समकालीन पंजाबी साहित्य की उत्कृष्ट कृतियों की तलाश

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Sunday, November 10, 2013

पंजाबी उपन्यास



''साउथाल'' इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत अटवाल का यह चौथा उपन्यास है। इससे
पूर्व उनके तीन उपन्यास - 'वन वे', 'रेत', और 'सवारी' चर्चित हो चुके हैं। ''साउथाल'' इंग्लैंड में एक शहर का नाम है जहाँ अधिकतर भारत से गए सिक्ख और पंजाबी परिवार बसते हैं। यहाँ अवस्थित पंजाबी परिवारों के जीवन को बेहद बारीकी से रेखांकित करता हरजीत अटवाल का यह उपन्यास इसलिए दिलचस्प और महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से हम उन भारतीय लोगों की पीड़ा से रू-ब-रू होते हैं जो काम-धंधे और अधिक धन कमाने की मंशा से अपना वतन छोड़ कर विदेशों में जा बसते हैं और वर्षों वहाँ रहने के बावजूद वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।

साउथाल
हरजीत अटवाल

हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

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प्रदुमण सिंह को पिछले कुछ समय से अपने बच्चों की चिंता सताने लगी है। वह सोचता है कि इनका विवाह भी करना है। आजकल अच्छे लड़के, लड़कियाँ मिलते नहीं हैं। इनमें से कोई इंडिया में विवाह नहीं करवाने वाला। उसका ध्यान पाला सिंह के लड़कों की तरफ़ चला जाता है जिन्होंने अपनी अपनी मर्ज़ी से विवाह करवा लिए हैं। उसको फिक्र होने लगती है कि उसके साथ भी कहीं ऐसा ही न हो। उसको बलराम की भी बहुत चिंता है। राजविंदर तो हाथ से निकल ही चुका है। राजविंदर के बारे में सोचते हुए उसको लगता है कि यदि वह समलिंगी है तो संभवतः वह ग़लत कंपनी में पड़कर ही इस आदत का शिकार हो गया होगा। वरना कुदरत ने उसके साथ कोई फ़र्क़ नहीं किया हुआ। यदि उसका विवाह हो जाए तो ठीक भी हो सकता है।
      एक दिन शाम को वह राजविंदर को अपने करीब बिठा लेता है और कहता है-
      “देख राजविंदर, हमारी बात मान, तू विवाह करवा ले, सब ठीक हो जाएगा।“
      “डैड, क्या ठीक हो जाएगा ?“
      “तेरी लाइफ़ नॉर्मल हो जाएगी, मैं भी तेरी पूरी हैल्प करूँगा।“
      “डैड, मेरी लाइफ़ तो अब भी नॉर्मल ही है, तुम ही मेरी कोई हैल्प नहीं करते।“
      “तू विवाह करवा, अगर कहे तो हम हैल्प करेंगे, तुझे अलग घर लेकर देंगे, कार लेकर देंगे, फैक्टरी में भी जॉब कर लेना, बस, तू एक बार विवाह करवा ले।“
      “डैड, जहाँ मैं कहूँगा, वहाँ विवाह कर दोगे ?“
      “हाँ, बिलकुल। हमें रंग, जाति का अब कोई परहेज नहीं। जहाँ कहे, तेरा विवाह कर देंगे।“
      “तुम पीटर को जानते हो, जो मेरे साथ आया करता था कभी ?“
      “हाँ।“
      “डैड, बस तुम मेरा उसके साथ विवाह करवा दो।“
      राजविंदर प्रदुमण सिंह के सामने बैठा कह रहा है। प्रदुमण सिंह ठांय करता एक थप्पड़ उसके मुँह पर दे मारता है और कहता है-
      “तेरे हरामी गे की ऐसी की तैसी, निकल घर से बाहर, साला गंदा अंडा।“
      “यू डर्टी ओल्ड मैन!... यू ओल्ड बास्टर्ड, आय विल किल यू वन डे, आय विल किल यू।“
      कहता हुआ राजविंदर उठ खड़ा होता है। प्रदुमण सिंह भी खड़ा हो जाता है। उसके एक और मुक्का मारता है। शोर सुनकर ज्ञान कौर दौड़ी आती है। बलराम और लड़कियाँ भी आ जाती हैं। राजविंदर बाप को गालियाँ बकते हुए घर से निकल जाता है। जाते हुए को प्रदुमण सिंह कहता है-
      “ख़बरदार ! अगर दुबारा इस घर में घुसा तो।“
      क्रोध में उसके होंठ काँप रहे हैं। आवाज़ फट रही है। बलराम उसके करीब आकर खड़ा हो जाता है। उसके कंधे पर हाथ रखता है और कहता है-
      “डैड, क्यों उस पर अपना टाइम वेस्ट कर रहे हो ?“
      जवाब में प्रदुमण सिंह से बोला नहीं जा रहा। ज्ञान कौर कहने लगती है-
“बेटा, तेरे डैडी सोचते हैं कि अब तू भी विवाह योग्य हो गया है। डिग्री तूने कर ली है। हमें तेरा भी कुछ करना है। जब बड़ा अनब्याहा बैठा हो तो छोटे के विवाह के लिए लोग क्या कहेंगे।“
“तुम लोगों की वरी क्यों करते हो। जो तुम्हारा दिल करता है, करो।“
“तेरा विवाह कर दें फिर ?“
ज्ञान कौर खुश होकर पूछती है। बलराम कंधे उचकाता अपने कमरे की तरफ़ चला जाता है। बलराम की ओर देखकर प्रदुमण सिंह का मूड ठीक होने लगता है। वह मन में कहता है कि ऐसा है तो ऐसा ही सही।
सोते समय ज्ञान कौर पूछती है-
“कोई लड़की निगाह में है बलराम के लिए ?“
      “लड़की तो थी एक पाला सिंह की, पर कारे का कल फोन आया था, कहता था कि उस लड़की की हवा ठीक नहीं।“
      “कारे को सभी अपने जैसे ही दिखते हैं।“
      “नहीं, जतिंदर जो पढ़ता है उसी यूनिवर्सिटी में।“
      “वैसे लड़की बुरी नहीं थी वह, देखी हुई है।
      “नहीं, कारा कहता है कि उसकी दोस्ती किसी मुसलमान लड़के के साथ है, जिसकी ख़ातिर यूनिवर्सिटी में लड़ाइयाँ भी हुईं।“
      “कोई दूसरी देख लो। हमारा सोने जैसा लड़का है, इसे कहीं रिश्तों का घाटा है ?“
      बलराम के साथ वह कभी-कभी शुगल कर लिया करता है। कहने लगता है-
      “क्यों भई, कोई गर्लफ्रेंड है कि नहीं तेरे पास, अगर नहीं मिलती तो हैल्प करूँ।“
      “नहीं डैड, मुझे गर्लफ्रेंड पसंद नहीं।“
      “तुझे गर्लफ्रेंड क्यों पसंद नहीं, भई ?... गर्लफ्रेंड तो हमारे जैसे को मिल जाए तो पीछे न हटें, तू तो यंगमैन है। कहीं तू...।“
      “यह बात नहीं डैड, आय एम स्ट्रेट... ये गर्लफ्रेंड तो पिछाड़ी का दर्द होती हैं।“
      अब उसका विवाह के लिए राजी हो जाना उसको बहुत अच्छा लगता है। वह भविष्य की योजनाएँ बनाने लगता है कि बलराम का विवाह कैसा करेगा। वह देर तक सोचता रहता है। ज्ञान कौर को भी अभी नींद नहीं आ रही। वह अचानक कहती है-
      “वो पगला पता नहीं कहाँ सोया होगा।“
      “वो तो मज़े से सोया पड़ा होगा। और फिर कहाँ पहली बार बाहर सो रहा है। लौट आएगा कल को। हम ही नींद ख़राब किए बैठे हैं। तू भी सोने की कोशिश कर, सवेरे जल्दी उठना है।“
      सुबह से ही प्रदुमण सिंह बलराम के लिए लड़की की पूछताछ शुरू कर देता है। वह चाहता है कि एक बार सभी परिचितों में बात फैल जाए कि प्रदुमण सिंह लड़के को ब्याहना चाहता है तो खुद कोई न कोई सम्पर्क कर लेगा। आजकल बच्चों के लिए रिश्ते तलाशने बड़े कठिन हुए पड़े हैं। इस बारे में वह कारे को फोन करता है। ब्राडवे की तरफ़ निकलकर खैहरे के पास जा पहुँचता है। अपने बेटे का रिश्ता वह किसी बड़े घर का ही करना चाहता है। ज्ञान कौर भी काम पर सभी औरतों को अपने लड़के के लिए रिश्ता ढूँढ़ने को कह देती है। एक ही शर्त है कि लोग उनकी टक्कर के हों और लड़की लड़के के पसंद की हो। डिग्री होने के बाद बलराम नौकरी की तलाश करने लगता है, पर अधिक समय फैक्टरी में गुज़ारता है। वह फैक्टरी के काम को संभालने लगता है। प्रदुमण सिंह को फ़ुरसत-सी हो जाती है। वह बलराम को कहता है-
      “तू छोड़ नौकरी को, फैक्टरी संभाल। मैं डिलीवरी का काम करता रहूँगा।“
      “नहीं डैड, यू रिलैक्स, घर में बैठा करो। मम से भी कहो रैस्ट करे।“
      प्रदुमण सिंह के भीतर के पिता का मन गर्व से भर उठता है। प्रदुमण सिंह अब सेल्ज़मैनशिप करने चला जाता है। वह समोसों की बिक्री के लिए नई जगहों की तलाश में निकल जाता है। दो-एक बार फरीदा का फोन आता है, पर वह जवाब नहीं देता। अब उसको कुलबीरो का भी अपने प्रति रवैया बदला-बदला प्रतीत होता है। उसको लगता है कि दोस्ती के लिए तैयार हो जाएगी, पर वह आगे नहीं बढ़ता। बलराम हर वक़्त फैक्टरी में होता है। वह ऐसा कोई काम नहीं करना चाहता जो बेटे की दृष्टि में बुरा हो। वह मीका और निम्मा के साथ भी संक्षिप्त-सी बातें ही किया करता है। हँसी-मजाक उसने बंद कर दिया है।
      अब सतिंदर और पवन भी फैक्टरी आने लग पड़ी हैं। उनके आने से वह और अधिक गंभीर रहने लगता है। वह सोचने लगता है कि अगले वर्ष सतिंदर की डिग्री भी पूरी हो जाएगी और डिग्री पूरी होते ही उसका विवाह भी कर देगा। उसको सतिंदर के बड़बोलेपन की चिंता सताती है कि कोई लड़का यूँ ही बातों बातों में पीछे न लग जाए और लड़की हाथों से जाती रहे। वह तो यह बात बर्दाश्त भी नहीं कर पाएगा। छोटी पवन की उसको अधिक चिंता नहीं है। वह अपने आप में चुप-सी रहने वाली लड़की है।
      कई महीनों की तलाश के बाद उनको ब्रैडफोर्ड की एक लड़की पसंद आती है। इस बीच उन्होंने करीब एक दर्ज़न लड़कियाँ देख डाली हैं। किसी में कोई कमी है तो किसी में कुछ। यदि कोई लड़की पसंद आती है तो उसका घर गरीब निकलता है। प्रदुमण सिंह अपने आप को मिलिनियरों में गिन रहा है। उसका घर, उसकी फैक्टरी और दो अन्य प्रॉपटीज़ उसने खरीद ली हैं। सब मिलाकर मिलियन पाउंड से कहीं अधिक की सम्पत्ति होगी। अब उसको मिलिनियर रिश्तेदार ही चाहिएँ। यदि यह सब पसंद आ जाता है तो लड़की लड़के को नापसंद कर देती।
      पूरेवाल के ब्रैडफोर्ड में दो रेस्टोरेंट हैं। लड़की भी बलराम को पसंद आ जाती है। रिश्ता हो जाता है। विवाह भी हो जाता है। प्रदुमण सिंह दो कोच भरकर बारात लेकर जाता है। कारों का काफ़िला अलग। उधर पूरेवाल भी पूरी सेवा-ख़ातिर करता है। बारात खुश हो जाती है। प्रदुमण सिंह भी बेहद खुश हुआ पड़ा है।
      लड़का-लड़की ग्रीस के टापू पर हनीमून पर जाते हैं। वहाँ से हर रोज़ फोन करते हैं। सभी प्रसन्न हैं। सप्ताह बाद लड़का-लड़की लौटते हैं। लड़की अपना सामान समेटने लगती है। ज्ञान कौर पूछती है-
      “क्या हो गया पुत्तर तुझे ?“
      “मैं इस आदमी के साथ नहीं रह सकती।“
  (जारी…)

Thursday, October 31, 2013

पंजाबी उपन्यास



''साउथाल'' इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत अटवाल का यह चौथा उपन्यास है। इससे पूर्व उनके तीन उपन्यास - 'वन वे', 'रेत', और 'सवारी' चर्चित हो चुके हैं। ''साउथाल'' इंग्लैंड में एक
शहर का नाम है जहाँ अधिकतर भारत से गए सिक्ख और पंजाबी परिवार बसते हैं। यहाँ अवस्थित पंजाबी परिवारों के जीवन को बेहद बारीकी से रेखांकित करता हरजीत अटवाल का यह उपन्यास इसलिए दिलचस्प और महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से हम उन भारतीय लोगों की पीड़ा से रू-ब-रू होते हैं जो काम-धंधे और अधिक धन कमाने की मंशा से अपना वतन छोड़ कर विदेशों में जा बसते हैं और वर्षों वहाँ रहने के बावजूद वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।

साउथाल
हरजीत अटवाल

हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

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होटल खरीदकर कारा सातवें आसमान पर पहुँच जाता है। वह अपने साथ होटलियरकहलवाने लगा है। गुरुद्वारे जाकर ग्यारह सौ पाउंड की अरदास में वह अपने को सरदार बलकार सिंह राय होटलियर कहलवाता है। परंतु उसके व्यक्तित्व या उसके लड़कपन के कारण लोग उसको कारे से बलकार भी नहीं कहने वाले। अजनबी लोग बेशक उसे मिस्टर राय कह लेते हों, पर पुराने परिचित तो कारा कहक़र ही उसे सम्बोधित होते हैं। कुछ भी हो, उसको होटलवाला बनने का हल्का-सा नशा है।
      कारा वैसे भी अपनी ज़िन्दगी में खुश है। उसका लड़का जतिंदरपाल यूनिवर्सिटी में पढ़ता है। यद्यपि उसका झुकाव सिक्खी की तरफ़ भी काफ़ी है, पर पढ़ाई में वह होशियार है। वैसे ही उसकी बेटी परमीत भी पढ़ाई में तेज़ है। बच्चों की ओर से वह खुश है कि पढ़-लिखकर किसी अच्छी नौकरी पर लग जाएँगे। अब जब से वह होटल जाने लगा है तो उसकी पत्नी सुरजीत कौर अपना पूरा ध्यान दफ़्तर की तरफ़ देने लगती है। कारे वाली मर्सडीज़ अब वह दौड़ाए फिरती है और कारे ने नई कन्वर्टेबल बी.एम.डब्ल्यू. खरीद ली है। जतिंदरपाल को भी स्पोर्ट्स कार ले दी है। जिस दिन से उसने अपने बेटे के साथ उसकी गर्लफ्रेंड को देखा है, उसके मन से मनों बोझ उतर गया है। प्रदुमण के लड़के राजविंदर की ओर देखकर उसके अंदर कई डर उगने लगते थे। लड़के के संग गर्लफ्रेंड को देखकर एक बार तो उसका दिल करता है कि दोस्तों को पार्टी दे, पर फिर सोचता है कि यह रस्म पश्चिमी लोगों को ही शोभा देती है, भारतीयों को नहीं।
      होटल लेने के बाद उसका बैंक मैनेजर डेविड कैलाहन दो बार उसको फोन कर चुका है, पर वह उसके साथ बात करने से इन्कार कर देता है। लोन न देने का गुस्सा अभी भी उसके मन में है। दूसरी तरफ़ मनीष पटेल के बैंक मैनेजर के साथ उसके संबंध काफ़ी मज़बूत हो चुके हैं। होटल लेने के बाद वह साउथाल के व्यापारियों की बनी संस्था साउथाल बिजनेस सोसाइटीका भी अब सक्रिय मेंबर है। हर मीटिंग में जाने लगा है। वहाँ दूसरे बैंकों के मैनेजर भी आते हैं जो कि कारा के साथ मित्रता गांठनी चाहते हैं। परंतु कारा को कैलाहन की बेरुखी के बाद मैनेजरों पर अधिक विश्वास नहीं रहा।
      दफ़्तर में काम करती सुरजीत कौर भी खुश है। पति की कामयाबी उसको अच्छी लगती है। पहले वह पार्ट टाइम-सा दफ़्तर जाया करती थी, नहीं तो घर पर ही रहा करती थी। घर पर खाली बैठना उसका अच्छा नहीं लगता। यदि कहीं बैठना भी पड़ जाए तो सारा दिन टेलीविज़न के आगे बैठी रहती है। कई बार जतिंदरपाल के कमरे में से ब्लू-फिल्म उठाकर देखने लग जाती है या फिर जतिंदरपाल से ऐसी फिल्म मंगवा लेती है। वह जानती है कि इधर के जन्मे बच्चे ऐसी बात का बुरा नहीं मनाते। ब्लू-फिल्म देखकर तो उसका मन और भी उतावला होने लगता है। बहाने से कारे के साथ लड़ने-झगड़ने लगती है, पर अब उसने अपने आप को दफ़्तर के काम में डुबा लिया है। शाम को थककर ही घर लौटती है।
      कारा के होटल खरीदने की खुशी की उम्र नौ-दस महीने ही रहती है। होटल की मैनेजमेंट के बदलने से ग्राहक़ी कुछ कम हो जाती है। टूरिस्ट कंपनियाँ अधिक कमीशन मांगने लगी हैं। होटल का अंग्रेज मैनेजर किसी दूसरे होटल ने अधिक वेतन पर पटा लिया है और कारे को मैनेजमेंट का कोई अनुभव नहीं है। नये मैनेजर के आने तक भी बिजनेस को हानि के धक्के लगते रहते हैं। सबसे बड़ी मुसीबत उसको हैल्थ विभाग की वार्षिक चैकिंग से होती है। हर होटल को हैल्थ एंड सेफ्टी विभाग की ओर सब कुछ ठीक होने का सर्टिफिकेट लेना होता है और हैल्थ वाले पूरी तरह होटल का निरीक्षण करके ही यह सर्टिफिकेट प्रदान करते हैं। जब से ब्रतानिया युरोपियन यूनियन में आया है, तब से कानून भी कुछ सख़्त हो गए हैं। हैल्थ वाले निरीक्षण करके होटल की कमियों की लम्बी सूची पकड़ा जाते हैं जैसे कि पूरे होटल की बिजली की तारें गल चुकी हैं, रिवायरिंग होने की ज़रूरत है। बहुत सारे कमरे नया पेपर पेंट मांगते हैं। रसोई में भी बहुत सारे नुक्स हैं। होटल में पानी का प्रबंध भी युरोपियन कानून के अनुसार नहीं है, आदि आदि।
      कारा लिस्ट लेकर मनीष पटेल के पास जाता है। मनीष होटल के काम में कम ही दख़ल देता है। वह अपनी दुकानों में ही व्यस्त है। लिस्ट देखकर मनीष को पसीना आ जाता है। वह गुस्से में कहता है-
      ये साला हमारा सरवेयर पहले वाले मालिक से मिला हुआ था, जो ये बातें हमसे छिपा गया।
      लगता है, ठगी हो गई।
      बिल्डरों को बुलाओ। देखते हैं, कितने का ख़र्चा है।
      बिल्डर आते हैं। कुल मिलाकर डेढ़ लाख पाउंड का ख़र्च बताते हैं। मनीष और कारा दोनों ही सिर पकड़कर बैठ जाते हैं। कारा कहता है-
      इतना पैसा कहाँ से आएगा, रिपेयर के लिए ?“
      मैक्सीमम लोन तो हम ले चुके हैं।
      एजेंट से बात करें जिसने हमें बेचा है।
      वो साला क्या बोलेगा।
      वे दोनों एजेंट से मिलते हैं। एजेंट कंधे उचका देता है।
      जो बिजनेस आप खरीद रहे हो, उसका तजु़र्बा आपको होना चाहिए। हमारा क्या है, हम तो कमीशन पर काम करते हैं। हमें जो इन्फर्मेशन मालिक देते हैं, वही आप लोगों के आगे रख देते हैं।
      अब क्या करें ?“
      आप इतना दिल न छोड़ो, यह होटल आपको काफ़ी सस्ता मिला हुआ है। कुछ समय तक होल्ड करोगे तो इसकी कीमत बढ़ जाएगी। आप घाटे में नहीं रहोगे।
      इसकी सेल बहुत कम हो गई है। इतनी कि अब ख़र्चे भी पूरे नहीं हो रहे।
      यदि यह बात है तो आप आगे किसी को बेच दो।
      यानि तुम्हारा कमीशन फिर कायम।कारा गुस्से में आकर कहता है।
      एजेंट उसको शांत करते हुए कहता है-
      मिस्टर राय, हम यहाँ प्रॉपटीज़ खरीदने-बेचने के लिए ही बैठे हैं। अगर आप हमारे द्वारा नहीं तो किसी दूसरे की मार्फ़त बेच सकते हो। पर अगर हमारी मार्फ़त बेचोगे तो कमीशन कुछ कम लेंगे।
      मनीष और कारा अभी भी उसकी ओर गुस्से से देखे जा रहे हैं। एजेंट फिर कहने लगता है-
      पर एक बात याद रखो कि यह होटल आपको मार्किट की कीमत से सस्ता मिला हुआ है। आप मालिक हो, सोच लो यदि बेचना है तो...।
      वे दोनों सलाह-मशवरा करने लगते हैं। फै़सला करते हैं कि ऐसे ही कुछेक पैचअप करके किसी तरह हैल्थ वालों से पास करवा लिया जाए और बेचने के लिए मार्किट में लगा दिया जाए। एजेंट कहता है-
      हैल्थ वालों को मैं संभाल लूँगा। आप बताओ होटल कितने का बेचना चाहते हो?“
      जितने का लिया, प्लस तुम्हारा कमीशन।
      इतने का शायद न बिके। मार्किट काफ़ी गिर चुकी है।
      मार्किट में सेल पर तो लगाओ।
      ठीक है, अगले सप्ताह ही प्रैस में आ जाएगा, पर घाटा भी पड़ सकता है इसके लिए तैयार रहना।
      कारा और मनीष एक-दूसरे की ओर देखने लगते हैं।
      होटल पुनः सेल पर लग जाता है। देखने वाले ग्राहक़ों के साथ एजेंट पहले वाले ही हथकंडे अपनाता है। वही कमरे दिखलाता है जिनकी हालत बढ़िया है और देखने वालों को भी उस समय ही बुलाता है, जब ग्राहक़ों की आवाजाही अधिक हो। खरीदने आए लोग होटल का ठिकाना देखकर तो खुश हो जाते हैं, परंतु खरीदने के लिए कोई आगे नहीं बढ़ता।
      होटल सेल पर लगता है तो कारा उदास हो जाता है। उसकी तो अभी हसरतें भी पूरी नहीं हुईं। अभी तो उसने मित्रों और रिश्तेदारों को होटल में बुलाकर पार्टी भी नहीं दी। प्रदुमण सिंह को कई बार बुला चुका है, पर वह व्यस्त होने का बहाना करते हुए अभी तक नहीं आया। लोगों के मुँह पर अभी उसका तख़ल्लुस होटलियर चढ़ा भी नहीं कि होटल से अलग हो रहा है। उधर उदास तो मनीष पटेल भी है, पर कारे जितना नहीं। मनीष उदास उस दिन होता है जिस दिन उसे मालूम होता है कि होटल बिक रहा है, पर बहुत घाटे में। कुल मिलाकर पूरे दो लाख का घाटा पड़ रहा है। मनीष का ब्लॅड प्रैशर हाई हो जाता है और शुगर गिर जाती है। उसको लगता है कि वह गया। वह कहता है-
      भैया, ये साला होटल मुझे ले जाएगा।
      तुम्हें क्या, मुझे भी ले जाएगा।
      दो लाख पौंड कहाँ से पूरा करेंगे मिस्टर राय ?“
      अरे भैया तू तो कर लेगा। मेरा क्या होगा! मैं तो लुट गया न।
      नहीं यार, ये दो लाख तो पूरा होना चाहिए, मिस्टर राय। चोरी करें या बैंक में डाका डालें, ये दो लाख तो पूरा करना होगा।
      हाँ यार पटेल, कुछ न कुछ तो सोचना ही पड़ेगा।
(जारी…)