''साउथाल''
इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत अटवाल का यह चौथा उपन्यास
है। इससे पूर्व उनके तीन उपन्यास - 'वन वे', 'रेत', और 'सवारी' चर्चित हो चुके हैं। ''साउथाल'' इंग्लैंड में एक शहर का नाम है जहाँ अधिकतर भारत से गए सिक्ख और पंजाबी
परिवार बसते हैं। यहाँ अवस्थित पंजाबी परिवारों के जीवन को बेहद बारीकी से
रेखांकित करता हरजीत अटवाल का यह उपन्यास इसलिए दिलचस्प और महत्वपूर्ण है क्योंकि
इसके माध्यम से हम उन भारतीय लोगों की पीड़ा से रू-ब-रू होते हैं जो काम-धंधे और
अधिक धन कमाने की मंशा से अपना वतन छोड़ कर विदेशों में जा बसते हैं और वर्षों वहाँ
रहने के बावजूद वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।
साउथाल
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
।। अड़तीस ॥
उस शाम मोहनदेव
घर आ जाता है। पाला सिंह उसको पास बिठा कर कहता है-
''देख पुत्तर, अपना शुगल-मेला जहाँ मर्ज़ी कर, पर विवाह करवाना है तो
अपनी जात-बिरादरी में करवा। विवाह वही कामयाब होता है जहाँ दोनों परिवारों का पीछा एक-सा हो। दो अलग-अलग
कल्चर में जन्मे लोग कभी खुश नहीं रह सकते।''
''लुक डैड, मैंने कितनी बार बताया कि मैं इंडियन नहीं, मैं ब्रिटिश
हूँ और मुझे जबरदस्ती इंडियन न बना। यह मेरी लाइफ़ है, मुझे अपने
तरीके से जीने दे।''
''अगर तेरी माँ जिंदा होती तो
तू क्या करता।''
''मम्मी, तुम्हारे जैसी नहीं थी। वो मुझे ज़रूर लिसन करती।''
घंटा भर बहस चलती रहती है,
पर बात किसी किनारे नहीं लगती। अधिक मिन्नत-चिरौरी करना उसके वश में
भी नहीं। आख़िर वह कह देता है -
''तुझे मेरे और उस लड़की में से
एक को चुनना होगा।''
''मैं मीना को चूज़ कर चुका हूँ
डैड।''
पाला सिंह निढ़ाल-सा सैटी में धंस
जाता है और फिर आहिस्ता से उठकर अपने कमरे में चला जाता है। उसको लगता है मानो उसके
शरीर का कोई हिस्सा कट गया हो। सवेरे वह उदास-सा उठता है। मोहनदेव घर से जा चुका है।
अमरदेव और मनिंदर डरे-डरे हैं। वह अधिक बात नहीं करता और बाहर जाने के लिए तैयार होने
लगता है।
गुरदयाल सिंह के दफ्तर में पाला
सिंह पहुँचता है तो अन्दर से प्रदुमण सिंह बाहर निकल रहा होता है। वह पूछता है-
''पाला सिंह, कैसे ?... क्या हाल हैं ?''
''तू सुना दुम्मण, तेरा क्या हाल है ? कहीं देखा ही नहीं ?''
''लाइफ़ ज़रा बिजी है।''
''इधर किसलिए घूम रहा है ?''
''घरवाली इंडिया जा रही है,
टिकट लेने आया था।''
''इंडिया को तो तुमने हमेशा के
लिए बाय-बाय नहीं कर दिया था ?''
''मैंने तो कर दिया था,
पर घरवाली के बहन-भाई वहीं हैं।''
''चल, जैसे
भी है, खुश रहो।''
''और पाला सिंह, मूंछें खड़ी रहती है न ?''
प्रदुमण सिंह के पूछने पर पाला
सिंह ज़रा-सा झेंप जाता है कि इसको किसी बात का पता चल गया होगा, पर वह हौसले में आकर कहता है-
''मूंछों ने तो खड़े ही रहना है।
देख, मूंछ पर तो नींबू टिकता है।''
वह अपनी मूंछ की ओर इशारा करता
है और फिर उसी से सवाल कर बैठता है-
''तू सुना, तेरी गिलहरी फूलों पर खेलती है न ?''
''खेलती है पाला सिंह,
पूरी तरह खेलती है।'' कहते हुए प्रदुमण सिंह हँसता
हुआ चल पड़ता है। जाते हुए प्रदुमण की पीठ देखता हुआ पाला सिंह अन्दर प्रवेश कर जाता
है। अन्दर पिछले वाले दफ्तर में ही सीधे चला जाता है जहाँ गुरदयाल सिंह बैठा करता है।
गुरदयाल सिंह की ओर देखकर उसकी आँखें तर-सी होने लगती हैं। वह भरे मन से कहता है-
''भई नहीं माना लड़का। धोखा दे
गया।''
''यह तो बुरी बात की उसने। पालने,
पढ़ाने की कोई कद्र नहीं की उसने।''
''गुरदयाल सिंह, वह तो पास नहीं फटकने दे रहा। कहता है, बात न कर। पता
नहीं उस लड़की ने क्या जादू कर दिया।''
''इस मुल्क की हवा!''
''मुल्क की हवा तो जो हुई,
सो हुई पर इस हमारे लड़के को तो पढ़ाई-लिखाई ने बिगाड़ा है। न इसको इतना
पढ़ाता, न ये दिन देखने पड़ते।'' कहता हुआ
वह सोच रहा है कि गुरदयाल सिंह का लड़का अधिक न पढ़ा होने के कारण बाप के कहने में रहा
और इंडिया जाकर विवाह करवा आया।
गुरदयाल सिंह कहता है,
''पाला सिंह, दिल छोटा न कर। लड़का ही है,
कौन सी लड़की है।''
''तेरी बात ठीक है, पर गुरुद्वारे जाया करते हैं, लोगों को पता लगा तो थू-थू
होगी। ये जो मूंछ खड़ी है...।''
''तू यूँ ही न जज्बाती हुए जा।
कोई आँधी नहीं चली। हौसला रख और हमेशा की तरह खुश रह। खुश रहना तो लोग तेरे से सीखते
हैं।''
गुरदयाल सिंह के इन शब्दों से
उसका मायूस-सा दिल एकाएक टिक जाता है। वह सोचता है कि ज़िन्दगी में वह कभी भी निराश
नहीं हुआ, अब भी नहीं होना चाहिए। वह मूंछ को मरोड़ा देते हुए
कहता है-
''नहीं तो न सही। मोहनदेव जाता
है तो जाए, मैं अमरदेव का इंडिया में विवाह करूँगा।''
''इंडिया इंडिया भी तू यूँ ही
गाए जाता है। वहाँ इंडिया में अपना है ही कौन ? दो खेत जो ज़मीन
के हैं, रिश्तेदारों ने दबा लेंगे या यूँ कहो, दबा ही लिए हैं।
गाँव में हमारे हमउम्र मर-खप चुके हैं या फिर अन्दर घुसे बैठे हैं। नई जनरेशन हमें
पहचानती नहीं, अब वहाँ गाँव में अपना है ही कौन ?''
''बात तो गुरदयाल सिंह तेरी ठीक
है, पर मैं ये सोचता हूँ कि आदमी का रौब अपने भाईचारे में ही
बनता है। अब अगर किसी को पता लगा कि मोहनदेव ने किसी भैय्याणी से ब्याह करवा लिया है
जिसकी जात का कुछ पता नहीं तो...।''
''तू फिर वही बात करने लग पड़ा।
तुझे पता है, अपने गाँव के कितने ही बंदे कुदेसणों से ब्याहे
हुए थे।''
''कुदेसणों से तो वो ब्याह करवाता
है जो रह गया हो, पर मोहनदेव तो छह फुटा सोहणा जवान है।''
''मेरे कहने का मतलब दूसरा है
भई, जट्ट का पुत्त कहीं भी ब्याह करवा ले, औरत ने जट्ट के घर में आकर जट्टी ही बन जाना होता है। अब ये गुजरातन जो पटेल,
दिसाई कुछ भी हो, माहल बन जाएगी, तू तो बल्कि आशीर्वाद दे।''
''देख गुरदयाल सिंह, न तो मैं उसको माफ़ कर सकूँगा और न ही आशीर्वाद दे सकूँगा। यह ठीक है कि मोहनदेव
को लेकर सोचना बंद कर दूँगा, भूल जाऊँगा कि मेरे दो बेटे थे।''
''और भाभी नसीब कौर जिंदा होती
तो ऐसा करती ?''
''नसीब कौर भली औरत थी,
पर मैं...।''
वह अपनी बात को बीच में ही छोड़
कर मूंछ को मरोड़ा देने लगता है।
वह गुरदयाल सिंह के यहाँ से लौटकर
काफ़ी हद तक खुश है। उसके दिल का बोझ यद्यपि उतरा नहीं, पर ग़म
बांटा गया है। घर पहुँचने तक वह एकदम ठीक हो जाता है। मनिंदर और अमरदेव घर में ही हैं।
पिता को बदला हुआ देख कर वे भी राहत की साँस लेते हैं। अमरदेव कहता है-
''डैड, यह
कोई इतना बड़ा इशु नहीं था, जस्ट स्मॉलथिंग था। तुम यूँ ही एंग्री
हो गए, ऐसे ही हैप्पी रहा करो।''
''यह स्मॉलथिंग नहीं, पर मैं हैप्पी ही हूँ। मुझे क्या हुआ है।''
''अगर हैप्पी हो तो मोहन को फोन
करूँ कि मीना को लेकर आ जाए।''
''ख़बरदार! अगर इस घर में लाया।
उसको कह दे, अब वो भी न आए।'' कहते हुए
वह सिटिंग-रूम में आ जाता है और बैठ कर टेलीविज़न देखने लग पड़ता है। मनिंदर और अमरदेव
अपने-अपने कमरों में चले जाते हैं। पाला सिंह घड़ी देखता हुआ पब के खुलने का इंतज़ार
करने लगता है। वह पब जाएगा तो बातें करने वाले कई मिलेंगे। मन दूसरी तरफ होगा। दुम्मण
जैसा यदि कोई उसके लड़के के बारे में बात करेगा भी तो कह देगा कि लड़का ही है,
कौन सा लड़की है। लड़के तो पचास दीवारें फांदा करते हैं।
पब जाते समय वह लेडी माग्रेट रोड
पर पहुँचता है। सेमा और अनवर खड़े होकर बातें कर रहे हैं। सेमे को तो वह जानता है,
वह कई बार गुरुद्वारे में मिल जाया करता है। अनवर को वह नहीं जानता,
पर अनवर भी उसको सतश्री अकाल बुलाता है। पाला सिंह कहता है-
''कौन सी साज़िश घड़ रहे हो ?''
अनवर और सेमे के खड़े होने के अंदाज
से अंदाजा लगाते हुए मजाक में वह पूछता है। सेमा कहने लगता है-
''अंकल जी, क्या बताएँ, ये सामने पोस्टर देखो, कितना गंदा है। हमसे नहीं देखा जाता। बच्चों पर इसका क्या असर पड़ेगा।''
''यह तो है। तुम्हें पता ही है
कि ये कौम कितनी खुली है। कहाँ हमारी औरतें बुर्कों, घूंघटों
में रहने वाली और कहाँ ये... गोरी औरतें तो कपड़े से अधिक वास्ता नहीं रखतीं। शुक्र
है कि ये मुल्क ठंडा है, नहीं तो पता नहीं यहाँ क्या हाल होता।''
कहते हुए पाला सिंह पोस्टर की ओर देखता है।
दीवार पर बड़े साइज़ की तस्वीर चिपकी
हुई है। यह किसी मैगज़ीन का विज्ञापन है। तस्वीर में दिखाया गया है कि नंगे मर्द और
औरत संभोग क्रिया में मग्न है, पर औरत इस क्रिया में मानसिक तौर
पर शामिल नहीं है क्योंकि वह एक मैगज़ीन पढ़ रही है और उसको मैगज़ीन में ज्यादा आनन्द
आ रहा है।
पाला सिंह हँसता हुआ आगे बढ़ जाता
है। अब उसका मूड बिलकुल ठीक है।
(जारी…)