''साउथाल'' इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत अटवाल का यह चौथा उपन्यास है। इससे पूर्व उनके तीन उपन्यास - 'वन वे', 'रेत', और 'सवारी' चर्चित हो चुके हैं। ''साउथाल'' इंग्लैंड में एक शहर का नाम है जहाँ अधिकतर भारत से गए सिक्ख और पंजाबी परिवार बसते हैं। यहाँ अवस्थित पंजाबी परिवारों के जीवन को बेहद बारीकी से रेखांकित करता हरजीत अटवाल का यह उपन्यास इसलिए दिलचस्प और महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से हम उन भारतीय लोगों की पीड़ा से रू-ब-रू होते हैं जो काम-धंधे और अधिक धन कमाने की मंशा से अपना वतन छोड़ कर विदेशों में जा बसते हैं और वर्षों वहाँ रहने के बावजूद वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।
साउथाल
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
॥ ग्यारह ॥
एक दिन कारा उसके घर आता है। कहता है-
''अच्छा यार, तू काम पर लगा। मिलने से भी गया। कभी पब में ही बैठें, घर में तो बुढ़ियों के सामने कोई बात ही नहीं होती।''
''चल आ, तुझे गिलास पिला देता हूँ।''
जैकेट पहनता हुआ प्रदुमण सिंह उसके संग चल पड़ता है। दोनों कार में आ बैठते हैं। प्रदुमण कहता है-
''चल, जहाँ चलना है। गिलास पियेंगे। सच में कई दिन हो गए हमें एक साथ बैठे हुए।''
कारा कंटीनेंटल होटल की तरफ कार का रुख कर लेता है। प्रदुमण जानता है कि कारा का स्टैंडर्ड ज़रा ऊँचा है। वह आम लोगों वाले पबों में कम ही जाया करता है। कारा पूछता है-
''कैसे, अब तो सब ठीक है न ?''
''हाँ, दोनों को जॉब मिल गई है। बच्चों के मन में जितना इंडिया रजिस्टर्ड हुआ था, उतर चुका है। बस, साला यह बड़ा वाला पढ़ाई छोड़ने को घूमता है।''
''चलो फिर, किसी कोर्स में डाल दो।''
''देखते हैं, तू सुना, काम कैसा है ?''
''पहले वाली बात नहीं रही। कम्पीटीशन बहुत है। साले थोड़ी-थोड़ी कुटेशन ही दिए जाते हैं। पता नहीं कैसे सरवाइव करते हैं। मैं तो सोचता हूँ अगर कोई बड़ा ढंग का बिजनेस मिल जाए तो सब बदल दूँ।''
''और तू तो मुझे इधर खींचता फिरता है।''
''नए बन्दे के लिए ठीक है, मेरे अब ओवर हैड्ज़ भी बहुत हैं।''
वे होटल की बार में पहुँच जाते हैं। कारा लागर के दो गिलास भरवा लाता है। प्रदुमण पूछता है-
''तेरे पास वो जो लिली काम किया करती थी, है कि छोड़ गई ?''
''सुरजीत कौर को पता चल गया था, उसने हटा दी।''
''देखा न, पढ़ी-लिखी औरत का घाटा। अब कोई और ?''
''हैं एक दो, तू तो जानता ही है कि औरत के बग़ैर कहाँ रहा जाता है।''
''रैगुलर है कि चालू माल है ?''
''एक तो चलताऊ काम है, गोरी है। कभी कभी होटल में बुला लेता हूँ और एक है रैगुलर भी, पर अब ध्यान रखना पड़ता है। बच्चे बराबर के हो चले हैं।''
''यह तो है ही। और फिर तूने बहुत इन्जाय किया है, मैं तो दुकान में ही फंसा रहा।''
''वहाँ इंडिया में कैसे है ?''
कारा सवाल पूछता है। प्रदुमण सोचने लगता है कि इसका क्या उत्तर दे। मास्टरनी वाली बात कैसे बताये। उसे पता है कि कारा औरतों का शौकीन है और अपने बारे में कई बार बढ़ा-चढ़ाकर भी बात कर जाता है। जवाब में कभी कभी प्रदुमण भी गप्प मारने लगता है। कारे के सवाल पर थोड़ा सोचते हुए वह कहता है, ''कारे, इन टैरेरिस्टों ने बहुत धोखा किया मेरे साथ, मेरी बहुत ही खूबसूरत ज़िन्दगी तहस-नहस करके रख दी। अब तो मैं यह भी सोचता हूँ कि एक लाख दे भी देता तो कौन सा पहाड़ गिरने लगा था।''
वह बीयर का घूंट भरने के लिए रुक कर फिर कहता है-
''मैंने जी.टी. रोड पर जगह ले ली थी। टायरों की एजेंसी के लिए पैसे जमा करवाने थे जल्द ही। पेट्रोल पम्प की भी बात चल रही थी, एक होटल के बारे में भी सोच रहा था मैं। मैंने तो यह तय कर लिया था कि ज्ञान कौर और बच्चों को वापस भेज दूँ और खुद वहीं रहूँ। एक बात बाबों ने अच्छी कर दी, अगर काम फैलाने के बाद वे तंग करते तो न कारोबार छोड़ जा सकता था और न वहाँ रहा जा सकता था। लाइफ़ बहुत कठिन हो जाती। चलो, जो हो गया, अच्छा ही हुआ।''
''मेरा सवाल यह नहीं, तेरी भूरी पगड़ी पर भी कोई मरी ?''
''हाँ, मरी थी एक। फगवाड़े प्रीत नगर रहती थी। इन बच्चों की इंग्लिश टीचर थी। वह घूमने फिरने की शौकीन थी और हम घुमाने-फिराने के।''
''सुन्दर थी ?''
''हाँ, सुन्दर थी। ठीक थी। हसबैंड उसका आर्मी में था, नेवी में। मेरे साथ राजस्थान देखने गई थी। कुछ ज्यादा ही मोह करने लगी थी।''
''तेरा कि तेरी जेब का ?''
''शायद जेब का भी करती हो, यह गिव एंड टेक तो है ही, पर वह बहुत अच्छी औरत है। छोड़ने वाली नहीं। जब मैं चलने से पहले मिलने गया तो बहुत रोई, मेरा मन भी खराब कर दिया था। और मेरी भी सुन ले, जब से आया हूँ, उसे फोन भी नहीं कर सका।''
''उसे तेरी सिच्युएशन का पता भी था ?''
''हाँ, मैंने बताया था। उसने तो रहने के लिए अपना घर दिया था और इमरजैंसी में वहाँ आ जाने के लिए भी कहा था।''
''अब कैसे करना है ?''
''किस बारे में ?''
''तूने तो अब जल्दी जाना नहीं इंडिया को, मेरे से इंट्रोडक्शन करा दे, मैं अगले महीने जा रहा हूँ।''
''देख भाई, बातें साझी और औरत अपनी अपनी।''
साउथाल
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
॥ ग्यारह ॥
एक दिन कारा उसके घर आता है। कहता है-
''अच्छा यार, तू काम पर लगा। मिलने से भी गया। कभी पब में ही बैठें, घर में तो बुढ़ियों के सामने कोई बात ही नहीं होती।''
''चल आ, तुझे गिलास पिला देता हूँ।''
जैकेट पहनता हुआ प्रदुमण सिंह उसके संग चल पड़ता है। दोनों कार में आ बैठते हैं। प्रदुमण कहता है-
''चल, जहाँ चलना है। गिलास पियेंगे। सच में कई दिन हो गए हमें एक साथ बैठे हुए।''
कारा कंटीनेंटल होटल की तरफ कार का रुख कर लेता है। प्रदुमण जानता है कि कारा का स्टैंडर्ड ज़रा ऊँचा है। वह आम लोगों वाले पबों में कम ही जाया करता है। कारा पूछता है-
''कैसे, अब तो सब ठीक है न ?''
''हाँ, दोनों को जॉब मिल गई है। बच्चों के मन में जितना इंडिया रजिस्टर्ड हुआ था, उतर चुका है। बस, साला यह बड़ा वाला पढ़ाई छोड़ने को घूमता है।''
''चलो फिर, किसी कोर्स में डाल दो।''
''देखते हैं, तू सुना, काम कैसा है ?''
''पहले वाली बात नहीं रही। कम्पीटीशन बहुत है। साले थोड़ी-थोड़ी कुटेशन ही दिए जाते हैं। पता नहीं कैसे सरवाइव करते हैं। मैं तो सोचता हूँ अगर कोई बड़ा ढंग का बिजनेस मिल जाए तो सब बदल दूँ।''
''और तू तो मुझे इधर खींचता फिरता है।''
''नए बन्दे के लिए ठीक है, मेरे अब ओवर हैड्ज़ भी बहुत हैं।''
वे होटल की बार में पहुँच जाते हैं। कारा लागर के दो गिलास भरवा लाता है। प्रदुमण पूछता है-
''तेरे पास वो जो लिली काम किया करती थी, है कि छोड़ गई ?''
''सुरजीत कौर को पता चल गया था, उसने हटा दी।''
''देखा न, पढ़ी-लिखी औरत का घाटा। अब कोई और ?''
''हैं एक दो, तू तो जानता ही है कि औरत के बग़ैर कहाँ रहा जाता है।''
''रैगुलर है कि चालू माल है ?''
''एक तो चलताऊ काम है, गोरी है। कभी कभी होटल में बुला लेता हूँ और एक है रैगुलर भी, पर अब ध्यान रखना पड़ता है। बच्चे बराबर के हो चले हैं।''
''यह तो है ही। और फिर तूने बहुत इन्जाय किया है, मैं तो दुकान में ही फंसा रहा।''
''वहाँ इंडिया में कैसे है ?''
कारा सवाल पूछता है। प्रदुमण सोचने लगता है कि इसका क्या उत्तर दे। मास्टरनी वाली बात कैसे बताये। उसे पता है कि कारा औरतों का शौकीन है और अपने बारे में कई बार बढ़ा-चढ़ाकर भी बात कर जाता है। जवाब में कभी कभी प्रदुमण भी गप्प मारने लगता है। कारे के सवाल पर थोड़ा सोचते हुए वह कहता है, ''कारे, इन टैरेरिस्टों ने बहुत धोखा किया मेरे साथ, मेरी बहुत ही खूबसूरत ज़िन्दगी तहस-नहस करके रख दी। अब तो मैं यह भी सोचता हूँ कि एक लाख दे भी देता तो कौन सा पहाड़ गिरने लगा था।''
वह बीयर का घूंट भरने के लिए रुक कर फिर कहता है-
''मैंने जी.टी. रोड पर जगह ले ली थी। टायरों की एजेंसी के लिए पैसे जमा करवाने थे जल्द ही। पेट्रोल पम्प की भी बात चल रही थी, एक होटल के बारे में भी सोच रहा था मैं। मैंने तो यह तय कर लिया था कि ज्ञान कौर और बच्चों को वापस भेज दूँ और खुद वहीं रहूँ। एक बात बाबों ने अच्छी कर दी, अगर काम फैलाने के बाद वे तंग करते तो न कारोबार छोड़ जा सकता था और न वहाँ रहा जा सकता था। लाइफ़ बहुत कठिन हो जाती। चलो, जो हो गया, अच्छा ही हुआ।''
''मेरा सवाल यह नहीं, तेरी भूरी पगड़ी पर भी कोई मरी ?''
''हाँ, मरी थी एक। फगवाड़े प्रीत नगर रहती थी। इन बच्चों की इंग्लिश टीचर थी। वह घूमने फिरने की शौकीन थी और हम घुमाने-फिराने के।''
''सुन्दर थी ?''
''हाँ, सुन्दर थी। ठीक थी। हसबैंड उसका आर्मी में था, नेवी में। मेरे साथ राजस्थान देखने गई थी। कुछ ज्यादा ही मोह करने लगी थी।''
''तेरा कि तेरी जेब का ?''
''शायद जेब का भी करती हो, यह गिव एंड टेक तो है ही, पर वह बहुत अच्छी औरत है। छोड़ने वाली नहीं। जब मैं चलने से पहले मिलने गया तो बहुत रोई, मेरा मन भी खराब कर दिया था। और मेरी भी सुन ले, जब से आया हूँ, उसे फोन भी नहीं कर सका।''
''उसे तेरी सिच्युएशन का पता भी था ?''
''हाँ, मैंने बताया था। उसने तो रहने के लिए अपना घर दिया था और इमरजैंसी में वहाँ आ जाने के लिए भी कहा था।''
''अब कैसे करना है ?''
''किस बारे में ?''
''तूने तो अब जल्दी जाना नहीं इंडिया को, मेरे से इंट्रोडक्शन करा दे, मैं अगले महीने जा रहा हूँ।''
''देख भाई, बातें साझी और औरत अपनी अपनी।''
(जारी…)
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1 comment:
rochak mod par khatm hui hai aaj ki yah kisht... chaliye dekhte hain agle kisht me kahani kaisa mod leti hai.....
shukriya....
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