''साउथाल'' इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत अटवाल का यह चौथा उपन्यास है। इससे पूर्व उनके तीन उपन्यास - 'वन वे', 'रेत', और 'सवारी' चर्चित हो चुके हैं। ''साउथाल'' इंग्लैंड में एक शहर का नाम है जहाँ अधिकतर भारत से गए सिक्ख और पंजाबी परिवार बसते हैं। यहाँ अवस्थित पंजाबी परिवारों के जीवन को बेहद बारीकी से रेखांकित करता हरजीत अटवाल का यह उपन्यास इसलिए दिलचस्प और महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से हम उन भारतीय लोगों की पीड़ा से रू-ब-रू होते हैं जो काम-धंधे और अधिक धन कमाने की मंशा से अपना वतन छोड़ कर विदेशों में जा बसते हैं और वर्षों वहाँ रहने के बावजूद वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।
साउथाल
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
॥ सत्रह ॥
शाम को प्रदुमण रेड हाउस में जाता है। सामने अजनबी-सा व्यक्ति बैठा मिलता है। उसे पहचानते हुए वह कहता है-
''तुमने आई.डब्ल्यू.ए. में भी काम किया है ?''
''हाँ, लीगल एडवाइज़र रहा हूँ शर्मा के बाद।''
''मैं भी कहूँ, तुम्हें देखा है कहीं।''
''अब हमने यहाँ इमीग्रेशन के मसलों के लिए सलाह देनी शुरू की है।''
''मुझे पता चला है, जगमोहन हमारा रिश्तेदार है। कहाँ गया वो ?''
''आज नहीं मिलेगा वो आपको। घर में होगा आज तो। फ्राइडे होगा यहाँ पर। हमने कुछ ऐसा ही एडजस्ट किया हुआ है। पर बताओ क्या काम है, मैं भी कर सकता हूँ।''
''एक केस है, परिचित लड़की है, ससुराल वाले पक्का नहीं होने दे रहे। इंडिया से ब्याह कर लाए थे। अब कहते हैं पसन्द नहीं।''
''होम ऑफिस से लैटर आ गई।''
''लैटर मिल गया है, अपील के लिए तीस दिन दिए हैं।''
''बस, आप ले आओ लैटर, अपील कर देते हैं।''
''ठीक है।'' कहते हुए प्रदुमण सिंह वहाँ से चल देता है। वह कार को एक सुनसान-सी सड़क पर ले आता है और एक तरफ करके रोक लेता है।
''तू मुझे इतनी अच्छी लगने लगी है कि मैं तेरे लिए कुछ भी कर सकता हूँ।''
''थैंक्यू अंकल जी।''
''फिर अंकल... आज तो मैं देख कैसा तैयार होकर आया हूँ।''
''बिलकुल, आप भी बहुत सुन्दर लग रहे हो।''
कुलजीत बात करके तिरछी नज़र से उसकी ओर देखती है। प्रदुमण सिंह एकदम उसका हाथ पकड़ लेता है। कुलजीत कहने लगती है-
''बड़े आशिक मिजाज हो अंकल जी।''
''तेरी जैसी सोहणी औरत सामने हो तो मर्द आशिक न हो जाए तो फिट्टे मुँह उसके मर्द होने पर।''
''क्या खासियत है मेरे में ! मैं तो वक्त की मारी हुई हूँ।''
''तुझे कहा न, ये बात भूल जा।''
''याद क्या रक्खूँ ?''
''एक तू है और एक मैं हूँ।'' कहता हुआ प्रदुमण उसकी ठोड़ी पकड़कर उसके अधरों को चूम लेता है। कुलजीत कोई उज्र नहीं करती। फिर वह कुलजीत को उसके घर पर उतार देता है।
अब वह सातवें आसमान पर है। अजीब-से खुमार से भरा हुआ। उसने एक जवान लड़की को जीत लिया है। उसे आसपास से वही खुशबू आने लगती है जो नीरू से मिलने पर आया करती थी। अब वह सोच रहा है कि जैसे भी हो, कुलजीत का काम करे। वह जगमोहन से सारी बात करना चाहता है। जगमोहन से वह दिल की बात कर सकता है। यद्यपि वह उसके भाई हरकेवल सिंह का दामाद है पर उससे वह दोस्तों की तरह व्यवहार करता है। वह उसे कुलजीत के संग बने अपने संबंधों का राज़दार बनाना चाहता है। अब मसला यह है कि वह जगमोहन को मिले कैसे। शुक्रवार अभी दूर है। घर वह जाना नहीं चाहता। उसे है कि हरकेवल सिंह यह न सोचे कि वह उससे अलग होकर उसके दामाद से रिश्तेदारी गहरी करता घूम रहा है। और फिर, घर जाने पर खुलकर बात भी नहीं हो सकती। वह चाहता है कि जगमोहन कुलजीत को यह विश्वास दिलाता रहे कि वह स्थायी तो हर हाल में हो जाएगी, पर ऐसा होगा अंकल के जरिये ही। उसे मालूम है कि वह कोई न कोई बहाना गढ़कर दिन में ही कुलजीत को कहीं ले जाया करेगा। बच्चों के स्कूल चले जाने के बाद घर खाली ही होता है। राजविंदर भी घर में नहीं होता। वह फैक्ट्री में न हो तो दोस्तों के संग किसी तरफ निकल जाता है। घर में न भी सही 'बैड एंड ब्रेकफास्ट' भी मंहगा नहीं पड़ता। उसे यकीन नहीं हो रहा कि कुलजीत इतनी जल्दी मान जाएगी। कुलजीत को भी यहाँ स्थायी होने के बदले यह सौदा मंहगा नहीं लगता।
प्रदुमण सिंह अपने घर पहुँचकर ज्ञान कौर से जगमोहन के घर फोन करवाता है। मनदीप फोन उठाती है। वह जगमोहन को आवाज़ लगाती है और ज्ञान कौर प्रदुमण सिंह को फोन थमा देती है। वह कहता है-
''यंग मैन, किधर छिपा फिरता है भई ?''
''छिपना कहाँ है, कठिन समय में अपने आप को संभालता फिर रहा हूँ।''
''भई, बड़े फिल्मी डायलॉग मार रहा है।''
''अंकल जी, डायलॉग मैं क्या मारूँगा। आप बताओ क्या हाल है ?''
''काम है तेरे से इमीग्रेशन का।''
''हुक्म करो।''
''कहीं मिले तो बात करूँ, आज मैं रेड हाउस गया था पर तू था नहीं।''
''पर वहाँ शाम भारद्वाज तो होगा ही।''
''हाँ, पर हमारा वकील तो तू ही है, बता कब मिलेगा ?''
''आप बताओ, अभी आ जाओ।''
''अब ! आठ बजे हैं, पब में आ सकता है ?''
''पब में !... चलो आ जाता हूँ। कौन से पब में ?''
''द ग्लौस्टर में ही।''
''नहीं अंकल जी, वहाँ मेरे कई परिचित मिल जाएँगे। कोई बात नहीं हो पाएगी। आप लेडी मैगी में आ जाओ। वहीं मिलते हैं।'' कहकर जगमोहन फोन रख देता है। वह इस वक्त बाहर जाने के मूड में बिलकुल नहीं है। भोजन कर चुका है पर प्रदुमण सिंह ने कहा है, रिश्तेदारी है, जाना ही पड़ेगा। वह तैयार होने लगता है। उसकी अपने ससुर से तो अधिक नहीं बनती, पर प्रदुमण सिंह से संबंध बहुत ही दोस्ताना हैं। वह उसके सामने सिगरेट तक पी लेता है, नहीं तो उसने अपनी स्मोक करने की आदत काफ़ी छिपा कर रखी हुई है। वह बीसेक मिनट में लेडी मैगी में पहुँच जाता है। साउथाल के पबों में यह रिवायती-सा पब है जो अधिक भरता भी नहीं और खाली-सा भी नहीं होता। आम तौर पर लोकल गोरे ही यहाँ होते हैं और इसीलिए खुलकर बातचीत करने के अवसर यहाँ अधिक होते हैं। प्रदुमण सिंह उससे पहले ही आया बैठा है। उसने बियर के गिलास भी भरवाकर रखे हुए हैं। जगमोहन हाथ मिलाकर बैठते हुए कहता है-
''अंकल, मैं आप में कोई बहुत बड़ी चेंज महसूस कर रहा हूँ, पर क्या, समझ में नहीं आ रहा।''
''कई बातें ऐसी होती हैं कि न समझो तो अच्छीं। तू अपना गिलास उठा।''
अनमना-सा जगमोहन गिलास उठाते हुए कहता है-
''मैं तो रोटी खा चुका था।''
''इतनी जल्दी ?''
''बच्चों के संग ही खा लेता हूँ। पब भी मैं वीक एंड पर ही आता हूँ, बियर भी थोड़ी-बहुत ही।''
''अच्छी बात है। मैं तो जब तक गिलास पी न लूँ, नींद नहीं आती। लेकिन मैं पीता एक या अधिक से अधिक दो ही हूँ।''
''बताओ, अपना क्या केस है।''
''केस वही। लड़की आई विवाह करवाकर, बसी नही। ससुराल वाले पक्का नहीं करवाते।''
''रिफ्यूजल लैटर आ गई ?''
''हाँ, बस अपील करनी है।''
''लड़की है कौन ?''
''यह तो सीक्रेट है।''
''पर डॉक्टर के सामने तो नंगा होना ही पड़ेगा।''
उसके कहने पर प्रदुमण सिंह हँसने लगता है। उसकी हँसी में झलकते अल्हड़पन से जगमोहन समझ जाता है कि बात कुछ और है। वह पूछता है-
''हमारी आंटी तो सेफ है न ?''
''तुम्हारी आंटी तो ऐसा खम्भा है जिस पर न किसी तूफ़ान का असर, न भूचाल का। यह तो कोई पार्ट टाइम सा जोश है।''
''फिर ले आओ किसी वक्त।''
''लाने के बिना बात नहीं बनती ?''
''अपील के लिए ग्राउंड तो खोजनी ही पड़ती है और अपील उसकी कहानी में पड़ी है और कहानी उसके पास ही है फर्स्ट हैंड। जो आप बताओगे वो तो सेकेंड हैंड है।''
''यह तो भई सौदा घाटे का लगता है।''
''कैसे ?''
''कहीं कुछ पाने के चक्कर में कुछ गवां ही न बैठूँ।''
''आप फिक्र न करो अंकल जी, आपकी चीज़ आपकी रहेगी।''
''प्रॉमिज़ ?''
''प्रॉमिज़।'' कहकर जगमोहन अपनी ओर बढ़े प्रदुमण सिंह के हाथ से हाथ मिलाता है। अपना गिलास खत्म करते हुए प्रदुमण सिंह कहता है-
''मैं तुझे बात बताते हुए डर भी रहा था कि तू वूमेन लिबरेशन की कुछ ज्यादा ही बात करने लगता है।''
''नहीं, ऐसी भी कोई बात नहीं।''
''मैंने तो सुना था कि साधू सिंह ने लड़की का क़त्ल किया था तो तू बहुत दुखी था।''
''वह तो उसने गलत किया था, पर उसे सज़ा मिल गई। अब सारी उम्र अन्दर ही रहेगा। यह ऑनर किलिंग तो बहुत गलत है।''
''पर क्या तू भारतीय या पंजाबी कल्चर में नहीं जन्मा ? लड़की जब गलत कदम उठाती है तो उसका यही नतीजा होता है। यही होना चाहिए।''
''यहाँ मैं आपके साथ एग्री नहीं करता। देखो, जिस समाज को हमने अपनाया है, उसमें यह मामूली बात है। इस समाज को अपनाने की हमारी कोई मजबूरी तो नहीं थी, हमारी अपनी मर्जी थी। अब देखो, क्या हो रहा है। हमें कुछ सब्र से काम लेने की ज़रूरत है। लड़कियों को मारने से कोई समस्या हल नहीं होगी।''
''जगिया...हम मर्द लोग हैं। हम नहीं सह सकते। हमारा खून अभी सफेद नहीं हुआ। पर साधू सिंह की लड़की तुझे इतना हांट क्यों करती रही ? कोई चक्कर तो नहीं?''
''मैंने वो लड़की देखी थी, रोज़ देखता था।''
''और तू देखता भी स्विमिंग-पूल में था।''
''हाँ, पर कोई इस तरह की बात नहीं थी।''
''चल मान लेते हैं, अब ध्यान रखना कुलजीत न तुझे हांट करने लग पड़े। तुझे सिर्फ़ मदद करनी है।''
जगमोहन ज़रा-सा हँसता है और कहता है-
''आप फिक्र न करो, हम पहले अपील करते हैं, अपील का टाइम न गुजार दें। आप मुझे उसके पेपर, पासपोर्ट दो या फिर वहीं रेड हाउस ही दे आओ।''
''रेड हाउस के बजाय तो मैं संधू के पास जाता हूँ, पुराना परिचित है पर मुझे तो तेरे पर ही भरोसा है।''
''संधू अंकल भी बोतल पीकर टेढ़ा हुआ पड़ा होगा। इतना टेलेंटिड आदमी है और टेलेंट को भंग के भाड़े खराब कर रहा है।''
''छोड़ उसे, तू बता, तुझे कुलजीत कहाँ और कब मिलवाऊँ ?''
''जहाँ चाहो, पर घर में न लाना।''
''मैं इतना मूर्ख भी नहीं। तुझे कार में ही मिलवा दूँगा कल।''
''इतनी भी चोरी क्या कही।''
''चल, जहाँ कहेगा, मिलवा दूँगा, पर मेरा एक इम्पोर्टेंट काम है।''
''वो भी बता दो।''
''देख, सीधी-सी बात है कि कुलजीत भी अपनी ज़रूरत को मेरे संग जुड़ी है, जिस दिन पक्की हो गई वो पत्तरा बांच देगी। सो, हमें काम स्लौली-स्लौली करना है।''
''अंकल जी, इतने खुदगर्ज भी न बनो। वह बेचारी पक्की होती है तो होने दो। ये सारा साउथाल ही कुलजीतों से भरा पड़ा है। आप चिंता क्यों करते हो, कोई और मिल जाएगी।''
(जारी…)
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साउथाल
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
॥ सत्रह ॥
शाम को प्रदुमण रेड हाउस में जाता है। सामने अजनबी-सा व्यक्ति बैठा मिलता है। उसे पहचानते हुए वह कहता है-
''तुमने आई.डब्ल्यू.ए. में भी काम किया है ?''
''हाँ, लीगल एडवाइज़र रहा हूँ शर्मा के बाद।''
''मैं भी कहूँ, तुम्हें देखा है कहीं।''
''अब हमने यहाँ इमीग्रेशन के मसलों के लिए सलाह देनी शुरू की है।''
''मुझे पता चला है, जगमोहन हमारा रिश्तेदार है। कहाँ गया वो ?''
''आज नहीं मिलेगा वो आपको। घर में होगा आज तो। फ्राइडे होगा यहाँ पर। हमने कुछ ऐसा ही एडजस्ट किया हुआ है। पर बताओ क्या काम है, मैं भी कर सकता हूँ।''
''एक केस है, परिचित लड़की है, ससुराल वाले पक्का नहीं होने दे रहे। इंडिया से ब्याह कर लाए थे। अब कहते हैं पसन्द नहीं।''
''होम ऑफिस से लैटर आ गई।''
''लैटर मिल गया है, अपील के लिए तीस दिन दिए हैं।''
''बस, आप ले आओ लैटर, अपील कर देते हैं।''
''ठीक है।'' कहते हुए प्रदुमण सिंह वहाँ से चल देता है। वह कार को एक सुनसान-सी सड़क पर ले आता है और एक तरफ करके रोक लेता है।
''तू मुझे इतनी अच्छी लगने लगी है कि मैं तेरे लिए कुछ भी कर सकता हूँ।''
''थैंक्यू अंकल जी।''
''फिर अंकल... आज तो मैं देख कैसा तैयार होकर आया हूँ।''
''बिलकुल, आप भी बहुत सुन्दर लग रहे हो।''
कुलजीत बात करके तिरछी नज़र से उसकी ओर देखती है। प्रदुमण सिंह एकदम उसका हाथ पकड़ लेता है। कुलजीत कहने लगती है-
''बड़े आशिक मिजाज हो अंकल जी।''
''तेरी जैसी सोहणी औरत सामने हो तो मर्द आशिक न हो जाए तो फिट्टे मुँह उसके मर्द होने पर।''
''क्या खासियत है मेरे में ! मैं तो वक्त की मारी हुई हूँ।''
''तुझे कहा न, ये बात भूल जा।''
''याद क्या रक्खूँ ?''
''एक तू है और एक मैं हूँ।'' कहता हुआ प्रदुमण उसकी ठोड़ी पकड़कर उसके अधरों को चूम लेता है। कुलजीत कोई उज्र नहीं करती। फिर वह कुलजीत को उसके घर पर उतार देता है।
अब वह सातवें आसमान पर है। अजीब-से खुमार से भरा हुआ। उसने एक जवान लड़की को जीत लिया है। उसे आसपास से वही खुशबू आने लगती है जो नीरू से मिलने पर आया करती थी। अब वह सोच रहा है कि जैसे भी हो, कुलजीत का काम करे। वह जगमोहन से सारी बात करना चाहता है। जगमोहन से वह दिल की बात कर सकता है। यद्यपि वह उसके भाई हरकेवल सिंह का दामाद है पर उससे वह दोस्तों की तरह व्यवहार करता है। वह उसे कुलजीत के संग बने अपने संबंधों का राज़दार बनाना चाहता है। अब मसला यह है कि वह जगमोहन को मिले कैसे। शुक्रवार अभी दूर है। घर वह जाना नहीं चाहता। उसे है कि हरकेवल सिंह यह न सोचे कि वह उससे अलग होकर उसके दामाद से रिश्तेदारी गहरी करता घूम रहा है। और फिर, घर जाने पर खुलकर बात भी नहीं हो सकती। वह चाहता है कि जगमोहन कुलजीत को यह विश्वास दिलाता रहे कि वह स्थायी तो हर हाल में हो जाएगी, पर ऐसा होगा अंकल के जरिये ही। उसे मालूम है कि वह कोई न कोई बहाना गढ़कर दिन में ही कुलजीत को कहीं ले जाया करेगा। बच्चों के स्कूल चले जाने के बाद घर खाली ही होता है। राजविंदर भी घर में नहीं होता। वह फैक्ट्री में न हो तो दोस्तों के संग किसी तरफ निकल जाता है। घर में न भी सही 'बैड एंड ब्रेकफास्ट' भी मंहगा नहीं पड़ता। उसे यकीन नहीं हो रहा कि कुलजीत इतनी जल्दी मान जाएगी। कुलजीत को भी यहाँ स्थायी होने के बदले यह सौदा मंहगा नहीं लगता।
प्रदुमण सिंह अपने घर पहुँचकर ज्ञान कौर से जगमोहन के घर फोन करवाता है। मनदीप फोन उठाती है। वह जगमोहन को आवाज़ लगाती है और ज्ञान कौर प्रदुमण सिंह को फोन थमा देती है। वह कहता है-
''यंग मैन, किधर छिपा फिरता है भई ?''
''छिपना कहाँ है, कठिन समय में अपने आप को संभालता फिर रहा हूँ।''
''भई, बड़े फिल्मी डायलॉग मार रहा है।''
''अंकल जी, डायलॉग मैं क्या मारूँगा। आप बताओ क्या हाल है ?''
''काम है तेरे से इमीग्रेशन का।''
''हुक्म करो।''
''कहीं मिले तो बात करूँ, आज मैं रेड हाउस गया था पर तू था नहीं।''
''पर वहाँ शाम भारद्वाज तो होगा ही।''
''हाँ, पर हमारा वकील तो तू ही है, बता कब मिलेगा ?''
''आप बताओ, अभी आ जाओ।''
''अब ! आठ बजे हैं, पब में आ सकता है ?''
''पब में !... चलो आ जाता हूँ। कौन से पब में ?''
''द ग्लौस्टर में ही।''
''नहीं अंकल जी, वहाँ मेरे कई परिचित मिल जाएँगे। कोई बात नहीं हो पाएगी। आप लेडी मैगी में आ जाओ। वहीं मिलते हैं।'' कहकर जगमोहन फोन रख देता है। वह इस वक्त बाहर जाने के मूड में बिलकुल नहीं है। भोजन कर चुका है पर प्रदुमण सिंह ने कहा है, रिश्तेदारी है, जाना ही पड़ेगा। वह तैयार होने लगता है। उसकी अपने ससुर से तो अधिक नहीं बनती, पर प्रदुमण सिंह से संबंध बहुत ही दोस्ताना हैं। वह उसके सामने सिगरेट तक पी लेता है, नहीं तो उसने अपनी स्मोक करने की आदत काफ़ी छिपा कर रखी हुई है। वह बीसेक मिनट में लेडी मैगी में पहुँच जाता है। साउथाल के पबों में यह रिवायती-सा पब है जो अधिक भरता भी नहीं और खाली-सा भी नहीं होता। आम तौर पर लोकल गोरे ही यहाँ होते हैं और इसीलिए खुलकर बातचीत करने के अवसर यहाँ अधिक होते हैं। प्रदुमण सिंह उससे पहले ही आया बैठा है। उसने बियर के गिलास भी भरवाकर रखे हुए हैं। जगमोहन हाथ मिलाकर बैठते हुए कहता है-
''अंकल, मैं आप में कोई बहुत बड़ी चेंज महसूस कर रहा हूँ, पर क्या, समझ में नहीं आ रहा।''
''कई बातें ऐसी होती हैं कि न समझो तो अच्छीं। तू अपना गिलास उठा।''
अनमना-सा जगमोहन गिलास उठाते हुए कहता है-
''मैं तो रोटी खा चुका था।''
''इतनी जल्दी ?''
''बच्चों के संग ही खा लेता हूँ। पब भी मैं वीक एंड पर ही आता हूँ, बियर भी थोड़ी-बहुत ही।''
''अच्छी बात है। मैं तो जब तक गिलास पी न लूँ, नींद नहीं आती। लेकिन मैं पीता एक या अधिक से अधिक दो ही हूँ।''
''बताओ, अपना क्या केस है।''
''केस वही। लड़की आई विवाह करवाकर, बसी नही। ससुराल वाले पक्का नहीं करवाते।''
''रिफ्यूजल लैटर आ गई ?''
''हाँ, बस अपील करनी है।''
''लड़की है कौन ?''
''यह तो सीक्रेट है।''
''पर डॉक्टर के सामने तो नंगा होना ही पड़ेगा।''
उसके कहने पर प्रदुमण सिंह हँसने लगता है। उसकी हँसी में झलकते अल्हड़पन से जगमोहन समझ जाता है कि बात कुछ और है। वह पूछता है-
''हमारी आंटी तो सेफ है न ?''
''तुम्हारी आंटी तो ऐसा खम्भा है जिस पर न किसी तूफ़ान का असर, न भूचाल का। यह तो कोई पार्ट टाइम सा जोश है।''
''फिर ले आओ किसी वक्त।''
''लाने के बिना बात नहीं बनती ?''
''अपील के लिए ग्राउंड तो खोजनी ही पड़ती है और अपील उसकी कहानी में पड़ी है और कहानी उसके पास ही है फर्स्ट हैंड। जो आप बताओगे वो तो सेकेंड हैंड है।''
''यह तो भई सौदा घाटे का लगता है।''
''कैसे ?''
''कहीं कुछ पाने के चक्कर में कुछ गवां ही न बैठूँ।''
''आप फिक्र न करो अंकल जी, आपकी चीज़ आपकी रहेगी।''
''प्रॉमिज़ ?''
''प्रॉमिज़।'' कहकर जगमोहन अपनी ओर बढ़े प्रदुमण सिंह के हाथ से हाथ मिलाता है। अपना गिलास खत्म करते हुए प्रदुमण सिंह कहता है-
''मैं तुझे बात बताते हुए डर भी रहा था कि तू वूमेन लिबरेशन की कुछ ज्यादा ही बात करने लगता है।''
''नहीं, ऐसी भी कोई बात नहीं।''
''मैंने तो सुना था कि साधू सिंह ने लड़की का क़त्ल किया था तो तू बहुत दुखी था।''
''वह तो उसने गलत किया था, पर उसे सज़ा मिल गई। अब सारी उम्र अन्दर ही रहेगा। यह ऑनर किलिंग तो बहुत गलत है।''
''पर क्या तू भारतीय या पंजाबी कल्चर में नहीं जन्मा ? लड़की जब गलत कदम उठाती है तो उसका यही नतीजा होता है। यही होना चाहिए।''
''यहाँ मैं आपके साथ एग्री नहीं करता। देखो, जिस समाज को हमने अपनाया है, उसमें यह मामूली बात है। इस समाज को अपनाने की हमारी कोई मजबूरी तो नहीं थी, हमारी अपनी मर्जी थी। अब देखो, क्या हो रहा है। हमें कुछ सब्र से काम लेने की ज़रूरत है। लड़कियों को मारने से कोई समस्या हल नहीं होगी।''
''जगिया...हम मर्द लोग हैं। हम नहीं सह सकते। हमारा खून अभी सफेद नहीं हुआ। पर साधू सिंह की लड़की तुझे इतना हांट क्यों करती रही ? कोई चक्कर तो नहीं?''
''मैंने वो लड़की देखी थी, रोज़ देखता था।''
''और तू देखता भी स्विमिंग-पूल में था।''
''हाँ, पर कोई इस तरह की बात नहीं थी।''
''चल मान लेते हैं, अब ध्यान रखना कुलजीत न तुझे हांट करने लग पड़े। तुझे सिर्फ़ मदद करनी है।''
जगमोहन ज़रा-सा हँसता है और कहता है-
''आप फिक्र न करो, हम पहले अपील करते हैं, अपील का टाइम न गुजार दें। आप मुझे उसके पेपर, पासपोर्ट दो या फिर वहीं रेड हाउस ही दे आओ।''
''रेड हाउस के बजाय तो मैं संधू के पास जाता हूँ, पुराना परिचित है पर मुझे तो तेरे पर ही भरोसा है।''
''संधू अंकल भी बोतल पीकर टेढ़ा हुआ पड़ा होगा। इतना टेलेंटिड आदमी है और टेलेंट को भंग के भाड़े खराब कर रहा है।''
''छोड़ उसे, तू बता, तुझे कुलजीत कहाँ और कब मिलवाऊँ ?''
''जहाँ चाहो, पर घर में न लाना।''
''मैं इतना मूर्ख भी नहीं। तुझे कार में ही मिलवा दूँगा कल।''
''इतनी भी चोरी क्या कही।''
''चल, जहाँ कहेगा, मिलवा दूँगा, पर मेरा एक इम्पोर्टेंट काम है।''
''वो भी बता दो।''
''देख, सीधी-सी बात है कि कुलजीत भी अपनी ज़रूरत को मेरे संग जुड़ी है, जिस दिन पक्की हो गई वो पत्तरा बांच देगी। सो, हमें काम स्लौली-स्लौली करना है।''
''अंकल जी, इतने खुदगर्ज भी न बनो। वह बेचारी पक्की होती है तो होने दो। ये सारा साउथाल ही कुलजीतों से भरा पड़ा है। आप चिंता क्यों करते हो, कोई और मिल जाएगी।''
(जारी…)
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