''साउथाल''
इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत अटवाल का यह चौथा उपन्यास
है। इससे पूर्व उनके तीन उपन्यास - 'वन वे', 'रेत', और 'सवारी' चर्चित हो चुके हैं। ''साउथाल'' इंग्लैंड में एक शहर का नाम है जहाँ अधिकतर भारत से गए सिक्ख और पंजाबी
परिवार बसते हैं। यहाँ अवस्थित पंजाबी परिवारों के जीवन को बेहद बारीकी से
रेखांकित करता हरजीत अटवाल का यह उपन्यास इसलिए दिलचस्प और महत्वपूर्ण है क्योंकि
इसके माध्यम से हम उन भारतीय लोगों की पीड़ा से रू-ब-रू होते हैं जो काम-धंधे और
अधिक धन कमाने की मंशा से अपना वतन छोड़ कर विदेशों में जा बसते हैं और वर्षों वहाँ
रहने के बावजूद वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।
साउथाल
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
।। बयालीस ॥
प्रदुमण के काम
की प्रगति कइयों की आँखों में हल्की-हल्की चुभ रही है। ख़ास तौर पर कारे के। कारा कहने
लगता है कि यह साला दुम्मण सड़े हुए आलू या रद्दी-सा चिकन बेच कर ही करोड़पति बना फिरता
है। उसका ही उकसाया हुआ उसका साला सुखदेव सिंह प्रदुमण के बराबर समोसों की फैक्टरी
लगा देता है, पर कुछ सप्ताह में ही वह बंद हो जाती
है। फैक्टरी लगाने से पहले सुखदेव कारा को लेकर प्रदुमण के पास सलाह-मशवरे के लिए आता
है, परंतु प्रदुमण कोई सीधी सलाह नहीं देता। काउंसिल का इस बारे
में क्या कानून है, इसकी भी कोई जानकारी नहीं देता। सुखदेव की
लगाई फैक्टरी स्वास्थ विभाग के कानून स्तर से नीचे होने के कारण हैल्थ वाले बहुत सारी
कमियाँ निकाल देते हैं। फिर, सामने मार्केटिंग की भी समस्या है।
समोसे या ऐसा ही कोई अन्य माल बनाना शायद इतना कठिन नहीं है, असली कठिनाई उस समय सामने आती है जब आपको माल को बेचना होता है। कारा या उसका
रिश्तेदार सुखदेव दोनों यह बात नहीं समझ पाते कि प्रदुमण ने पहले माल को बेचने के साधन
तलाशे और फिर माल बनाया। प्रदुमण मन ही मन में हँसता है कि उसका मुकाबला करना इतना
सरल नहीं।
फिर, बलबीर
उसके बराबर फैक्टरी लगा देता है। बलबीर ने प्रदुमण सिंह के साथ काम किया है इसलिए उसको
इस काम की जानकारी है। फिर उसकी पत्नी की माँ भी पीटर की फैक्टरी में काम कर चुकी है।
पहले हालांकि वह प्रदुमण् के कहने पर रुक गया था, पर अब वह रुकता
नहीं। पहले तो प्रदुमण उसको धमकियाँ-सी देता है, हैल्थ वालों
के पास उसकी शिकायत भी करता है। हैल्थ इंस्पेक्टर जैरी के साथ उसकी सांठ-गांठ है,
तभी तो प्रदुमण को कभी कोई ऐसी परेशानी नहीं आई। सभी कहते हैं कि वह
उसको हफ्ता देता है। जब प्रदुमण देखता है कि बलबीर का काम चल पड़ा है तो वह उससे दोस्ती
करने उसकी फैक्टरी में चला जाता है। उससे कहता है-
''बलबीर, हम एक-दूसरे की हैल्प करते चलें तो फट्टे चुक दें।''
''अंकल, मैं कभी तुम्हारे खिलाफ़ जाता हूँ।''
''जाना भी नहीं चाहिए। तेरे ग्राहक़ों
के पास हम नहीं जाते और हमारे ग्राहक़ों के पास तू न जाना। देख, मैं कभी पीटर की किसी दुकान पर नहीं गया जबकि हमारा कोई परिचय भी नहीं। आदमी
के उसूल होने चाहिएँ।''
''अंकल, फिक्र न करो।''
''कीमत भी न घटाना, हमारी वाली ही रखना।''
बलबीर अभी काम में नया है। वह
पहले ही किसी प्रकार की प्रतिद्वंदता करने के हक़ में नहीं है। ज़रा पैर जम जाएँगे तो
देखेगा यह सब। वह प्रदुमण सिंह की सभी बातों में हामी भरता जाता है। प्रदुमण जानता
है कि यह व्यापार है और व्यापार में सब जायज़ होता है। सो, बलबीर
कभी भी बदल सकता है। उसको भविष्य में बदलते हालात के लिए तैयार रहना चाहिए। उसको लगता
है कि उसके कारोबार में बलबीर द्वारा डाली गई यह पहली सिरदर्दी है। यदि बलबीर कुछ पैनी
घटाकर उसकी दुकानों पर माल भेजने लग पड़े तो उसका बहुत बड़ा नुकसान कर सकता है,
परंतु वह हर तरह के हालात के लिए तैयार है।
एक दिन फरीदा पूछती है-
''सरदार जी, इतने उदास क्यों ?''
वह बलबीर द्वारा फैक्टरी लगाने
वाली बात बताता है। वह कहती है-
''बताओ, मैं कुछ कर सां ?''
''मैं चाहता हूँ कि कोई वर्कर उसकी फैक्टरी में प्लांट कर दूँ जो मुझे उसकी सारी
ख़बर लाकर दे।'' कहक़र वह फरीदा की ओर देखने लगता है।
फरीदा कह उठती है, ''मेरी तरफ़ इस तरह न देखो जी, मैं ना जा सां सुहणे सरदार को छोड़ के।'' कहती हुई वह उसकी दाढ़ी में उंगलियाँ फिराने लगती है।
तारिक़ काम पर गया हुआ है। उसके काम पर जाने के बाद वह फरीदा के साथ काफ़ी समय बिता
लेता है, पर तारिक़ के आने पर फरीदा के साथ निकटता के समय उसके मन में एक झिझक-सी रहने लगी
है। क्योंकि कुछ ही समय में उसके तारिक़ के साथ भी अच्छे संबंध बन जाते हैं। एक गुनाह
भावना मन में तैरती रहती है। तारिक़ राउंड से लौटकर समोसे तलने लगता है। कई बार प्रदुमण
सिंह के लिए ख़ास तरीके से मछली तलता है। ख़ास ढंग से बटेर बनाकर खिलाता है। वैसाखी आने
पर सभी वर्करों को पार्टी दी जाती है। इस बार तारिक़ अपने हाथों से खाना तैयार करता
है और साथ ही ईद की पार्टी अपनी तरफ़ से देता है। वैसाखी पर वह प्रदुमण सिंह के साथ
गुरुद्वारे माथा टेकने भी जाता है।
कभी कभी प्रदुमण तारिक़ को व्हिस्की के दो पैग लगवा देता है। वैसे तो तारिक़ पक्का
मुसलमान है, पर प्रदुमण सिंह का कहना नहीं टालता। नशे की झोंक में आकर तारिक़ कहने लगता है-
''ओ प्रदुमण सिंहा, ओ सरदारा, तू तो मुझे सगे भाइयों से भी ज्यादा लगता है।''
जब तारिक़ इस तरह कहता है तो उसके अंदर फरीदा से मिलने वाली गुनाह भावना प्रबल होने
लगती है। वह यत्न करता है कि फरीदा से दूर रहे। एक दिन फरीदा पूछती है -
''सरदार जी, उखड़े उखड़े क्यों हो ?''
''क्योंकि तारिक़ मुझे भाई समझता
है।''
''ये तारिक़ किसी का सगा नहीं,
यूँ ही न इसकी बातों में आ जाना।''
एक दिन फरीदा बताने लगती है-
''सरदार जी, अब अपना मिलना बहुत मुश्किल हो जासी।''
''क्यों ? कोई कर्फ्यू लग गया है ?''
''समझ लो कर्फ्यू ही लग जासी,
मैं जल्दी ही काम छोड़ देसी।''
''क्यों ?''
''मेरा मियां खुद समोसों की फैक्टरी
लगा सी।''
''इसकी भैण को... सुल्ला कहीं
का। मैं इसे रोकता हूँ।''
''अब क्या रुक सी ! यूनिट रिलीज
होने वाली है, भट्ठियाँ लगवा ली हैं।''
''तूने पहले नहीं बताया ?''
''कसम जो खिला छोड़ी। मैंने एकबार
इशारा किया था। अब भी उसका पता चल सी तो झगड़ा होसी। खुदा मुझे माफ़ करे। पर सरदार जी,
तुम बात नहीं करना।''
प्रदुमण सिंह झटका खाए बैठा है।
बलबीर की फैक्टरी के बाद वह इतनी जल्दी दूसरी फैक्टरी खुलती नहीं देख सकता। उसे कुछ
समझ में नहीं आ रहा कि अब वह क्या करे। तारिक़ काम पर से लौटता है तो वह एक़दम पूछता
है-
''तारिक़, तू अपना काम शुरू करने वाला है ?''
''किसने कहा सरदार जी ?''
''जिनसे तू काम करवा रहा है,
वही बताकर गए हैं।''
''ओह ! पर भ्रा जी, इसमें बुराई क्या है ?''
''मेरे से सीखकर तू मेरे खिलाफ़
ही...।''
''नहीं ओ सरदारा ! तू तो मेरा
भाई है और भाई भाई क्या अलग होंगे। तुमने भी तो किसी से सीखकर काम शुरू किया था। मैं
तेरे खिलाफ़ नहीं जाऊँगा। हाँ, तू मेरे खिलाफ़ जाएगा, पता नहीं।''
तारिक़ पूरे मोह के साथ बात कर
रहा है। प्रदुमण को लगता है जैसे वह कोई गहरी बात कर गया हो। वैसे तारिक़ के रुख से
उसका गुस्सा कुछ कुछ ठंडा पड़ने लगता है। वह सोचता है कि किसी को अपना काम शुरू करने
से वह कैसे रोक सकता है। यह तो सुखदेव ही था जिससे काम चल नहीं पाया, नहीं तो उसने तो रिश्तेदार होकर भी उसके मुकाबले पर काम शुरू कर लिया था। वह
सोचता है कि बलबीर की तरह ही तारिक़ के साथ संबंध नॉर्मल बना ले। फिर इसकी फैक्टरी में
तो फरीदा उसकी जासूस होगी ही।
अगली बार जब वह फरीदा को मिलने
के लिए उसके घर जाता है तो वह हर किस्म की गुनाह भावना से मुक्त होता है। बल्कि उसको
अच्छा लग रहा है, ऐसे जैसे तारिक़ को सज़ा दे रहा हो।
वह तारिक़ से कहता है-
''देख तारिक़, मेरे साथ कंपीटीशन की कोशिश न करना।''
''ना मेरे भ्रा...रब को भी जान
देनी है। तेरे साथ दुश्मनी करके तेरे हाथों जान गवां ली तो फिर रब को क्या दूँगा। और
फिर, प्रदुमण सिंह, तूने तो यूँ ही दिल
को लगा लिया।''
प्रदुमण को उसकी मीठी-मीठी बातों
पर विश्वास नहीं हो रहा। उसको अनुभव हो रहा है कि वह उसके लिए बलबीर से भी बड़ा ख़तरा
है। वह उस पर निगाह रखनी शुरू कर देता है।
तारिक़ करीब दो सप्ताह में ही अपना
काम प्रारंभ कर लेता है। कुछेक दिन तो शांति रहती है, पर शीघ्र
ही वह अपना माल प्रदुमण सिंह वाली दुकानों पर भी रखने लग पड़ता है। उसने समोसों के साथ
साथ कुछ नई आइटमें भी शुरू कर ली हैं जैसे कि चिकन करी, वैजीटेबल
करी, स्प्रिंग रोल आदि। इन एक्सट्रा आइटमों की प्रदुमण सिंह को
चिंता नहीं है, मुख्य बात समोसों की है।
समोसों की कीमत तारिक़ कम नहीं
रख रहा, परंतु समोसे पर हलाल लिखा होने के कारण कुछ ग्राहक़ों
के लिए विशेष आकर्षण रखता है और उसको लगता है कि तारिक़ के समोसे ज्यादा बिकेंगे। वह
क्रोध में आकर तारिक़ की फैक्टरी पर पहुँचता है।
''मियां, तू मेरा भाई बना था, फिर ये क्या धोखा करने लगा ?''
''यारा, मैं तेरा हूँ तो भाई ही, पर क्या करूँ ग्राहक़ मेरे माल
को ज्यादा पसंद करते होंगे।''
''पर तू मेरी दुकानों पर जाता
क्या करने है ?''
''मैं नहीं जाऊँगा, वो फोन करेंगे।''
''तारिक़, तू मेरे साथ दुश्मनी डाल रहा है, मैं बता दूँ,
पछताएगा।''
''ना सरदारा, मैं किसी से दुश्मनी नहीं डाल रहा, अपनी मेहनत कर रहा
हूँ।''
''मेहनत तू घंटा कर रहा है।''
कहक़र वह एक तरफ़ थूक देता है। उसे ऊँची आवाज़ में बोलता देखकर फरीदा उसके
करीब आ खड़ी होती है। वह कहता है-
''फरीदा, अपने इस झुड्डू को समझा कि मेरा बिजनेस ख़राब न करे, नहीं
तो तेरी कसम, इस कंजर का खून कर दूँगा।''
जब प्रदुमण सिंह फरीदा की कसम
खाता है तो तारिक़ का पारा भी चढ़ जाता है। वह गालियाँ बकने लगता है। फैक्टरी के अन्य
वर्कर भी एकत्र हो जाते हैं। बात हाथापाई तक पहुँच जाती है। फरीदा प्रदुमण सिंह का
कंधा थपथपाते हुए कहती है-
''सरदार जी, आप जाओ। मैं तारिक़ से बात कर सां।''
प्रदुमण वहाँ से चल पड़ता है। वह
सोच रहा है कि अगर मीका या कोई अन्य उसके साथ होता तो तारिक़ के दो हाथ लगाकर ही जाता।
उसके चले जाने के बाद फरीदा तारिक़
से कहती है-
''तुम्हें सरदार जी से दुश्मनी
ज़रूरी करनी थी। अपना माल दूसरी जगह रखो। खुद ही तो कहते हो कि लंदन बहुत बड़ा है।''
''तू बीवी मेरी है कि सरदार की
?''
''क्या मतलब तुम्हारा ?''
''बीवी तू मेरी है और तरफ़दारी
तू सरदार की कर रही है।''
''नहीं जी, मैं तो लड़ाई ख़त्म करने की कर सां।''
''लड़ाई तो अब शुरू होसी... मैं
इसकी सारी दुकानें भन्न सां... ये शोहदा क्या समझता है तारिक़ को ! साला मेरी बीवी की
कसम खा रहा है।''
(जारी…)