समकालीन पंजाबी साहित्य की उत्कृष्ट कृतियों की तलाश

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Sunday, October 10, 2010

पंजाबी उपन्यास



''साउथाल'' इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत अटवाल का यह चौथा उपन्यास है। इससे पूर्व उनके तीन उपन्यास - 'वन वे', 'रेत', और 'सवारी' चर्चित हो चुके हैं। ''साउथाल'' इंग्लैंड में एक शहर का नाम है जहाँ अधिकतर भारत से गए सिक्ख और पंजाबी परिवार बसते हैं। यहाँ अवस्थित पंजाबी परिवारों के जीवन को बेहद बारीकी से रेखांकित करता हरजीत अटवाल का यह उपन्यास इसलिए दिलचस्प और महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से हम उन भारतीय लोगों की पीड़ा से रू-ब-रू होते हैं जो काम-धंधे और अधिक धन कमाने की मंशा से अपना वतन छोड़ कर विदेशों में जा बसते हैं और वर्षों वहाँ रहने के बावजूद वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।

साउथाल
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

॥ तेरह ॥

गुरनाम के घर से चले जाने पर प्रीती खुश है कि अब वह जो चाहे कर सकेगी। अपने अन्दर बैठे कलाकार को बाहर ला सकेगी। अपनी एक अलग पहचान बना सकेगी। ऐसा सोचकर उसे लगता है जैसे एक नई ज़िन्दगी बांहें पसारे उसकी प्रतीक्षा कर रही है। नये राह उसके सामने बिछे पड़े हैं। लेकिन ज़िन्दगी का सच जल्द ही सामने आने लगता है। शीघ्र ही उसे घर के खर्चों की चिंता सताने लगती है। घर में गुरनाम ही काम करता है। प्रीती ने तो कभी काम किया ही नहीं है। ऊपर से दो बच्चे हैं और फिर गुरनाम उससे काम करवा कर खुश भी नहीं है। गुरनाम द्वारा पुराना घर लिया होने के कारण उसकी किस्त भी अधिक नहीं है। बच्चे भी अभी छोटे ही हैं, सो अकेले गुरनाम की तनख्वाह से ही गुजारा चले जा रहा है। अब प्रीती के पास कुछ भी नहीं है। जो चार पाउंड जमा हैं वे भी गुरनाम के नाम ही हैं। बच्चों का चाईल्ड अलाउंस प्रीती के नाम वाले अकाउंट में आता है, पर उससे घर का खर्च पूरा नहीं हो रहा। अगर वह सोशल सिक्युरिटी के पास जाती है तो वे भी एकदम से कुछ नहीं देने वाले। कई कई हफ्ते लग जाते हैं। ऐसे ही गुरनाम से कानूनी तौर पर खर्चा लेने में भी कई महीने लग जाएँगे। कुछ भी जल्दी नहीं हो सकता और प्रीती को पैसे की ज़रूरत अब है। हर बात को समय लगना है और बच्चों को चीजें आज चाहिएँ। ऐसे इंतज़ार करते हुए तो भूखे मरने की नौबत आ सकती है। मौसी जीतो एक-दो बार कुछ मदद कर देती है पर उसकी भी अपनी सीमाएँ हैं और गुरनाम को घर से निकाले जाने पर अंकल बहुत गुस्से में है। यही कारण है कि मौसी को भी प्रीती से मेलजोल कुछ कम करना पड़ता है। उसकी दो-एक सहेलियाँ भी मदद करती हैं पर उनके अपने मसले भी हैं। वह सोच रही है कि यदि जगमोहन का फोन वगैरह होता तो उससे ही कोई मदद मांगती, बेशक कुछ घंटों का ही परिचय है, पर मरती कुछ न कुछ तो करती। वह भूपिंदर के घर फोन करती है, वह अभी इंडिया से वापस नहीं लौटा है। सिस्टर्ज़ इनहैंड्ज़ के दफ्तर भी जाती है। सुनीता कंधे उचका कर कह देती है कि वे किसी प्रकार की आर्थिक मदद करने में असमर्थ हैं। इंग्लैंड में जितने भर रिश्तेदार हैं, वे सब गुरनाम के ही हैं। वह कभी गुरनाम की शिकायत करे तो रिश्तेदार गुरनाम का ही पक्ष लेते हैं। तीन हफ्तों में ही प्रीती की हालत बहुत खस्ता हो जाती है। एक दिन तो घर में बच्चों के खाने के लिए कुछ नहीं होता और बच्चे उल्टा पिता को याद करके माँ को बुरा-भला कहने लगते हैं। गुरनाम बेशक पति अच्छा न हो, पर पिता के तौर पर वह बहुत अच्छा पिता है। अपने बच्चों पर जान छिड़कता है।
एक दिन वह मौसी जीतो से कहती है-
''मौसी, मेरे कुछ गहने ही बिकवा दे। जब तक किसी तरफ से कोई इंतज़ाम नहीं होता, तब तक बच्चों का पेट तो भरूँ।''
''किसी सुनार के पास ले जा।''
''मैं गई थी, वे कुछ नहीं देते। यहाँ सोना सस्ता ही बहुत है और घर की वस्तुएँ इतनी मंहगी हैं कि मेरे गहनों से मुश्किल से हफ्ताभर ही गुजारा हो।''
''प्रीती, इन मर्दों के साथ भी गुजारा नहीं और इनके बगैर भी गुजारा नहीं होता। मैं तो कहती हूँ कि तू गुरनाम से सुलह कर ले।''
प्रीती गर्दन झुकाकर सोच में गुम बैठी रहती है और कुछ नहीं बोलती।
गुरनाम घर से निकलता तो ऐसे है जैसे दुबारा मुड़कर इधर नहीं देखेगा, पर शीघ्र ही परेशान हो जाता है। वह अपने एक दोस्त मेजर के पास शरण लेता है। मेजर को तो गुरनाम के उसके घर में रहने पर कोई एतराज नहीं है, पर उसकी पत्नी का रुख गुरनाम को ठीक नहीं लग रहा। दो दिन वहाँ रहकर वह एक अन्य मित्र शिन्दे के पास रहने लगता है जो कि अकेला रहता है। उसके पास एक छोटा-सा कमरा है जिसमें एक गंदा-सा बैड पड़ा है। गुरनाम के घर में पूरी सफाई होती है। प्रीती घर को बहुत साफ रखती है। गुरनाम को शिन्दे का यह कमरा पसन्द नहीं है, पर वह शराब पीकर शिन्दे के साथ ही पड़ जाता है। उसने काम पर से बीमारी के आधार पर छुट्टी ली हुई है। शिन्दा भी काम से खाली है। वे दोनों साउथाल पॉर्क में जा बैठते हैं जहाँ शराबियों के झुंड बैठे पता नहीं किन सलाहों में खोये रहते हैं। पॉर्क में नहीं तो वे किसी पब में जा बैठते हैं, लेकिन इस ज़िन्दगी का वह आदी नहीं है। कुछ दिन बाद जब वह अपने आप में लौटता है तो सोचने लगता है कि अब क्या करे। उसने ऐसी अलहदगी पहले भी देखी हुई है जब वह अपनी पहली पत्नी से अलग हुआ था। लेकिन उस वक्त उसके बच्चे नहीं थे। अब उसे अपने तीनों बच्चे याद आ रहे हैं। वह सोचता है कि कुछ भी हो, प्रीती के हाथों उसे हार नहीं माननी चाहिए। सबसे पहले तो उसे रहने के लिए कोई बढ़िया-सा कमरा खोजना चाहिए, फिर काम पर जाना आरंभ कर देना चाहिए। जब वक्त होगा तो बच्चों से भी मिल लेगा, पर प्रीती के लिए उसकी ज़िन्दगी में कोई जगह नहीं होगी।
प्रीती पर उसे बहुत गुस्सा है। एक्टिंग सीखने की उसकी जिद्द ने बात को कहाँ तक पहुँचा दिया है। इतने वर्षों की जिद्द को वह पकड़े बैठी है। प्रीती को वह प्यार करता है। उसकी कोई भी जिद्द पूरी कर सकता है, पर यह एक्टिंग वाली नहीं। उसने इतनी बार उसे समझाया है, पर वह समझ ही नहीं रही। अब छोटी-सी बात पर पुलिस बुला ली और उसे घर से बाहर निकाल दिया। उस घर में से जिसे उसने अपने खून-पसीने की कमाई से बनाया है और प्रीती ने उसमें एक पाउंड का भी हिस्सा नहीं डाला। प्रीती को तो यहाँ आकर किसी प्रकार की मेहनत करनी ही नहीं पड़ी। उसने प्रीती को एक दिन भी काम पर नहीं भेजा। कोई दूसरा होता तो दूसरे दिन ही झोला थमा कर काम पर भेज देता। फिर अपने आप करती रहती एक्टिंग। सवेर से शाम तक काम करने वाली औरतों को तो सिर खुजलाने की फुर्सत नहीं मिलती, एक्टिंग की तो बात दूर है। वह सोचता बहुत रहता है पर कर कुछ नहीं पाता। न काम पर जाना हो पा रहा है और न ही कोई साफ जगह पर कमरा ही मिल पा रहा है। सवेरे उठकर वह और उसका दोस्त साइडर की बोतलें खरीदते हैं और पॉर्क में जा बैठते हैं। कई कई दिन वे शेव ही नहीं करता। हफ्ता भर बिना नहाये ही निकल जाता है। उसे महसूस होता है कि उसके हाथ काँपने लग पड़े हैं। वह भयभीत सा सोचता है कि वह ऐल्कोहलिक हो गया है। यदि नहीं हुआ तो जल्दी हो जाएगा। वह चाहता है कि इस स्थिति में से किसी न किसी तरह निकले, नहीं तो वह यूँ ही खत्म हो जाएगा और प्रीती दूर खड़ी हँस रही होगी। इस तरह उसके बच्चों का भविष्य धुंधला हो जाएगा, पर शराब उसकी सारी सोच पर हावी रहती है।
एक दिन लच्छू अंकल घूमता-घूमाता साउथाल पॉर्क की ओर आ जाता है। घर से काफी दूर होने के कारण वह इस पॉर्क में नहीं आया करता। उस दिन वह पॉर्क एवेन्यू वाले गुरुद्वारे में किसी रिश्तेदार की ओर से रखवाये गए पाठ के भोग पर आया तो दिन अच्छा होने पर पॉर्क की तरफ हो लिया। एक ढाणी में बैठा गुरनाम उसे दिखाई दे जाता है। साइडर की बोतल उसके हाथ में है। अंकल लच्छू सोचता है कि यह तो गया काम से, जल्द ही ऐल्कोहलिक होकर मर जाएगा। वह तेजी से गुरनाम की ओर बढ़ता है। गुरनाम अंकल को देखता है और उठकर उसके पास आते हुए पूछता है-
''अंकल, किधर घूम रहे हो ?''
''यंग मैन, मैं तो जिधर घूमता हूँ, घूम रहा हूँ पर तू बता, यह तूने क्या हाल बना लिया अपना ? क्या करने लगा है तू अपने आप को ?''
''कुछ नहीं अंकल, टाइम पास कर रहा हूँ, छुट्टियाँ जो हैं।''
''चल आ जा, पब में बैठकर बातें करते हैं।''
वे दोनों साथ-साथ चलते हुए पब में आ जाते हैं। अंकल लच्छू गिलास भरवा कर लाता है। वह कहने लगता है-
''मैं तो तुझे उस दिन का खोजता फिरता हूँ।''
''देख अंकल, मैं उसकी इस जिद्द के साथ किसी किस्म का समझौता नहीं कर सकता था। मैं अपने आप को पूरा मर्द समझता हूँ।''
''मैं तुझे किसी किस्म के समझौते के लिए नहीं कहता, पर मुझे तो गिला यह है कि तुझे घर क्यों छोड़ना था। घर तो आदमी का बेस होता है। दूसरे को मजबूर करो घर से जाने के लिए।''
''पर अंकल, इस मुल्क का कानून उलट है।''
''पर कानून को हम हाथ में ले ही क्यों ! मारपीट करने की क्या ज़रूरत है। तू तो पढ़ा-लिखा है।''
''पर अंकल, जिस काम से मैं उसे रोकता हूँ, वह उससे रुकती ही नहीं।''
''औरत रुका नहीं करती। आई पर आ जाए तो कभी नहीं रुकती। औरत और मक्खी को जहाँ से रोको, वे वहीं बैठेंगी। सियाने कहा करते हैं, अगर घी सीधी उंगली से न निकले, तो टेढ़ी कर लो। तू घर चल, तुझे कुछ दांव मैं बताऊँगा।''
''घर जाना मेरे लिए इतना आसान नहीं।''
''आसान या मुश्किल बाद की बात है। अक्ल की बात यह है कि इतनी देर औरत को अकेला नहीं छोड़ा करते। अगर उसे रोने के लिए कांधा मिल गया तो तू गया सदा के लिए। तेरा घर भी जाएगा और बच्चे भी। अभी मौका है, संभाल जाकर। यह साउथाल तो टुच्चों लोगों से भरा पड़ा है। यहाँ तो लोग ऐसी ही अकेली औरत को खोजते फिरते हैं। खासतौर पर पाकिस्तानी। और जो ये फौजी हैं, पक्के होने के लिए ये भी औरतें खोजते घूमते हैं।''
गुरनाम उसकी बातें बड़े ध्यानपूर्वक सुनता है। उसकी बातें सच प्रतीत हो रही हैं, पर वह कहता है-
''अंकल, अब तो जो होना था, हो गया। मैं अब पीछे नहीं मुड़ सकता। उसने जो करना है, करे, फौजी के संग जाए या काले चोर के साथ।''
''यह बात नहीं गुरनाम कि वह किसके संग जाए क्योंकि ऐसे वह सहजता से जाने वाली नहीं। लेकिन इस वक्त वह टूटी पड़ी है, रुपये-पैसे से भी और मानसिक तौर पर भी। इस वक्त समय है कि सुलह कर ले। और फिर अपने बच्चों के बारे में सोच।''
बच्चों के देखने के लिए वह और ज्यादा तड़फ उठता है। बाहर की दुनिया उसने अब देख ली है। कुछ सोचता हुआ वह कहता है-
''वह आकर मुझे सॉरी बोले तो मैं सोच सकता हूँ।''
''ऐसे नहीं, देख गलती तेरी भी है और उसकी भी। मैं तेरी मौसी से बात करके तुम्हारी सुलह करवाता हूँ। तू हमारी तरफ आ जाना। उसे बुला लेंगे। हम तुम दोनों को समझाएँगे, सब ठीक हो जाएगा। बाकी जो उसके ड्रामों का ड्रामा है, अव्वल तो उसे अब तक अक्ल आ गई होगी, नहीं तो तरीका मैं तुझे बता दूँगा। देखना, सब ठीक हो जाएगा।''
''वह कैसे ठीक हो जाएगा, अंकल ?''
''उसे सोध कर। और उसे सोधने का तरीका मैं तुझे बताऊँगा।''
''वह कैसे अंकल ? कौन सा तरीका ?''
''सारी बातें न पूछ। तू सुलह के लिए तैयार हो जा।''
''फिर भी कोई हिंट तो दो।''
''तुझे पता है कि सर्कस वाले शेर को कैसे काबू में करते हैं ? वे उसे मारते-पीटते बिलकुल नहीं।''
''फिर क्या करते हैं ?''
''मार पीट से शेर नहीं मानता। शेर क्या, अन्य कई जानवर भी नहीं मानते। कई औरतें भी नहीं। इनके लिए सर्कसवालों ने एक दूसरा तरीका निकाला हुआ है। वे शेर के कानों में व्हिसिल बजाने लगते हैं। इतनी ज़ोर ज़ोर से, इतनी बार व्हिसिल बजाते हैं कि शेर ऊब जाता है।''
''यानी कि शेर को दूसरे ढंग से टॉर्चर किया जाता है।''
''इसे टॉर्चर करना नहीं कहते यंगमैन, सोधना कहते हैं और कैसे सोधना है, यह मैं तुझे सिखाऊँगा। जो काम मैं नहीं कर सका, वह तू करेगा।''
(जारी…)
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