समकालीन पंजाबी साहित्य की उत्कृष्ट कृतियों की तलाश

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Saturday, May 7, 2011

पंजाबी उपन्यास



''साउथाल'' इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत अटवाल का यह चौथा उपन्यास है। इससे पूर्व उनके तीन उपन्यास - 'वन वे', 'रेत', और 'सवारी' चर्चित हो चुके हैं। ''साउथाल'' इंग्लैंड में एक शहर का नाम है जहाँ अधिकतर भारत से गए सिक्ख और पंजाबी परिवार बसते हैं। यहाँ अवस्थित पंजाबी परिवारों के जीवन को बेहद बारीकी से रेखांकितरता हरजीत अटवाल का यह उपन्यास इसलिए दिलचस्प और महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से हम उन भारतीय लोगों की पीड़ा से रू-ब-रू होते हैं जो काम-धंधे और अधिक धन कमाने की मंशा से अपना वतन छोड़ कर विदेशों में जा बसते हैं और वर्षों वहाँ रहने के बावजूद वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।

साउथाल
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

।। तेईस ॥
गुरमुख संधू को पूरा साउथाल जानता है। लोग उसको संधू वकील भी कहते हैं। रोज़डेल रोड पर रहता है जो कि ब्रॉडवे को निकलती है और बीकन्ज़फील्ड रोड की ओर जा मिलती है। संधू वकील प्रसिद्ध तो अपनी ईमानदारी और काम की लगन के कारण है, पर उससे भी अधिक प्रसिद्ध वह अपनी शराब के कारण है। शराब के कारण कइयों के केस खराब भी हो सकते हैं। संधू इंडिया में वकील था। यहाँ आकर प्रैक्टिस करने के लिए कुछ और कोर्स करने थे। ऐसे चक्करों में वह पड़ना नहीं चाहता था। इसलिए इमीग्रेशन का काम शुरू कर लिया। इमीग्रेशन के केस करवाने के लिए किसी डिग्री की ज़रूरत नहीं होती। बग़ैर डिग्रियों के बहुत सारे एजेंट यह काम कर रहे हैं।
घर के फ्रंट में ही उसने अपना दफ्तर बनाया हुआ है। सैटी पड़ी है, कॉफी टेबल है जैसा कि आम फ्रंट रूमों में होता ही है। उसने बस कुछ कुर्सियाँ अधिक लाकर रखी हुई हैं। कानून की बड़ी-बड़ी किताबों और फाइल कैबिनेट से आप इसको दफ्तर कह सकते हो। फाइल कैबिनेट की ओट-सी में एक बोतल पड़ी रहती है। यह उसकी रिर्ज़व में रखी बोतल है। जब बेटा-बेटी या पत्नी कुछ अधिक ही पीने से रोकें तभी वह इस बोतल को छेड़ता है, नहीं तो असली बोतल उसकी रसोई में ही होती है। वर्षों से वह 'टीचर' पीता आ रहा है। टीचर व्हिस्की को पंजाबी लोग पसन्द नहीं करते, चाहे मुफ्त की क्यों न हो, पर उसको यह रास आ गई है। उसका कहना है कि उसको तो ठीक ही यही बैठती है। एक एक पैग करके दिनभर पीता रहता है। जब कभी दो पैग ज्यादा पी लेता है तो वह सो जाता है। शराब के कारण ही उसके पास अधिक केस नहीं आते। जो आते भी हैं, कई बार उसकी काबलियत पर शक करते हुए अपनी फाइल उठाकर ले जाते हैं। लेकिन वह हर केस में अपनी पूरी जान लगा देता है और फिर वह लेता भी सिर्फ़ सौ पौंड है जबकि अन्य वकील या एजेंट कई-कई सौ झटक लेते हैं। इसीलिए जो उसके पास आते हैं, कहीं और नहीं जाते।
प्रदुमन सिंह को संधू वकील की काबलियत पर पूरा भरोसा है। वह उसका पुराना परिचित है। आरंभ में कई केस उसी से करवाये थे। प्रदुमन सिंह को जगमोहन पर भी यकीन है कि काम सही ढंग से करेगा, लेकिन वह काम छोड़े बैठा है और फिर वह गलत काम करने के लिए राजी नहीं होता। संधू को वह जैसा कहेगा, वह मान जाएगा। उसने संधू से सुबह की अप्वाइंटमेंट ली है ताकि वह उसको अधिक शराबी हुआ न मिले। वह संधू के घर की डोर बेल बजाता है। संधू स्वयं दरवाजा खोलता है। दोनों के बीच 'हैलो' होती है। दोनों परस्पर परिचित तो हैं हीं। संधू पूछता है-
''हाँ जी, प्रदुमन सिंह जी, क्या करें आपके लिए ?''
''दो लड़कों के पुलिटिकल स्टे के केस करवाने हैं।''
''कर देते हैं, इस मुल्क में एंटर होने का प्रूफ है ?''
''हाँ जी, एक तो सैर के लिए आया था और दूसरा विवाह पर। प्रोपर हीथ्रो के रास्ते एंटर हुए हैं।''
''सिंह सजे हुए हैं या मोने हैं ?''
''हैं तो मोने ही, बग़ैर पगड़ी के।''
''दाढ़ी रखवा कर पगड़ी बंधवा दो। हो सके तो दाढ़ी लम्बी हो सिंहों जैसी।''
''यह सलाह मेरे लिए मुश्किल है।''
''मुश्किल कैसी, आप खुद सिंह हो।''
''मैं तो अब जो हूँ, सो हूँ, पर वे काम कैटरिंग का करते हैं और कैटरिंग के काम में बालों की बहुत प्रॉब्लम है।''
''इसका कोई हल तो होगा ही, नैट आदि लगाकर काम किए जाएँ।''
''बात तो आपकी सही है, कैटरिंग का काम मेरा ही है। मैं चाहता हूँ कि मेरे लिए मुसीबतें न बढ़ें। चलो, देखेंगे, और बताओ।''
''पढ़े लिखे हैं ?''
''थोड़ा बहुत।''
''गुरुओं के बारे में जानते हैं कि नहीं ?''
''लो संधू जी, क्या बात करते हो। सिक्खों के घर के लड़कों को भला गुरुओं के बारे में न पता हो।''
''यह बात आप भूल जाओ, प्रदुमन जी। कइयों को कुछ नहीं पता। पिछले हफ्ते मैं एक केस करवाने गया। अफ़सर ने पूछा कि सिक्खों के कितने गुरू हैं, लड़का बोला कि होंगे बारह-चौदह। अफ़सर हँस पड़ा। मैंने मौका संभालते हुए कहा कि ये आजकल के लीडरों को भी गुरू ही समझते हैं।''
''नहीं, संधू साहिब, इससे अच्छे हैं।''
''समझाए हुए बयान तो समझ लेंगे न ?''
''बिलकुल।''
''फिर ले आओ उनको।''
''बताओ, क्या सेवा करें ?''
''अपना तो रंडियों जैसा फिक्स रेट है सौ पौंड। सौ पौंड पहले और सौ पौंड काम होने के बाद।''
''दो केसों का कम नहीं कर लेते ?''
''आप न भी दो तो कौन सी बात है।''
''कब लेकर आऊँ उनको ?''
''किसी समय शाम को।''
''शाम को तो आप सवार हो जाते हो।''
''सवार तो मैं सुबह चाय के वक्त ही हो जाता हूँ।''
संधू थोड़ा खीझकर कहता है। प्रदुमन सिंह कहता है-
''मैं तो मजाक करता हूँ संधू साहिब, हमें तो आपकी वकालत का हमेशा ही फायदा रहा है। हमारा रिश्तेदार है एक, उसने तो वकालत करके कुएँ में डाल दी।''
''मेरे संग बहुत से वकील इंडिया से आए थे यहाँ, पर जल्दी पैसे कमाने के लालच में फैक्ट्रियों, डाकखानों में जा घुसे।''
''जगमोहन ने भी ऐसा ही किया।''
''जगमोहन को तो मैंने कहा था कि आ जा मेरे साथ मिलकर काम कर, पर वह बन्दा ही कुछ ओर ढंग का है। थोड़ा समय रहा भी मेरे संग।''
''उसने लीगल एडवाइज़ ब्यूरो भी खोला था, पर बन्द कर दिया।''
''वह तो सारा भारद्वाज का स्टंट था। यह काम तो बहुत मेहनत मांगता है, लॉ के लिए हर समय अप-टू-डेट रहना पड़ता है।''
''लड़के आएँगे, पैसे ले लेना।''
वह चला जाता है। संधू रसोई में जाकर एक पैग बना लाता है। फिर कुछ फाइलें निकाल लेता है। एक फाइल खोलकर देखता है तो खीझ उठता है। वह बड़बड़ा रहा है-
''कल इसकी डेट है और पेपर भी पूरे नहीं हैं।''
वह फाइल के ऊपर लिखे फोन नंबर पर फोन करता है। कोई नहीं उठा रहा। उसे गुस्सा आ रहा है कि क्लाइंट कितना लापरवाह है कि दुबारा पता ही नहीं किया। ऊपर से फोन डैड है। उसको और अधिक तकलीफ़ महसूस होने लगती है। अगर क्लाइंट कल तारीख़ पर न आया तो वे सीधे ही उठाकर उसे डिपोर्ट कर देंगे जबकि उसके केस में दम है। अगर अभी पक्का न भी हुआ तो करीब दो साल की स्टे तो मिल ही जाएगी। वह सोचता है कि क्लाइंट को कहाँ खोजे। उसे कुछ नहीं सूझ रहा। वह हाथवाला पैग पीकर दूसरा बना लेता है।
शाम को मीका और तारा आकर घंटी बजाते हैं। संधू दरवाजा खोलता है। तारा कहता है-
''जी, आ जाएँ ?''
''आ जाओ।''
''यह है जी मीका, इसका केस है।''
''ठीक है, मीके, तू कैसे आया, सैर के लिए या छिप कर ?''
''मैं शिप में आया था जी, गोरों की वैन थी, पैसे दिए और वे ले आए, पर लालची बहुत थे।''
''कितना समय हो गया यहाँ आए ?''
''चार साल हो गए।''
''कहीं काम करने का प्रूफ हो ?''
''काम किया मैंने भाई के साथ। उसका रेस्ट्रोरेंट चलाया, पर साले मेरे ने एक पैनी नहीं दी। तनख्वाह मांगी तो कहता कि तू काम करते-करते पी गया। मैंने कहा कि पूरी की पूरी तनख्वाह कैसे पी गया, अधिक से अधिक आदमी रोज़ की एक बोतल पी लेगा। अब आप पीते ही हो, आपको भी पता ही है।'' मीका कहता है।
संधू थोड़ा खीझता हुआ बोलता है-
''तू अपनी बात बता।''
''मैंने ज्यादा कहा तो उसने पुलिस बुला ली। संधू साहिब, एक बार पक्का हो जाऊँ, मैं भाई की ऐसी की तैसी कर दूँगा।''
''मीका, तुझे पक्का करवाना मेरे वश का काम नहीं।''
''मैंने तो जी आपका बड़ा नाम सुना है। आप सौ पौंड ज्यादा ले लो, मुझे पक्का करवा दो। मैंने एक बार भाई को सीधा करना है और करना आपके सिर पर ही है।''
''तू भाई के बारे में सोचना अभी छोड़ दे और इस मुल्क में अपनी हाज़िरी के सबूत इकट्ठे कर।''
''अगर मैं यह काम कर सकता होता तो आपके पास क्या करने आना था।''
मीका मुँहफट है। तारा को पता है। उसके सारे दोस्तों को भी पता है। वह कहता है-
''मीका, अपनी जुबान को ज़रा ब्रेक लगा, जैसा संधू साहिब कहते हैं, वैसा ही कर। तेरी इस जुबान ने ही पहले सारे काम खराब किए हैं।''
''जुबान को यार मैंने कौन सी लड़की छेड़ दी। संधू साहिब, आप मुझे पक्का कराओ जी, मैं आपके पैर धो-धोकर पीऊँगा, आपका कूकर बनकर रहूँगा सारी उम्र।''
मीका मिन्नतें करता है। संधू पहले खीझता है पर फिर नरम पड़कर पूछता है-
''जब से आया है, कोई केस भी किया था जिसकी कोई रेफरेंस हो ?''
''यह तो भाई को ही पता होगा, उसने माँ के यार ने कभी कुछ बताया ही नहीं।''
''कभी कोर्ट वगैरह में अपीयर हुआ हो ? पासपोर्ट कोई ?''
''कुछ नहीं जी, फांग ही हूँ।''
''फिर तो तेरा कुछ नहीं होगा। सॉरी।''
''अगर विवाह करवा लूँ तो ?''
''कोई लड़की है ?''
''एक माता जैसी है अगर मान गई तो ?''
मीका के कहने पर सभी हँसते हैं। संधू भी हँसता है और उसका गुस्सा ठंडा पड़ जाता है। उसको मीका का अंदाज अच्छा लगने लग पड़ता है। वह कहता है-
''मीका, तेरे बारे में सोचना पड़ेगा, पर मुझे लगता है कि मेरे वश की बात नहीं।''
''इसे वश में करो जी, अगर मैं पक्का न हुआ तो आपके नाम को धब्बा लग जाएगा।”
''तू मेरे नाम की फिक्र न कर, बड़े धब्बे लगे हुए हैं। तेरा केस ही बहुत टेढ़ा है।''
''इसे सीधा करो जी किसी तरह, किसी तरह भाई को सबक सिखाने लायक कर दो।''
''ऐसा न हो कि भाई के बाद मेरा नंबर लगा दे।''
संधू हँसता हुआ कहता है। मीका बेचारा-सा बनकर बोलता है-
''ना जी ना, आप तो जी फिर मेरे माई-बाप हो गए।''
''अगर तू पक्का न हुआ तो माई बाप, बुरे माँ-बाप खुद ही हो जाएँगे।''
''अगर पक्का न हुआ तो आप मुझे यहीं अपने पास रख लेना, अपनी तरह ही मुझे बूँद बूँद देते रहना।''
(जारी…)