समकालीन पंजाबी साहित्य की उत्कृष्ट कृतियों की तलाश

‘अनुवाद घर’ को समकालीन पंजाबी साहित्य की उत्कृष्ट कृतियों की तलाश है। कथा-कहानी, उपन्यास, आत्मकथा, शब्दचित्र आदि से जुड़ी कृतियों का हिंदी अनुवाद हम ‘अनुवाद घर’ पर धारावाहिक प्रकाशित करना चाहते हैं। इच्छुक लेखक, प्रकाशक ‘टर्म्स एंड कंडीशन्स’ जानने के लिए हमें मेल करें। हमारा मेल आई डी है- anuvadghar@gmail.com

Thursday, October 31, 2013

पंजाबी उपन्यास



''साउथाल'' इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत अटवाल का यह चौथा उपन्यास है। इससे पूर्व उनके तीन उपन्यास - 'वन वे', 'रेत', और 'सवारी' चर्चित हो चुके हैं। ''साउथाल'' इंग्लैंड में एक
शहर का नाम है जहाँ अधिकतर भारत से गए सिक्ख और पंजाबी परिवार बसते हैं। यहाँ अवस्थित पंजाबी परिवारों के जीवन को बेहद बारीकी से रेखांकित करता हरजीत अटवाल का यह उपन्यास इसलिए दिलचस्प और महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से हम उन भारतीय लोगों की पीड़ा से रू-ब-रू होते हैं जो काम-धंधे और अधिक धन कमाने की मंशा से अपना वतन छोड़ कर विदेशों में जा बसते हैं और वर्षों वहाँ रहने के बावजूद वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।

साउथाल
हरजीत अटवाल

हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

49

होटल खरीदकर कारा सातवें आसमान पर पहुँच जाता है। वह अपने साथ होटलियरकहलवाने लगा है। गुरुद्वारे जाकर ग्यारह सौ पाउंड की अरदास में वह अपने को सरदार बलकार सिंह राय होटलियर कहलवाता है। परंतु उसके व्यक्तित्व या उसके लड़कपन के कारण लोग उसको कारे से बलकार भी नहीं कहने वाले। अजनबी लोग बेशक उसे मिस्टर राय कह लेते हों, पर पुराने परिचित तो कारा कहक़र ही उसे सम्बोधित होते हैं। कुछ भी हो, उसको होटलवाला बनने का हल्का-सा नशा है।
      कारा वैसे भी अपनी ज़िन्दगी में खुश है। उसका लड़का जतिंदरपाल यूनिवर्सिटी में पढ़ता है। यद्यपि उसका झुकाव सिक्खी की तरफ़ भी काफ़ी है, पर पढ़ाई में वह होशियार है। वैसे ही उसकी बेटी परमीत भी पढ़ाई में तेज़ है। बच्चों की ओर से वह खुश है कि पढ़-लिखकर किसी अच्छी नौकरी पर लग जाएँगे। अब जब से वह होटल जाने लगा है तो उसकी पत्नी सुरजीत कौर अपना पूरा ध्यान दफ़्तर की तरफ़ देने लगती है। कारे वाली मर्सडीज़ अब वह दौड़ाए फिरती है और कारे ने नई कन्वर्टेबल बी.एम.डब्ल्यू. खरीद ली है। जतिंदरपाल को भी स्पोर्ट्स कार ले दी है। जिस दिन से उसने अपने बेटे के साथ उसकी गर्लफ्रेंड को देखा है, उसके मन से मनों बोझ उतर गया है। प्रदुमण के लड़के राजविंदर की ओर देखकर उसके अंदर कई डर उगने लगते थे। लड़के के संग गर्लफ्रेंड को देखकर एक बार तो उसका दिल करता है कि दोस्तों को पार्टी दे, पर फिर सोचता है कि यह रस्म पश्चिमी लोगों को ही शोभा देती है, भारतीयों को नहीं।
      होटल लेने के बाद उसका बैंक मैनेजर डेविड कैलाहन दो बार उसको फोन कर चुका है, पर वह उसके साथ बात करने से इन्कार कर देता है। लोन न देने का गुस्सा अभी भी उसके मन में है। दूसरी तरफ़ मनीष पटेल के बैंक मैनेजर के साथ उसके संबंध काफ़ी मज़बूत हो चुके हैं। होटल लेने के बाद वह साउथाल के व्यापारियों की बनी संस्था साउथाल बिजनेस सोसाइटीका भी अब सक्रिय मेंबर है। हर मीटिंग में जाने लगा है। वहाँ दूसरे बैंकों के मैनेजर भी आते हैं जो कि कारा के साथ मित्रता गांठनी चाहते हैं। परंतु कारा को कैलाहन की बेरुखी के बाद मैनेजरों पर अधिक विश्वास नहीं रहा।
      दफ़्तर में काम करती सुरजीत कौर भी खुश है। पति की कामयाबी उसको अच्छी लगती है। पहले वह पार्ट टाइम-सा दफ़्तर जाया करती थी, नहीं तो घर पर ही रहा करती थी। घर पर खाली बैठना उसका अच्छा नहीं लगता। यदि कहीं बैठना भी पड़ जाए तो सारा दिन टेलीविज़न के आगे बैठी रहती है। कई बार जतिंदरपाल के कमरे में से ब्लू-फिल्म उठाकर देखने लग जाती है या फिर जतिंदरपाल से ऐसी फिल्म मंगवा लेती है। वह जानती है कि इधर के जन्मे बच्चे ऐसी बात का बुरा नहीं मनाते। ब्लू-फिल्म देखकर तो उसका मन और भी उतावला होने लगता है। बहाने से कारे के साथ लड़ने-झगड़ने लगती है, पर अब उसने अपने आप को दफ़्तर के काम में डुबा लिया है। शाम को थककर ही घर लौटती है।
      कारा के होटल खरीदने की खुशी की उम्र नौ-दस महीने ही रहती है। होटल की मैनेजमेंट के बदलने से ग्राहक़ी कुछ कम हो जाती है। टूरिस्ट कंपनियाँ अधिक कमीशन मांगने लगी हैं। होटल का अंग्रेज मैनेजर किसी दूसरे होटल ने अधिक वेतन पर पटा लिया है और कारे को मैनेजमेंट का कोई अनुभव नहीं है। नये मैनेजर के आने तक भी बिजनेस को हानि के धक्के लगते रहते हैं। सबसे बड़ी मुसीबत उसको हैल्थ विभाग की वार्षिक चैकिंग से होती है। हर होटल को हैल्थ एंड सेफ्टी विभाग की ओर सब कुछ ठीक होने का सर्टिफिकेट लेना होता है और हैल्थ वाले पूरी तरह होटल का निरीक्षण करके ही यह सर्टिफिकेट प्रदान करते हैं। जब से ब्रतानिया युरोपियन यूनियन में आया है, तब से कानून भी कुछ सख़्त हो गए हैं। हैल्थ वाले निरीक्षण करके होटल की कमियों की लम्बी सूची पकड़ा जाते हैं जैसे कि पूरे होटल की बिजली की तारें गल चुकी हैं, रिवायरिंग होने की ज़रूरत है। बहुत सारे कमरे नया पेपर पेंट मांगते हैं। रसोई में भी बहुत सारे नुक्स हैं। होटल में पानी का प्रबंध भी युरोपियन कानून के अनुसार नहीं है, आदि आदि।
      कारा लिस्ट लेकर मनीष पटेल के पास जाता है। मनीष होटल के काम में कम ही दख़ल देता है। वह अपनी दुकानों में ही व्यस्त है। लिस्ट देखकर मनीष को पसीना आ जाता है। वह गुस्से में कहता है-
      ये साला हमारा सरवेयर पहले वाले मालिक से मिला हुआ था, जो ये बातें हमसे छिपा गया।
      लगता है, ठगी हो गई।
      बिल्डरों को बुलाओ। देखते हैं, कितने का ख़र्चा है।
      बिल्डर आते हैं। कुल मिलाकर डेढ़ लाख पाउंड का ख़र्च बताते हैं। मनीष और कारा दोनों ही सिर पकड़कर बैठ जाते हैं। कारा कहता है-
      इतना पैसा कहाँ से आएगा, रिपेयर के लिए ?“
      मैक्सीमम लोन तो हम ले चुके हैं।
      एजेंट से बात करें जिसने हमें बेचा है।
      वो साला क्या बोलेगा।
      वे दोनों एजेंट से मिलते हैं। एजेंट कंधे उचका देता है।
      जो बिजनेस आप खरीद रहे हो, उसका तजु़र्बा आपको होना चाहिए। हमारा क्या है, हम तो कमीशन पर काम करते हैं। हमें जो इन्फर्मेशन मालिक देते हैं, वही आप लोगों के आगे रख देते हैं।
      अब क्या करें ?“
      आप इतना दिल न छोड़ो, यह होटल आपको काफ़ी सस्ता मिला हुआ है। कुछ समय तक होल्ड करोगे तो इसकी कीमत बढ़ जाएगी। आप घाटे में नहीं रहोगे।
      इसकी सेल बहुत कम हो गई है। इतनी कि अब ख़र्चे भी पूरे नहीं हो रहे।
      यदि यह बात है तो आप आगे किसी को बेच दो।
      यानि तुम्हारा कमीशन फिर कायम।कारा गुस्से में आकर कहता है।
      एजेंट उसको शांत करते हुए कहता है-
      मिस्टर राय, हम यहाँ प्रॉपटीज़ खरीदने-बेचने के लिए ही बैठे हैं। अगर आप हमारे द्वारा नहीं तो किसी दूसरे की मार्फ़त बेच सकते हो। पर अगर हमारी मार्फ़त बेचोगे तो कमीशन कुछ कम लेंगे।
      मनीष और कारा अभी भी उसकी ओर गुस्से से देखे जा रहे हैं। एजेंट फिर कहने लगता है-
      पर एक बात याद रखो कि यह होटल आपको मार्किट की कीमत से सस्ता मिला हुआ है। आप मालिक हो, सोच लो यदि बेचना है तो...।
      वे दोनों सलाह-मशवरा करने लगते हैं। फै़सला करते हैं कि ऐसे ही कुछेक पैचअप करके किसी तरह हैल्थ वालों से पास करवा लिया जाए और बेचने के लिए मार्किट में लगा दिया जाए। एजेंट कहता है-
      हैल्थ वालों को मैं संभाल लूँगा। आप बताओ होटल कितने का बेचना चाहते हो?“
      जितने का लिया, प्लस तुम्हारा कमीशन।
      इतने का शायद न बिके। मार्किट काफ़ी गिर चुकी है।
      मार्किट में सेल पर तो लगाओ।
      ठीक है, अगले सप्ताह ही प्रैस में आ जाएगा, पर घाटा भी पड़ सकता है इसके लिए तैयार रहना।
      कारा और मनीष एक-दूसरे की ओर देखने लगते हैं।
      होटल पुनः सेल पर लग जाता है। देखने वाले ग्राहक़ों के साथ एजेंट पहले वाले ही हथकंडे अपनाता है। वही कमरे दिखलाता है जिनकी हालत बढ़िया है और देखने वालों को भी उस समय ही बुलाता है, जब ग्राहक़ों की आवाजाही अधिक हो। खरीदने आए लोग होटल का ठिकाना देखकर तो खुश हो जाते हैं, परंतु खरीदने के लिए कोई आगे नहीं बढ़ता।
      होटल सेल पर लगता है तो कारा उदास हो जाता है। उसकी तो अभी हसरतें भी पूरी नहीं हुईं। अभी तो उसने मित्रों और रिश्तेदारों को होटल में बुलाकर पार्टी भी नहीं दी। प्रदुमण सिंह को कई बार बुला चुका है, पर वह व्यस्त होने का बहाना करते हुए अभी तक नहीं आया। लोगों के मुँह पर अभी उसका तख़ल्लुस होटलियर चढ़ा भी नहीं कि होटल से अलग हो रहा है। उधर उदास तो मनीष पटेल भी है, पर कारे जितना नहीं। मनीष उदास उस दिन होता है जिस दिन उसे मालूम होता है कि होटल बिक रहा है, पर बहुत घाटे में। कुल मिलाकर पूरे दो लाख का घाटा पड़ रहा है। मनीष का ब्लॅड प्रैशर हाई हो जाता है और शुगर गिर जाती है। उसको लगता है कि वह गया। वह कहता है-
      भैया, ये साला होटल मुझे ले जाएगा।
      तुम्हें क्या, मुझे भी ले जाएगा।
      दो लाख पौंड कहाँ से पूरा करेंगे मिस्टर राय ?“
      अरे भैया तू तो कर लेगा। मेरा क्या होगा! मैं तो लुट गया न।
      नहीं यार, ये दो लाख तो पूरा होना चाहिए, मिस्टर राय। चोरी करें या बैंक में डाका डालें, ये दो लाख तो पूरा करना होगा।
      हाँ यार पटेल, कुछ न कुछ तो सोचना ही पड़ेगा।
(जारी…)

No comments: