समकालीन पंजाबी साहित्य की उत्कृष्ट कृतियों की तलाश

‘अनुवाद घर’ को समकालीन पंजाबी साहित्य की उत्कृष्ट कृतियों की तलाश है। कथा-कहानी, उपन्यास, आत्मकथा, शब्दचित्र आदि से जुड़ी कृतियों का हिंदी अनुवाद हम ‘अनुवाद घर’ पर धारावाहिक प्रकाशित करना चाहते हैं। इच्छुक लेखक, प्रकाशक ‘टर्म्स एंड कंडीशन्स’ जानने के लिए हमें मेल करें। हमारा मेल आई डी है- anuvadghar@gmail.com

Wednesday, December 18, 2013

पंजाबी उपन्यास



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'साउथाल'' इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत अटवाल का यह चौथा उपन्यास है। इससे पूर्व उनके तीन उपन्यास - 'वन वे', 'रेत', और 'सवारी' चर्चित हो चुके हैं। ''साउथाल'' इंग्लैंड में एक शहर का नाम है जहाँ अधिकतर भारत से गए सिक्ख और पंजाबी परिवार बसते हैं। यहाँ अवस्थित पंजाबी
परिवारों के जीवन को बेहद बारीकी से रेखांकित करता हरजीत अटवाल का यह उपन्यास इसलिए दिलचस्प और महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से हम उन भारतीय लोगों की पीड़ा से रू-ब-रू होते हैं जो काम-धंधे और अधिक धन कमाने की मंशा से अपना वतन छोड़ कर विदेशों में जा बसते हैं और वर्षों वहाँ रहने के बावजूद वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।

साउथाल
हरजीत अटवाल

हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

51

पाला सिंह सुबह-सुबह गुरुद्वारे से लौटता है। बस-स्टॉप के सामने फिर एक बहुत ही गंदा पोस्टर लगा हुआ है। एक नंगी औरत खड़ी अपनी कच्छी में देख रही है और लिखा है कि हमारे पास बाल रंगने के लिए इतना बढ़िया रंग है कि तुम अपने बालों का असली रंग भूल जाओगे। और असली रंग देखने के लिए तुम्हें गुप्तांग के बालों पर नज़र डालनी पड़ेगी। पाला सिंह कुछ देर खड़े होकर पढ़ता है और हँसता हुआ आगे बढ़ जाता है। वह जानता है कि इस पोस्टर से सेमे और अनवर को बहुत तकलीफ़ होगी। पहले तो वे पोस्टर को पेंट करके इस औरत को कपड़े पहना देंगे। इसपर भी जब उनकी तसल्ली नहीं होगी तो फिर पोस्टर फाड़ देंगे।
      वह घर पहुँचता है। रसोई में से आ रही चाय की सुगंध से समझ जाता है कि मनिंदर उठ गई है। फिर पोर्च में जाकर देखता है कि मनिंदर जा चुकी है, क्योंकि उसकी जूती पोर्च में नहीं पड़ी। मनिंदर सवेरे जल्दी चली जाती है और रात को देर से लौटती है। कालेज के बाद कहीं काम करती है। पाला सिंह बहुत कहता है कि उसको काम करने की ज़रूरत नहीं है। उसके पास रुपया-पैसा है, पर वह नहीं मानती। वह अपनी जेब ख़र्ची के लिए काम करके खुश है। वैसे पाला सिंह को यह बात अच्छी भी लगती है कि इस तरह बच्चों में काम करने की भावना प्रबल रहती है और स्वाभिमान भी कायम रहता है।
      वह लाउंज में आकर पर्दे हटाता है। इधर-उधर बिखरी पड़ी वस्तुओं को करीने से रखता है। फ्रिज़ खोलकर राशन की स्थिति का जायज़ा लेता है कि कहीं शॉपिंग तो नहीं करने वाली। वह अपने लिए चाय बनाता है और फ्रंट विंडो में खड़े होकर चुस्कियाँ भरने लगता है। बाहर सड़क खाली है। हल्की बूँदाबाँदी हो रही है। वक़्त तो बेशक सुबह के नौ बजे का है, पर मानो अँधेरा-सा हो रहा हो। वह इंग्लैंड के मौसम को कोसता मूंछों को मरोड़ा देने लगता है। खाली कप को रसोई में रखने जाता है तो गार्डन को देखने लगता है। कितना गंद पड़ा हुआ है। घास ही कितना बड़ा हो गया है। वह सोचता है कि दिन सामान्य हों तो गार्डन को ठीक करे। पहले उसको गार्डनिंग से बहुत नफ़रत हुआ करती थी। वह हँसते हुए कहा करता कि खेती से डर कर तो इंग्लैंड भाग आया और अब यहाँ भी यह काम मुझसे नहीं होता। परंतु अब उसको टाइम पास करने का यह बढ़िया तरीका लगता है। नसीब कौर जीवित थी तो वह खुद गार्डन में मेथी और धनिया बीज लिया करती थी। पाला सिंह सोच रहा है कि इस बार वह भी कुछ सब्ज़ियाँ बीजेगा, यद्यपि खाने वाला वह अकेला ही है।
      वह टेलीविज़न लगा लेता हे। समाचार आ रहे हैं। उसको बहुत दिलचस्पी नहीं है। फिर अचानक प्रीती की ख़बर आती है। पाला सिंह को पता है कि इस औरत ने पिछले दिनों अपने पति की हत्या कर दी थी। स्त्रियों के कई संगठनों ने प्रीती के हक़़ में प्रदर्शन किया हे। स्त्रियों की मांग है कि प्रीती पर केस न चलाया जाए क्योंकि क़त्ल करते समय वह अपने होश में नहीं थी। पाला सिंह सोचता है कि स्त्रियाँ कैसे एक-दूजे के साथ खड़ी हो जाती हैं। ये पुरुष एक-दूसरे से खार खाते ही मारे जाते हैं। साधू सिंह के हालात भी तो ऐसे ही थे। उसको क़त्ल करते समय कौन-सी समझ थी। किसी पुरुष ने उसके लिए खुलकर नारा नहीं लगाया था। बस, अंदर घुसकर कुढ़ते रहे।
      करीब ग्यारह बजे डोर बेल होती है। वह सोचने लगता है कि कौन होगा। डाकिया तो जा चुका है। वह उठकर दरवाज़ा खोलता है। गुरदयाल सिंह दरवाज़े पर खड़ा है। वह हैरान हो जाता है। गुरदयाल सिंह कभी भी इस तरह उसके घर नहीं आया। वह कहता है-
      आज चींटी के घर नारायण किधर से ?“
      मैंने सोचा, तू कई दिन से आया नहीं, मैं ही मिल आऊँ। पहले मैं सोचता था कि फोन करके देख लूँ, घर में है भी कि नहीं। फिर सोचा कि ऐसे मौसम में तूने कहाँ जाना है।
      ये देख, मौसम को क्या हुआ पड़ा है। कई दिन हो गए ऐसा ही चलते। बाहर निकलना ही नहीं होता। पब तक बड़ी मुश्किल से जाता हूँ। आज गुरुद्वारे भी कई दिनों बाद गया। तू सुना कैसे ?“
      बस, ठीक है।
      घर में अकेले ही लगते हो ?“
      और क्या मेरे साथ रानी एलिजाबेथ होगी! गुरदयाल सिंह, तू भी मखौल करता है। लड़के साले पीठ दिखा गए तो अकेला ही होना था।
      मनिंदर भी नहीं दिखती।
      वो यूनिवर्सिटी गई है।
      कब तक लौट आती है ?“
      लेट ही आती है, काम पर जो जाती है।पाला सिंह बताता है।
      गुरदयाल सिंह चुप हो जाता है। फिर कुछ कहने की हिम्मत करता कहता है-
      पाला सिंह, मनिंदर के बारे में एक बात करनी थी।
      गुरदयाल सिंह, अभी पढ़ लेने देते हैं। डिग्री हुई तो विवाह के बारे में सोचेंगे।
      गुरदयाल सिंह ख़ामोश हो जाता है। कुछ देर सोचता रहता है कि बात कैसे आरंभ करे। वह कहता है-
      तुझे पता है न कि सिक्खों और मुसलमानों के लड़के आपस में लाठियाँ, किरपाणें निकाले फिरते हैं।
      ये सब तो प्रताप खैहरे और चैधरी के डाले हुए पंगे हैं।
      यह भी ठीक है पाला सिंह, पर ये लड़के जो कालेजों, यूनिवर्सिटियों में जाते हैं, वो भी ग्रुप बनाए घूमते हैं। कारे का लड़का ऐसे ही किसी ग्रुप का लीडर है।
      वैसे तो यह कारा भी कौन-सा लीडरों से कम है।
      नहीं पाला सिंह, बात कुछ सीरियस है।
      अच्छा!
      बात असल में यह है कि मुसलमानों के लड़के हमारी लड़कियों को फंसा रहे हैं। कड़े पहनकर फुसला लेते हैं कि हम भी सिक्ख ही हैं और बाद में असलीयत का पता चलता है।
      तभी तो साधू सिंह जैसे जेलों में बंद हैं।
      असल में कुछ शरारती लोग ऐसे लड़कों को एनकरेज करते हैं कि सिक्खों की लड़कियों को फंसाओ और मुसलमान बनाओ।
      गुरदयाल सिं, मैंने वो लीफ़लैट देखे हैं जो ये लोग बाँटते फिरते थे, पर वो तो पुरानी बातें हैं।
      नहीं, अभी भी चली जाती हैं। कल कारा मेरे पास आया था, दुखी था बेचारा।
      क्यों ? उसकी लड़की भी ?“
      नहीं, उसका लड़का लीडर जो है। कारा डरता है कि लड़का किसी बड़ी मुसीबत में न फंस जाए। किसी लड़की को लेकर लड़कों के ग्रुप में आजकल बहुत टेंशन चल रही है। कोई लड़की एक मुसलमान लड़के के साथ सरेआम घूमती फिरती है और इसे लेकर हमारे लड़के अपना अपमान समझते हैं। उन्होंने लड़की को बहुत समझाया, पर लड़की कहती है कि उसने तो विवाह भी उसी के साथ करवाना है।
      पाला सिंह को गुरदयाल सिंह का बात करने का ढंग अच्छा नहीं लग रहा। फिर उसको यह भी अजीब लग रहा है कि गुरदयाल सिंह चलकर उसके घर आया है। पहले वह ऐसे कभी नहीं आया। वह तो काम में ही इतना व्यस्त रहता है कि विवाह समारोह में भी नहीं जाया करता। फिर उसको यह भी पता है कि कारा का लड़का मनिंदर वाली यूनिवर्सिटी में जाता है। पाला सिंह को डर लगता है कि गुरदयाल सिंह कोई ख़तरनाम बात न कह दे। वह दिल पर हाथ रखता उसकी बात सुनता रहता है।
      गुरदयाल सिंह कहता है-
      पाला सिंह, दुख वाली बात यह है कि वह लड़की अपनी मनिंदर है।
      नहीं गुरदयाल सिंह, धोखा लगा होगा। ये कारा साला कंजर है। मुझे बदनाम करने के लिए कह रहा है सब। मैं क्या अपनी लड़की को जानता नहीं। यह सब कारे की कारस्तानी है।कहते हुए पाला सिंह गुस्से में काँपने लगता है। बोलता है-
      इस कारे कंजर ने मेरे हाथों मरना है।
      पाला सिंह, अकेले कारे के कहे पर मैं तेरे साथ बात नहीं करने वाला था। अपने शिवराज की घरवाली ने एक दिन मनिंदर से फोन पर बात की थी और कहा था कि रुक जाए, छोड़ दे उस लड़के की सोहबत।
      पाला सिंह उसकी तरफ़ देखता है। पाला सिंह की आँखें क्रोध में लाल हो रही हैं। वह कहता है-
      गुरदयाल सिंह, अगर यह सच हुआ तो मैं सीधा जाऊँगा साधू सिंह के साथ वाली सेल में।
      नहीं पाला सिंह, पहले लड़की को समझा। वह जानती है कि तू बहुत गुस्से वाला है। डर जाएगी। फिर जल्दी से लड़का देखकर विवाह कर देते हैं।
      पाला सिंह समझते हुए हाँ’ में सिर हिला देता है। गुरदयाल सिंह जाने के लिए उठ खड़ा होता है। जाते हुए कहता है-
      बहुत सब्र से काम लेने की ज़रूरत है। कोई ऐसी बात न करना कि बात बढ़ जाए। साधू सिंह की लड़की की तरह घर से भाग जाए।
      गुरदयाल सिंह, मैं भागने लायक छोड़ूँगा तभी न भागेगी।
      नहीं पाला सिंह, सब्र और हौसले से काम लेना। उसको बैठकर समझाना।
      पता नहीं गुरदयाल सिंह अब क्या होगा, मैं कोशिश करूँगा।
      गुरदयाल सिंह चला जाता है। पाला सिंह बाथरूम में जाता है। शीशे में अपना चेहरा देखता है। उसको अपनी मूंछ में फ़र्क़ नज़र आता है। वह मूंछों को मरोड़ा देता हुआ लौट आता है। अल्मारी में से बोतल उठाता है। एक पैग डालकर बैठ जाता है और सोचने लगता है कि अब उसको क्या करना चाहिए। क्यों न घर लौटी मनिंदर का आते ही गला दबा दे क्योंकि वह उसको सब्र से समझा नहीं सकेगा। उसको नसीब कौर याद आने लगती है। वह ज़िन्दा होती तो इस मसले से खुद निपटती। उसको पता तक न चलने देती।
      वह घड़ी देखता है। इस समय वह दाल बना रहा होता है और फिर बाहर का चक्कर लगाने चला जाया करता है, पर आज उसका कुछ भी करने को मन नहीं है। वह उठकर अपने लिए सैंडविच बनाता है और एक पैग व्हिस्की का और बना लेता है। उसको यकीन हो रहा है कि उसको साधू सिंह वाले राह पर ही चलना पड़ेगा। वह चलेगा भी। उसको किसी बात का पश्चाताप नहीं होगा। परंतु साधू सिंह शायद जल्दी कर गया होगा। उसको स्वयं जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए। इस काम के लिए प्रौफेसनल की मदद लेनी चाहिए। रोज़ ही कितनी गुप्त हत्याएँ होती हैं। क़ातिल तक का पता नहीं चलता। वास-प्रवासवाले के क़ातिल अभी तक नहीं पकड़े गए। या फिर फुसलाकर मनिंदर को इंडिया ले जाए। वहाँ तो यह काम बहुत ही आसान है। हाँ, इंडिया ही ले जाए। पर क्या वह इतना सब्र कर सकेगा कि तब तक यह सब बर्दाश्त करता रहे। उसके मन में तरह तरह के विचार आ रहे हैं। उसका सिर इन विचारों से फटने को हो रहा है। उसका दिल बेहद अशांत-सा हो रहा है। घर मानो उसको खाने को दौड़ रहा हो। वह ओवरकोट पहनकर बाहर निकल जाता है।
      बाहर अभी भी हल्की बारिश हो रही है। उसका बारिश की ओर कोई ध्यान ही नहीं है। वह चलता हुआ लेडी माग्रेट रोड से होता हुआ दुकानों की परेड के पास आ जाता है। व्हिस्की की बोतल खरीदता हैं। दुकानदार उससे कोई बात करनी चाह रहा है, पर वह अनसुनी करके पॉर्क की तरफ़ चला जाता है। बारिश और तेज़ हो उठती है परंतु वह धीरे-धीरे चलता रहता है। वह मनिंदर के क़त्ल के बारे में गंभीर होकर सोचने लगता है। अगर वह किसी प्रौफेशनल की मदद लेगा तो शायद कई मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा जैसे कि ऐसे व्यक्ति की तलाश, उसके लिए रुपये-पैसे का प्रबंध और यदि प्रौफेशनल पकड़ा गया तो वह उसका नाम ले देगा। इससे तो बेहतर होगा कि यह काम वह स्वयं करे। वह मनिंदर को सिर्फ़ एक बार समझाए। यदि न समझे तो गला पकड़कर दबा दे और सीधे पुलिस स्टेशन चला जाए। जो होगा, देखा जाएगा। फिर उसको ख़याल आता है कि एक तो वह कुछ शराबी हुआ पड़ा होगा, उसके हाथों में उतनी ताकत नहीं होगी। दूसरा मनिंदर भी सेहतमंद है और शायद उसको इस मन्सूबे में कामयाब न होने दे। शायद, आगे से वह मुकाबला भी करे और इस तरह बात बिगड़ सकती है। सारे हालात उसके वश से बाहर भी निकल सकते हैं। क्यों न छुरी से उसका गला काट दे। वह स्वयं से प्रश्न करता है कि क्या उसको अपनी बेटी से कोई बातचीत भी करनी चाहिए कि सीधे हमला ही करना चाहिए। एक अवसर देना चाहिए कि नहीं। वह एक बात का ध्यान अवश्य रखेगा कि वह अधिक शराब नहीं पियेगा।
      घर लौटकर वह सैटी के पास खड़े होकर देखता है कि वह किस जगह पर बैठा करता है और मनिंदर आम तौर पर कहाँ बैठती है। उस पर हमले के लिए इतनी दूरी को कैसे तय करेगा। वह सोचता है कि वह आराम-कुर्सी पर बैठा होगा और मनिंदर को अपने समीप सैटी पर बैठने के लिए कहेगा। वह फुर्ती से उछलकर छुरी उसके गले पर रख गर्दन काट देगा, हलाल करने की तरह। किसी तरह भी भावुक नहीं होगा। अपने काम में देरी भी नहीं करेगा। छुर्री गर्दन पर रखने के बाद मनिंदर की कोई भी मिन्नत नहीं सुनेगा। वह उठकर रसोई में चला जाता है और तीखा-सा चाकू उठा लेता है। वह सोचता है कि चाकू भारी होगा तो वार करने में आसानी होगी। वह चाकू लेकर फिर सोफे पर आ बैठता है। आराम-कुर्सी से सैटी तक उठकर शीघ्रता से वार करने का अभ्यास करने लगता है।
      वह एक पैग और डाल लेता है। वह घड़ी की ओर देखता है। चार बज रहे हैं। मनिंदर का पता नहीं कितने बजे आए। अक्सर देर से ही लौटती है। यदि देर से आई तो तब तक वह ज्यादा शराबी हो जाएगा। उस पर हमला करने की उसकी शक्ति और कमज़ोर पड़ जाएगी। वह उठकर एक और चाकू उठा लाता है जो कि आगे से तीखा है हालाँकि यह लंबा नहीं है। वह सोचता है कि जिगर में घोंपने के लिए लंबे चाकू की ज़रूरत भी नहीं होती। वह पास बैठी मनिंदर के जिगर में चाकू घोंपकर उसका जिगर फोड़ देगा और कुछ ही मिनट में उसका काम तमाम हो जाएगा। वह पेट को दायीं ओर से दबाकर अपने जिगर को टटोलकर देखता है कि बाहर की चमड़ी से कितना गहरा होगा अर्थात चाकू वहाँ तक पहुँच सकेगा कि नहीं। दो सेब भी अपने पास लाकर रख लेता है। चाकू के करीब पड़े होने का बहाना भी बनाना चाहता है।
      वह व्हिस्की के घूंट भरता सोच रहा है कि अब सब कुछ तैयार है। यदि आवश्यकता है तो मनिंदर की। आर्मी में सीखा सब कुछ आज काम आएगा। आर्मी में बताया जाता है कि पास में असला न हो तो दुश्मन से कैसे निपटना है।
      मनिंदर देर ही लौटती है। वह फ्रंट रूम में जाती है। पाला सिंह सैटी पर ही टेढ़ा हुआ पड़ा है। पास रखी बोतल खाली पड़ी है। साबुत सेब पर चाकू लगा हुआ है। वह उसकी जूती और जुराबें खोलती है। सिर पर से पगड़ी उतार कर एक तरफ़ रखती है और कंबल लाकर उसको ओढ़ा देती है।
(जारी…)

Sunday, November 10, 2013

पंजाबी उपन्यास



''साउथाल'' इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत अटवाल का यह चौथा उपन्यास है। इससे
पूर्व उनके तीन उपन्यास - 'वन वे', 'रेत', और 'सवारी' चर्चित हो चुके हैं। ''साउथाल'' इंग्लैंड में एक शहर का नाम है जहाँ अधिकतर भारत से गए सिक्ख और पंजाबी परिवार बसते हैं। यहाँ अवस्थित पंजाबी परिवारों के जीवन को बेहद बारीकी से रेखांकित करता हरजीत अटवाल का यह उपन्यास इसलिए दिलचस्प और महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से हम उन भारतीय लोगों की पीड़ा से रू-ब-रू होते हैं जो काम-धंधे और अधिक धन कमाने की मंशा से अपना वतन छोड़ कर विदेशों में जा बसते हैं और वर्षों वहाँ रहने के बावजूद वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।

साउथाल
हरजीत अटवाल

हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

50

प्रदुमण सिंह को पिछले कुछ समय से अपने बच्चों की चिंता सताने लगी है। वह सोचता है कि इनका विवाह भी करना है। आजकल अच्छे लड़के, लड़कियाँ मिलते नहीं हैं। इनमें से कोई इंडिया में विवाह नहीं करवाने वाला। उसका ध्यान पाला सिंह के लड़कों की तरफ़ चला जाता है जिन्होंने अपनी अपनी मर्ज़ी से विवाह करवा लिए हैं। उसको फिक्र होने लगती है कि उसके साथ भी कहीं ऐसा ही न हो। उसको बलराम की भी बहुत चिंता है। राजविंदर तो हाथ से निकल ही चुका है। राजविंदर के बारे में सोचते हुए उसको लगता है कि यदि वह समलिंगी है तो संभवतः वह ग़लत कंपनी में पड़कर ही इस आदत का शिकार हो गया होगा। वरना कुदरत ने उसके साथ कोई फ़र्क़ नहीं किया हुआ। यदि उसका विवाह हो जाए तो ठीक भी हो सकता है।
      एक दिन शाम को वह राजविंदर को अपने करीब बिठा लेता है और कहता है-
      “देख राजविंदर, हमारी बात मान, तू विवाह करवा ले, सब ठीक हो जाएगा।“
      “डैड, क्या ठीक हो जाएगा ?“
      “तेरी लाइफ़ नॉर्मल हो जाएगी, मैं भी तेरी पूरी हैल्प करूँगा।“
      “डैड, मेरी लाइफ़ तो अब भी नॉर्मल ही है, तुम ही मेरी कोई हैल्प नहीं करते।“
      “तू विवाह करवा, अगर कहे तो हम हैल्प करेंगे, तुझे अलग घर लेकर देंगे, कार लेकर देंगे, फैक्टरी में भी जॉब कर लेना, बस, तू एक बार विवाह करवा ले।“
      “डैड, जहाँ मैं कहूँगा, वहाँ विवाह कर दोगे ?“
      “हाँ, बिलकुल। हमें रंग, जाति का अब कोई परहेज नहीं। जहाँ कहे, तेरा विवाह कर देंगे।“
      “तुम पीटर को जानते हो, जो मेरे साथ आया करता था कभी ?“
      “हाँ।“
      “डैड, बस तुम मेरा उसके साथ विवाह करवा दो।“
      राजविंदर प्रदुमण सिंह के सामने बैठा कह रहा है। प्रदुमण सिंह ठांय करता एक थप्पड़ उसके मुँह पर दे मारता है और कहता है-
      “तेरे हरामी गे की ऐसी की तैसी, निकल घर से बाहर, साला गंदा अंडा।“
      “यू डर्टी ओल्ड मैन!... यू ओल्ड बास्टर्ड, आय विल किल यू वन डे, आय विल किल यू।“
      कहता हुआ राजविंदर उठ खड़ा होता है। प्रदुमण सिंह भी खड़ा हो जाता है। उसके एक और मुक्का मारता है। शोर सुनकर ज्ञान कौर दौड़ी आती है। बलराम और लड़कियाँ भी आ जाती हैं। राजविंदर बाप को गालियाँ बकते हुए घर से निकल जाता है। जाते हुए को प्रदुमण सिंह कहता है-
      “ख़बरदार ! अगर दुबारा इस घर में घुसा तो।“
      क्रोध में उसके होंठ काँप रहे हैं। आवाज़ फट रही है। बलराम उसके करीब आकर खड़ा हो जाता है। उसके कंधे पर हाथ रखता है और कहता है-
      “डैड, क्यों उस पर अपना टाइम वेस्ट कर रहे हो ?“
      जवाब में प्रदुमण सिंह से बोला नहीं जा रहा। ज्ञान कौर कहने लगती है-
“बेटा, तेरे डैडी सोचते हैं कि अब तू भी विवाह योग्य हो गया है। डिग्री तूने कर ली है। हमें तेरा भी कुछ करना है। जब बड़ा अनब्याहा बैठा हो तो छोटे के विवाह के लिए लोग क्या कहेंगे।“
“तुम लोगों की वरी क्यों करते हो। जो तुम्हारा दिल करता है, करो।“
“तेरा विवाह कर दें फिर ?“
ज्ञान कौर खुश होकर पूछती है। बलराम कंधे उचकाता अपने कमरे की तरफ़ चला जाता है। बलराम की ओर देखकर प्रदुमण सिंह का मूड ठीक होने लगता है। वह मन में कहता है कि ऐसा है तो ऐसा ही सही।
सोते समय ज्ञान कौर पूछती है-
“कोई लड़की निगाह में है बलराम के लिए ?“
      “लड़की तो थी एक पाला सिंह की, पर कारे का कल फोन आया था, कहता था कि उस लड़की की हवा ठीक नहीं।“
      “कारे को सभी अपने जैसे ही दिखते हैं।“
      “नहीं, जतिंदर जो पढ़ता है उसी यूनिवर्सिटी में।“
      “वैसे लड़की बुरी नहीं थी वह, देखी हुई है।
      “नहीं, कारा कहता है कि उसकी दोस्ती किसी मुसलमान लड़के के साथ है, जिसकी ख़ातिर यूनिवर्सिटी में लड़ाइयाँ भी हुईं।“
      “कोई दूसरी देख लो। हमारा सोने जैसा लड़का है, इसे कहीं रिश्तों का घाटा है ?“
      बलराम के साथ वह कभी-कभी शुगल कर लिया करता है। कहने लगता है-
      “क्यों भई, कोई गर्लफ्रेंड है कि नहीं तेरे पास, अगर नहीं मिलती तो हैल्प करूँ।“
      “नहीं डैड, मुझे गर्लफ्रेंड पसंद नहीं।“
      “तुझे गर्लफ्रेंड क्यों पसंद नहीं, भई ?... गर्लफ्रेंड तो हमारे जैसे को मिल जाए तो पीछे न हटें, तू तो यंगमैन है। कहीं तू...।“
      “यह बात नहीं डैड, आय एम स्ट्रेट... ये गर्लफ्रेंड तो पिछाड़ी का दर्द होती हैं।“
      अब उसका विवाह के लिए राजी हो जाना उसको बहुत अच्छा लगता है। वह भविष्य की योजनाएँ बनाने लगता है कि बलराम का विवाह कैसा करेगा। वह देर तक सोचता रहता है। ज्ञान कौर को भी अभी नींद नहीं आ रही। वह अचानक कहती है-
      “वो पगला पता नहीं कहाँ सोया होगा।“
      “वो तो मज़े से सोया पड़ा होगा। और फिर कहाँ पहली बार बाहर सो रहा है। लौट आएगा कल को। हम ही नींद ख़राब किए बैठे हैं। तू भी सोने की कोशिश कर, सवेरे जल्दी उठना है।“
      सुबह से ही प्रदुमण सिंह बलराम के लिए लड़की की पूछताछ शुरू कर देता है। वह चाहता है कि एक बार सभी परिचितों में बात फैल जाए कि प्रदुमण सिंह लड़के को ब्याहना चाहता है तो खुद कोई न कोई सम्पर्क कर लेगा। आजकल बच्चों के लिए रिश्ते तलाशने बड़े कठिन हुए पड़े हैं। इस बारे में वह कारे को फोन करता है। ब्राडवे की तरफ़ निकलकर खैहरे के पास जा पहुँचता है। अपने बेटे का रिश्ता वह किसी बड़े घर का ही करना चाहता है। ज्ञान कौर भी काम पर सभी औरतों को अपने लड़के के लिए रिश्ता ढूँढ़ने को कह देती है। एक ही शर्त है कि लोग उनकी टक्कर के हों और लड़की लड़के के पसंद की हो। डिग्री होने के बाद बलराम नौकरी की तलाश करने लगता है, पर अधिक समय फैक्टरी में गुज़ारता है। वह फैक्टरी के काम को संभालने लगता है। प्रदुमण सिंह को फ़ुरसत-सी हो जाती है। वह बलराम को कहता है-
      “तू छोड़ नौकरी को, फैक्टरी संभाल। मैं डिलीवरी का काम करता रहूँगा।“
      “नहीं डैड, यू रिलैक्स, घर में बैठा करो। मम से भी कहो रैस्ट करे।“
      प्रदुमण सिंह के भीतर के पिता का मन गर्व से भर उठता है। प्रदुमण सिंह अब सेल्ज़मैनशिप करने चला जाता है। वह समोसों की बिक्री के लिए नई जगहों की तलाश में निकल जाता है। दो-एक बार फरीदा का फोन आता है, पर वह जवाब नहीं देता। अब उसको कुलबीरो का भी अपने प्रति रवैया बदला-बदला प्रतीत होता है। उसको लगता है कि दोस्ती के लिए तैयार हो जाएगी, पर वह आगे नहीं बढ़ता। बलराम हर वक़्त फैक्टरी में होता है। वह ऐसा कोई काम नहीं करना चाहता जो बेटे की दृष्टि में बुरा हो। वह मीका और निम्मा के साथ भी संक्षिप्त-सी बातें ही किया करता है। हँसी-मजाक उसने बंद कर दिया है।
      अब सतिंदर और पवन भी फैक्टरी आने लग पड़ी हैं। उनके आने से वह और अधिक गंभीर रहने लगता है। वह सोचने लगता है कि अगले वर्ष सतिंदर की डिग्री भी पूरी हो जाएगी और डिग्री पूरी होते ही उसका विवाह भी कर देगा। उसको सतिंदर के बड़बोलेपन की चिंता सताती है कि कोई लड़का यूँ ही बातों बातों में पीछे न लग जाए और लड़की हाथों से जाती रहे। वह तो यह बात बर्दाश्त भी नहीं कर पाएगा। छोटी पवन की उसको अधिक चिंता नहीं है। वह अपने आप में चुप-सी रहने वाली लड़की है।
      कई महीनों की तलाश के बाद उनको ब्रैडफोर्ड की एक लड़की पसंद आती है। इस बीच उन्होंने करीब एक दर्ज़न लड़कियाँ देख डाली हैं। किसी में कोई कमी है तो किसी में कुछ। यदि कोई लड़की पसंद आती है तो उसका घर गरीब निकलता है। प्रदुमण सिंह अपने आप को मिलिनियरों में गिन रहा है। उसका घर, उसकी फैक्टरी और दो अन्य प्रॉपटीज़ उसने खरीद ली हैं। सब मिलाकर मिलियन पाउंड से कहीं अधिक की सम्पत्ति होगी। अब उसको मिलिनियर रिश्तेदार ही चाहिएँ। यदि यह सब पसंद आ जाता है तो लड़की लड़के को नापसंद कर देती।
      पूरेवाल के ब्रैडफोर्ड में दो रेस्टोरेंट हैं। लड़की भी बलराम को पसंद आ जाती है। रिश्ता हो जाता है। विवाह भी हो जाता है। प्रदुमण सिंह दो कोच भरकर बारात लेकर जाता है। कारों का काफ़िला अलग। उधर पूरेवाल भी पूरी सेवा-ख़ातिर करता है। बारात खुश हो जाती है। प्रदुमण सिंह भी बेहद खुश हुआ पड़ा है।
      लड़का-लड़की ग्रीस के टापू पर हनीमून पर जाते हैं। वहाँ से हर रोज़ फोन करते हैं। सभी प्रसन्न हैं। सप्ताह बाद लड़का-लड़की लौटते हैं। लड़की अपना सामान समेटने लगती है। ज्ञान कौर पूछती है-
      “क्या हो गया पुत्तर तुझे ?“
      “मैं इस आदमी के साथ नहीं रह सकती।“
  (जारी…)

Thursday, October 31, 2013

पंजाबी उपन्यास



''साउथाल'' इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत अटवाल का यह चौथा उपन्यास है। इससे पूर्व उनके तीन उपन्यास - 'वन वे', 'रेत', और 'सवारी' चर्चित हो चुके हैं। ''साउथाल'' इंग्लैंड में एक
शहर का नाम है जहाँ अधिकतर भारत से गए सिक्ख और पंजाबी परिवार बसते हैं। यहाँ अवस्थित पंजाबी परिवारों के जीवन को बेहद बारीकी से रेखांकित करता हरजीत अटवाल का यह उपन्यास इसलिए दिलचस्प और महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से हम उन भारतीय लोगों की पीड़ा से रू-ब-रू होते हैं जो काम-धंधे और अधिक धन कमाने की मंशा से अपना वतन छोड़ कर विदेशों में जा बसते हैं और वर्षों वहाँ रहने के बावजूद वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।

साउथाल
हरजीत अटवाल

हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

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होटल खरीदकर कारा सातवें आसमान पर पहुँच जाता है। वह अपने साथ होटलियरकहलवाने लगा है। गुरुद्वारे जाकर ग्यारह सौ पाउंड की अरदास में वह अपने को सरदार बलकार सिंह राय होटलियर कहलवाता है। परंतु उसके व्यक्तित्व या उसके लड़कपन के कारण लोग उसको कारे से बलकार भी नहीं कहने वाले। अजनबी लोग बेशक उसे मिस्टर राय कह लेते हों, पर पुराने परिचित तो कारा कहक़र ही उसे सम्बोधित होते हैं। कुछ भी हो, उसको होटलवाला बनने का हल्का-सा नशा है।
      कारा वैसे भी अपनी ज़िन्दगी में खुश है। उसका लड़का जतिंदरपाल यूनिवर्सिटी में पढ़ता है। यद्यपि उसका झुकाव सिक्खी की तरफ़ भी काफ़ी है, पर पढ़ाई में वह होशियार है। वैसे ही उसकी बेटी परमीत भी पढ़ाई में तेज़ है। बच्चों की ओर से वह खुश है कि पढ़-लिखकर किसी अच्छी नौकरी पर लग जाएँगे। अब जब से वह होटल जाने लगा है तो उसकी पत्नी सुरजीत कौर अपना पूरा ध्यान दफ़्तर की तरफ़ देने लगती है। कारे वाली मर्सडीज़ अब वह दौड़ाए फिरती है और कारे ने नई कन्वर्टेबल बी.एम.डब्ल्यू. खरीद ली है। जतिंदरपाल को भी स्पोर्ट्स कार ले दी है। जिस दिन से उसने अपने बेटे के साथ उसकी गर्लफ्रेंड को देखा है, उसके मन से मनों बोझ उतर गया है। प्रदुमण के लड़के राजविंदर की ओर देखकर उसके अंदर कई डर उगने लगते थे। लड़के के संग गर्लफ्रेंड को देखकर एक बार तो उसका दिल करता है कि दोस्तों को पार्टी दे, पर फिर सोचता है कि यह रस्म पश्चिमी लोगों को ही शोभा देती है, भारतीयों को नहीं।
      होटल लेने के बाद उसका बैंक मैनेजर डेविड कैलाहन दो बार उसको फोन कर चुका है, पर वह उसके साथ बात करने से इन्कार कर देता है। लोन न देने का गुस्सा अभी भी उसके मन में है। दूसरी तरफ़ मनीष पटेल के बैंक मैनेजर के साथ उसके संबंध काफ़ी मज़बूत हो चुके हैं। होटल लेने के बाद वह साउथाल के व्यापारियों की बनी संस्था साउथाल बिजनेस सोसाइटीका भी अब सक्रिय मेंबर है। हर मीटिंग में जाने लगा है। वहाँ दूसरे बैंकों के मैनेजर भी आते हैं जो कि कारा के साथ मित्रता गांठनी चाहते हैं। परंतु कारा को कैलाहन की बेरुखी के बाद मैनेजरों पर अधिक विश्वास नहीं रहा।
      दफ़्तर में काम करती सुरजीत कौर भी खुश है। पति की कामयाबी उसको अच्छी लगती है। पहले वह पार्ट टाइम-सा दफ़्तर जाया करती थी, नहीं तो घर पर ही रहा करती थी। घर पर खाली बैठना उसका अच्छा नहीं लगता। यदि कहीं बैठना भी पड़ जाए तो सारा दिन टेलीविज़न के आगे बैठी रहती है। कई बार जतिंदरपाल के कमरे में से ब्लू-फिल्म उठाकर देखने लग जाती है या फिर जतिंदरपाल से ऐसी फिल्म मंगवा लेती है। वह जानती है कि इधर के जन्मे बच्चे ऐसी बात का बुरा नहीं मनाते। ब्लू-फिल्म देखकर तो उसका मन और भी उतावला होने लगता है। बहाने से कारे के साथ लड़ने-झगड़ने लगती है, पर अब उसने अपने आप को दफ़्तर के काम में डुबा लिया है। शाम को थककर ही घर लौटती है।
      कारा के होटल खरीदने की खुशी की उम्र नौ-दस महीने ही रहती है। होटल की मैनेजमेंट के बदलने से ग्राहक़ी कुछ कम हो जाती है। टूरिस्ट कंपनियाँ अधिक कमीशन मांगने लगी हैं। होटल का अंग्रेज मैनेजर किसी दूसरे होटल ने अधिक वेतन पर पटा लिया है और कारे को मैनेजमेंट का कोई अनुभव नहीं है। नये मैनेजर के आने तक भी बिजनेस को हानि के धक्के लगते रहते हैं। सबसे बड़ी मुसीबत उसको हैल्थ विभाग की वार्षिक चैकिंग से होती है। हर होटल को हैल्थ एंड सेफ्टी विभाग की ओर सब कुछ ठीक होने का सर्टिफिकेट लेना होता है और हैल्थ वाले पूरी तरह होटल का निरीक्षण करके ही यह सर्टिफिकेट प्रदान करते हैं। जब से ब्रतानिया युरोपियन यूनियन में आया है, तब से कानून भी कुछ सख़्त हो गए हैं। हैल्थ वाले निरीक्षण करके होटल की कमियों की लम्बी सूची पकड़ा जाते हैं जैसे कि पूरे होटल की बिजली की तारें गल चुकी हैं, रिवायरिंग होने की ज़रूरत है। बहुत सारे कमरे नया पेपर पेंट मांगते हैं। रसोई में भी बहुत सारे नुक्स हैं। होटल में पानी का प्रबंध भी युरोपियन कानून के अनुसार नहीं है, आदि आदि।
      कारा लिस्ट लेकर मनीष पटेल के पास जाता है। मनीष होटल के काम में कम ही दख़ल देता है। वह अपनी दुकानों में ही व्यस्त है। लिस्ट देखकर मनीष को पसीना आ जाता है। वह गुस्से में कहता है-
      ये साला हमारा सरवेयर पहले वाले मालिक से मिला हुआ था, जो ये बातें हमसे छिपा गया।
      लगता है, ठगी हो गई।
      बिल्डरों को बुलाओ। देखते हैं, कितने का ख़र्चा है।
      बिल्डर आते हैं। कुल मिलाकर डेढ़ लाख पाउंड का ख़र्च बताते हैं। मनीष और कारा दोनों ही सिर पकड़कर बैठ जाते हैं। कारा कहता है-
      इतना पैसा कहाँ से आएगा, रिपेयर के लिए ?“
      मैक्सीमम लोन तो हम ले चुके हैं।
      एजेंट से बात करें जिसने हमें बेचा है।
      वो साला क्या बोलेगा।
      वे दोनों एजेंट से मिलते हैं। एजेंट कंधे उचका देता है।
      जो बिजनेस आप खरीद रहे हो, उसका तजु़र्बा आपको होना चाहिए। हमारा क्या है, हम तो कमीशन पर काम करते हैं। हमें जो इन्फर्मेशन मालिक देते हैं, वही आप लोगों के आगे रख देते हैं।
      अब क्या करें ?“
      आप इतना दिल न छोड़ो, यह होटल आपको काफ़ी सस्ता मिला हुआ है। कुछ समय तक होल्ड करोगे तो इसकी कीमत बढ़ जाएगी। आप घाटे में नहीं रहोगे।
      इसकी सेल बहुत कम हो गई है। इतनी कि अब ख़र्चे भी पूरे नहीं हो रहे।
      यदि यह बात है तो आप आगे किसी को बेच दो।
      यानि तुम्हारा कमीशन फिर कायम।कारा गुस्से में आकर कहता है।
      एजेंट उसको शांत करते हुए कहता है-
      मिस्टर राय, हम यहाँ प्रॉपटीज़ खरीदने-बेचने के लिए ही बैठे हैं। अगर आप हमारे द्वारा नहीं तो किसी दूसरे की मार्फ़त बेच सकते हो। पर अगर हमारी मार्फ़त बेचोगे तो कमीशन कुछ कम लेंगे।
      मनीष और कारा अभी भी उसकी ओर गुस्से से देखे जा रहे हैं। एजेंट फिर कहने लगता है-
      पर एक बात याद रखो कि यह होटल आपको मार्किट की कीमत से सस्ता मिला हुआ है। आप मालिक हो, सोच लो यदि बेचना है तो...।
      वे दोनों सलाह-मशवरा करने लगते हैं। फै़सला करते हैं कि ऐसे ही कुछेक पैचअप करके किसी तरह हैल्थ वालों से पास करवा लिया जाए और बेचने के लिए मार्किट में लगा दिया जाए। एजेंट कहता है-
      हैल्थ वालों को मैं संभाल लूँगा। आप बताओ होटल कितने का बेचना चाहते हो?“
      जितने का लिया, प्लस तुम्हारा कमीशन।
      इतने का शायद न बिके। मार्किट काफ़ी गिर चुकी है।
      मार्किट में सेल पर तो लगाओ।
      ठीक है, अगले सप्ताह ही प्रैस में आ जाएगा, पर घाटा भी पड़ सकता है इसके लिए तैयार रहना।
      कारा और मनीष एक-दूसरे की ओर देखने लगते हैं।
      होटल पुनः सेल पर लग जाता है। देखने वाले ग्राहक़ों के साथ एजेंट पहले वाले ही हथकंडे अपनाता है। वही कमरे दिखलाता है जिनकी हालत बढ़िया है और देखने वालों को भी उस समय ही बुलाता है, जब ग्राहक़ों की आवाजाही अधिक हो। खरीदने आए लोग होटल का ठिकाना देखकर तो खुश हो जाते हैं, परंतु खरीदने के लिए कोई आगे नहीं बढ़ता।
      होटल सेल पर लगता है तो कारा उदास हो जाता है। उसकी तो अभी हसरतें भी पूरी नहीं हुईं। अभी तो उसने मित्रों और रिश्तेदारों को होटल में बुलाकर पार्टी भी नहीं दी। प्रदुमण सिंह को कई बार बुला चुका है, पर वह व्यस्त होने का बहाना करते हुए अभी तक नहीं आया। लोगों के मुँह पर अभी उसका तख़ल्लुस होटलियर चढ़ा भी नहीं कि होटल से अलग हो रहा है। उधर उदास तो मनीष पटेल भी है, पर कारे जितना नहीं। मनीष उदास उस दिन होता है जिस दिन उसे मालूम होता है कि होटल बिक रहा है, पर बहुत घाटे में। कुल मिलाकर पूरे दो लाख का घाटा पड़ रहा है। मनीष का ब्लॅड प्रैशर हाई हो जाता है और शुगर गिर जाती है। उसको लगता है कि वह गया। वह कहता है-
      भैया, ये साला होटल मुझे ले जाएगा।
      तुम्हें क्या, मुझे भी ले जाएगा।
      दो लाख पौंड कहाँ से पूरा करेंगे मिस्टर राय ?“
      अरे भैया तू तो कर लेगा। मेरा क्या होगा! मैं तो लुट गया न।
      नहीं यार, ये दो लाख तो पूरा होना चाहिए, मिस्टर राय। चोरी करें या बैंक में डाका डालें, ये दो लाख तो पूरा करना होगा।
      हाँ यार पटेल, कुछ न कुछ तो सोचना ही पड़ेगा।
(जारी…)