''साउथाल'' इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत अटवाल का यह चौथा उपन्यास है। इससे पूर्व उनके तीन उपन्यास - 'वन वे', 'रेत', और 'सवारी' चर्चित हो चुके हैं। ''साउथाल'' इंग्लैंड में एक शहर का नाम है जहाँ अधिकतर भारत से गए सिक्ख और पंजाबी परिवार बसते हैं। यहाँ अवस्थित पंजाबी परिवारों के जीवन को बेहद बारीकी से रेखांकित करता हरजीत अटवाल का यह उपन्यास इसलिए दिलचस्प और महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से हम उन भारतीय लोगों की पीड़ा से रू-ब-रू होते हैं जो काम-धंधे और अधिक धन कमाने की मंशा से अपना वतन छोड़ कर विदेशों में जा बसते हैं और वर्षों वहाँ रहने के बावजूद वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।
साउथाल
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
॥ दो॥
वह ट्रेनर कसता हुआ बाहर निकलता है। जेब पर हाथ मारता है। सिगरेट की डिब्बी और लाइटर वह भूला नहीं। कुछेक पाउंड भी दूसरी जेब में हैं। आठ बजे हैं पर अभी सूरज काफी ऊपर है। घर से निकलते ही वह दौड़ने लगता है। हेज़ की ओर जाता नहर का पुल पार करता वह हेज़ वुड्ज़ में आ घुसता है। यह छोटा-सा जंगल सैर करने वालों के लिए ही सुरक्षित रखा हुआ है। यह थोड़ा सघन है जिससे जोगिंग करने वालों को यह बहुत उपयुक्त नहीं बैठता। वह हाथों से टहनियों को इधर-उधर करता हुआ भाग रहा है। इस समय अधिक लोग इधर नहीं हैं, नहीं तो संकरी-सी पगडंडी में चलते हुए लोगों को पार करना कठिन हो जाता है। इन झाड़ियों जिन्हें स्थानीय लोग वुड्ज़ कहते हैं, में से होकर जोगिंग करना उसे इसलिए भी अच्छा लगता है कि आगे जाकर नहर के किनारे पब है जिसकी ‘लागर’ उसे बहुत पसन्द है।
एक तरफ एक दरख्त की जड़ों में कोई लाल-सी चीज़ पड़ी है। दृष्टि पड़ते ही वह एकदम रुक जाता है। क्या है यह ? शायद किसी का टोप, कमीज़ या स्वैटर। इतने तेज रंग तो स्त्रियाँ ही पहनती हैं। सुखी भी लाल रंग का टोप ही पहनती थी। वह एकाएक दौड़ पड़ता है। इतना तेज़ की हाँफने लगता है। मिनटों में ही पब के पास जा पहुँचता है। फिर रुक कर, आगे की ओर झुककर हाथ अपनी जांघों पर रखता है। साँस के साथ साँस मिलने लगता है। वह फिर से सीधा होकर जेब में से डिब्बी निकाल एक सिगरेट सुलगा लेता है। कुछ देर वह लाइटर जला कर उसकी लौ को निहारता रहता है। वह सिगरेट पूरी नहीं पी सकता। अधबीच में ही नीचे फेंक पैर से मसल कर पब में जा घुसता है। लागर का गिलास भरवा कर बाहर एक किनारे लगे बेंच पर आ बैठता है।
उसे स्वयं पर बहुत गुस्सा आता है। लाल रंग का कपड़ा देखकर ही घबरा उठा। बड़ी-बड़ी चीज़ें हज़म कर जाने वाला वह सुखी को नहीं भुला सका था। मनदीप ठीक कहती है कि सुखी के साथ उसका वास्ता ही क्या था। इतना ही कि कुछेक बार उसको उसने स्वीमिंग पूल पर देखा हुआ था। कभी एक शब्द तक साझा नहीं किया था। चुप का रिश्ता ज़रूर था पर ऐसा नहीं कि इतनी देर तक पीछा करे। रिश्ता भी हो तो कोई इस तरह पागल जैसा तो नहीं हो जाता। वह लागर खत्म करके गिलास मेज पर रख चल देता है। वह नहर के ऊपर बना लोहे का पुल पार करते हुए दूसरी ओर नहर की पटरी पर चलने लगता है। नहर के इस ओर साफ़ रास्ता है। चलने वाले या जोगिंग करने वालों के काम तो आता ही है, इसका प्रयोग साइकिल वाले भी किया करते हैं। नहर का पानी बहुत गंदा है। इसकी सफाई का काम बहुत महंगा पड़ेगा इसलिए सरकार सफाई नहीं करवा रही। पिछले दिनों स्थानीय काउंसलरों ने इस नहर को लीज़ पर बेच देने की बात चलाई थी। जगमोहन सोचता है कि क्यों न कुछ मील नहर ही खरीद लूँ। फिर स्वयं ही हँसता है। सामने से आ रही हाउसबोट उसके लिए छोटा-सा हॉर्न बजाती है। वह चालक को हाथ हिलाकर जवाब देता है। बायीं ओर कैनाल इंडस्ट्रीयल एस्टेट की ऊँची बाड़ है। साथ ही कुछ फ्लैट पड़ते हैं और फिर स्पाईकस पॉर्क शुरू हो जाता है। बाड़ तो स्पाईकस पॉर्क और नहर के मध्य भी है पर गुजरने के लिए कुछ रास्ते छोड़े हुए हैं या लोगों ने बना लिए हैं।
जगमोहन पॉर्क में से निकल जाता है। वह अभी भी अपने आप को कोस रहा है कि वह सुखी के इस भूत से छुटकारा क्यों नहीं पा सकता। पॉर्क के चारों ओर भी चलने या जोगिंग के लिए पगडंडी बनी है। वह धीरे-धीरे दौड़ने लगता है। बियर अब तक हज़म हो चुकी है। पॉर्क बहुत बड़ा है। पाँच फुटबाल के मैदान हैं। ऊँची जाली लगाकर तीन ग्राउंड टेनिस के बना रखे हैं। बच्चों के झूले, फूलों का बगीचा और एक मील दौड़ने का ट्रैक भी। अन्दर प्रवेश करते ही बेंच लगे हैं जहाँ बैठकर लोग बातें करते हैं, आराम करते हुए धूप सेंकते हैं। पर इस वक्त कोई नहीं है। नौ बजने वाले हैं। उसे पाला सिंह का ख़याल हो आता है जो अक्सर यहाँ ही होता है और एक बेंच के सामने खड़े होकर लेक्चर देने की तरह बातें करता है। कई लोग ध्यान से सुनते हैं। बातें करते समय वह मूंछों को मरोड़ता रहता है। मूंछों को संवार कर रखना उसकी पुरानी आदत है। शुरू-शुरू में जगमोहन क्लीन शेव्ड हुआ करता था। अंकल पाला सिंह ने कह कर मूंछें रखवाई थीं। जगमोहन ने दाढ़ी बढ़ा ली थी और मूंछें भी, पर मरोड़ा देने लायक नहीं। उसे मूंछों के संग खेलते रहना अच्छा भी नहीं लगता।
(जारी…)
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साउथाल
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
॥ दो॥
वह ट्रेनर कसता हुआ बाहर निकलता है। जेब पर हाथ मारता है। सिगरेट की डिब्बी और लाइटर वह भूला नहीं। कुछेक पाउंड भी दूसरी जेब में हैं। आठ बजे हैं पर अभी सूरज काफी ऊपर है। घर से निकलते ही वह दौड़ने लगता है। हेज़ की ओर जाता नहर का पुल पार करता वह हेज़ वुड्ज़ में आ घुसता है। यह छोटा-सा जंगल सैर करने वालों के लिए ही सुरक्षित रखा हुआ है। यह थोड़ा सघन है जिससे जोगिंग करने वालों को यह बहुत उपयुक्त नहीं बैठता। वह हाथों से टहनियों को इधर-उधर करता हुआ भाग रहा है। इस समय अधिक लोग इधर नहीं हैं, नहीं तो संकरी-सी पगडंडी में चलते हुए लोगों को पार करना कठिन हो जाता है। इन झाड़ियों जिन्हें स्थानीय लोग वुड्ज़ कहते हैं, में से होकर जोगिंग करना उसे इसलिए भी अच्छा लगता है कि आगे जाकर नहर के किनारे पब है जिसकी ‘लागर’ उसे बहुत पसन्द है।
एक तरफ एक दरख्त की जड़ों में कोई लाल-सी चीज़ पड़ी है। दृष्टि पड़ते ही वह एकदम रुक जाता है। क्या है यह ? शायद किसी का टोप, कमीज़ या स्वैटर। इतने तेज रंग तो स्त्रियाँ ही पहनती हैं। सुखी भी लाल रंग का टोप ही पहनती थी। वह एकाएक दौड़ पड़ता है। इतना तेज़ की हाँफने लगता है। मिनटों में ही पब के पास जा पहुँचता है। फिर रुक कर, आगे की ओर झुककर हाथ अपनी जांघों पर रखता है। साँस के साथ साँस मिलने लगता है। वह फिर से सीधा होकर जेब में से डिब्बी निकाल एक सिगरेट सुलगा लेता है। कुछ देर वह लाइटर जला कर उसकी लौ को निहारता रहता है। वह सिगरेट पूरी नहीं पी सकता। अधबीच में ही नीचे फेंक पैर से मसल कर पब में जा घुसता है। लागर का गिलास भरवा कर बाहर एक किनारे लगे बेंच पर आ बैठता है।
उसे स्वयं पर बहुत गुस्सा आता है। लाल रंग का कपड़ा देखकर ही घबरा उठा। बड़ी-बड़ी चीज़ें हज़म कर जाने वाला वह सुखी को नहीं भुला सका था। मनदीप ठीक कहती है कि सुखी के साथ उसका वास्ता ही क्या था। इतना ही कि कुछेक बार उसको उसने स्वीमिंग पूल पर देखा हुआ था। कभी एक शब्द तक साझा नहीं किया था। चुप का रिश्ता ज़रूर था पर ऐसा नहीं कि इतनी देर तक पीछा करे। रिश्ता भी हो तो कोई इस तरह पागल जैसा तो नहीं हो जाता। वह लागर खत्म करके गिलास मेज पर रख चल देता है। वह नहर के ऊपर बना लोहे का पुल पार करते हुए दूसरी ओर नहर की पटरी पर चलने लगता है। नहर के इस ओर साफ़ रास्ता है। चलने वाले या जोगिंग करने वालों के काम तो आता ही है, इसका प्रयोग साइकिल वाले भी किया करते हैं। नहर का पानी बहुत गंदा है। इसकी सफाई का काम बहुत महंगा पड़ेगा इसलिए सरकार सफाई नहीं करवा रही। पिछले दिनों स्थानीय काउंसलरों ने इस नहर को लीज़ पर बेच देने की बात चलाई थी। जगमोहन सोचता है कि क्यों न कुछ मील नहर ही खरीद लूँ। फिर स्वयं ही हँसता है। सामने से आ रही हाउसबोट उसके लिए छोटा-सा हॉर्न बजाती है। वह चालक को हाथ हिलाकर जवाब देता है। बायीं ओर कैनाल इंडस्ट्रीयल एस्टेट की ऊँची बाड़ है। साथ ही कुछ फ्लैट पड़ते हैं और फिर स्पाईकस पॉर्क शुरू हो जाता है। बाड़ तो स्पाईकस पॉर्क और नहर के मध्य भी है पर गुजरने के लिए कुछ रास्ते छोड़े हुए हैं या लोगों ने बना लिए हैं।
जगमोहन पॉर्क में से निकल जाता है। वह अभी भी अपने आप को कोस रहा है कि वह सुखी के इस भूत से छुटकारा क्यों नहीं पा सकता। पॉर्क के चारों ओर भी चलने या जोगिंग के लिए पगडंडी बनी है। वह धीरे-धीरे दौड़ने लगता है। बियर अब तक हज़म हो चुकी है। पॉर्क बहुत बड़ा है। पाँच फुटबाल के मैदान हैं। ऊँची जाली लगाकर तीन ग्राउंड टेनिस के बना रखे हैं। बच्चों के झूले, फूलों का बगीचा और एक मील दौड़ने का ट्रैक भी। अन्दर प्रवेश करते ही बेंच लगे हैं जहाँ बैठकर लोग बातें करते हैं, आराम करते हुए धूप सेंकते हैं। पर इस वक्त कोई नहीं है। नौ बजने वाले हैं। उसे पाला सिंह का ख़याल हो आता है जो अक्सर यहाँ ही होता है और एक बेंच के सामने खड़े होकर लेक्चर देने की तरह बातें करता है। कई लोग ध्यान से सुनते हैं। बातें करते समय वह मूंछों को मरोड़ता रहता है। मूंछों को संवार कर रखना उसकी पुरानी आदत है। शुरू-शुरू में जगमोहन क्लीन शेव्ड हुआ करता था। अंकल पाला सिंह ने कह कर मूंछें रखवाई थीं। जगमोहन ने दाढ़ी बढ़ा ली थी और मूंछें भी, पर मरोड़ा देने लायक नहीं। उसे मूंछों के संग खेलते रहना अच्छा भी नहीं लगता।
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2 comments:
Rochak lag raha hai Southall.
Brahm Dev
New Delhi.
badhiya shuruaat hui hai, padh raha hu....
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