समकालीन पंजाबी साहित्य की उत्कृष्ट कृतियों की तलाश

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Sunday, September 19, 2010

पंजाबी उपन्यास



''साउथाल'' इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत अटवाल का यह चौथा उपन्यास है। इससे पूर्व उनके तीन उपन्यास - 'वन वे', 'रेत', और 'सवारी' चर्चित हो चुके हैं। ''साउथाल'' इंग्लैंड में एक शहर का नाम है जहाँ अधिकतर भारत से गए सिक्ख और पंजाबी परिवार बसते हैं। यहाँ अवस्थित पंजाबी परिवारों के जीवन को बेहद बारीकी से रेखांकित करता हरजीत अटवाल का यह उपन्यास इसलिए दिलचस्प और महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से हम उन भारतीय लोगों की पीड़ा से रू-ब-रू होते हैं जो काम-धंधे और अधिक धन कमाने की मंशा से अपना वतन छोड़ कर विदेशों में जा बसते हैं और वर्षों वहाँ रहने के बावजूद वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।
साउथाल
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

॥ बारह ॥

प्रीती कार में से इधर-उधर देखती है और फिर एकदम उतर जाती है। जगमोहन भी कार दौड़ा ले जाता है। प्रीती जाती हुई कार को देखते हुए मन ही मन कह रही है - ''पगला, बॉय-बॉय भी नहीं करके गया।'' जैसे ही कार मोड़ मुड़ती है, वह सुसैक्स रोड पर तेज कदमों से चलने लगती है। वह सोच रही है कि जगमोहन को पहली मुलाकात में ही इतनी बातें नहीं बतानी चाहिए थीं। मर्द औरत की कमजोरी का लाभ उठाने में देर नहीं करता। सभी मर्द एक-से ही होते हैं। उसे याद है कि जब गुरनाम ने उसे पीट डाला था तो सामने वाले घर का पाकिस्तानी बहुत ही हमदर्दी दिखाने लगा था। उसके मन का एक कोना यह भी कह रहा है कि कोई उसकी बात को सुनने वाला भी हो। कोई उसका हमदर्द हो। कोई प्यार से पेश आए। उसके सपनों की कद्र करे। गुरनाम ने तो सदैव उसकी उपेक्षा ही की है। किसी के साथ बात साझा करने पर ही उसका सन्देश पहुँचेगा। ऐसा सोचते हुए उसको जगमोहन के संग दिल की बातें साझा कर लेना अच्छा लगता है।
वह बच्चों को जीतो मौसी के घर से लेने के लिए उसके दरवाजे की घंटी बजाती है। मौसी बच्चों को दरवाजे में ही लाकर धीमी आवाज़ में कहती है-
''तेरा अंकल घर में ही है।''
प्रीती जानती है कि अंकल को भी गुरनाम की भाँति उसकी यह एक्टिंग वाली बात पसन्द नहीं है। इसीलिए अंकल प्रीती को पसन्द नहीं करता, पर मौसी जीतो उसकी सहेली की तरह है। गुरनाम की सारी चोटों को वह सहलाते हुए सलाह देने लगती है-
''क्यों इतनी मार खाती है, यह नाइन-नाइन-नाइन किसलिए है। एक बार डायल कर दे, फिर देखना, कैसे सीधा होता है। अपने अंकल की ओर ही देख ले। तेरे अंकल ने भी बहुत अति कर रखी थी, एक झटके में सीधा हो गया। ये मर्द सोचते हैं कि हम सिर्फ़ डरावा ही देती हैं। इसने मेरा मुँह सुजा दिया था, मैंने पुलिस बुला ली। फिर लगा मिन्नतें करने। यह उस समय की बात है, जब बच्चे छोटे हुआ करते थे। अभी भी जब आँखें दिखाता है तो मैं कह देती हूँ कि मुझे नाइन-नाइन-नाइन डायल करना आता है। फिर क्या, मूत की झाग की तरह बैठ जाता है। ये मर्द लोग भी डरपोकों को ही डराते हैं।''
''यह बात तो मुझे सिस्टर्ज इनहैंड्ज़ वाली भी कहती हैं। पर नहीं मौसी, मेरा बाप क्या कहेगा कि लड़की ने दामाद पर पुलिस बुला ली।''
प्रीती जीतो की बात पर ध्यान नहीं देती। उसे अपना बसा-बसाया घर अच्छा लगता है। उसके बसते हुए घर में ही उसके माता-पिता की इज्ज़त है। कुछ समय पहले उसने सिस्टर्ज़ इनहैंड्ज़ वाली सुनीता के साथ बात की थी तो वह उसे पुलिस के पास भेजने को बहुत उतावली हो उठी थी। लेकिन पुलिसवाला हल उसे पसन्द नहीं है। गुरनाम को उसका सिस्टर्ज़ इनहैंड्ज़ की सुनीता से मिलना-जुलना अच्छा तो नहीं लगता, पर वह उसे रोकता नहीं। असल में, गुरनाम उसे किसी बात पर भी नहीं रोका करता। बस, उसे एक्टिंग वाली बात पसन्द नहीं है।
गुरनाम प्रीती पर हाथ तो शुरू के दिनों में ही उठा लेता है जब प्रीती एक्टिंग को रोजगार के तौर पर अपनाने के लिए कहती है। गुरनाम ठांय-से थप्पड़ मारते हुए कहता है-
''मुझे वाइफ़ चाहिए, कंजरी नहीं।''
जब कि विवाह से पहले प्रीती के पिता ने बता भी दिया था कि लड़की नाटक खेलने में अभिरूचि रखती है। गुरनाम चुप रहा था। कान लपेट रखे थे। दुहाजू होने के कारण डरता भी था कि पता नहीं, विवाह हो भी कि नहीं, प्रीती जैसी सुन्दर लड़की हाथ से क्यों गंवाई जाए। उन दिनों में प्रीती इंग्लैंड में नई थी। कोई परिचित भी नहीं था। इसलिए थप्पड़ खाकर खामोश रह गई थी और अपने शौक को भूल गई थी। अन्दर घुसकर रो-रोकर मन हल्का कर लिया था। फिर मीना आ गई, फिर टीना और दीपू। इतने समय तक प्रीती ने एक्टिंग की बात कभी नहीं की थी।
घर में वैसे देसी मैग़जीन्स आते रहते हैं जिनमें ऐसे विज्ञापन होते हैं कि किसी नाटक या फिल्म के लिए नये चेहरे की आवश्यकता है या फिर किसी एक्टिंग स्कूल में दाख़िला खुला होने की सूचना दी गई होती है। वह ऐसे विज्ञापनों को बहुत ललचाई नज़रों से पढ़ा करती है। एक्टिंग का कीड़ा उसके दिमाग में बड़ी तेजी से घूमने लगता है। एक बार वह किसी एक्टिंग स्कूल को फोन कर बैठती है और स्कूल वाले एप्लीकेशन फॉर्म और अन्य लिटरेचर भेज देते हैं। गुरनाम को जब पता चलता है तो वह फिर प्रीती को पीट देता है। पड़ोसन जीतो मौसी भी उसको बहुत समझाती है कि छोड़ यह ड्रामों के झंझट को। यदि गुरनाम को ड्रामे अच्छे नहीं लगते तो न इनके विषय में सोच और न ही अपना अपमान करवा। बात करते करते पुलिस को बुला लेने का भी परामर्श दे जाती है।
प्रीती को किसी से भूपिंदर के बारे में जानकारी मिलती है कि वह ड्रामे तैयार करता है। वह सोचती है कि जाकर तो देखे कि वहाँ ड्रामे कैसे तैयार करवाये जाते हैं। उसे गुरनाम की मार-कुटाई का ख़याल भी आता है पर गुरनाम की शाम की शिफ्ट है। दो बजे काम पर जाता है और रात दस बजे काम से लौटता है। बच्चे संभालने के लिए जीतो मौसी है ही। मौसी ही हर दुख-सुख में उसको सहारा देती है। वह भूपिंदर के ड्रामे में काम करने को लेकर मौसी से सलाह-मशवरा करती है। मौसी गुरनाम के बुरे स्वभाव के बारे में चेतावनी देती हुई उसे उत्साहित करने लगती है। मौसी को ड्रामों की कोई समझ नहीं, पर उसे अन्दर ही अन्दर प्रीती का विद्रोह की ओर बढ़ना अच्छा लगता है। मौसी के अपने सारे बच्चे विवाह करवाकर अपने अपने घर जा चुके हैं। घर में वह और उसका पति लच्छू ही रहते हैं। लच्छू प्रीती को बिलकुल पसन्द नहीं करता, पर बच्चों से प्यार करता है। उनका घर में आना उसे अच्छा लगता है। जीतो अपने पति को यह नहीं बताती कि प्रीती ड्रामे खेलने के चक्कर में है।
भूपिंदर के पास जाते समय प्रीती कुछ भी सोच सकने में असमर्थ है। एक अजीब सा पागलपन सवार है उसके मन पर। वह सोचती रहती है कि वह अपने इरादे की बहुत मजबूत है। कालेज के दिनों में जहाँ वह अड़ जाती थी, कोई उसे वहाँ से हिला नहीं सकता था। कई बार संगी-साथियों के साथ उसका पंगा पड़ जाया करता था। अब जब उसका दिल फिर से अभिनय की ओर जाने को हो रहा है तो कोई उसे नहीं रोक सकता। लेकिन साथ ही उसे यह भी पता है कि गुरनाम एक डांट मारेगा और वह आराम से बैठ जाएगी और उसके आगे कुछ भी नहीं कर सकेगी। वह यह भी नहीं सोच रही कि एक दिन तो गुरनाम को पता चलेगा ही। एक बात उसके मन के किसी कोने में पड़ी है कि जब गुरनाम उसका काम देखेगा तो वह ज़रूर पसन्द करेगा। फिर सब कुछ ठीक हो जाएगा। एक बात और भी उसके मन में है जो सुनीता भी कहती है और मौसी जीतो भी कि गुरनाम को पुलिस की धमकी दे, जो आज तक वह नहीं दे पाई। मौसी के घर से बच्चों को लेकर अपने घर में घुसते हुए वह सोचती है कि इतना बड़ा रिस्क लेकर जाती भी है, पर सब कुछ निष्फल रह जाता है भूपिंदर के इंडिया चले जाने के कारण। वैसे उसे भूपिंदर के काम करने का ढंग बहुत अच्छा भी नहीं लगता। भूपिंदर अपने बारे में ही बहुत सोचता है। उसे बाकी टीम की अधिक चिंता नहीं है। जब जब वह उसके घर गई है, वहाँ कोई खास रिहर्सल नहीं हो सकी। उसने गिनती के ही संवाद बोले होंगे, लेकिन उसे इतने भर से ही अथाह तसल्ली मिलती है। उसे इस बात का भी अफ़सोस है कि जगमोहन उससे फिर से मिलने का वायदा करके भी नहीं जाता। न टेलीफोन नंबर, न कुछ अन्य। पता नहीं मिलने का सबब बनेगा कि नहीं।
भूपिंदर की ड्रामा टीम में शामिल होने की कोशिश उसका हौसला बढ़ा देती है। कुछ समय बाद प्रीती फिर सूरज आर्टस वालों से अप्वाइंटमेंट ले लेती है। वह उनसे कहती है कि वे उसे कोई न कोई रोल दें। वह यह भी जानती है कि इसका नतीजा क्या निकलेगा, फिर भी स्वयं को रोक नहीं पाती। सूरज आर्टस वाले कहते हैं कि जब ज़रूरत होगी, वे उसे फोन करेंगे। सूरज आर्टस वालों को जब ज़रूरत पड़ती है तो वे प्रीती को फोन करते हैं। फोन गुरनाम उठा लेता है। फिर वही कुछ होता है, जिसका डर होता है। इस बार गुरनाम प्रीतो को इतना मारता है कि वह बिस्तर पर से उठने लायक भी नहीं रहती। इस मार-पिटाई के दौरान ही बड़ी बेटी पुलिस को फोन कर देती है। पुलिस गुरनाम को पकड़ कर ले जाती है। प्रीती सिस्टर्ज इनहैंड्ज़ की शरण लेती है। वे प्रीती का केस अपने हाथ में ले लेती हैं। वे प्रीती को अस्पताल ले जाकर गुरनाम के ख़िलाफ़ केस को बड़ा करने की कोशिश करने लगती हैं। गुरनाम का यह पहला केस होने के कारण उसे कचेहरी की ओर से कुछ जुर्माना होता है और प्रताड़ना भी दी जाती है, साथ ही घर से सौ गज दूर रहने का आदेश भी। सिस्टर्ज़ इनहैंड्ज़ इस केस को मीडिया के माध्यम से खूब उछालती हैं। वे गवर्नमेंट की ओर से मिलती ग्रांट की एवज में दिखाना चाहती हैं कि वे बहुत काम कर रही हैं। प्रीती को लगता है कि वह अब आज़ाद हो गई है। इंडिया में बैठे माँ-बाप को वह स्वयं ही धीरे-धीरे समझा लेगी।
(जारी…)
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1 comment:

Sanjeet Tripathi said...

kya baat hai kahani aise mod le rahi hai,... chaliye ab agli kisht ka wait karte hain...