''साउथाल'' इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत अटवाल का यह चौथा उपन्यास है। इससे पूर्व
साउथाल
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
।। चौबीस ॥
साउथाल की कैसल रोड। पच्चीस नंबर घर। रसोई में से मीट को लगते तड़के की खुशबू सबकी भूख जगा रही है। बिल्ला मीट में कड़छी घुमा रहा है और खड़े-खड़े छोटे-छोटे घूंट भी भर रहा है। हर वीकएंड की तरह महफ़िल चल रही है। सभी तारा के कमरे में बैठे हैं। आगे वाला कमरा तारा के पास है और पिछला बिल्ले के पास। ऊपर वाले तीन कमरों में एक में माइकल रहता है, दूसरे दो कमरे मिन्दी और निम्मे के पास हैं। कभी कोई कमरा छोड़ जाए तो इनके जैसा कोई दूसरा फौजी आ जाता है। कई बार एक कमरे में दो या तीन जने भी रहने लगते हैं। कुछ देर तो जोध सिंह की नज़र से छिपा कर रख सकते हैं पर जब पता चल जाए तो वह किराया बढ़ा देता है। जोध सिंह को अधिक से अधिक किराया चाहिए, आदमी इस घर में चाहे पचास रहें। कभी-कभी मीका और देबू भी आ जाया करते हैं। पहले तो वे रहने ही वहीं लग पड़े थे पर बाद में मालिक मकान जोध सिंह को ख़बर हो गई। उन्हें जाना पड़ा। जोध सिंह का उसूल है कि रहना है तो किराया दो। मुफ्तखोरों को वह पास नहीं फटकने देता। सप्ताहांत पर यूँ इकट्ठे होने को लेकर वह अधिक बुरा नहीं मनाता। कभी-कभी जोध सिंह स्वयं भी इनमें शामिल होकर मीट खा जाता है, शराब पी भी पी जाता है और साथ ही, किराया निकलवा लेता है। उसका तरीका है कि मीठे बनकर किराया ले लो, यदि नहीं तो फिर धमकी तो है ही। इनमें से बहुत से किरायेदार साउथाल में ग़ैरकानूनी ही हैं। अधिकांश के पास इस मुल्क में रहने के लिए काग़ज़-पत्र नहीं हैं।
बाकी सारे किरायेदार तो नकदी किरायेदार हैं पर माइकल का किराया सोसल सिक्युरिटी से आता है। कई बार माइकल बन्द करवा देता है और दो चार हफ्ते की हेराफेरी भी कर जाता है। जोध सिंह के साथ कई बार वह लड़ भी पड़ता है। पाकी बास्टर्ड तक भी कह जाता है। पर उसका किराया काफ़ी आ रहा है जिस कारण जोध सिंह की ऊँची-नीची बात भी सह लेता है। वह जानता है कि माइकल आइरिश होने के कारण नस्लवादी नहीं है, वैसे ही हेराफेरी की ताक में रहता है। यदि दो चार हफ्तों के किराये की गड़बड़ कर भी जाए, फिर भी माइकल की ओर से दो कमरों के बराबर का किराया आ रहा है। माइकल जोध सिंह को चाहे कुछ भी कह लेता हो, परन्तु दूसरों के समक्ष नहीं बोलता। वह जानता है कि वे पीट भी देंगे। बल्कि वह तो दूसरों से बना कर रखता है। कुछ न कुछ खाने-पीने को जो मिल जाता है। माइकल को कभी-कभार कोई मिलने वाला भी आ जाता है। वह उसके जैसा ही गन्दा-सा होता है। उलझे बालों वाला और पुराने गन्दे कपड़ों वाला। एक औरत भी उसको मिलने आया करती है, पर वे सब किसी के आनन्द में दख़ल नहीं देते।
वे सभी तारा के कमरे में बैठे हैं। तीसरी बोतल चल रही है। पाँच लोगों को दो बोतलों ने कुछ नहीं कहा। इनमें एक तारा ही है जिसके पास इस देश की कानूनी रिहायश का हक है, पर वह भी अभी स्थायी नहीं हुआ। केस चल रहा है। पता नहीं वापस ही भेज दिया जाए। जोध सिंह ने तारा की ड्यूटी लगा रखी है कि वह सबसे किराया ले लिया करे। ऊपरवाले कमरों का पैंतीस पैंतीस पौंड किराया है और नीचे के कमरों का चालीस-चालीस। किराया इकट्ठा करने के बदले में तारा भी पैंतीस पौंड ही हफ्ते के देता है। वह सबसे कहता है-
''लो भई, शराबी होने से पहले पहले किराया दे दो।''
''तू साले, जोधे का मुंशी है !''
अपना पैग उठाता मीका कहता है। तारा थोड़ा गुस्से में देखता है।
''मीके, तू बाहर का बंदा है, हमारा गैस्ट। तू न बोल हमारे बीच।''
''बोलूँ कैसे नहीं, हरेक वीकेंड पर जब मूड बनता है, तू किराया मांगने बैठ जाता है। एक आध हफ्ता छोड़ दिया कर।''
''हाँ, खोती को हाथ लगा हुआ है न।''
''नहीं लगा तो लगा ले।''
''मैंने तुम्हें मालिक मकान का हुक्म सुना दिया, किराया देना या न देना तुम्हारी मर्ज़ी।''
तारा को पता है कि मीका यूँ ही टांग अड़ा रहा है। किराया देने वालों ने तो देना ही है। अब न दिया तो सवेरे देंगे। कल इतवार है। इतवार को जोध सिंह खुद इधर का चक्कर लगा ही लिया करता है। तारा द्वारा बात को घुमाकर छोड़ देना मीका को चुभने लगता है। वह कहने लगता है-
''तारे, मैं देख रहा हूँ, जब से तूने केस एप्लाई किया है, तू बदल गया है। एक तेरा ये पेट तक लम्बी दाढ़ी वाला जोध सिंह और दूसरा वो शराबी संधू। इनके सिर पर ही तू थानेदार बना फिरता है। जिस दिन मैं पक्का हो गया, तुम्हें अकेले-अकेले को देख लूँगा।''
मीका इस प्रकार गंभीर है मानो अभी कुछ कर देगा। बिल्ला बोलता है-
''मीके, तूने करना कुछ भी नहीं, बातें ऐसी करता है जैसे रामगढ़िया बदमाश हो।''
''इसकी इसी जुबान ने इसको भाई के घर से निकाला है। गप्प ऐसे मारेगा जैसे पहाड़ हिला देना हो। कभी चींटी भी मारी नहीं होगी।''
''मिन्दी साले, तूने मेरी वो साइड नहीं देखी... मैं दुनिया इधर की उधर कर दूँ।''
''फिलहाल, तू ये टेबल न हिला, मीट वाली कटोरी न गिरा देना ऊपर।''
''असल में मीके को रणजीत कौर के पास गए बहुत दिन हो गए, तभी...।''
रणजीत कौर का नाम सुनकर मीका का चेहरा खिल उठता है। वह अपना पैग खत्म करते हुए कहता है-
''उसने तो भई रेट बढ़ा दिया।''
''उसने मर्सडीज खरीदी है, और फिर बिन्दी-सुरखी भी अब महंगी हो गई हैं, रेट तो बढ़ाना ही था। और फिर गुरुद्वारे के बिल्डिंग फंड में भी उसने काफ़ी पैसे दिए हैं।''
''उस दिन ज्ञानी कहता था कि लड़को कुछ और दो इस फंड के लिए, देखो रणजीत कौर ने हजार पौंड दे दिया। मैंने कहा, ज्ञानी जी ये भी हमारे ही हैं। बस, तुम्हारे पास आए उसकी मार्फ़त हैं।'' निम्मा बताता है।
वे सभी हँसते हैं। रणजीत कौर साउथहाल की जानी-पहचानी कॉलगर्ल है। उन जैसे छडों में वह बहुत लोकप्रिय है और सस्ती भी। एक ही समय में ज्यादा ग्राहक हों तो वह कुछ रिआयत भी कर देती है। पहले उसके पास हौंडा कार होती थी। कार से ही पता चला जाता था कि किसने उसको बुला रखा है। तात्पर्य यह कि जिसके दरवाज़े पर यह हौंडा कार खड़ी होती, उसकी जेब हल्की हो रही होती। अब उसने मर्सडीज़ खरीद ली है। मर्सडीज है तो पुरानी सी, पर यह नाम बड़ा है। वह चाहती है कि बड़ी कार से बड़ा ग्राहक ढूँढ़े और रेट भी कुछ बढ़ा दे। जब से उसने मोबाइल लिया है, तब से काम करना आसान हो गया है। घर बैठे किसी के फोन की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती। सबके साथ घूमते-फिरते ही बात हो जाती है। वे सब रणजीत की बातें करते हैं। मिन्दी कहता है-
''रणजीत की माइलेज हालांकि हाई है, पर साफ है। लेकिन ये जो छिन्दो, राणी और रतनी रेड लाइटों पर खड़ी होती हैं, ये औरतें ठीक नहीं हैं।''
''बड़ा तजुर्बा है तेरा तो।''
''मीके, तजुर्बा तो होगा ही, चल फिर कर मेला देखते हैं, मैं कौन सा पीछे इंडिया में ब्याहा हुआ हूँ।''
उनमें से मीका और तारा भारत में ब्याहे हुए हैं। पत्नियाँ वहीं रहती हैं। मीका काफ़ी देर तक अपने ब्याहे होने को छुपाकर रखता है, पर पता चल ही जाता है ऐसी बातों का। ब्याहे होने की बात सुनकर मीका अक्सर चुप हो जाता है। बिल्ला उसको छेड़ने लगता है-
''मीके, अगर बाहर ही आना था तो उस बेचारी को क्यों फंदा डालना था। ब्याह न करवाता।''
''घरवाले नहीं हटे। ये साला घुन्ना-सा मेरा भाई इंडिया गया हुआ था, जो अब पैर नहीं लगने दे रहा मेरे।''
मीका थोड़ा-सा उदास होकर कहता है। बात करते हुए उसकी पत्नी की तस्वीर उसकी आँखों के सामने घूमने लगती है। एक पल के लिए वह अपने गाँव में जा पहुँचता है।
तारा एकबार फिर किराया मांगता है। बिल्ला और मिन्दी उसको दे देते हैं। निम्मा सवेरे देने का वायदा करते हुए कहता है-
''यह जोध सिंह भी माइकल से ही ठीक रहता है। हमें तो यूँ ही कीड़े-मकौड़े समझता है।''
''उसके पास तो यह डर के मारे जाता ही नहीं कि कहीं दाढ़ी ही न पकड़ ले।''
''पकड़ ले तो पकड़ ले, इसको कोई परवाह नहीं, यह तो पैसे का पुत्त है।''
वे सभी जोध सिंह के बारे में बुरा-भला बोलते हैं। मीका उनको रोकते हुए कहता है-
''आदमी जैसा मर्ज़ी हो, साधू सिंह का केस लड़ने के लिए इसी ने पैसे इकट्ठे किए हैं।''
''उसको तो पागल लोग हँस-हँसकर दिए जाते थे जैसे साले ने कोई देशभक्ती का काम किया हो। बेटी मारकर सूरमा बना फिरता है।''
''नहीं भाई, उससे अपनी बेइज्ज़ती देखी नहीं गई।''
''और अब सारी दुनिया को पता चल गया।''
''यार, लड़की को नहीं मारना चाहिए था। गलत किया उसने, पाप किया।''
''मारने से तो अच्छा था हमारे जैसे के संग ब्याह देता, पक्के तो हो जाते।''
निम्मा कहता है। बिल्ला उदास होकर कहता है-
''मुझे तो ऐसा लगता है जैसे उसकी फोटो मेरी ओर ही देख रही है।''
''तू तो बिल्ले, मुफ्त में ही आशिक बन बैठता है।'' तारा कहता है।
मीका के मोबाइल पर घंटी बजती है। वह हिसाब लगता है कि इस वक्त इंडिया में कितने बजे होंगे। फिर कहता है-
''इस वक्त तो सभी हो रहे होंगे।''
''क्या मालूम, किसी ने जगा रखी हो।'' तारा कहता है।
उसकी बात पर सभी हँसने लगते हैं। मीका जोश में आकर बोलता है-
''मेरी को जगाने वाला कोई पैदा नहीं हुआ। तू अपनी के बारे में सोच। मेरे तो दस किल्ले हैं उसके खाने के लिए।''
''जनानी को दस किल्ले नहीं चाहिए होते, बस, एक ही चाहिए होता है पर अगर पास हो।''
''निम्मे, औरत औरत का फर्क है, तेरी तरह मुझे भाई को बदामों के लिए अलग से पैसे नहीं भेजने पड़ते।'' मीका बांह निकाल कर कहता है।
सभी ठहाका मारकर हँस रहे हैं। बाहर किसी के आने की आहट में दरवाज़ा खुलने की आवाज़ होती है। निम्मा बोलता है-
''माइकल होगा।''
''आज माइकल ही ठोक दें, साला मूड सा बना हुआ है।''
मीका उभरते हुए कहता है।
''हमें क्या कहता है बेचारा।''
''हमें तो नहीं, पर जोध सिंह को तो पाकी कहता ही है।''
''जोध सिंह की बात जोध सिंह के साथ गई।''
''बाकी बात तो गई, पर पाकी वाली बात कैसे चली जाएगी, यह गाली तो सभी के लिए है।''
''मीके, तू तो पंगा डालकर चला जाएगा, पर हमकों विपदा में डाल जाएगा।''
''तुम सो जाओ यार, मुझे सुबह काम पर भी जाना है।'' तारा कहता है।
उसको रविवार को भी काम पर जाना पड़ता है। आमतौर पर सात दिन ही काम चलता है। वह जोध सिंह के साथ ही काम करता है। जोध सिंह का डबल ग्लेजिंग का काम है। तारा पहले उसके साथ विंडो तैयार करवाता है और फिर आर्डर के हिसाब से फिट करके आता हे। जोध सिंह का वह खास भरोसेमंद कर्मचारी है। अन्य कर्मचारियों से तारा को रेट भी कुछ अधिक मिलता है इसलिए भी तारा उसके प्रति काफ़ी वफ़ादार है।
सुबह जब वह उठता है तो बाकी सब गहरी नींद में सोये पड़े होते हैं। तारा काम पर चला जाता है। आज उन्होंने हैरो में किसी के घर की विंडो बदलनी हैं। उसके फैक्टरी में पहुँचते ही जोध सिंह वैन लेकर तैयार बैठा मिलता है। पहली बात वह तारा से किराये के बारे में पूछता है। वह अपना, बिल्ले का और मिन्दी का किराया दे देता है और कहता है-
''निम्मा आज देगा।''
''उसकी तरफ पिछले वीक का भी रहता था।''
''वह भी दे देगा।''
''ये बिल्ला भी एक हफ्ते के पैसे मारने की कोशिश कर चुका है। ऐसा मैं नहीं करने दूँगा किसी को। हमें फौजी ही तंग करने लग पड़े तो फिर कैसा जीना हुआ।''
(जारी…)
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