
''साउथाल'' इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत अटवाल का यह चौथा उपन्यास है। इससे पूर्व
साउथाल
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
।। पच्चीस ॥
प्रदुमण सिंह का काम बहुत अच्छा चल निकला है। अब दस-बारह मर्द-औरतें तो अन्दर ही काम करते हैं। दो ड्राइवर माल देने के लिए हैं। स्वयं वह ऊपर के कामों पर रहता है। कभी एप्रेन या ओवरआल पहनकर दाढ़ी पर जाली लगाकर खुद भी काम करने आ लगता है और कभी कार या वैन उठाकर शॉपिंग करने चला जाता है। यदि कोई ड्राइवर छुट्टी पर हो तो डिलीवरी खुद कर आता है। लड़कियों को छुट्टी हो तो वे फैक्टरी में आ जाती हैं। बलराम अब यूनिवर्सिटी जाता है। बड़ी बेटी सतिंदर ग्रीनफोर्ड हाई स्कूल में ए-लेवल करती है। छोटी पवनदीप जी.सी.एस.ई. कर रही है। राजविंदर अभी भी खाली ही है। घर के काम से उसको नफ़रत-सी है और कहीं दूसरी जगह काम खोजने की उसने कभी कोशिश ही नहीं की।
कुछ वर्षों में ही प्रदुमण सिंह ने अपने पैर अच्छी तरह जमा लिए हैं। दो राउंड खड़े कर लिए हैं। हर रोज़ काम बढ़ाता चला जाता है। कई और लोग लंदन में समोसे डिलीवर करने लग पड़े हैं और वे माल प्रदुमण् सिंह से उठाते हैं। बड़े-बड़े रेस्ट्रोरेंट भी उससे समोसे लेने लग पड़े हैं। समोसों के साथ उसने पकौड़े भी बनाने शुरू कर दिए हैं। पकौड़ियों को ओनियन भाजी का नाम दे दिया है जो कि मशहूर हो गया है। साथ ही साथ, स्प्रिंग रोल और करी रोल भी बनाने लगा है। अब वह हर चीज़ को पैकेट में बन्द करने लग पड़ा है। हर पैकेट के ऊपर पूरा लेबल लगा होता है। उस पर बेचने की अन्तिम तिथि पड़ी होती है। लेबल पर उसकी कम्पनी का नाम 'हैव ए बाइट' होता है। उसका यह नाम अब स्थापित हो चुका है। लेबल बनाने के लिए उसने कम्प्यूटर खरीद लिया है। इसी तरह बिल भी अब वह कम्प्यूटर से ही निकालता है। समय के बदलाव के साथ उसने फैक्टरी में कम्प्यूटरों का प्रयोग करना आरंभ कर दिया है। कम्प्यूटर पर काम करने के लिए अस्थाई तौर पर एक लड़की रख लेता है, पर फिर वह स्वयं ही गुजारे लायक कम्प्यूटर चलाना सीख लेता है। कम्प्यूटर के काम के लिए बलराम या लड़कियाँ भी आ जाती हैं।
बलबीर और गुरमीत, दो ड्राइवर हैं उसके पास। पाँच दिन समोसे डिलीवर करते हैं और दो दिन फैक्टरी में काम करवाते हैं। ये दोनों ही फौजी हैं। 'फौजी' शब्द गैर-कानूनी प्रवासियों के लिए प्रयोग में लाया जाने लगा है। इन दोनों के केस उसने सुरमुख संधू से करवाये हुए हैं। उसकी कोशिश है कि केसों की कार्रवाई या इनकी स्टेज के बारे में इन दोनों को अधिक पता न चले। वह अहसान के तले दबे जी-जान से काम कर रहे हैं। केस चलते हो जाने से कानूनन वे ड्राइविंग टैस्ट पास करके वैन भी चला सकते हैं। उन्हें दौड़-दौड़कर काम करते देख प्रदुमण सिंह सोचने लगता है कि यदि उसका अपना बेटा राजविंदर किसी काम योग्य होता तो उसको कितनी मदद हो जाती।
बलबीर और गुरमीत कितना भी ईमानदारी से काम करते हैं, पर प्रदुमण सिंह उन पर यकीन नहीं करता। डिलीवरी के काम में काफी सारी नगद रकम एकत्र करनी होती है। कुछ दुकानदार हफ्ते बाद बिल देते हैं और कुछ रोज़ की रोज़। हफ्ते बाद वाले बिल में हेराफेरी के मौके कम होते हैं, पर कैश डिलीवरी में ड्राइवर हेराफेरी कर सकते हैं। गुरमीत और बलबीर हेराफेरी करते हैं या नहीं, पर प्रदुमण सिंह को हर समय शक लगा रहता है। कई बार तो इतना शक करने लगता है कि उनकी जेबें टटोलने लग पड़ता है। यदि वे गुस्सा हो जाएँ तो फिर 'बेटा-बेटा' करता फिरता है। वह जानता है कि उनके बग़ैर उसका काम नहीं चलेगा। ड्राइवर भी उसके इस तरह आदी हो चुके हैं कि छोटी-मोटी बात का गुस्सा करना उन्होंने छोड़ दिया है, पर दांव लगे तो हेराफेरी करने से नहीं झिझकते। फिर बाद में शेखियाँ मारते हुए बताते हैं कि आज मैंने इतने निकाले और आज फलाने ने इतने। शाम को इकट्ठा होकर बोतल भी खरीदते हैं और हँसते हुए कहने लगते हैं कि मजे लेकर पियो, यह अंकल की शराब है। मतलब कि चोरी किए गए पौंडों की खरीदी हुई शराब। शाम को एक-दूजे को मज़ाक करते हुए पूछते हैं कि आज अंकल की पिला रहा है व्हिस्की या बरांडी।
फैक्टरी में काम करती औरतों पर ज्ञान कौर पूरा रौब रखती है। ब्रेक बहुत कम देती है। किसी को एक मिनट के लिए भी फालतू नहीं बैठने देती। वैसे तो अब साउथॉल में 'गुड मोर्निंग रेडियो' शुरू हो चुका है जो कि सारा दिन चलता रहता है। परन्तु, बीच-बीच में वे टेप भी चला लेते हैं। यदि काम करने वाली औरतें काम में ढीली पड़ने लगें तो वह संगीत बन्द कर देती है जो कि सभी को तकलीफ़देह लगता है।
कुलजीत प्रदुमण को अभी भी याद आती है। कुलजीत गई तो उसको नीरू फिर याद आने लगती है। वह कभी-कभी नीरू को फोन कर लिया करता है, पर उससे भारत नहीं जाया जाता। ज्ञान कौर इंडिया हो आई है। जितना समय कुलजीत उसके साथ घूमती रही है, वह जैसे हवा में उड़ता रहा हो। जवान लड़की को कार में बिठाकर साउथाल का चक्कर लगाना उसको अच्छा लगता है। कुलजीत को लेकर कई बार कारा से मिलने भी चला जाता। कुलजीत स्थायी हो जाने पर बदल जाती है। एक दिन वह उससे कहती है-
''अंकल, अब मुझे अपनी ज़िन्दगी नये सिरे से शुरू करनी है, तुम मेरी क्या मदद कर सकते हो ?''
''बता, मैं क्या करूँ ?''
''मैंने एक फ्लैट देखा है, बहुत सस्ता बिक रहा है।''
''कुलजीत कौर, मैं फ्लैट वाला बन्दा नहीं। मैं तुझे शुभकामनाएँ दे सकता हूँ।''
''इतनी देर की दोस्ती और पेट घिसाई किस काम आई !''
''यह मुहब्बत थी या सहूलियत, तू ही बता।''
''तुम्हारी पूरी इज्ज़त इस पर खड़ी है।''
एक मिनट के लिए प्रदुमण सिंह डोलता है और फिर कहता है-
''इश्क में ब्लैकमेल नहीं किया करते।''
''तुमने मुझे ब्लैकमेल किया इतने समय, मैंने तो सिर्फ़ मदद ही मांगी है। यदि आंटी को तुम्हारे बारे में पता चल जाए तो क्या हो !''
प्रदुमण सिंह थोड़ा-सा हँसता है और बोलता है-
''कुलजीत कौर, मैंने तो सोचा था कि तू सयानी लड़की होगी, तू तो इतना भी नहीं सोच सकती कि मैं तुझे सरेआम लिए घूमता हूँ और उसको अभी तक पता ही नहीं होगा। अगर अभी भी समझदारी बरतनी है तो ये डराना-धमकाना छोड़ और मेरे साथ दोस्ती रख, किसी वक्त काम आऊँगा।''
प्रदुमण सिंह बात करते हुए सोचता है कि यह तो बहुत खतरनाक लड़की है। एक दिन वह ज्ञान कौर के कंधे पर बन्दूक रखकर चला देता है। कुलजीत को काम पर से हटा देता है।
कुलजीत से वह अन्दर ही अन्दर प्यार करने लगता है। उससे टूटने पर कुछेक दिन उसका मन उदास रहता है, पर उसको तसल्ली भी है कि पीछा छूटा, किसी वक्त मुसीबत में भी डाल सकती थी। कुछ दिनों के बाद नई आई शिंदर कौर से दोस्ती गांठ लेता है, पर एक दूरी रखता है। और भी ज़रूरतमंद औरतों पर उसकी नज़र घूमती रहती है।
वैसे तो प्रदुमण सिंह काफी खुश रहता है, पर बड़े बेटे की चिन्ता उसके मन में कंकड़ की भाँति चुभती रहती है हर समय। पढ़ाई में भी वह किसी किनारे नहीं लगा। काम करने का भी उसका कोई इरादा नहीं है। राजविंदर पूरा ड्राइवर है, पर कोई वैन कभी नहीं चलाता। कार को भी जब ज़रूरत हो तो ले जाता है। यदि प्रदुमण झिड़क देता है तो वह रूठकर घर से चला जाता है और एक दो दिन बाहर रह कर लौट आता है। अब उसको यह भी नहीं कि राजविंदर ने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। वह सोचता है कि कौन सी सारी दुनिया डिग्रियाँ लिए घूमती है। कारा अनपढ़-सा ही है और इतना बड़ा इंश्योरेंस का काम चलाये फिरता है। इतना ज़रूर है कि पढ़ाई के बग़ैर आजकल काम कम ही मिलते हैं, पर राजविंदर तो घर का काम ही नहीं कर रहा, बाहर तो उसने क्या करना है। ज्ञान कौर भी राजविंदर को समझाने लगती है, पर वह नहीं समझता।
एक दिन प्रदुमण सिंह कहने लगता है।
''खाली बैठकर टाइम न खराब कर, फैक्टरी में आकर हमारी हैल्प कर, तुझे पूरी तनख्वाह देंगे।''
''मैंने मम्मी को टैल किया था कि मुझे कुकिंग से एलर्जी है।''
''ड्राइविंग कर ले।''
''ड्राइविंग मुझे प्रैशर देती है।''
''कोई और जॉब ढूँढ़ ले।''
''मेरे लायक जॉब मिलेगी तभी करूँगा।''
''तेरे लायक जॉब... तूने क्या अब बैंक मैनेजर लगना है।''
''डैड, यू आलवेज़ अंडरएस्टीमेट मी।''
''एस्टीमेट तो तेरा मैं ठीक कर रहा हूँ, तेरा घर में से कोई पैसा मिलना बन्द, डोल मनी पर ही गुजारा कर।''
''पहले भी डैड, तू कभी कुछ नहीं देता। मॉम भी पूरा नहीं देती, दैट'स इट।''
प्रदुमण सिंह ज्ञान कौर को भी समझाता है कि उसको जेब खर्च देना बन्द करे। ज्ञान कौर बेटे से कहने लगती है-
''काका, काम करेगा तो अच्छी जगह ब्याहा जाएगा।''
ज्ञान कौर को अब उसके विवाह की चिन्ता होने लगी है। वह अपने पति से कहती है-
''मैं तो सोचती हूँ कि इसका विवाह कर दें। बेगानी लड़की अपने आप सीधा कर देगी इसे।''
''पहले तो हम इसका बोझ उठाते हैं, फिर उस लड़की का भी उठाएँगे।''
''क्या मालूम, ठीक ही हो जाए।''
''थोड़ा बहुत तो लगे कि यह काम करना चाहता है। साला सवेरे निकल जाता है और आधी रात को लौटता है। अवारा घूमता रहता है।''
''कहीं कोई गोरी-काली ही न ले आए।''
ज्ञान कौर डरती हुई कहती है।
प्रदुमण सिंह को भी इस बात की चिन्ता है कि यदि उसने गलत कदम उठा लिया कि कोई गर्ल फ्रेंड रख ली तो इसका असर लड़कियों पर भी पड़ सकता है और बलराम पर भी। फिर वह गम्भीरता से सोचता है तो देखता है कि इतना समय हो गया, उसको यूँ आते-जाते आज तक उसके साथ कोई लड़की नहीं देखी। उसे एकाएक ख़याल आता है कि कहीं वह गे ही न बन जाए। वह जानता है कि आजकल गे बनने की प्रवृत्ति बहुत फैल रही है। गे बनने की प्रवृत्ति के पीछे कारण यही हैं कि एक तो औरत की बहुलता और दूसरा औरत का न मिलना। कई बार बुरे साथ का भी असर हो जाता है। उसे लगता है कि राजविंदर सारा दिन लड़कों के संग रहता है और गे रुझान का लड़का ही उसको इस ओर लगा सकता है। यह सब सोचते हुए वह राजविंदर के बारे में और अधिक चिन्तित होने लगता है।
उस दिन राजविंदर देर से घर लौटता है। प्रदुमण सिंह बैठा उसकी प्रतीक्षा कर रहा है। नहीं तो इतनी देर तक वह जागा नहीं करता। सुबह जल्दी उठने के कारण अब तक सो जाया करता है। वह राज को अपने पास बुलाता है। बैठने के लिए कहता है और पूछता है-
''ड्रिंक लेगा एक ?''
''नहीं डैड, मैं तो सोना चाहता हूँ।''
''बात सुन, तेरे पास गर्ल फ्रेंड क्यों नहीं कोई ?''
''डैड, तेरे पास जो है, फिर मुझे क्या करनी है।'' राजविंदर कहता है।
प्रदुमण सिंह डरता हुआ रसोई की तरफ देखने लगता है जहाँ ज्ञान कौर बर्तन मांज रही है। प्रदुमण सिंह फिर कहता है-
''मैं चाहता हूँ कि तू कोई लड़की ढूँढ़ ले।''
''डैड, लड़कियाँ पैसे से मिलती है और पैसे मेरे पास है नहीं।''
''पैसों के लिए कोई काम कर, कोई जॉब तलाश कर।''
''मैं तो बहुत ट्राई करता हूँ। अपने फ्रेंड के साथ एअरपोर्ट भी गया था, पर मिली नहीं।''
''तू कारा के साथ इंश्योरेंस का काम क्यों नहीं सीखने लग जाता ?''
''नो डैड, कारा अंकल टॉक फनी।''
''काम भी खोज और गर्ल फ्रेंड भी खोज।''
''गर्ल फ्रेंड तो मनी से मिलेगी।''
''तुझे कौन कहता है, ये जो लड़के लड़कियों को संग लिए घूमते हैं उनके पास मनी ही होती है।''
''और नहीं तो क्या। डैड लुक एट युअर सैल्फ... यू हैव मनी, दैट'स वाई वुमेन कमिंग टू यू।''
''तुझे कौन बताता है यह बात ?''
''मैं तो कितनी ही बार तुम्हारे साथ औरतें देखता हूँ।''
''वह तो किसी को काम पर से घर छोड़ने जाना या लेने जाना होता है।''
''आई नो, बट दा वे यू बीहेव, दे बीहेव, यू कैन टैल...।''
''तू मेरी बात छोड़, अगली बार तेरे साथ कोई लड़की होनी चाहिए। मैं बहुत वरीड हूँ तेरे लिए।''
''किस बात की वरी है डैड ?''
''कि तू गे न हो जाए।''
''डोंट टॉक रबिश डैड !''
(जारी…)
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प्रदुमण सिंह का काम बहुत अच्छा चल निकला है। अब दस-बारह मर्द-औरतें तो अन्दर ही काम करते हैं। दो ड्राइवर माल देने के लिए हैं। स्वयं वह ऊपर के कामों पर रहता है। कभी एप्रेन या ओवरआल पहनकर दाढ़ी पर जाली लगाकर खुद भी काम करने आ लगता है और कभी कार या वैन उठाकर शॉपिंग करने चला जाता है। यदि कोई ड्राइवर छुट्टी पर हो तो डिलीवरी खुद कर आता है। लड़कियों को छुट्टी हो तो वे फैक्टरी में आ जाती हैं। बलराम अब यूनिवर्सिटी जाता है। बड़ी बेटी सतिंदर ग्रीनफोर्ड हाई स्कूल में ए-लेवल करती है। छोटी पवनदीप जी.सी.एस.ई. कर रही है। राजविंदर अभी भी खाली ही है। घर के काम से उसको नफ़रत-सी है और कहीं दूसरी जगह काम खोजने की उसने कभी कोशिश ही नहीं की।
कुछ वर्षों में ही प्रदुमण सिंह ने अपने पैर अच्छी तरह जमा लिए हैं। दो राउंड खड़े कर लिए हैं। हर रोज़ काम बढ़ाता चला जाता है। कई और लोग लंदन में समोसे डिलीवर करने लग पड़े हैं और वे माल प्रदुमण् सिंह से उठाते हैं। बड़े-बड़े रेस्ट्रोरेंट भी उससे समोसे लेने लग पड़े हैं। समोसों के साथ उसने पकौड़े भी बनाने शुरू कर दिए हैं। पकौड़ियों को ओनियन भाजी का नाम दे दिया है जो कि मशहूर हो गया है। साथ ही साथ, स्प्रिंग रोल और करी रोल भी बनाने लगा है। अब वह हर चीज़ को पैकेट में बन्द करने लग पड़ा है। हर पैकेट के ऊपर पूरा लेबल लगा होता है। उस पर बेचने की अन्तिम तिथि पड़ी होती है। लेबल पर उसकी कम्पनी का नाम 'हैव ए बाइट' होता है। उसका यह नाम अब स्थापित हो चुका है। लेबल बनाने के लिए उसने कम्प्यूटर खरीद लिया है। इसी तरह बिल भी अब वह कम्प्यूटर से ही निकालता है। समय के बदलाव के साथ उसने फैक्टरी में कम्प्यूटरों का प्रयोग करना आरंभ कर दिया है। कम्प्यूटर पर काम करने के लिए अस्थाई तौर पर एक लड़की रख लेता है, पर फिर वह स्वयं ही गुजारे लायक कम्प्यूटर चलाना सीख लेता है। कम्प्यूटर के काम के लिए बलराम या लड़कियाँ भी आ जाती हैं।
बलबीर और गुरमीत, दो ड्राइवर हैं उसके पास। पाँच दिन समोसे डिलीवर करते हैं और दो दिन फैक्टरी में काम करवाते हैं। ये दोनों ही फौजी हैं। 'फौजी' शब्द गैर-कानूनी प्रवासियों के लिए प्रयोग में लाया जाने लगा है। इन दोनों के केस उसने सुरमुख संधू से करवाये हुए हैं। उसकी कोशिश है कि केसों की कार्रवाई या इनकी स्टेज के बारे में इन दोनों को अधिक पता न चले। वह अहसान के तले दबे जी-जान से काम कर रहे हैं। केस चलते हो जाने से कानूनन वे ड्राइविंग टैस्ट पास करके वैन भी चला सकते हैं। उन्हें दौड़-दौड़कर काम करते देख प्रदुमण सिंह सोचने लगता है कि यदि उसका अपना बेटा राजविंदर किसी काम योग्य होता तो उसको कितनी मदद हो जाती।
बलबीर और गुरमीत कितना भी ईमानदारी से काम करते हैं, पर प्रदुमण सिंह उन पर यकीन नहीं करता। डिलीवरी के काम में काफी सारी नगद रकम एकत्र करनी होती है। कुछ दुकानदार हफ्ते बाद बिल देते हैं और कुछ रोज़ की रोज़। हफ्ते बाद वाले बिल में हेराफेरी के मौके कम होते हैं, पर कैश डिलीवरी में ड्राइवर हेराफेरी कर सकते हैं। गुरमीत और बलबीर हेराफेरी करते हैं या नहीं, पर प्रदुमण सिंह को हर समय शक लगा रहता है। कई बार तो इतना शक करने लगता है कि उनकी जेबें टटोलने लग पड़ता है। यदि वे गुस्सा हो जाएँ तो फिर 'बेटा-बेटा' करता फिरता है। वह जानता है कि उनके बग़ैर उसका काम नहीं चलेगा। ड्राइवर भी उसके इस तरह आदी हो चुके हैं कि छोटी-मोटी बात का गुस्सा करना उन्होंने छोड़ दिया है, पर दांव लगे तो हेराफेरी करने से नहीं झिझकते। फिर बाद में शेखियाँ मारते हुए बताते हैं कि आज मैंने इतने निकाले और आज फलाने ने इतने। शाम को इकट्ठा होकर बोतल भी खरीदते हैं और हँसते हुए कहने लगते हैं कि मजे लेकर पियो, यह अंकल की शराब है। मतलब कि चोरी किए गए पौंडों की खरीदी हुई शराब। शाम को एक-दूजे को मज़ाक करते हुए पूछते हैं कि आज अंकल की पिला रहा है व्हिस्की या बरांडी।
फैक्टरी में काम करती औरतों पर ज्ञान कौर पूरा रौब रखती है। ब्रेक बहुत कम देती है। किसी को एक मिनट के लिए भी फालतू नहीं बैठने देती। वैसे तो अब साउथॉल में 'गुड मोर्निंग रेडियो' शुरू हो चुका है जो कि सारा दिन चलता रहता है। परन्तु, बीच-बीच में वे टेप भी चला लेते हैं। यदि काम करने वाली औरतें काम में ढीली पड़ने लगें तो वह संगीत बन्द कर देती है जो कि सभी को तकलीफ़देह लगता है।
कुलजीत प्रदुमण को अभी भी याद आती है। कुलजीत गई तो उसको नीरू फिर याद आने लगती है। वह कभी-कभी नीरू को फोन कर लिया करता है, पर उससे भारत नहीं जाया जाता। ज्ञान कौर इंडिया हो आई है। जितना समय कुलजीत उसके साथ घूमती रही है, वह जैसे हवा में उड़ता रहा हो। जवान लड़की को कार में बिठाकर साउथाल का चक्कर लगाना उसको अच्छा लगता है। कुलजीत को लेकर कई बार कारा से मिलने भी चला जाता। कुलजीत स्थायी हो जाने पर बदल जाती है। एक दिन वह उससे कहती है-
''अंकल, अब मुझे अपनी ज़िन्दगी नये सिरे से शुरू करनी है, तुम मेरी क्या मदद कर सकते हो ?''
''बता, मैं क्या करूँ ?''
''मैंने एक फ्लैट देखा है, बहुत सस्ता बिक रहा है।''
''कुलजीत कौर, मैं फ्लैट वाला बन्दा नहीं। मैं तुझे शुभकामनाएँ दे सकता हूँ।''
''इतनी देर की दोस्ती और पेट घिसाई किस काम आई !''
''यह मुहब्बत थी या सहूलियत, तू ही बता।''
''तुम्हारी पूरी इज्ज़त इस पर खड़ी है।''
एक मिनट के लिए प्रदुमण सिंह डोलता है और फिर कहता है-
''इश्क में ब्लैकमेल नहीं किया करते।''
''तुमने मुझे ब्लैकमेल किया इतने समय, मैंने तो सिर्फ़ मदद ही मांगी है। यदि आंटी को तुम्हारे बारे में पता चल जाए तो क्या हो !''
प्रदुमण सिंह थोड़ा-सा हँसता है और बोलता है-
''कुलजीत कौर, मैंने तो सोचा था कि तू सयानी लड़की होगी, तू तो इतना भी नहीं सोच सकती कि मैं तुझे सरेआम लिए घूमता हूँ और उसको अभी तक पता ही नहीं होगा। अगर अभी भी समझदारी बरतनी है तो ये डराना-धमकाना छोड़ और मेरे साथ दोस्ती रख, किसी वक्त काम आऊँगा।''
प्रदुमण सिंह बात करते हुए सोचता है कि यह तो बहुत खतरनाक लड़की है। एक दिन वह ज्ञान कौर के कंधे पर बन्दूक रखकर चला देता है। कुलजीत को काम पर से हटा देता है।
कुलजीत से वह अन्दर ही अन्दर प्यार करने लगता है। उससे टूटने पर कुछेक दिन उसका मन उदास रहता है, पर उसको तसल्ली भी है कि पीछा छूटा, किसी वक्त मुसीबत में भी डाल सकती थी। कुछ दिनों के बाद नई आई शिंदर कौर से दोस्ती गांठ लेता है, पर एक दूरी रखता है। और भी ज़रूरतमंद औरतों पर उसकी नज़र घूमती रहती है।
वैसे तो प्रदुमण सिंह काफी खुश रहता है, पर बड़े बेटे की चिन्ता उसके मन में कंकड़ की भाँति चुभती रहती है हर समय। पढ़ाई में भी वह किसी किनारे नहीं लगा। काम करने का भी उसका कोई इरादा नहीं है। राजविंदर पूरा ड्राइवर है, पर कोई वैन कभी नहीं चलाता। कार को भी जब ज़रूरत हो तो ले जाता है। यदि प्रदुमण झिड़क देता है तो वह रूठकर घर से चला जाता है और एक दो दिन बाहर रह कर लौट आता है। अब उसको यह भी नहीं कि राजविंदर ने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। वह सोचता है कि कौन सी सारी दुनिया डिग्रियाँ लिए घूमती है। कारा अनपढ़-सा ही है और इतना बड़ा इंश्योरेंस का काम चलाये फिरता है। इतना ज़रूर है कि पढ़ाई के बग़ैर आजकल काम कम ही मिलते हैं, पर राजविंदर तो घर का काम ही नहीं कर रहा, बाहर तो उसने क्या करना है। ज्ञान कौर भी राजविंदर को समझाने लगती है, पर वह नहीं समझता।
एक दिन प्रदुमण सिंह कहने लगता है।
''खाली बैठकर टाइम न खराब कर, फैक्टरी में आकर हमारी हैल्प कर, तुझे पूरी तनख्वाह देंगे।''
''मैंने मम्मी को टैल किया था कि मुझे कुकिंग से एलर्जी है।''
''ड्राइविंग कर ले।''
''ड्राइविंग मुझे प्रैशर देती है।''
''कोई और जॉब ढूँढ़ ले।''
''मेरे लायक जॉब मिलेगी तभी करूँगा।''
''तेरे लायक जॉब... तूने क्या अब बैंक मैनेजर लगना है।''
''डैड, यू आलवेज़ अंडरएस्टीमेट मी।''
''एस्टीमेट तो तेरा मैं ठीक कर रहा हूँ, तेरा घर में से कोई पैसा मिलना बन्द, डोल मनी पर ही गुजारा कर।''
''पहले भी डैड, तू कभी कुछ नहीं देता। मॉम भी पूरा नहीं देती, दैट'स इट।''
प्रदुमण सिंह ज्ञान कौर को भी समझाता है कि उसको जेब खर्च देना बन्द करे। ज्ञान कौर बेटे से कहने लगती है-
''काका, काम करेगा तो अच्छी जगह ब्याहा जाएगा।''
ज्ञान कौर को अब उसके विवाह की चिन्ता होने लगी है। वह अपने पति से कहती है-
''मैं तो सोचती हूँ कि इसका विवाह कर दें। बेगानी लड़की अपने आप सीधा कर देगी इसे।''
''पहले तो हम इसका बोझ उठाते हैं, फिर उस लड़की का भी उठाएँगे।''
''क्या मालूम, ठीक ही हो जाए।''
''थोड़ा बहुत तो लगे कि यह काम करना चाहता है। साला सवेरे निकल जाता है और आधी रात को लौटता है। अवारा घूमता रहता है।''
''कहीं कोई गोरी-काली ही न ले आए।''
ज्ञान कौर डरती हुई कहती है।
प्रदुमण सिंह को भी इस बात की चिन्ता है कि यदि उसने गलत कदम उठा लिया कि कोई गर्ल फ्रेंड रख ली तो इसका असर लड़कियों पर भी पड़ सकता है और बलराम पर भी। फिर वह गम्भीरता से सोचता है तो देखता है कि इतना समय हो गया, उसको यूँ आते-जाते आज तक उसके साथ कोई लड़की नहीं देखी। उसे एकाएक ख़याल आता है कि कहीं वह गे ही न बन जाए। वह जानता है कि आजकल गे बनने की प्रवृत्ति बहुत फैल रही है। गे बनने की प्रवृत्ति के पीछे कारण यही हैं कि एक तो औरत की बहुलता और दूसरा औरत का न मिलना। कई बार बुरे साथ का भी असर हो जाता है। उसे लगता है कि राजविंदर सारा दिन लड़कों के संग रहता है और गे रुझान का लड़का ही उसको इस ओर लगा सकता है। यह सब सोचते हुए वह राजविंदर के बारे में और अधिक चिन्तित होने लगता है।
उस दिन राजविंदर देर से घर लौटता है। प्रदुमण सिंह बैठा उसकी प्रतीक्षा कर रहा है। नहीं तो इतनी देर तक वह जागा नहीं करता। सुबह जल्दी उठने के कारण अब तक सो जाया करता है। वह राज को अपने पास बुलाता है। बैठने के लिए कहता है और पूछता है-
''ड्रिंक लेगा एक ?''
''नहीं डैड, मैं तो सोना चाहता हूँ।''
''बात सुन, तेरे पास गर्ल फ्रेंड क्यों नहीं कोई ?''
''डैड, तेरे पास जो है, फिर मुझे क्या करनी है।'' राजविंदर कहता है।
प्रदुमण सिंह डरता हुआ रसोई की तरफ देखने लगता है जहाँ ज्ञान कौर बर्तन मांज रही है। प्रदुमण सिंह फिर कहता है-
''मैं चाहता हूँ कि तू कोई लड़की ढूँढ़ ले।''
''डैड, लड़कियाँ पैसे से मिलती है और पैसे मेरे पास है नहीं।''
''पैसों के लिए कोई काम कर, कोई जॉब तलाश कर।''
''मैं तो बहुत ट्राई करता हूँ। अपने फ्रेंड के साथ एअरपोर्ट भी गया था, पर मिली नहीं।''
''तू कारा के साथ इंश्योरेंस का काम क्यों नहीं सीखने लग जाता ?''
''नो डैड, कारा अंकल टॉक फनी।''
''काम भी खोज और गर्ल फ्रेंड भी खोज।''
''गर्ल फ्रेंड तो मनी से मिलेगी।''
''तुझे कौन कहता है, ये जो लड़के लड़कियों को संग लिए घूमते हैं उनके पास मनी ही होती है।''
''और नहीं तो क्या। डैड लुक एट युअर सैल्फ... यू हैव मनी, दैट'स वाई वुमेन कमिंग टू यू।''
''तुझे कौन बताता है यह बात ?''
''मैं तो कितनी ही बार तुम्हारे साथ औरतें देखता हूँ।''
''वह तो किसी को काम पर से घर छोड़ने जाना या लेने जाना होता है।''
''आई नो, बट दा वे यू बीहेव, दे बीहेव, यू कैन टैल...।''
''तू मेरी बात छोड़, अगली बार तेरे साथ कोई लड़की होनी चाहिए। मैं बहुत वरीड हूँ तेरे लिए।''
''किस बात की वरी है डैड ?''
''कि तू गे न हो जाए।''
''डोंट टॉक रबिश डैड !''
(जारी…)
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