
''साउथाल'' इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत अटवाल का यह चौथा उपन्यास है। इससे पूर्व
साउथाल
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
।। अट्ठाईस ॥
प्रदुमण सिंह कई बार सोचने लगता है कि ज्ञान कौर ठीक कह रही है कि राजविंदर का ब्याह कर दिया जाए। यह तो ठीक है कि जिस लड़की को भी वह ब्याह कर लाएगा, उसकी ज़िन्दगी खराब ही होगी, पर ऐसा करने से उसके लड़के की ज़िन्दगी तो बच सकती है। इस लड़के के साथ-साथ छोटों पर भी गलत असर पड़ने से बचेगा, लड़कियों की उसको ख़ास चिंता है। इस मुल्क में जिस तरह बच्चे बिगड़ जाते हैं, उससे तो वह सदैव ही चिंतातुर रहता है। इसीलिए इंडिया में सैटिल हुआ था कि और नहीं तो, बच्चों को तो मनपसंद जगह पर ब्याहेगा, पर हालात ने उसको फिर उस जगह पर ला खड़ा किया है जिससे वह डरता है। अभी तक तो उसके बच्चे ठीक हैं। बस, यह राजविंदर ही बिगड़ा हुआ है। वह पत्नी से कहता है-
''जा, कर ले बेटे का ब्याह, ढूँढ़ ले लड़की। पर जल्दबाजी न करना, ख़ानदानी लड़की चाहिए, भूखे घर की नहीं।''
''ख़ानदानी लड़की तो इंडिया से ही मिलेगी।''
''इंडिया हो आ फिर।''
''क्रिसमस पर देखते हैं। तुम भी साथ चलना।''
''मुझे नहीं जाना दुबारा वहाँ।''
''अब तो सब ठीक है। पंजाब में आतंकवाद तो अब खत्म हो चुका है।''
''खत्म हो चुका होगा, पर मेरे जख्म तो अभी दर्द करते हैं।''
कहने को तो वह कह जाता है पर नीरू से मिलने को उसका दिल करता है। अब तो काफी दिन हो गए हैं, नीरू को फोन किए भी। कारा ठीक कहता है कि इतनी देर कोई औरत तो मेरे इंतज़ार में बैठी नहीं रह सकती। जैसे भी हो, जब वह इंडिया गया तो कुछ दिन तो जश्न जैसे गुजरेंगे ही। पर जाएगा कब। पता नहीं, जाएगा भी कि नहीं, या फिर यूँ ही सोचता ही रहेगा।
आजकल कारा उसको कम ही मिलता है। कारे का सप्ताहांत तो निठल्लों जैसा ही होता है। खास तौर पर रविवार। लेकिन प्रदुमण सिंह किसी दिन भी खाली नहीं होता। कोई न कोई काम सिर पर खड़ा होता है। उस दिन वह प्रताप खैहरे के रेस्ट्रोरेंट पर ही मिलता है। कितने दिनों बाद। प्रताप खैहरे का ब्राडवे पर बहुत पुराना रेस्ट्रोरेंट है। बहुत प्रसिद्ध है। साउथाल के सबसे पुराने रेस्ट्रोरेंटों में से है। उसके सामने ही चौधरी मुश्ताक अली का ‘चौधरी तंदूरी’ है। यह भी काफ़ी पुराना है। एक समय था कि साउथाल के ये दोनों ही जाने-माने रेस्ट्रोरेंट होते थे। अब तो पूरा साउथाल ही रेस्ट्रोरेंटों से भरा पड़ा है। अब इनकी पहले जैसी बात नहीं रही है। 'गुड मार्निंग' रेडियों पर अनाउंसर नित्य नये-नये रेस्ट्रोरेंटों की ऊँची आवाज़ में मशहूरी करने लग पड़े हैं। फिर भी, खैहरा और चौधरी चूँकि साउथाल के पुराने व्यक्ति इसलिए लोग इन्हें जानते हैं और इन दोनों में टक्कर अभी भी पहले जैसी ही चल रही है। जैसा कि आमने-सामने वाले रेस्ट्रोंरेटों में हो ही जाया करती है। जब दोनों रेस्ट्रोरेंट भरे रहते थे, तब यह तनाव कम था। अब काम कम हो चुके हैं। नये रेस्ट्रोरेंटों ने ग्राहक खींच लिए हैं। अपने कम हुए काम का दोष ये एक-दूसरे को देने लगते हैं। अब तो तनाव इतना बढ़ चुका है कि तलवारें किसी भी समय निकल सकती हैं। प्रताप खैहरा सिक्खों के लड़कों को हवा दे कर रखता है और चौधरी मुसलमानों के लड़कों को इस्तेमाल करता है। इसलिए मुसलमानों और सिक्खों के लड़कों मे तनाव रहता है। दोनों ने अपने अपने रेस्ट्रोरेंट की बेसमेंट में स्नूकर क्लब बनाये हैं जो कि इन लड़कों के इकट्ठा होने का कारण बनते हैं।
प्रताप खैहरा सिक्ख और हिंदू कम्युनिटी के प्रतिष्ठित लोगों को अपने रेस्ट्रोरेंट में बुलाता है। बहाना तो है रेस्ट्रोरेंट की पच्चीसवीं वर्षगांठ मनाने का। साउथाल के प्रतिष्ठित लोगों में कारा भी आता है और अब प्रदुमण भी। कई दिनों बाद मिलने के कारण वे दोनों आपस में ही बातें किए जा रहे हैं। प्रताप खैहरा के निमंत्रण की उन्हें ज्यादा फिक्र नहीं है। कारा उससे कहता है -
''यह खैहरा भी सियासी बंदा है। यूँ तो यह चाय भी नहीं पिलाता। यह पार्टी यूँ ही नहीं कर रहा।''
''इसका अब चौधरी के साथ पंगा भी तो पड़ा हुआ है। शायद अपने साथ जुड़े लोगों का दिखावा करना चाहता हो उसके आगे।'' प्रदुमण कहता है। उसको कुछ स्मरण हो आता है तो वह फिर कहने लगता है, ''मुझे तो एक दिन चौधरी का फोन आया था। समोसों के बारे में पूछ रहा था। मैंने कहा था कि कभी आ जा, बैठकर बात करेंगे।''
''मेरा तो खुद का क्लाइंट है चौधरी। उसकी सारी कारों-वैनों की इंश्योरेंस मैं कर रहा हूँ। कभी रोटी खाने भी आ जाएँ तो पैसे नहीं लेता।''
''चलो, अब आए हैं तो देख लेते हैं कि खैहरा टोपी में से कैसा कबूतर निकालता है।''
बातें करते हुए वे दोनों कुर्सियों पर बैठ जाते हैं। कुछ अंग्रेज लड़कियाँ शराब, जूस और कोक आदि सर्व कर रही हैं। कारा आदत के कारण ज्यादा नहीं पीता, पर प्रदुमण सिंह एक पैग ज्यादा पी जाता है। यह रेस्ट्रोरेंट का बेसमेंट है। जहाँ पर वे सभी बैठे हैं, वह स्नूकर क्लब है। नौजवान लड़के यहाँ स्नूकर खेलने आते हैं। आज कुर्सियाँ और मेज़ लगाकर एक तरफ मंच भी बना रखा है। कुछ देर बाद जसपाल सिंह दाढ़ी पर हाथ फेरता मंच पर चढ़ता है और कहने लगता है-
''दोस्तो, आज हम खैहरा तंदूरी की सिलवर जुबली पर एकत्र हुए हैं। इन्हें हम सबकी ओर से बधाइयाँ तो हैं ही कि इतने वर्षों से इतनी कामयाबी से यह कारोबार चला रहे हैं। साथ ही साथ, हम इनके विचार भी सुनेंगे। सबसे पहले मैं सरदार सुंदर सिंह और सरदार मीहां सिंह से विनती करता हूँ कि वे मंच पर आकर सुशोभित हों। ये दोनों हमारे बुजुर्ग़ साउथाल के सबसे पुराने पंजाबी हैं। यूँ कह लो कि साउथाल इन्होंने ही बसाया है।''
दो बुजुर्ग़ उठकर मंच की तरफ जाते हैं और उसके बाद प्रताप खैहरा भी ऊपर मंच पर जा बैठता है। फिर जसपाल सिंह, केवल सिंह भंवरा को अपने विचार रखने के लिए आमंत्रित करता है। केवल सिंह भंवरा की पगड़ी जो कीन्या से आए सरदारों जैसी है, से उसकी पृष्ठभूमि का पता चल जाता है। बात करने के अंदाज से अनुभवी व्यक्ति प्रतीत होता है। वह प्रताप खैहरा की तारीफ़ों के पुल बांध रहा है। साउथाल की सांस्कृतिक ज़िन्दगी में खैहरा तंदूरी के महत्व का उल्लेख करता है और फिर कहने शरू करता है-
''दोस्तो, कुछ बातें और भी हैं आपके साथ करने वालीं। शायद, आपने खबरों में पढ़ा-सुना होगा कि मुस्लिम धर्म के कुछ लोग सिक्ख धर्म को नीचा दिखाने पर तुले हुए हैं। मैं सारे मुसलमानों को दोष नहीं दे रहा। कुछेक लोग जो कि ईर्ष्या के शिकार होकर ऐसा कर रहे हैं और यंगस्टर को उकसा रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं कि जैसे पूरा पाकिस्तान इंडिया के लिए फैसिनेटिड है, उसी तरह पंजाब मुसलमान सिक्खों के प्रति फैसिनेटिड हैं। नहीं तो साउथाल में मुसलमान थे ही कितने! ब्राडवे की सारी दुकानें पंजाबियों की थीं, मतलब कि हमारी। अब वे दिनोंदिन यहाँ घुसपैठ कर रहे हैं। आधी दुकानें अब इनकी हो चली हैं। हलाल मीट की दुकानें झटके वाली दुकानों से ज्यादा हो गई हैं। ये ऐसी बातें घटित हो रही हैं बिकॉज वी आर नाट केअरफुल टुवर्ड अवर रिलीज़न एंड कम्युनिटी। पर अब बड़ा खतरा अपने सामने है। ये एकतरफ़ लीफ़लैट पड़े हैं जो मुस्लिम लड़कों के बीच बांटे जा रहे हैं। इनमें बताया गया है कि सिक्ख धर्म बुरा है। सिक्खों को सबक सिखाने का तरीका एक ही है कि उनकी लड़कियों को फंसाओ और मुसलमान बनाओ। इस काम के लिए लड़कों को मुस्लिम कम्युनिटी के लीडरों की सरपरस्ती हासिल है। हमें इसका मुकाबला करना चाहिए। कम से कम अपना बचाव तो करना ही चाहिए। पहली बात तो लड़कियों को यह शिक्षा दें कि मुसलमान कितने बुरे हैं, इनके इरादे क्या हैं। हमारी लड़कियों से दोस्ती का मतलब उनकी ज़िन्दगी खराब करना है। कितनी ही लड़कियों को ये लोग फुसला कर पाकिस्तान ले गए हैं और वहाँ कोठों पर बिठा आए हैं। इसके साथ-साथ, अपने लड़कों को भी शिक्षा देने की ज़रूरत है कि अपनी सिक्ख लड़कियों की रखवाली करो। हर सिक्ख लड़के के जिम्मे यह फर्ज़ लगाओ, उसकी जिम्मेवारी लगाओ कि वे हर सिक्ख लड़की के दोस्त बनकर, भाई बनकर उनकी हिफाजत करें और हम बड़ों का काम है कि मुसलमानों की तरह ही इन अपने लड़कों को सरपरस्ती दें ताकि हमें सरदार साधू सिंह न बनना पड़े।''
केवल सिंह भंवरा का भाषण अभी चल ही रहा है कि साधू सिंह का नाम सुनते ही कुछ लोग जोश में आ जाते हैं। एक आदमी उठकर बांहें ऊपर उठा आवाज़ लगाता है - ''सरदार साधू सिंह!'' कुछ आवाज़ें उठती हैं - ''ज़िन्दाबाद !'' शोर-सा मच जाता है। केवल सिंह भंवरा माहौल देखकर स्टेज पर से उतर आता है। जसपाल सिंह फिर माइक संभालते हुए कहने लगता है-
''भाइयो ! भंवरा साहब की बातें सोलह आने सच हैं। हमें मिलजुलकर बैठने की ज़रूरत है। यह साधू सिंह वाली दुर्भाग्यपूर्ण घटना दुबारा न घटे, इसे रोकना है हम सबको। हाँ जी... अगर किसी अन्य भाई को बोलना हो।''
वह सामने बैठे लोगों में से वक्ता को खोजने की कोशिश करता है। कोई नहीं उठ रहा। वह फिर कहता है -
''इस काम के लिए प्रताप खैहरा ही आगे आए हैं, हम सबको इनके हाथ मज़बूत करने चाहिएँ।''
उसकी बात के बीच ही एक हाथ खड़ा होता है। जसपाल सिंह इशारे से ही उस हाथ वाले व्यक्ति को उठकर स्टेज पर आने के लिए कहता है। यह सुरमुख संधू है। वकील संधू। वह अपना ड्रिंक खत्म करके गिलास एक तरफ रखते हुए कहता है-
''भाइयो, अगर इजाज़त दो तो दो बातें कहूँ, पर हैं कड़वीं।''
''घूंट लगाकर तो बंदे को मीठी बातें करनी चाहिएँ।''
कोई कहता है तो सभी हँसने लगते हैं। संधू फिर कहता है-
''यह भी ठीक है, पर जैसा कि कहा करते हैं कि मित्रों की लूण की डली मिश्री बराबर जानो, पहली बात तो यह कि साउथाल सिक्खों ने अपने नाम नहीं लिखवा रखा, कोई भी यहाँ आकर रह सकता है। दूसरा यह जो मुसलमान और सिक्ख लड़के टोलियाँ बना कर आपस में लड़ रहे हैं, इसका कारण धर्म नहीं, लड़कियाँ हैं। यह ठीक है कि मुसलमान लड़के कड़े पहनकर खुद को सिक्ख ज़ाहिर करके सिक्ख लड़कियों के साथ दोस्ती गांठने के चक्कर में होंगे, हो सकता है, पर दोस्ती जैसे रिश्ते को कोई मजबूरी नहीं होती। यह जो बात आप सिक्ख लड़कियों को पाकिस्तान ले जाकर कोठों पर बिठाने वाली करते हो, ज़रा बताओ तो ऐसे कितने केस हुए हैं? मैं कई लड़कियों को जानता हूँ जिन्होंने मुसलमान से शादी की, पाकिस्तान जाकर भी आई हैं और खुश हैं। मेरा ख़याल है कि हम बात को बढ़ा-चढ़ाकर कर रहे हैं। यह बात भी याद रखने लायक है कि जो पेड़ हम लगा रहे हैं, इससे यहाँ सिक्ख-मुस्लिम फसाद भी हो सकते हैं। मैं तो यह कहता हूँ कि बात को और ज्यादा सोच समझकर उसे बढ़िया ढंग से हैंडल किया जाए। हाँ, यदि हमारे मित्र प्रताप खैहरा की कोई प्रॉब्लम है तो हैल्प कर दो। हम जानते हैं कि इनका बिजनेस राइवलरी है। हम ऐसा कोई काम न करें कि कल को हमें पछताना पड़े। शुगल की बात यह है कि प्रताप खैहरा की शराब पीकर और चिकन खाकर इससे ज्यादा मैं कह ही नहीं सकता।''
सभी हँसने लगते हैं। संधू बैठ जाता है। कारा प्रदुमण के कान में कहता है-
''शराबी वकील तो छा गया। इसकी बात में सच्चाई है। खैहरा ने तो स्नूकर क्लब के बहाने ऐसे लड़कों का गैंग बना रखा है। उधर चौधरी भी मुसलमान लड़कों को हवा देकर रखता है, पैसे भी देता है उनको।''
''मैं तो सुनता हूँ कि दोनों के ही दूसरे धंधे भी हैं।''
कहते हुए प्रदुमण घड़ी देखता है। फिर कहता है-
''कारे, मुझे जल्दी जाना है। सुबह जल्दी उठना होता है और जाते हुए शायद चौधरी समोसों का आर्डर ही दे दे।''
(जारी…)
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