''साउथाल''
इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत अटवाल का यह चौथा उपन्यास
है। इससे पूर्व उनके तीन उपन्यास - 'वन वे', 'रेत', और 'सवारी' चर्चित हो चुके हैं। ''साउथाल'' इंग्लैंड में एक शहर का नाम है जहाँ अधिकतर भारत से गए सिक्ख और पंजाबी
परिवार बसते हैं। यहाँ अवस्थित पंजाबी परिवारों के जीवन को बेहद बारीकी से
रेखांकित करता हरजीत अटवाल का यह उपन्यास इसलिए दिलचस्प और महत्वपूर्ण है क्योंकि
इसके माध्यम से हम उन भारतीय लोगों की पीड़ा से रू-ब-रू होते हैं जो काम-धंधे और
अधिक धन कमाने की मंशा से अपना वतन छोड़ कर विदेशों में जा बसते हैं और वर्षों वहाँ
रहने के बावजूद वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।
साउथाल
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
।। इकतालीस ॥
जगमोहन कभी कभार
ही गुरुद्वारे जाता है, वह भी किसी विवशतावश। कोई विवाह
हो या रिश्तेदारी में भोग आदि। आज मनदीप के साथ-साथ नवकिरन और नजजीवन भी गुरुद्वारे
चलने के लिए ज़ोर डालते रहे। संक्रांति का दिन है। उसको नहीं पता, पर मनदीप को पता है। मनदीप का मानना है कि संक्रांति के दिन गुरुद्वारे में
माथा टेकना अधिक शुभ होता है।
दोनों बेटे भी अब गुरुद्वारे के
प्रेमी बन चुके हैं। उन्हें गुरुद्वारे का लंगर और प्रसाद अच्छे लगते हैं। नवकिरन एक
दिन पूछता है-
''डैड, आपने
हमारे नाम में से सिंह क्यों निकाल दिया ?''
जगमोहन ने बच्चों के नाम के साथ
'सिंह' नहीं लगवा रखा। बेटे द्वारा पूछने
पर वह कहता है-
''सो व्हट ! सिंह लिखवाने या न
लिखवाने से क्या फ़र्क़ पड़ता है।''
''पड़ता क्यों नहीं। पीपॅल का पता
नहीं चलता कि मैं सिंह हूँ। वो समझते हैं कि मैं हिंदू या मुसलमान हूँ।''
जगमोहन को नवकिरन की बात पर आश्चर्य
होता है और उसको उस का यह पूछना अच्छा भी लगता है, पर नाम के
साथ 'सिंह' लगवाने की यह चिंता उसको बुरी
लगती है। वह चिंतित हो उठता है कि लड़के कहीं मूलवादी न बन जाएँ। एक दिन नवजीवन प्रश्न
करता है-
''डैड, मैं
बाल लंबे कर लूँ ?''
''तेरी मर्ज़ी है, पर पगड़ी पहननी पड़ेगी।''
''आप मुझे टीच करेंगे ?''
''हाँ, कर
दूँगा।''
पहली दृष्टि में हालाँकि नवजीवन
की बात उसको बुरी लगती है, पर जब उसने अपने दोनों लड़कों को बँधी
हुई पगड़ी में देखा तो उसको बहुत अच्छा अच्छा महसूस होता है। वह सोचता है कि रखने को
तो बेशक लड़के केश रख लें, पर इनसे संभाले नहीं जाएँगे। यदि होश
संभालते ही रख लेते तो आदत पड़ गई होती, अब कठिनाई होगी।
वह गुरुद्वारे पहुँचते हैं। बहुत
भीड़ है। माथा टेकने वालों की लाइन गुरुद्वारे से बाहर तक लगी हुई है। घंटे भर की प्रतीक्षा
जितनी लंबी लाइन है। कार एक तरफ़ रोक कर जगमोहन मनदीप से कहता है-
''हम लौट न चलें, फिर आ जाएँगे, कल सही।''
''इसका क्या मतलब हुआ ?
गुरुद्वारे आए हैं तो माथा टेककर ही जाएँगे।''
''तेरी मर्ज़ी, तूने आज काम पर भी जाना है। माथा तो कभी भी टेका जा सकता है, वाहेगुरू ने कहीं नहीं जाना।''
जगमोहन के कहने पर मनदीप सोचने
लग पड़ती है और फिर घड़ी की ओर देखते हुए असमंजस में पड़ जाती है। कहती है-
''आज संग्राद है, माथा टेकना भी ज़रूरी है।''
''तभी तो... ठीक है, हम लाइन में जा खड़े होते हैं, तू आज काम पर से छुट्टी
ले ले।''
जगमोहन कहता है और मनदीप उसकी
ओर बेचारगी से देखने लगती है। जगमोहन फिर कहता है-
''असल में, इस भीड़ के लोग हमसे ज्यादा ज़रूरतमंद हैं, किसी ने ड्राइविंग
लायसेंस के लिए अरदास करनी है, किसी ने यहाँ स्थायी होने के लिए
टेम्प्रेरी-सी बहू की मांग करनी है, किसी ने अपनी बुआ को इंडिया
से इधर बुलाने के लिए माथा टेकना है।''
''तुम मज़ाक करने बंद करके कार
में ही बैठो। मैं किसी न किसी तरीके से माथा टेककर आई।''
''मैं कार कहाँ रोकूँ ?
गुरुद्वारे की कार पॉर्किंग भरी पड़ी है। बाहर ट्रैफिक वार्डन ऐसे घूमते
हैं जैसे ततैयों का झुंड फैला हो, कार कहाँ रोकूँ ?''
''जब तुमने कार में ही बैठे रहना
है तो फिर क्या ?'' कहती हुई वह अपनी चुन्नी संवारती कार में
से उतर जाती है। नवकिरन उसके साथ चले जाता है और नवजीवन पिता के पास बैठा रहता है।
वह कहता है-
''डैड, आप
भी पगड़ी पहना करो।''
''क्यों ?''
''इससे लोगों को पता चलता है कि
मेरा डैडी भी सिंह है।''
''तू स्कूल से बहुत कुछ लर्न करने
लग पड़ा है !''
''मुझे सारे रिलीजनों के बारे
में पता है। मेरा फ्रेंड इमरान फास्ट रखता है। डैड, मुस्लिम हैप्पी
ईद कहते हैं। हम क्या कहते हैं ?''
जगमोहन सोच में पड़ जाता है कि
क्या उत्तर दे। अपने नास्तिक होने के बारे में बता कर लड़के को किसी तरह उलझाना नहीं
चाहता। वह कहने लगता है-
''तू तो यार बड़ा तेज़ हुआ फिरता
है।''
''नहीं, बताओं भी न डैड।''
''तू हैप्पी बैसाखी कह लिया कर,
दीवाली हो तो हैप्पी दीवाली और लोहड़ी हो तो हैप्पी लोहड़ी।''
नवजीवन उसकी ओर ऐसे देख रहा है
मानो उसकी तसल्ली न हुई हो।
जगमोहन को पता है कि हमारे बच्चों
को पहचान की समस्या का सामना करना पड़ता है। ग्रेवाल बताया करता है कि स्कूलों,
कालेजों में लड़के-लड़कियाँ कैसे अपने मूल की पहचान को लेकर चिंतित रहते
हैं। मुसलमान इस बात से अच्छे हैं कि बचपन में ही बच्चे को पूरी कुरान याद करवा देते
हैं। उसके एक दोस्त ने बात सुनाई थी कि उसकी बेटी स्कूल से आकर उससे पूछने लगी थी कि
हम कौन हैं ? हिंदू, मुसलमान या ईसाई। उस
इलाके में सिक्ख कोई नहीं रहता था इसलिए बच्ची को पता नहीं था कि सिक्ख धर्म नाम की
भी कोई चीज़ है और उसका दोस्त कभी गुरुद्वारे नहीं जाता था। उसके दोस्त ने सबसे पहले
जो काम किया वह था- बच्चों को अपने धर्म की शिक्षा देने का काम। उसको भय था कि बच्चे
किसी अन्य धर्म की ओर ही न झुक जाएँ। जगमोहन भी सोचता है कि साउथाल एक बहुधर्मी शहर
है इसलिए बच्चे को अपने धर्म के बारे में पता होना चाहिए। शुरू शुरू में जगमोहन सोचा
करता था कि बच्चों को ईश्वर के न होने के बारे में समझाएगा, पर
अब वह सोचता है कि स्कूलों में ईश्वर के अस्तित्व को बार बार दोहराया जाता है इसलिए
उसकी बताई कोई बात बच्चों को दुविधा में डाल सकती है। ईश्वर है या नहीं, यह तो वे ज़िन्दगी के स्कूल में से ही सीखेंगे, पर मनदीप
की धर्म के प्रति श्रद्धा के कारण वे भी सिक्ख धर्म से पूरी तरह परिचित हो गए हैं।
अब उसको नवजीवन के प्रश्न अधिक ही टेढ़े लग रहे हैं। वह चाहता है कि वह और कोई सवाल
न करे। वह उसका ध्यान दूसरी तरफ़ क़रने की कोशिश करता है। वह गुरुद्वारे की कॉर पॉर्किंग
में कार को ले जाता है कि शायद कोई श्रद्धालू चला गया हो और उसको कार कहीं खड़ी करने
की जगह मिल जाए और नवजीवन को भी गुरुद्वारे के अंदर मनदीप और नवकिरन के साथ माथा टेकने
वाली लाइन में खड़ा कर आए। परंतु उसको कार के लिए जगह नहीं मिलती।
सामने वौकसल की आस्ट्रा कार डबल
पॉर्क की हुई दिखाई देती है। वह सोचता है कि यह तो भूपिंदर की कार है। उसको भूपिंदर
कार में बैठा दिखाई दे जाता है। भूपिंदर भी उसको देख लेता है। वह उतर कर उसके पास आ
जाता है। दोनों गरमज़ोशी से हाथ मिलाते हैं। जगमोहन पूछता है-
''कहाँ घूमता फिरता है ?''
''घरवाली को माथा टिकाने लाया
हूँ। मुझे लगता है, तू भी इसी चक्कर में है।''
उसकी बात पर जगमोहन हँसता है और
कहता है-
''मैं भी इसी बीमारी का शिकार
हूँ, पर तू इतने दिन कहाँ रहा ?''
''मुझे एक-दो फिल्में मिल गई थीं
और एक अपनी भी और बनाई है।''
''रिलीज़ हो गईं ?''
''दो हफ्ते हो गए। तू किधर रहता
है! इतनी एड की है।''
''मैंने ध्यान नहीं दिया। कैसे
? चलीं भी कि नहीं ?''
''चली नहीं, पंजाबी की फिल्म क्या चलेगी।''
''हिंदी में बनाकर देख ले।''
''नहीं, हिंदी की फिल्म का बजट बड़ा होता है। मैं घर की मोर्टगेज पहले ही बढ़ा चुका हूँ।
ये जो राणा कैमिस्ट शॉप है, इनको भी ज़मीन दिखा चुका हूँ।''
कहक़र भूपिंदर हँसने लगता है और
फिर कहता है-
''फिल्में तो जुआ हैं। असली बात
तो थियेटर ही है, अगर तेरे पास टाइम है तो आ जा फिर से रिहर्सल
शुरू करें।''
''देख लो, टाइम की कौन-सी बात है।''
''मैं पिछले सप्ताह ही मुंबई से
आया हूँ। अब दोस्तों को फोन करने हैं, देखते हैं, कौन कहाँ खड़ा है।''
''प्रीती का कुछ पता ?''
जगमोहन को अचानक ही प्रीती का
ख़याल आ जाता है। भूपिंदर बताने लगता है-
''उसका तो जैसे दिमाग हिल गया
हो। मुझे एक बार रोड पर मिली थी। बाल जैसे तेल से चुपड़ रखे हों। आँखें भी खाली। बस,
हैलो करके ही आगे बढ़ गई।''
''मैंने सिस्टर्ज इनहैंड्ज वालों
से कहा था कि उससे मिला करें। एक औरत उसके घर जाया भी करती थी। उसको भी एक दिन प्रीती
ने गालियाँ बकीं।''
''मेरा अंदाज़ा है कि असल में प्रीती
की प्रॉब्लम डोमीनेट करने की है। जितनी बार वह रिहर्सलों पर आई, मेरी बात सुनने की बजाय बताने की कोशिश करती रही। हसबैंड वाइफ़ में कई बार ये
प्रॉब्लम हो जाती है। अगर कोई डोमीनेट करना चाहे और कर न सके और रीज़न भी समझ न सके
तो डिप्रैसन का शिकार होना तो कुदरती है।''
जब तक भूपिंदर को अपनी पत्नी अंदर
से निकलती हुई दिखाई दे जाती है। वह फोन करने का वायदा करके चल पड़ता है। नवजीवन पूछता
है-
''कौन था यह मैन ?''
''मेरा फ्रेंड था।''
''ये गे है ?''
''नहीं।''
''फिर इसने मेकअप क्यों कर रखा
है ?''
जगमोहन हैरान होकर सोचने लगता
है कि उसने तो कुछ नोटिस नहीं किया और इसने कैसे देख लिया। नवजीवन फिर पूछता है-
''डैड, आपको
पता है, गे क्या होता है ?''
जगमोहन उसकी तरफ़ एकटक देख रहा
है। फिर सोचने लगता है कि यह बात उसको कैसे समझाए, पर जब लड़के
ने प्रश्न किया है तो बताना भी ज़रूरी है। कुछ देर रुककर वह कहता है-
''तुम्हें स्कूल में बताते हैं
न कि बेबी कैसे होता है ?''
''आय नो एवरीथिंग। जब मेल और फीमेल
मिलते हैं।''
''जो मेल और फीमेल मिला करते हैं,
उन्हें स्ट्रेट कहते हैं, पर कई वार मेल और मेल
भी आपस में मेल करते हैं, उनको गे कहते हैं।''
''पर डैड यह नेचुरल नहीं है।''
''हाँ, यह
कुदरत के कानून के खिलाफ़ है। तुझे तो सब पता है।''
''मुझे तो बहुत पहले से पता है।
मैं सोचता था कि आपको नहीं पता तो बता दूँ।''
(जारी…)
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