समकालीन पंजाबी साहित्य की उत्कृष्ट कृतियों की तलाश

‘अनुवाद घर’ को समकालीन पंजाबी साहित्य की उत्कृष्ट कृतियों की तलाश है। कथा-कहानी, उपन्यास, आत्मकथा, शब्दचित्र आदि से जुड़ी कृतियों का हिंदी अनुवाद हम ‘अनुवाद घर’ पर धारावाहिक प्रकाशित करना चाहते हैं। इच्छुक लेखक, प्रकाशक ‘टर्म्स एंड कंडीशन्स’ जानने के लिए हमें मेल करें। हमारा मेल आई डी है- anuvadghar@gmail.com

Sunday, June 20, 2010

पंजाबी उपन्यास


''साउथाल'' इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत अटवाल का यह चौथा उपन्यास है। इससे पूर्व उनके तीन उपन्यास - 'वन वे', 'रेत', और 'सवारी' चर्चित हो चुके हैं। ''साउथाल'' इंग्लैंड में एक शहर का नाम है जहाँ अधिकतर भारत से गए सिक्ख और पंजाबी परिवार बसते हैं। यहाँ अवस्थित पंजाबी परिवारों के जीवन को बेहद बारीकी से रेखांकित करता हरजीत अटवाल का यह उपन्यास इसलिए दिलचस्प और महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से हम उन भारतीय लोगों की पीड़ा से रू-ब-रू होते हैं जो काम-धंधे और अधिक धन कमाने की मंशा से अपना वतन छोड़ कर विदेशों में जा बसते हैं और वर्षों वहाँ रहने के बावजूद वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।

साउथाल
हरजीत अटवाल

हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

॥छह॥

कारा और प्रदुमण रिश्तेदार हैं और हमउम्र भी। इकट्ठे ही इंग्लैंड आए और इकट्ठे ही रहे। प्रदुमण इंडिया जाते समय अपने घर की कई जिम्मेदारियाँ कारा को सौंप कर गया था। पहले तो प्रायवेट किरायेदार थे, फिर कारा की मार्फत ही उसने घर काउंसल को किराये पर दे दिया था। घर की टूट-फूट की मरम्मत कारा ही करवाता। और भी कोई शिकायत होती तो कारा ही सुनता। प्रदुमण भी मुसीबत के समय कारा के संग खड़ा हो जाता है। कारा भी सोचा करता है कि जिस व्यक्ति के पास एक रिश्तेदार भी संग खड़ा होने वाला हो तो उसे बहुत सारे दोस्तों की ज़रूरत नहीं पड़ती। वैसे कारा के काफ़ी दोस्त हैं। उसकी इधर-उधर लम्बी-चौड़ी जान-पहचान है। उसका बीमे का काम है। कारों की इंश्योरेंस करता है। साउथाल का माना हुआ ब्रोकर है। ग्राहक का क्लेम दिलाने में वह काफ़ी मशहूर है। वह स्वयं क्लेम फॉर्म भरता है और कम्पनी को बार-बार फोन करके ग्राहक को पैसे दिला देता है। उसके इसी व्यवहार के कारण एक बार आया ग्राहक किसी दूसरे ब्रोकर के पास नहीं जाता।
एक दिन शाम को गिलास टकराते हुए कारा कहता है-
''दुम्मणा, इंश्योरेंस का काम शुरू कर ले यार। शुरू में कठिन है, बाद में ठीक है। एक बार पैठ पड़ गई तो फिर सब कुछ ठीक।''
''नहीं कारे। तू यूँ ही दुखी रहने लग पड़ेगा। तेरे क्लाइंट ही तो मेरी ओर दौड़ेंगे।'' कहकर दुम्मण तिरछी नज़र से देखता है।
''नहीं, मेरा कोई कलाइंट नहीं आने वाला तेरी तरफ। मैंने तो मानो उन्हें अफीम चटा रखी है।''
बात करते हुए कारा हँसता है। प्रदुमण कहता है -
''यह काम मेरे वश का नहीं। तुझे तो तेरी बीवी सुरजीत की बहुत मदद है, पढ़ी-लिखी है। पर मेरी ज्ञानो क्या हैल्प करेगी।''
''उस समय तू जल्दी कर गया विवाह के लिए। कहता था- शक्ल मधुबाला जैसी है, पढ़ाई-लिखाई को क्या करना है।''
''उस समय फिर दूर का कहाँ सोचना होता है। वैसे चाहे अनपढ़ थी, पर दुकान में मेरा काफ़ी साथ दिया।''
''दुकान ही ले ले कोई।''
''अब मैं दुकान भी नहीं करना चाहता। पब्लिक डीलिंग मुझे अच्छी नहीं लगती, पर काम तो अब मुझे खोजना ही है। एअरपोर्ट का चक्कर लगाकर आया हूँ। तू भी काम की तलाश करना।''
''एअरपोर्ट वाले यंग ब्लॅड को प्रिफर करते हैं। एअरपोर्ट वाले क्या हर कोई जवान लड़कों को काम देकर खुश हैं। और कुछ नहीं तो मिनी कैब ही कर ले।''
''वह तो आखिरी हथियार है। और फिर टैक्सी खतरनाक भी है। शराबी गाहक चाकू मारने में मिनट भर नहीं लगाते।''
''अंडरग्राउंड वगैरह में नाम दे आ।''
''हाँ, करता हूँ कुछ। पहले तो किराये पर घर या फ्लैट देखें। नोटिस देने के बाद भी अपना घर पता नहीं कब खाली हो।''
''मेरे यहाँ ऐसे ही काम चलाये जाओ।''
''नहीं कारे, अगर हफ्ता-दस दिन की बात होती तो ठीक था, पर यह तो पता नहीं कई महीने ही लग जाएँ। तू तो जानता ही है, काउंसल के कामों के बारे में।''
''घर तो पटेल का खाली पड़ा है, पर वहाँ सेंट्रल हीटिंग नहीं है।''
''इतनी ठंड में हीटिंग के बग़ैर काम नहीं चलेगा।''
''दुम्मणा, अपना यूँ ही काम चलता रहे तो किराया किसलिए देना। यह ठीक है कि इतने बन्दों के लिए यह घर छोटा है, पर जब टाइम ही पास करना हो तो कौन सी बात है।''
प्रदुमण जानता है कि कारा मोह के कारण कह रहा है। वह महसूस करता है कि उसके छह सदस्य आ जाने से कारा के बच्चे खुश नहीं हैं और न ही उसकी पत्नी सुरजीत। वह जानता है कि हर परिवार निजता चाहता है, अपनी एक ओट। हर परिवार क्यों, हर सदस्य की निजी ज़िन्दगी है, किसी के दख़ल को कोई पसंद नहीं करता।
शीघ्र ही उन्हें मार्टन हाउस में दो बैडरूम का फ्लैट किराये पर मिल जाता है। किराया तो इस फ्लैट का पूरे घर जितना ही है, पर वह पूरी तरह फर्निशड है। उन्हें इस घर में कुछ भी लाने की ज़रूरत नहीं। वे तुरन्त मूव हो जाते हैं। काउंसल को उसने घर खाली करने का नोटिस दे दिया है। बच्चे भी फिर से स्कूल जाने लगते हैं। उन्हें पहले वाला ही डौरमर हाई स्कूल मिल जाता है। प्रदुमण स्वयं जाकर हैड मास्टर से मिलता है और सारा इंतज़ाम कर लेता है। दोनों बेटे तो पहले ही हाई स्कूल जाते थे, इंडिया जाने से पहले, पर अब दोनों लड़कियों की उम्र भी हाई स्कूल जाने की हो चुकी है। उन्हें स्कूल में जगह कुछ मुश्किल से मिलती है, पर मिल जाती है। वह चाइल्ड अलाउंस दुबारा शुरू करवाने के लिए भी फॉर्म भर देता है। उन्हें काम ही नहीं मिले, नहीं तो ज़िन्दगी फिर से पटरी पर आ जाती। जो कुछ उनके साथ इंडिया में हुआ है, वो पीछे छूटता जा रहा है। कारा कहता है कि जब तक कोई काम नहीं मिलता, क्यों नहीं वह सोशल सिक्युरिटी से भत्ता ले लेता। लेकिन प्रदुमण का सोचना है कि सरकारी भत्तों से इंसान आलसी हो जाता है और दूसरे पर निर्भर होने लगता है। प्रदुमण को यह मंजूर नहीं है।
(जारी…)
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3 comments:

Anonymous said...

दीप्ति ,मैं इस महत्वपूर्ण उपन्यास को एक साथ ही पढूंगा.
सुरेश यादव
sureshyadav55@gmail.com

Anonymous said...

प्रिय बेटा दीप्ति,
तुम्हारा अनुवाद घर नियमित खोलता तो हूँ लेकिन इस उपन्यास को पढूंगा तभी जब यह पूरा हो जाएगा.

अभी तो यह खबार है कि तुम्हारे पापा की मेहरबानी से अपन भी ब्लॉग वाले हो गये हैं. मेरा ब्लॉग है पखेरू, पता है, ohpakheru देख कर बताना.

ताऊ जी,
अशोक गुप्ता
ashok267@gmail.com

Sanjeet Tripathi said...

dekho ji deepti ji, ham bhi aapke purani post par aa gaye aur yah dekh kar to aur bhi accha lagaa ki aapke tau ji yaha hamse pahle hi maujud hain apne hi blog ka link lekar, shubhkamnayein