जेब ख़र्ची के लिए काम करके खुश है। वैसे पाला सिंह को यह बात अच्छी भी लगती है कि इस तरह बच्चों में काम करने की भावना प्रबल रहती है और स्वाभिमान भी कायम रहता है।
      वह लाउंज में आकर पर्दे हटाता है। इधर-उधर बिखरी पड़ी वस्तुओं को करीने से रखता है। फ्रिज़ खोलकर राशन की स्थिति का जायज़ा लेता है कि कहीं शॉपिंग तो नहीं करने वाली। वह अपने लिए चाय बनाता है और फ्रंट विंडो में खड़े होकर चुस्कियाँ भरने लगता है। बाहर सड़क खाली है। हल्की बूँदाबाँदी हो रही है। वक़्त तो बेशक सुबह के नौ बजे का है, पर मानो अँधेरा-सा हो रहा हो। वह इंग्लैंड के मौसम को कोसता मूंछों को मरोड़ा देने लगता है। खाली कप को रसोई में रखने जाता है तो गार्डन को देखने लगता है। कितना गंद पड़ा हुआ है। घास ही कितना बड़ा हो गया है। वह सोचता है कि दिन सामान्य हों तो गार्डन को ठीक करे। पहले उसको गार्डनिंग से बहुत नफ़रत हुआ करती थी। वह हँसते हुए कहा करता कि खेती से डर कर तो इंग्लैंड भाग आया और अब यहाँ भी यह काम मुझसे नहीं होता। परंतु अब उसको टाइम पास करने का यह बढ़िया तरीका लगता है। नसीब कौर जीवित थी तो वह खुद गार्डन में मेथी और धनिया बीज लिया करती थी। पाला सिंह सोच रहा है कि इस बार वह भी कुछ सब्ज़ियाँ बीजेगा, यद्यपि खाने वाला वह अकेला ही है।
      वह टेलीविज़न लगा लेता हे। समाचार आ रहे हैं। उसको बहुत दिलचस्पी नहीं है। फिर अचानक प्रीती की ख़बर आती है। पाला सिंह को पता है कि इस औरत ने पिछले दिनों अपने पति की हत्या कर दी थी। स्त्रियों के कई संगठनों ने प्रीती के हक़़ में प्रदर्शन किया हे। स्त्रियों की मांग है कि प्रीती पर केस न चलाया जाए क्योंकि क़त्ल करते समय वह अपने होश में नहीं थी। पाला सिंह सोचता है कि स्त्रियाँ कैसे एक-दूजे के साथ खड़ी हो जाती हैं। ये पुरुष एक-दूसरे से खार खाते ही मारे जाते हैं। साधू सिंह के हालात भी तो ऐसे ही थे। उसको क़त्ल करते समय कौन-सी समझ थी। किसी पुरुष ने उसके लिए खुलकर नारा नहीं लगाया था। बस, अंदर घुसकर कुढ़ते रहे।
      करीब ग्यारह बजे डोर बेल होती है। वह सोचने लगता है कि कौन होगा। डाकिया तो जा चुका है। वह उठकर दरवाज़ा खोलता है। गुरदयाल सिंह दरवाज़े पर खड़ा है। वह हैरान हो जाता है। गुरदयाल सिंह कभी भी इस तरह उसके घर नहीं आया। वह कहता है-
      आज चींटी के घर नारायण किधर से ?“
      मैंने सोचा, तू कई दिन से आया नहीं, मैं ही मिल आऊँ। पहले मैं सोचता था कि फोन करके देख लूँ, घर में है भी कि नहीं। फिर सोचा कि ऐसे मौसम में तूने कहाँ जाना है।
      ये देख, मौसम को क्या हुआ पड़ा है। कई दिन हो गए ऐसा ही चलते। बाहर निकलना ही नहीं होता। पब तक बड़ी मुश्किल से जाता हूँ। आज गुरुद्वारे भी कई दिनों बाद गया। तू सुना कैसे ?“
      बस, ठीक है।
      घर में अकेले ही लगते हो ?“
      और क्या मेरे साथ रानी एलिजाबेथ होगी! गुरदयाल सिंह, तू भी मखौल करता है। लड़के साले पीठ दिखा गए तो अकेला ही होना था।
      मनिंदर भी नहीं दिखती।
      वो यूनिवर्सिटी गई है।
      कब तक लौट आती है ?“
      लेट ही आती है, काम पर जो जाती है।पाला सिंह बताता है।
      गुरदयाल सिंह चुप हो जाता है। फिर कुछ कहने की हिम्मत करता कहता है-
      पाला सिंह, मनिंदर के बारे में एक बात करनी थी।
      गुरदयाल सिंह, अभी पढ़ लेने देते हैं। डिग्री हुई तो विवाह के बारे में सोचेंगे।
      गुरदयाल सिंह ख़ामोश हो जाता है। कुछ देर सोचता रहता है कि बात कैसे आरंभ करे। वह कहता है-
      तुझे पता है न कि सिक्खों और मुसलमानों के लड़के आपस में लाठियाँ, किरपाणें निकाले फिरते हैं।
      ये सब तो प्रताप खैहरे और चैधरी के डाले हुए पंगे हैं।
      यह भी ठीक है पाला सिंह, पर ये लड़के जो कालेजों, यूनिवर्सिटियों में जाते हैं, वो भी ग्रुप बनाए घूमते हैं। कारे का लड़का ऐसे ही किसी ग्रुप का लीडर है।
      वैसे तो यह कारा भी कौन-सा लीडरों से कम है।
      नहीं पाला सिंह, बात कुछ सीरियस है।
      अच्छा!
      बात असल में यह है कि मुसलमानों के लड़के हमारी लड़कियों को फंसा रहे हैं। कड़े पहनकर फुसला लेते हैं कि हम भी सिक्ख ही हैं और बाद में असलीयत का पता चलता है।
      तभी तो साधू सिंह जैसे जेलों में बंद हैं।
      असल में कुछ शरारती लोग ऐसे लड़कों को एनकरेज करते हैं कि सिक्खों की लड़कियों को फंसाओ और मुसलमान बनाओ।
      गुरदयाल सिं, मैंने वो लीफ़लैट देखे हैं जो ये लोग बाँटते फिरते थे, पर वो तो पुरानी बातें हैं।
      नहीं, अभी भी चली जाती हैं। कल कारा मेरे पास आया था, दुखी था बेचारा।
      क्यों ? उसकी लड़की भी ?“
      नहीं, उसका लड़का लीडर जो है। कारा डरता है कि लड़का किसी बड़ी मुसीबत में न फंस जाए। किसी लड़की को लेकर लड़कों के ग्रुप में आजकल बहुत टेंशन चल रही है। कोई लड़की एक मुसलमान लड़के के साथ सरेआम घूमती फिरती है और इसे लेकर हमारे लड़के अपना अपमान समझते हैं। उन्होंने लड़की को बहुत समझाया, पर लड़की कहती है कि उसने तो विवाह भी उसी के साथ करवाना है।
      पाला सिंह को गुरदयाल सिंह का बात करने का ढंग अच्छा नहीं लग रहा। फिर उसको यह भी अजीब लग रहा है कि गुरदयाल सिंह चलकर उसके घर आया है। पहले वह ऐसे कभी नहीं आया। वह तो काम में ही इतना व्यस्त रहता है कि विवाह समारोह में भी नहीं जाया करता। फिर उसको यह भी पता है कि कारा का लड़का मनिंदर वाली यूनिवर्सिटी में जाता है। पाला सिंह को डर लगता है कि गुरदयाल सिंह कोई ख़तरनाम बात न कह दे। वह दिल पर हाथ रखता उसकी बात सुनता रहता है।
      गुरदयाल सिंह कहता है-
      पाला सिंह, दुख वाली बात यह है कि वह लड़की अपनी मनिंदर है।
      नहीं गुरदयाल सिंह, धोखा लगा होगा। ये कारा साला कंजर है। मुझे बदनाम करने के लिए कह रहा है सब। मैं क्या अपनी लड़की को जानता नहीं। यह सब कारे की कारस्तानी है।कहते हुए पाला सिंह गुस्से में काँपने लगता है। बोलता है-
      इस कारे कंजर ने मेरे हाथों मरना है।
      पाला सिंह, अकेले कारे के कहे पर मैं तेरे साथ बात नहीं करने वाला था। अपने शिवराज की घरवाली ने एक दिन मनिंदर से फोन पर बात की थी और कहा था कि रुक जाए, छोड़ दे उस लड़के की सोहबत।
      पाला सिंह उसकी तरफ़ देखता है। पाला सिंह की आँखें क्रोध में लाल हो रही हैं। वह कहता है-
      गुरदयाल सिंह, अगर यह सच हुआ तो मैं सीधा जाऊँगा साधू सिंह के साथ वाली सेल में।
      नहीं पाला सिंह, पहले लड़की को समझा। वह जानती है कि तू बहुत गुस्से वाला है। डर जाएगी। फिर जल्दी से लड़का देखकर विवाह कर देते हैं।
      पाला सिंह समझते हुए हाँ’ में सिर हिला देता है। गुरदयाल सिंह जाने के लिए उठ खड़ा होता है। जाते हुए कहता है-
      बहुत सब्र से काम लेने की ज़रूरत है। कोई ऐसी बात न करना कि बात बढ़ जाए। साधू सिंह की लड़की की तरह घर से भाग जाए।
      गुरदयाल सिंह, मैं भागने लायक छोड़ूँगा तभी न भागेगी।
      नहीं पाला सिंह, सब्र और हौसले से काम लेना। उसको बैठकर समझाना।
      पता नहीं गुरदयाल सिंह अब क्या होगा, मैं कोशिश करूँगा।
      गुरदयाल सिंह चला जाता है। पाला सिंह बाथरूम में जाता है। शीशे में अपना चेहरा देखता है। उसको अपनी मूंछ में फ़र्क़ नज़र आता है। वह मूंछों को मरोड़ा देता हुआ लौट आता है। अल्मारी में से बोतल उठाता है। एक पैग डालकर बैठ जाता है और सोचने लगता है कि अब उसको क्या करना चाहिए। क्यों न घर लौटी मनिंदर का आते ही गला दबा दे क्योंकि वह उसको सब्र से समझा नहीं सकेगा। उसको नसीब कौर याद आने लगती है। वह ज़िन्दा होती तो इस मसले से खुद निपटती। उसको पता तक न चलने देती।
      वह घड़ी देखता है। इस समय वह दाल बना रहा होता है और फिर बाहर का चक्कर लगाने चला जाया करता है, पर आज उसका कुछ भी करने को मन नहीं है। वह उठकर अपने लिए सैंडविच बनाता है और एक पैग व्हिस्की का और बना लेता है। उसको यकीन हो रहा है कि उसको साधू सिंह वाले राह पर ही चलना पड़ेगा। वह चलेगा भी। उसको किसी बात का पश्चाताप नहीं होगा। परंतु साधू सिंह शायद जल्दी कर गया होगा। उसको स्वयं जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए। इस काम के लिए प्रौफेसनल की मदद लेनी चाहिए। रोज़ ही कितनी गुप्त हत्याएँ होती हैं। क़ातिल तक का पता नहीं चलता। वास-प्रवासवाले के क़ातिल अभी तक नहीं पकड़े गए। या फिर फुसलाकर मनिंदर को इंडिया ले जाए। वहाँ तो यह काम बहुत ही आसान है। हाँ, इंडिया ही ले जाए। पर क्या वह इतना सब्र कर सकेगा कि तब तक यह सब बर्दाश्त करता रहे। उसके मन में तरह तरह के विचार आ रहे हैं। उसका सिर इन विचारों से फटने को हो रहा है। उसका दिल बेहद अशांत-सा हो रहा है। घर मानो उसको खाने को दौड़ रहा हो। वह ओवरकोट पहनकर बाहर निकल जाता है।
      बाहर अभी भी हल्की बारिश हो रही है। उसका बारिश की ओर कोई ध्यान ही नहीं है। वह चलता हुआ लेडी माग्रेट रोड से होता हुआ दुकानों की परेड के पास आ जाता है। व्हिस्की की बोतल खरीदता हैं। दुकानदार उससे कोई बात करनी चाह रहा है, पर वह अनसुनी करके पॉर्क की तरफ़ चला जाता है। बारिश और तेज़ हो उठती है परंतु वह धीरे-धीरे चलता रहता है। वह मनिंदर के क़त्ल के बारे में गंभीर होकर सोचने लगता है। अगर वह किसी प्रौफेशनल की मदद लेगा तो शायद कई मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा जैसे कि ऐसे व्यक्ति की तलाश, उसके लिए रुपये-पैसे का प्रबंध और यदि प्रौफेशनल पकड़ा गया तो वह उसका नाम ले देगा। इससे तो बेहतर होगा कि यह काम वह स्वयं करे। वह मनिंदर को सिर्फ़ एक बार समझाए। यदि न समझे तो गला पकड़कर दबा दे और सीधे पुलिस स्टेशन चला जाए। जो होगा, देखा जाएगा। फिर उसको ख़याल आता है कि एक तो वह कुछ शराबी हुआ पड़ा होगा, उसके हाथों में उतनी ताकत नहीं होगी। दूसरा मनिंदर भी सेहतमंद है और शायद उसको इस मन्सूबे में कामयाब न होने दे। शायद, आगे से वह मुकाबला भी करे और इस तरह बात बिगड़ सकती है। सारे हालात उसके वश से बाहर भी निकल सकते हैं। क्यों न छुरी से उसका गला काट दे। वह स्वयं से प्रश्न करता है कि क्या उसको अपनी बेटी से कोई बातचीत भी करनी चाहिए कि सीधे हमला ही करना चाहिए। एक अवसर देना चाहिए कि नहीं। वह एक बात का ध्यान अवश्य रखेगा कि वह अधिक शराब नहीं पियेगा।
      घर लौटकर वह सैटी के पास खड़े होकर देखता है कि वह किस जगह पर बैठा करता है और मनिंदर आम तौर पर कहाँ बैठती है। उस पर हमले के लिए इतनी दूरी को कैसे तय करेगा। वह सोचता है कि वह आराम-कुर्सी पर बैठा होगा और मनिंदर को अपने समीप सैटी पर बैठने के लिए कहेगा। वह फुर्ती से उछलकर छुरी उसके गले पर रख गर्दन काट देगा, हलाल करने की तरह। किसी तरह भी भावुक नहीं होगा। अपने काम में देरी भी नहीं करेगा। छुर्री गर्दन पर रखने के बाद मनिंदर की कोई भी मिन्नत नहीं सुनेगा। वह उठकर रसोई में चला जाता है और तीखा-सा चाकू उठा लेता है। वह सोचता है कि चाकू भारी होगा तो वार करने में आसानी होगी। वह चाकू लेकर फिर सोफे पर आ बैठता है। आराम-कुर्सी से सैटी तक उठकर शीघ्रता से वार करने का अभ्यास करने लगता है।
      वह एक पैग और डाल लेता है। वह घड़ी की ओर देखता है। चार बज रहे हैं। मनिंदर का पता नहीं कितने बजे आए। अक्सर देर से ही लौटती है। यदि देर से आई तो तब तक वह ज्यादा शराबी हो जाएगा। उस पर हमला करने की उसकी शक्ति और कमज़ोर पड़ जाएगी। वह उठकर एक और चाकू उठा लाता है जो कि आगे से तीखा है हालाँकि यह लंबा नहीं है। वह सोचता है कि जिगर में घोंपने के लिए लंबे चाकू की ज़रूरत भी नहीं होती। वह पास बैठी मनिंदर के जिगर में चाकू घोंपकर उसका जिगर फोड़ देगा और कुछ ही मिनट में उसका काम तमाम हो जाएगा। वह पेट को दायीं ओर से दबाकर अपने जिगर को टटोलकर देखता है कि बाहर की चमड़ी से कितना गहरा होगा अर्थात चाकू वहाँ तक पहुँच सकेगा कि नहीं। दो सेब भी अपने पास लाकर रख लेता है। चाकू के करीब पड़े होने का बहाना भी बनाना चाहता है।
      वह व्हिस्की के घूंट भरता सोच रहा है कि अब सब कुछ तैयार है। यदि आवश्यकता है तो मनिंदर की। आर्मी में सीखा सब कुछ आज काम आएगा। आर्मी में बताया जाता है कि पास में असला न हो तो दुश्मन से कैसे निपटना है।
      मनिंदर देर ही लौटती है। वह फ्रंट रूम में जाती है। पाला सिंह सैटी पर ही टेढ़ा हुआ पड़ा है। पास रखी बोतल खाली पड़ी है। साबुत सेब पर चाकू लगा हुआ है। वह उसकी जूती और जुराबें खोलती है। सिर पर से पगड़ी उतार कर एक तरफ़ रखती है और कंबल लाकर उसको ओढ़ा देती है।
(जारी…)