''साउथाल'' इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत अटवाल का यह चौथा उपन्यास है। इससे पूर्व उनके तीन उपन्यास - 'वन वे', 'रेत', और 'सवारी' चर्चित हो चुके हैं। ''साउथाल'' इंग्लैंड में एक शहर का नाम है जहाँ अधिकतर भारत से गए सिक्ख और पंजाबी परिवार बसते हैं। यहाँ अवस्थित पंजाबी परिवारों के जीवन को बेहद बारीकी से रेखांकित करता हरजीत अटवाल का यह उपन्यास इसलिए दिलचस्प और महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से हम उन भारतीय लोगों की पीड़ा से रू-ब-रू होते हैं जो काम-धंधे और अधिक धन कमाने की मंशा से अपना वतन छोड़ कर विदेशों में जा बसते हैं और वर्षों वहाँ रहने के बावजूद वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।
साउथाल
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
साउथाल
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
।। बत्तीस॥
जगमोहन बहुत खुश है। लक्ष्मी प्रीती को मिलकर आई है और पूरा हौसला देकर आई है। उन सबका जो भय था, वह सच्चा है। गुरनाम उस पर भिन्न-भिन्न तरीके से मानसिक दबाव डाल रहा है और इस मानसिक दबाव के नीचे दबी प्रीती घबराई हुई है। वह समझ नहीं पा रही कि क्या करे। लक्ष्मी जगमोहन को यकीन दिलाती है कि प्रीती के साथ लगातार सम्पर्क रखा जाएगा, पर एक बात जो ठीक नहीं है, वह यह है कि प्रीती स्वयं कोई शिकायत नहीं कर रही। लक्ष्मी के अनुसार वे इस मामले में अधिक कुछ नहीं कर सकतीं क्योंकि उनके पास कोई शिकायत ही नहीं है। गुरनाम उसको कुछ कहता नहीं है। कोई मारपीट नहीं करता। किसी सहूलियत से वंचित नहीं रखता। जो उसके अन्दर हीनभावना का अहसास पैदा कर रहा होगा, उसके बारे में अधिक कुछ नहीं किया जा सकता, सिवाय इसके कि कोई न कोई प्रीती को निरंतर मिलता रहे।
आज वह बहुत दिनों बाद ग्लोस्टर जाता है। उसका दिल करता है कि यह प्रीती वाली बात किसी के साथ साझा करे। ग्रेवाल कहीं गया हुआ है। उसके कालेज में शाम के कई फंक्शन चलते रहते हैं। वह उधर निकल गया होगा। भूपिंदर को फोन करता है तो वह घर नहीं मिलता। भूपिंदर को प्रीती में कोई दिलचस्पी भी नहीं है। एकबार तो जगमोहन भी सोचता है कि वह प्रीती के मसले को इतना दिल पर क्यों लगा रहा है। वह पब में आकर देखता है कि शायद कोई परिचित मिल जाए। इधर-उधर देखते हुए एक मेज के साथ बैठा पाला सिंह मूंछों को मरोड़े दे रहा है। उसके दो परिचित उसकी बातें सुन रहे हैं। वह उसके पास कुछ देर के लिए बैठता है। तब तक सोहनपाल और गुरचरन आ जाते हैं। वह उठकर उनके बीच जा बैठता है। शाम भारद्वाज काउंसलर बनने के बाद अपने आप को सबसे अलग समझ पब में अब कम आता है। सोहन पाल और गुरचरन भी प्रीती की कहानी में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाते। जगमोहन एक गिलास पीकर कोई बहाना बनाकर उठ खड़ा होता है। बाहर निकलते समय प्रदुमण सिंह मिल जाता है। वह उसको वापस पब में चलने के लिए कहता है, पर जगमोहन रुकता नहीं। वह सोच रहा है कि घर ही चला जाए। घर में जाकर मनदीप को बताए कि लक्ष्मी प्रीती को मिलकर आई है। उसने प्रीती को मिलते रहने का वायदा किया है। यद्यपि वह स्त्रियों की इस संस्था का आलोचक रहा है, पर अब उसको यह संस्था कुछ कर रही प्रतीत हो रही है।
वह घर पहुँचता है। दोनों बेटे दौड़कर दरवाज़ा खोलते हैं। नवजीवन कहता है -
''डैड, समबडी लुकिंग फॉर यू।''
''कौन ?''
''आय डोंट नो, सम स्ट्रेंजर।''
वह आगे बढ़कर मनदीप से पूछना चाहता है, पर उसी वक्त दरवाज़ा खड़कता है। वह देखता है कि एक अजनबी-सा व्यक्ति खड़ा है। भरी मूंछे और पक्का रंग, लम्बा-पतला शरीर।
''सत् श्री अकाल सरदार जी।''
वह व्यक्ति कहता है। उसकी बोली से और इतने प्यार से सरदार जी कहने से वह समझ जाता है कि यह व्यक्ति पाकिस्तानी है। वह बोलता है-
''हाँ जी, बताओ। आपके लिए क्या कर सकता हूँ ?''
''एक बात करनी है जी।''
''करो।''
जगमोहन ज़रा बेरुखी से कहता है। वह व्यक्ति इधर-उधर देखते हुए कहता है-
''भाई जान, ज़रा प्रायवेट बात है, बाहर मौसम भी ठीक नहीं।''
कहता हुआ वह कदम आगे बढ़ाता है। जगमोहन किसी अजनबी व्यक्ति को घर में नहीं बुलाना चाहता। वह कहता है-
''आओ, कार में बैठकर बात करते हैं।''
जगमोहन बाहर निकलकर अपनी कार का दरवाज़ा खोलता है। उस व्यक्ति के चेहरे से लगता है कि घर के अन्दर उसको न ले जाना उसे पसन्द नहीं आया। वे दोनों कार में बैठ जाते हैं। जगमोहन कहता है-
''आओ जी, रिलैक्स होकर बैठो और बताओ कौन सी बात करनी है और आप कौन हैं ? मेरे से कौन सा काम पड़ गया ?''
''भाई जान, मेरा नाम याकूब अली है जी, मुझे यह चिट्ठी पढ़वानी है, गुरमुखी में है।''
जगमोहन मन में हँसता है कि यह तो छोटा-सा काम है। चिट्ठी की खातिर यह व्यक्ति उसके पास नहीं आ सकता। चिट्ठी देखने से ही प्रतीत होता है कि यह इंडिया से आई है। चिट्ठी पहले से ही खुली हुई है। इसका अर्थ यह कि इसने पढ़ने की कोशिश की होगी। चिट्ठी के ऊपर पता पढ़ता है। किसी बलविंदर कौर के नाम चिट्ठी है। उसको ज़रा सा गुस्सा भी आता है कि आदमी बेगानी चिट्ठी उठाये घूमता है। कौन है यह बलविंदर कौर। उसको बोबी याद आती है। कहीं उसकी चिट्ठी तो नहीं। अभी कुछ हफ्ते पहले ही बोबी को उसने गुरद्वारे में देखा था, लंगर छकते हुए। उसका बेटा भी संग था। पर उसने जगमोहन को पहचानने से इन्कार कर दिया था। वह उसकी तरफ बड़े अपनेपन से बढ़ा था, परन्तु उसने मुँह फेर लिया था।
जगमोहन को समझने में देर नहीं लगती कि बोबी इसी पाकिस्तानी की बात करती थी कि वह उसकी चंगुल से भागकर आई थी। वह चिट्ठी पढ़ता है। याकूब अली कहता है-
''ज़रा मुझे भी बताते रहना कि क्या लिखा है।''
जगमोहन कोई उत्तर दिए बिना पढ़ता जाता है। बोबी की माँ की है। जिसमें थानेदार के पिता का जिक्र है कि शायद वह कोठी लड़के के नाम कर दे। थानेदार का पिता समझौता करने के मूड में है। कुछ दूसरी राज़ी-खुशी की बातें हैं। चिट्ठी आने की तारीख़ भी बहुत पुरानी नहीं है। दसेक दिन की है। पता कहीं उत्तरी लंदन का है। जगमोहन पूछता है-
''आप यह चिट्ठी मेरे पास लेकर क्यों आए ?''
''सॉरी भाई जान, क्या इसमें कुछ गलत लिखा है ?''
''गलत तो कुछ नहीं, पर इतने मील चलकर आप मेरे पास ही क्यों आए ?''
''क्योंकि बोबी को आपने भी आसरा दिया था, मैंने तो तभी आपका थैंक्यू करने आना था पर टाइम न मिला।''
जगमोहन को समझ में आ जाता है कि जब बोबी को कहीं कोई सहारा नहीं मिला होगा तो वह वापस इस व्यक्ति के पास चली गई होगी। वह उसको ख़त में लिखी बातें सुना देता है। याकूब बता रहा है -
''यह पता मुझे बोबी ने ही दिया था।''
''क्या हाल है बोबी का ?''
''वो नसीबों जली फिर लापता है, मैं पागलों की तरह खोजता फिरता हूँ।''
कहते हुए याकूब बहुत उदास हो जाता है। जगमोहन उसको लेकर कुछ अच्छा नहीं सोच रहा। पता नहीं, बोबी को यह किस हाल में रखता होगा। बोबी की शराब पीने की आदत से ही अंदाजा लग जाता है। वह सोच रहा है कि उसको दुत्कार दे, पर वह पहले बोबी के बारे में कुछ और पूछ लेना चाहता है। वह चिट्ठी वापस करते हुए पूछता है -
''यह बोबी वाली क्या कहानी है ?''
''सरदार जी, बोबी बहुत दुखी थी, इसका थानेदार खाविंद फौत हो गया है, ये फरजंद है उसका। इसके ससुर ने इसके ऊपर मैली आँख रखनी शुरू कर दी। वो खबीस चादर डालने तक पहुँच गया, पर यह भाग गई। किसी न किसी तरह जर्मनी पहुँच गई। वहाँ कोई विवाह का झांसा देकर यहाँ ले आया और गलत रास्ते पर ले गया।''
''कोई है नहीं यहाँ इसका ?''
''बहन है, पर बहनोइया हरामी है। यह पगली सुन्दर इतनी है कि किसी का भी मन खराब हो जाए। बहनोई का रवैया देखकर बहन ने इसको घर में से निकाल दिया। बड़ी ट्रैजिक स्टोरी है जी, शुरू-शुरू में बहन ने कई लड़के भी देखे होंगे, बोबी के गाहक बहुत होंगे, पर उसके बेटे को कोई रखने के लिए तैयार नहीं। बस दर-ब-दर ठोकरें खाती फिरती है।''
उसकी बात जगमोहन को उदास कर जाती है। वह पूछता है-
''आपका क्या इनट्रस्ट है बोबी में ?''
''भाई जान, अल्लाह पाक की कसम, निकाह किया, बच्चे को बेटा बनाकर पाला, पर क्या करूँ जिसने भी इसको यहाँ पक्की करने का लारा लगाया, उसके साथ ही चल पड़ी।''
बात करते हुए याकूब की आँखें भर आती हैं। जगमोहन कहता है-
''पर वो तो कह रही थी कि वह पक्की है और सोसल सिक्युरिटी मिलती है उसे।''
''झूठ बोलती होगी। और बोले भी क्या, पर ऐसे अपनी और अपने बच्चे की ज़िन्दगी खराब करेगी, बच्चे को पढ़ने न देगी। मैंने स्कूल में भेजा भी पर...।''
''याकूब अली जी, जो कहानी आपने मुझे बताई है, मुझे लगता है कि बोबी तो इससे भी ज्यादा कठिन राहों से गुजर कर आई है।''
''वह कैसे जी ?''
''वह तो शराब की शौकीन है, वह भी नीट शराब की। शराब की राह पर यूँ ही नहीं चलती अपनी औरतें।''
''देखो सरदार जी, मैं पक्का मुसलमान हूँ, पाँच नवाजी, अब पता नहीं वो कहाँ-कहाँ भटकती होगी, किसके साथ...। सरदार जी, मैं तो निकाह कराकर रखूंगा और मुसलमान बनाऊँगा, अल्लाह पाक इस्लाम कबूल करे तो अल्लाह सब गुनाह माफ कर देगा।''
कहता हुआ याकूब अली कानों को हाथ लगाता है। जगमोहन उसकी ओर देखता उसको परखने की कोशिश कर रहा है। याकूब अली कहता है-
''सरदार जी, बोबी को लाने में मेरी मदद करो।''
''याकूब अली, साउथाल तो बोबियों के लिए समुनदर की तरह है, पता नहीं वो कहाँ होगी।''
कहता हुआ जगमोहन सोचने लगता है कि मनदीप के साथ बोबी को लेकर कोई बात नहीं करेगा, नहीं तो वह कहेगी कि तुझे एक चुड़ैल और चिपट गई।
(जारी…)
जगमोहन बहुत खुश है। लक्ष्मी प्रीती को मिलकर आई है और पूरा हौसला देकर आई है। उन सबका जो भय था, वह सच्चा है। गुरनाम उस पर भिन्न-भिन्न तरीके से मानसिक दबाव डाल रहा है और इस मानसिक दबाव के नीचे दबी प्रीती घबराई हुई है। वह समझ नहीं पा रही कि क्या करे। लक्ष्मी जगमोहन को यकीन दिलाती है कि प्रीती के साथ लगातार सम्पर्क रखा जाएगा, पर एक बात जो ठीक नहीं है, वह यह है कि प्रीती स्वयं कोई शिकायत नहीं कर रही। लक्ष्मी के अनुसार वे इस मामले में अधिक कुछ नहीं कर सकतीं क्योंकि उनके पास कोई शिकायत ही नहीं है। गुरनाम उसको कुछ कहता नहीं है। कोई मारपीट नहीं करता। किसी सहूलियत से वंचित नहीं रखता। जो उसके अन्दर हीनभावना का अहसास पैदा कर रहा होगा, उसके बारे में अधिक कुछ नहीं किया जा सकता, सिवाय इसके कि कोई न कोई प्रीती को निरंतर मिलता रहे।
आज वह बहुत दिनों बाद ग्लोस्टर जाता है। उसका दिल करता है कि यह प्रीती वाली बात किसी के साथ साझा करे। ग्रेवाल कहीं गया हुआ है। उसके कालेज में शाम के कई फंक्शन चलते रहते हैं। वह उधर निकल गया होगा। भूपिंदर को फोन करता है तो वह घर नहीं मिलता। भूपिंदर को प्रीती में कोई दिलचस्पी भी नहीं है। एकबार तो जगमोहन भी सोचता है कि वह प्रीती के मसले को इतना दिल पर क्यों लगा रहा है। वह पब में आकर देखता है कि शायद कोई परिचित मिल जाए। इधर-उधर देखते हुए एक मेज के साथ बैठा पाला सिंह मूंछों को मरोड़े दे रहा है। उसके दो परिचित उसकी बातें सुन रहे हैं। वह उसके पास कुछ देर के लिए बैठता है। तब तक सोहनपाल और गुरचरन आ जाते हैं। वह उठकर उनके बीच जा बैठता है। शाम भारद्वाज काउंसलर बनने के बाद अपने आप को सबसे अलग समझ पब में अब कम आता है। सोहन पाल और गुरचरन भी प्रीती की कहानी में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाते। जगमोहन एक गिलास पीकर कोई बहाना बनाकर उठ खड़ा होता है। बाहर निकलते समय प्रदुमण सिंह मिल जाता है। वह उसको वापस पब में चलने के लिए कहता है, पर जगमोहन रुकता नहीं। वह सोच रहा है कि घर ही चला जाए। घर में जाकर मनदीप को बताए कि लक्ष्मी प्रीती को मिलकर आई है। उसने प्रीती को मिलते रहने का वायदा किया है। यद्यपि वह स्त्रियों की इस संस्था का आलोचक रहा है, पर अब उसको यह संस्था कुछ कर रही प्रतीत हो रही है।
वह घर पहुँचता है। दोनों बेटे दौड़कर दरवाज़ा खोलते हैं। नवजीवन कहता है -
''डैड, समबडी लुकिंग फॉर यू।''
''कौन ?''
''आय डोंट नो, सम स्ट्रेंजर।''
वह आगे बढ़कर मनदीप से पूछना चाहता है, पर उसी वक्त दरवाज़ा खड़कता है। वह देखता है कि एक अजनबी-सा व्यक्ति खड़ा है। भरी मूंछे और पक्का रंग, लम्बा-पतला शरीर।
''सत् श्री अकाल सरदार जी।''
वह व्यक्ति कहता है। उसकी बोली से और इतने प्यार से सरदार जी कहने से वह समझ जाता है कि यह व्यक्ति पाकिस्तानी है। वह बोलता है-
''हाँ जी, बताओ। आपके लिए क्या कर सकता हूँ ?''
''एक बात करनी है जी।''
''करो।''
जगमोहन ज़रा बेरुखी से कहता है। वह व्यक्ति इधर-उधर देखते हुए कहता है-
''भाई जान, ज़रा प्रायवेट बात है, बाहर मौसम भी ठीक नहीं।''
कहता हुआ वह कदम आगे बढ़ाता है। जगमोहन किसी अजनबी व्यक्ति को घर में नहीं बुलाना चाहता। वह कहता है-
''आओ, कार में बैठकर बात करते हैं।''
जगमोहन बाहर निकलकर अपनी कार का दरवाज़ा खोलता है। उस व्यक्ति के चेहरे से लगता है कि घर के अन्दर उसको न ले जाना उसे पसन्द नहीं आया। वे दोनों कार में बैठ जाते हैं। जगमोहन कहता है-
''आओ जी, रिलैक्स होकर बैठो और बताओ कौन सी बात करनी है और आप कौन हैं ? मेरे से कौन सा काम पड़ गया ?''
''भाई जान, मेरा नाम याकूब अली है जी, मुझे यह चिट्ठी पढ़वानी है, गुरमुखी में है।''
जगमोहन मन में हँसता है कि यह तो छोटा-सा काम है। चिट्ठी की खातिर यह व्यक्ति उसके पास नहीं आ सकता। चिट्ठी देखने से ही प्रतीत होता है कि यह इंडिया से आई है। चिट्ठी पहले से ही खुली हुई है। इसका अर्थ यह कि इसने पढ़ने की कोशिश की होगी। चिट्ठी के ऊपर पता पढ़ता है। किसी बलविंदर कौर के नाम चिट्ठी है। उसको ज़रा सा गुस्सा भी आता है कि आदमी बेगानी चिट्ठी उठाये घूमता है। कौन है यह बलविंदर कौर। उसको बोबी याद आती है। कहीं उसकी चिट्ठी तो नहीं। अभी कुछ हफ्ते पहले ही बोबी को उसने गुरद्वारे में देखा था, लंगर छकते हुए। उसका बेटा भी संग था। पर उसने जगमोहन को पहचानने से इन्कार कर दिया था। वह उसकी तरफ बड़े अपनेपन से बढ़ा था, परन्तु उसने मुँह फेर लिया था।
जगमोहन को समझने में देर नहीं लगती कि बोबी इसी पाकिस्तानी की बात करती थी कि वह उसकी चंगुल से भागकर आई थी। वह चिट्ठी पढ़ता है। याकूब अली कहता है-
''ज़रा मुझे भी बताते रहना कि क्या लिखा है।''
जगमोहन कोई उत्तर दिए बिना पढ़ता जाता है। बोबी की माँ की है। जिसमें थानेदार के पिता का जिक्र है कि शायद वह कोठी लड़के के नाम कर दे। थानेदार का पिता समझौता करने के मूड में है। कुछ दूसरी राज़ी-खुशी की बातें हैं। चिट्ठी आने की तारीख़ भी बहुत पुरानी नहीं है। दसेक दिन की है। पता कहीं उत्तरी लंदन का है। जगमोहन पूछता है-
''आप यह चिट्ठी मेरे पास लेकर क्यों आए ?''
''सॉरी भाई जान, क्या इसमें कुछ गलत लिखा है ?''
''गलत तो कुछ नहीं, पर इतने मील चलकर आप मेरे पास ही क्यों आए ?''
''क्योंकि बोबी को आपने भी आसरा दिया था, मैंने तो तभी आपका थैंक्यू करने आना था पर टाइम न मिला।''
जगमोहन को समझ में आ जाता है कि जब बोबी को कहीं कोई सहारा नहीं मिला होगा तो वह वापस इस व्यक्ति के पास चली गई होगी। वह उसको ख़त में लिखी बातें सुना देता है। याकूब बता रहा है -
''यह पता मुझे बोबी ने ही दिया था।''
''क्या हाल है बोबी का ?''
''वो नसीबों जली फिर लापता है, मैं पागलों की तरह खोजता फिरता हूँ।''
कहते हुए याकूब बहुत उदास हो जाता है। जगमोहन उसको लेकर कुछ अच्छा नहीं सोच रहा। पता नहीं, बोबी को यह किस हाल में रखता होगा। बोबी की शराब पीने की आदत से ही अंदाजा लग जाता है। वह सोच रहा है कि उसको दुत्कार दे, पर वह पहले बोबी के बारे में कुछ और पूछ लेना चाहता है। वह चिट्ठी वापस करते हुए पूछता है -
''यह बोबी वाली क्या कहानी है ?''
''सरदार जी, बोबी बहुत दुखी थी, इसका थानेदार खाविंद फौत हो गया है, ये फरजंद है उसका। इसके ससुर ने इसके ऊपर मैली आँख रखनी शुरू कर दी। वो खबीस चादर डालने तक पहुँच गया, पर यह भाग गई। किसी न किसी तरह जर्मनी पहुँच गई। वहाँ कोई विवाह का झांसा देकर यहाँ ले आया और गलत रास्ते पर ले गया।''
''कोई है नहीं यहाँ इसका ?''
''बहन है, पर बहनोइया हरामी है। यह पगली सुन्दर इतनी है कि किसी का भी मन खराब हो जाए। बहनोई का रवैया देखकर बहन ने इसको घर में से निकाल दिया। बड़ी ट्रैजिक स्टोरी है जी, शुरू-शुरू में बहन ने कई लड़के भी देखे होंगे, बोबी के गाहक बहुत होंगे, पर उसके बेटे को कोई रखने के लिए तैयार नहीं। बस दर-ब-दर ठोकरें खाती फिरती है।''
उसकी बात जगमोहन को उदास कर जाती है। वह पूछता है-
''आपका क्या इनट्रस्ट है बोबी में ?''
''भाई जान, अल्लाह पाक की कसम, निकाह किया, बच्चे को बेटा बनाकर पाला, पर क्या करूँ जिसने भी इसको यहाँ पक्की करने का लारा लगाया, उसके साथ ही चल पड़ी।''
बात करते हुए याकूब की आँखें भर आती हैं। जगमोहन कहता है-
''पर वो तो कह रही थी कि वह पक्की है और सोसल सिक्युरिटी मिलती है उसे।''
''झूठ बोलती होगी। और बोले भी क्या, पर ऐसे अपनी और अपने बच्चे की ज़िन्दगी खराब करेगी, बच्चे को पढ़ने न देगी। मैंने स्कूल में भेजा भी पर...।''
''याकूब अली जी, जो कहानी आपने मुझे बताई है, मुझे लगता है कि बोबी तो इससे भी ज्यादा कठिन राहों से गुजर कर आई है।''
''वह कैसे जी ?''
''वह तो शराब की शौकीन है, वह भी नीट शराब की। शराब की राह पर यूँ ही नहीं चलती अपनी औरतें।''
''देखो सरदार जी, मैं पक्का मुसलमान हूँ, पाँच नवाजी, अब पता नहीं वो कहाँ-कहाँ भटकती होगी, किसके साथ...। सरदार जी, मैं तो निकाह कराकर रखूंगा और मुसलमान बनाऊँगा, अल्लाह पाक इस्लाम कबूल करे तो अल्लाह सब गुनाह माफ कर देगा।''
कहता हुआ याकूब अली कानों को हाथ लगाता है। जगमोहन उसकी ओर देखता उसको परखने की कोशिश कर रहा है। याकूब अली कहता है-
''सरदार जी, बोबी को लाने में मेरी मदद करो।''
''याकूब अली, साउथाल तो बोबियों के लिए समुनदर की तरह है, पता नहीं वो कहाँ होगी।''
कहता हुआ जगमोहन सोचने लगता है कि मनदीप के साथ बोबी को लेकर कोई बात नहीं करेगा, नहीं तो वह कहेगी कि तुझे एक चुड़ैल और चिपट गई।
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