''साउथाल'' इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत
अटवाल का यह चौथा उपन्यास है। इससे
पूर्व उनके तीन उपन्यास - 'वन वे', 'रेत', और 'सवारी' चर्चित हो चुके हैं। ''साउथाल''
इंग्लैंड में एक शहर का नाम है जहाँ अधिकतर भारत से गए सिक्ख और
पंजाबी परिवार बसते हैं। यहाँ अवस्थित पंजाबी परिवारों के जीवन को बेहद बारीकी से
रेखांकित करता हरजीत अटवाल का यह उपन्यास इसलिए दिलचस्प और महत्वपूर्ण है क्योंकि
इसके माध्यम से हम उन भारतीय लोगों की पीड़ा से रू-ब-रू होते हैं जो काम-धंधे और
अधिक धन कमाने की मंशा से अपना वतन छोड़ कर विदेशों में जा बसते हैं और वर्षों वहाँ
रहने के बावजूद वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।
साउथाल
हरजीत
अटवाल
हिंदी
अनुवाद : सुभाष नीरव
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प्रदुमण
सिंह को पिछले कुछ समय से अपने बच्चों की चिंता सताने लगी है। वह सोचता है कि इनका
विवाह भी करना है। आजकल अच्छे लड़के, लड़कियाँ मिलते नहीं हैं। इनमें से कोई इंडिया
में विवाह नहीं करवाने वाला। उसका ध्यान पाला सिंह के लड़कों की तरफ़ चला जाता है
जिन्होंने अपनी अपनी मर्ज़ी से विवाह करवा लिए हैं। उसको फिक्र होने लगती है कि
उसके साथ भी कहीं ऐसा ही न हो। उसको बलराम की भी बहुत चिंता है। राजविंदर तो हाथ
से निकल ही चुका है। राजविंदर के बारे में सोचते हुए उसको लगता है कि यदि वह
समलिंगी है तो संभवतः वह ग़लत कंपनी में पड़कर ही इस आदत का शिकार हो गया होगा। वरना
कुदरत ने उसके साथ कोई फ़र्क़ नहीं किया हुआ। यदि उसका विवाह हो जाए तो ठीक भी हो
सकता है।
एक दिन शाम को वह राजविंदर को अपने करीब
बिठा लेता है और कहता है-
“देख राजविंदर, हमारी बात मान, तू विवाह
करवा ले, सब ठीक हो जाएगा।“
“डैड, क्या ठीक हो जाएगा ?“
“तेरी लाइफ़ नॉर्मल हो जाएगी, मैं भी तेरी
पूरी हैल्प करूँगा।“
“डैड, मेरी लाइफ़ तो अब भी नॉर्मल ही है, तुम
ही मेरी कोई हैल्प नहीं करते।“
“तू विवाह करवा, अगर कहे तो हम हैल्प
करेंगे, तुझे अलग घर लेकर देंगे, कार लेकर देंगे, फैक्टरी में भी जॉब कर लेना, बस,
तू एक बार विवाह करवा ले।“
“डैड, जहाँ मैं कहूँगा, वहाँ विवाह कर दोगे
?“
“हाँ, बिलकुल। हमें रंग, जाति का अब कोई
परहेज नहीं। जहाँ कहे, तेरा विवाह कर देंगे।“
“तुम पीटर को जानते हो, जो मेरे साथ आया
करता था कभी ?“
“हाँ।“
“डैड, बस तुम मेरा उसके साथ विवाह करवा दो।“
राजविंदर प्रदुमण सिंह के सामने बैठा कह रहा
है। प्रदुमण सिंह ठांय करता एक थप्पड़ उसके मुँह पर दे मारता है और कहता है-
“तेरे हरामी गे की ऐसी की तैसी, निकल घर से
बाहर, साला गंदा अंडा।“
“यू डर्टी ओल्ड मैन!... यू ओल्ड बास्टर्ड,
आय विल किल यू वन डे, आय विल किल यू।“
कहता हुआ राजविंदर उठ खड़ा होता है। प्रदुमण
सिंह भी खड़ा हो जाता है। उसके एक और मुक्का मारता है। शोर सुनकर ज्ञान कौर दौड़ी
आती है। बलराम और लड़कियाँ भी आ जाती हैं। राजविंदर बाप को गालियाँ बकते हुए घर से
निकल जाता है। जाते हुए को प्रदुमण सिंह कहता है-
“ख़बरदार ! अगर दुबारा इस घर में घुसा तो।“
क्रोध में उसके होंठ काँप रहे हैं। आवाज़ फट
रही है। बलराम उसके करीब आकर खड़ा हो जाता है। उसके कंधे पर हाथ रखता है और कहता
है-
“डैड, क्यों उस पर अपना टाइम वेस्ट कर रहे
हो ?“
जवाब में प्रदुमण सिंह से बोला नहीं जा रहा।
ज्ञान कौर कहने लगती है-
“बेटा, तेरे डैडी सोचते हैं कि अब तू भी
विवाह योग्य हो गया है। डिग्री तूने कर ली है। हमें तेरा भी कुछ करना है। जब बड़ा
अनब्याहा बैठा हो तो छोटे के विवाह के लिए लोग क्या कहेंगे।“
“तुम लोगों की वरी क्यों करते हो। जो
तुम्हारा दिल करता है, करो।“
“तेरा विवाह कर दें फिर ?“
ज्ञान कौर खुश होकर पूछती है। बलराम कंधे
उचकाता अपने कमरे की तरफ़ चला जाता है। बलराम की ओर देखकर प्रदुमण सिंह का मूड ठीक
होने लगता है। वह मन में कहता है कि ऐसा है तो ऐसा ही सही।
सोते समय ज्ञान कौर पूछती है-
“कोई लड़की निगाह में है बलराम के लिए ?“
“लड़की तो थी एक पाला सिंह की, पर कारे का कल
फोन आया था, कहता था कि उस लड़की की हवा ठीक नहीं।“
“कारे को सभी अपने जैसे ही दिखते हैं।“
“नहीं, जतिंदर जो पढ़ता है उसी यूनिवर्सिटी
में।“
“वैसे लड़की बुरी नहीं थी वह, देखी हुई है।
“नहीं, कारा कहता है कि उसकी दोस्ती किसी
मुसलमान लड़के के साथ है, जिसकी ख़ातिर यूनिवर्सिटी में लड़ाइयाँ भी हुईं।“
“कोई दूसरी देख लो। हमारा सोने जैसा लड़का
है, इसे कहीं रिश्तों का घाटा है ?“
बलराम के साथ वह कभी-कभी शुगल कर लिया करता
है। कहने लगता है-
“क्यों भई, कोई गर्लफ्रेंड है कि नहीं तेरे
पास, अगर नहीं मिलती तो हैल्प करूँ।“
“नहीं डैड, मुझे गर्लफ्रेंड पसंद नहीं।“
“तुझे गर्लफ्रेंड क्यों पसंद नहीं, भई ?...
गर्लफ्रेंड तो हमारे जैसे को मिल जाए तो पीछे न हटें, तू तो यंगमैन है। कहीं
तू...।“
“यह बात नहीं डैड, आय एम स्ट्रेट... ये
गर्लफ्रेंड तो पिछाड़ी का दर्द होती हैं।“
अब उसका विवाह के लिए राजी हो जाना उसको
बहुत अच्छा लगता है। वह भविष्य की योजनाएँ बनाने लगता है कि बलराम का विवाह कैसा
करेगा। वह देर तक सोचता रहता है। ज्ञान कौर को भी अभी नींद नहीं आ रही। वह अचानक
कहती है-
“वो पगला पता नहीं कहाँ सोया होगा।“
“वो तो मज़े से सोया पड़ा होगा। और फिर कहाँ
पहली बार बाहर सो रहा है। लौट आएगा कल को। हम ही नींद ख़राब किए बैठे हैं। तू भी
सोने की कोशिश कर, सवेरे जल्दी उठना है।“
सुबह से ही प्रदुमण सिंह बलराम के लिए लड़की
की पूछताछ शुरू कर देता है। वह चाहता है कि एक बार सभी परिचितों में बात फैल जाए
कि प्रदुमण सिंह लड़के को ब्याहना चाहता है तो खुद कोई न कोई सम्पर्क कर लेगा। आजकल
बच्चों के लिए रिश्ते तलाशने बड़े कठिन हुए पड़े हैं। इस बारे में वह कारे को फोन
करता है। ब्राडवे की तरफ़ निकलकर खैहरे के पास जा पहुँचता है। अपने बेटे का रिश्ता
वह किसी बड़े घर का ही करना चाहता है। ज्ञान कौर भी काम पर सभी औरतों को अपने लड़के
के लिए रिश्ता ढूँढ़ने को कह देती है। एक ही शर्त है कि लोग उनकी टक्कर के हों और
लड़की लड़के के पसंद की हो। डिग्री होने के बाद बलराम नौकरी की तलाश करने लगता है,
पर अधिक समय फैक्टरी में गुज़ारता है। वह फैक्टरी के काम को संभालने लगता है।
प्रदुमण सिंह को फ़ुरसत-सी हो जाती है। वह बलराम को कहता है-
“तू छोड़ नौकरी को, फैक्टरी संभाल। मैं
डिलीवरी का काम करता रहूँगा।“
“नहीं डैड, यू रिलैक्स, घर में बैठा करो। मम
से भी कहो रैस्ट करे।“
प्रदुमण सिंह के भीतर के पिता का मन गर्व से
भर उठता है। प्रदुमण सिंह अब सेल्ज़मैनशिप करने चला जाता है। वह समोसों की बिक्री
के लिए नई जगहों की तलाश में निकल जाता है। दो-एक बार फरीदा का फोन आता है, पर वह
जवाब नहीं देता। अब उसको कुलबीरो का भी अपने प्रति रवैया बदला-बदला प्रतीत होता
है। उसको लगता है कि दोस्ती के लिए तैयार हो जाएगी, पर वह आगे नहीं बढ़ता। बलराम हर
वक़्त फैक्टरी में होता है। वह ऐसा कोई काम नहीं करना चाहता जो बेटे की दृष्टि में
बुरा हो। वह मीका और निम्मा के साथ भी संक्षिप्त-सी बातें ही किया करता है।
हँसी-मजाक उसने बंद कर दिया है।
अब सतिंदर और पवन भी फैक्टरी आने लग पड़ी
हैं। उनके आने से वह और अधिक गंभीर रहने लगता है। वह सोचने लगता है कि अगले वर्ष
सतिंदर की डिग्री भी पूरी हो जाएगी और डिग्री पूरी होते ही उसका विवाह भी कर देगा।
उसको सतिंदर के बड़बोलेपन की चिंता सताती है कि कोई लड़का यूँ ही बातों बातों में
पीछे न लग जाए और लड़की हाथों से जाती रहे। वह तो यह बात बर्दाश्त भी नहीं कर
पाएगा। छोटी पवन की उसको अधिक चिंता नहीं है। वह अपने आप में चुप-सी रहने वाली
लड़की है।
कई महीनों की तलाश के बाद उनको ब्रैडफोर्ड
की एक लड़की पसंद आती है। इस बीच उन्होंने करीब एक दर्ज़न लड़कियाँ देख डाली हैं।
किसी में कोई कमी है तो किसी में कुछ। यदि कोई लड़की पसंद आती है तो उसका घर गरीब
निकलता है। प्रदुमण सिंह अपने आप को मिलिनियरों में गिन रहा है। उसका घर, उसकी
फैक्टरी और दो अन्य प्रॉपटीज़ उसने खरीद ली हैं। सब मिलाकर मिलियन पाउंड से कहीं
अधिक की सम्पत्ति होगी। अब उसको मिलिनियर रिश्तेदार ही चाहिएँ। यदि यह सब पसंद आ
जाता है तो लड़की लड़के को नापसंद कर देती।
पूरेवाल के ब्रैडफोर्ड में दो रेस्टोरेंट
हैं। लड़की भी बलराम को पसंद आ जाती है। रिश्ता हो जाता है। विवाह भी हो जाता है।
प्रदुमण सिंह दो कोच भरकर बारात लेकर जाता है। कारों का काफ़िला अलग। उधर पूरेवाल
भी पूरी सेवा-ख़ातिर करता है। बारात खुश हो जाती है। प्रदुमण सिंह भी बेहद खुश हुआ
पड़ा है।
लड़का-लड़की ग्रीस के टापू पर हनीमून पर जाते
हैं। वहाँ से हर रोज़ फोन करते हैं। सभी प्रसन्न हैं। सप्ताह बाद लड़का-लड़की लौटते
हैं। लड़की अपना सामान समेटने लगती है। ज्ञान कौर पूछती है-
“क्या हो गया पुत्तर तुझे ?“
“मैं इस आदमी के साथ नहीं रह सकती।“
(जारी…)
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