समकालीन पंजाबी साहित्य की उत्कृष्ट कृतियों की तलाश

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Sunday, August 1, 2010

पंजाबी उपन्यास



''साउथाल'' इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत अटवाल का यह चौथा उपन्यास है। इससे पूर्व उनके तीन उपन्यास - 'वन वे', 'रेत', और 'सवारी' चर्चित हो चुके हैं। ''साउथाल'' इंग्लैंड में एक शहर का नाम है जहाँ अधिकतर भारत से गए सिक्ख और पंजाबी परिवार बसते हैं। यहाँ अवस्थित पंजाबी परिवारों के जीवन को बेहद बारीकी से रेखांकित करता हरजीत अटवाल का यह उपन्यास इसलिए दिलचस्प और महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से हम उन भारतीय लोगों की पीड़ा से रू-ब-रू होते हैं जो काम-धंधे और अधिक धन कमाने की मंशा से अपना वतन छोड़ कर विदेशों में जा बसते हैं और वर्षों वहाँ रहने के बावजूद वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।

साउथाल
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

॥ नौ॥
जब से साधू सिंह को उम्र कैद हुई है, जगमोहन को सुखी का ख़याल आना बहुत कम हो गया है। फिर राजा राज भोज की जगह भी कुछ और ही खुल गया है, पर वह स्विमिंग के लिए फिर से उस तरफ़ नहीं जा सकता। वह जानता है कि उसे अपने लड़कों को तैरने की ट्रैनिंग अवश्य देनी चाहिए, लेकिन उधर जाने का उसका साहस नहीं हो रहा। मनदीप सब समझती है। वह कहती है-
''तुम हेज़ चले जाया करो। वह भी सुन्दर स्विमिंग पूल है। मेरी फ्रैंड के बच्चे वहीं जाते हैं।''
वह कुछ नहीं कहता। उसका मन अभी नहीं बन रहा। उसे यही खुशी है कि सुखी का भूत उसके ऊपर से उतरने लगा है। कुछ ठीक होते ही वह भूपिंदर से भी मिलता है। किसी समय वह भूपिंदर के ड्रामों की रिहर्सलों में हिस्सा लिया करता था। पुन: इस शौक को अपनाना चाहता है। भूपिंदर दो ड्रामे पहले स्टेज कर चुका है। एक फिल्म भी बनाई है पर कामयाबी नहीं मिल रही। भूपिंदर का बड़ा भाई चंडीगढ़ का जाना-पहचाना रंगकर्मी है, पर भूपिंदर उस जितना कद नहीं बना सका। नाटक जगमोहन का ऐसा शौक है कि इसके बग़ैर वह रह सकता है। भूपिंदर अपनी एक्टिंग को लेकर काफ़ी गंभीर है। वह भूपिंदर से फिर मिलता है। भूपिंदर उससे कहता है-
''यार जग्गे, कोई कहानी तलाश कर। कोई टची-सी कहानी। एकदम क्लिक करने वाली।''
वैसे तो भूपिंदर की पूरी टीम है। बीच-बीच में मेंबर शामिल होते, टूटते रहते हैं। रमेश और नाहर अभी हाल ही में जुड़े हैं। जगमोहन के लौट आने पर भूपिंदर काफ़ी उत्साहित है। वह जगमोहन को एक स्क्रिप्ट देते हुए कहता है-
''इसे पढ़ कर देख। इंडिया से आई है। रशियन राइटर की लिखी हुई है। रामायण है। सिर्फ़ दो करेक्टर चाहिएँ - एक राम, एक सीता। वही करेक्टर सीता और लक्ष्मण, राम और सरूपनखा तथा रावण और सीता का रोल निभाएँगे। बिलकुल नई किस्म की, बिलकुल फ्रैश !''
''यह तो ठीक है पर यह फ्रैशनैस साउथाल के लोगों को हज़म भी हो पाएगी।''
''हज़म तो नहीं होगी पर पहले भी हमारी कोई बात इन्हें पसंद आई है कभी। यह तो रिस्क है।''
भूपिंदर इस स्क्रिप्ट पर काम करने के लिए तैयार है। भूपिंदर का भाई कह रहा है कि वह कुछ हट कर करे। जगमोहन कुछ नहीं कह रहा। वह स्क्रिप्ट को गोल करके हाथ में पकड़े रखता है। फिर कुछ देर बाद कहता है-
''उस कामेडी वाले प्रोजेक्ट का क्या हुआ ?''
''पाकिस्तानी स्टेज शो वाले पैर नहीं लगने देते। वैसे एक स्क्रिप्ट है, पंजाबी फैमिलियों में शराब की प्रोबल्मस को लेकर। उसमें भी कामेडी डाली जा सकती है।'' भूपिंदर बताता है।
जगमोहन कुछ देर के लिए उसे मिलकर चलने लगता है। उसे भूपिंदर पर ज्यादा यकीन नहीं हो पा रहा। वह चाहता है कि यदि कुछ करना ही है तो कुछ ऐसा हो कि लोगों को पसंद आए। वह कहता है-
''भूपिंदर, जब कुछ रेडी हुआ और मेरे करने लायक हुआ तो मुझे बुला लेना।''
''ऐसे नहीं भाई। टीम का हिस्सा बनकर रह। काम है या नहीं, कुछ करना है या नहीं, पर साथ तो रह। लगातार मीटिंगें होती रहें, कुछ डिस्कस करते रहें, कुछ न कुछ निकलेगा ही बातों में से। थोड़ा सीरियस हो।''
भूपिंदर चाहता है कि उसकी टीम के सारे मैंबर भरोसे योग्य हों और जगमोहन पर उसे अधिक भरोसा नहीं है।
अगली बार जगमोहन भूपिंदर के घर जाता है तो प्रीती से मुलाकात होती है। वह पहले दिन भूपिंदर के घर आई है। ये सारी रिहर्सलें भूपिंदर अपने घर पर ही किया करता है। घर का खर्च चलाने के लिए भूपिंदर के पास लौंडरी है जिसे उसकी पत्नी चलाती है। पत्नी रणबीर कौर को उसके ड्रामों में कोई दिलचस्पी नहीं अपितु नफ़रत-सी है। वह भूपिंदर को घर का कोई पैसा इस्तेमाल नहीं करने देती। वह घर के फ्रंटरूम में रिहर्सलें ज़रूर कर लेता है, पर किसी अन्य वस्तु को हाथ नहीं लगाने देती। एक फिल्म वह घर पर कर्ज़ा लेकर बना चुका है लेकिन अब रणबीर उसकी कोई बात नहीं सुनती। इसलिए भी भूपिंदर का हाथ हर वक्त पैसे को लेकर तंग रहता है। कई बार नये चेहरों की खोज की ऐड देकर नई फिल्म के लिए पैसे इकट्ठे करने के मन्सूबे भी घड़ने लगता है। वह किसी ऐसी पार्टी की तलाश में है जिसे एक्टिंग का शौक हो और वह रुपया-पैसा खर्च करने में समर्थ भी हो ताकि कोई फिल्म ही बना ले। लेकिन सफलता नहीं मिलती।
जगमोहन पूछता है- ''कोई स्क्रिप्ट फाइनल की ?''
''वो रामायण वाली तो फिर मैंने कैंसिल कर दी। इंडिया फोन किया था, भाजी कहता था कि इस सब्जैक्ट पर काम हो चुका है।''
''फिर ?''
''वो जो कहानी शराब वाली थी, उसमें कुछ कामेडी डाली है, देख ले। अगर टिककर काम करना है तो पिवटल रोल कर ले। एक कहानी इंडिया से आई बेबे के विषय में भी है, उसके लिए कोई करेक्टर मिल जाए तो देख लेंगे।'' कहते हुए वह प्रीती की ओर देखता है। ऊँची-लम्बी प्रीती बेबे तो बिलकुल नहीं दीख रही। वह प्रीती का जगमोहन से परिचय करवाते हुए प्रीती से पूछता है, ''तुम्हारा सी.वी. है ?''
''नहीं, सी.वी. तो मैंने तैयार नहीं किया, पर बहुत सारे ड्रामों में हिस्सा लिया है इंडिया में।''
''यहाँ आकर कुछ किया ?''
''नहीं, यहाँ आकर कुछ नहीं किया। घर और बच्चों से ही फुर्सत नहीं मिली। यह तो किसी सहेली ने आपकी फिल्म देखी थी तो मुझे पता चला।''
''ठीक है, कल अपनी टीम पूरी होनी है। कल एक ड्रामे की रिहर्सल तो हमने शुरू करनी ही है, मैं चाहता हूँ कि तीनेक महीने में ड्रामा तैयार कर लें। गर्मियों में थोड़े शो करें। शराबी वाले प्ले का स्क्रिप्ट तैयार है, रोल भी कल बांट लेते हैं और बाकी सबकुछ भी।''
अगले दिन जगमोहन नहीं जा पाता और फिर वह भूपिंदर के फोन की प्रतीक्षा करने लगता है कि यदि भूपिंदर इस काम को लेकर गंभीर हुआ तो दुबारा फोन कर लेगा, पर उसका कोई फोन नहीं आता। जगमोहन सोचने लगता है कि शायद वह नाराज हो इस बात पर कि वह उसका साथ नहीं दे रहा। दो दिन और गुजर जाते हैं। वह सोचता है, अब भूपिंदर ने रोल बांट लिए होंगे। उसके लिए कुछ नहीं बचा होगा। उसे अपने आप पर गुस्सा भी आता है कि वह भूपिंदर के संग किए करार को निभा क्यों नहीं सका। एक दिन वह भूपिंदर के घर जाता है। उसे प्रीती घर के बाहर प्रतीक्षा करती मिलती है। जगमोहन 'हैलो' कहकर पूछता है, ''बाहर क्यों खड़े हो ?''
''घर में कोई है नहीं।''
जगमोहन स्वयं बेल बजाता है। कोई जवाब नहीं आता। कुछ देर बाद उसकी पत्नी शॉपिंग से लौटती दिखाई देती है। वे उससे भूपिंदर के बारे में पूछते हैं। वह कहती है-
''भूपिंदर तो इंडिया चला गया। किसी प्रोड्यूसर ने बुला लिया, किसी फिल्म में रोल मिल गया है। बस, एकदम बॉलीवुड के लिए रवाना हो गया।''
यह बताते हुए रणबीर कौर घर का दरवाजा खोल कर अन्दर चली जाती है और अन्दर से दरवाजा बन्द कर लेती है। जगमोहन और प्रीती खड़े एक-दूसरे की ओर देखते रह जाते हैं। प्रीती कहती है-
''भाई साहब को कम से कम इन्फोर्म तो करना चाहिए था।''
''वह भी क्या करे। बात नहीं बन पा रही कोई। बहुत हाथ-पैर मार रहा है।''
''आप इसके संग कब से जुड़े हुए हो ?''
''मैं तो कैजुअल सा ही हूँ। कभी टिक नहीं सका। बस, एक उबाल-सा है। मुझे लगता है कि भूपिंदर भी बस शौक पूरे कर रहा है। इसे भी पता है कि कोई फ्यूचर नहीं है इसमें।''
''क्यों नहीं फ्यूचर ! सूरज आर्ट्स वालों को देखो, कहाँ से कहाँ पहुँच गए।''
''सूरज आर्ट्स वालों के पल्ले में भी कुछ है। इधर हम भी खाली और भूपिंदर भी हमें देने योग्य नहीं है।''
''आप सूरज आर्ट्स वालों के पास नहीं गए ?''
''नहीं, मैंने बताया न कि मैं इतना सीरियस नहीं रहा... तुम गए थे ?''
''हाँ, मैंने उन्हें अप्रोच किया था। मैंने बताया कि कालेज के समय शकुन्तला का पार्ट कर चुकी हूँ। उन्होंने बुला भी लिया, पर गुरनाम ने मुझे जाने नहीं दिया। एक बार फिर फोन आया था उनका, पर गुरनाम ने इतना झगड़ा किया कि पूछो मत।''
''इसका मतलब कि तुम्हारे हसबैंड तुमसे एग्री नहीं करते।''
''वो बहुत खिलाफ है, पर मैं सोचती हूँ कि घर बैठी का मेरा टेलेंट व्यर्थ जा रहा है। मैं कन्या महाविद्यालय की ड्रामे की टॉप विद्यार्थिन हूँ, जिस पिच तक आवाज़ को मैं लेकर जा सकती हूँ, दूसरा कोई नहीं ले जा सकता। शकुन्तला का रोल मेरे जैसा अन्य कोई लड़की नहीं कर सकती। मैंने कालेज में बहुत सारे ड्रामे खेले हैं, पर यहाँ आकर...।'' कहते हुए प्रीती आँखें भर लेती है।
जगमोहन कहता है, ''आओ, तुम्हें घर छोड़ दूँ।''
''नहीं, मैं चली जाऊँगी।''
''कहाँ रहते हो ?''
''सुसैक्स रोड पर, पुराने साउथाल।''
''दूर पड़ जाएगा यहाँ से, आओ ज़रा नज़दीक सा उतार दूँगा।'' जगमोहन कहता है। प्रीती उसके संग कार में बैठ जाती है। वह जगमोहन से उसकी पत्नी के विषय में पूछती है।
''आपकी वाइफ़ आपकी एक्टिंग को लेकर कैसा सोचती है ?''
''मैं उसे इतना परेशान नहीं करता। वह काम पर जाती है और थकी हुई लौटती है। मेरे बारे में ज्यादा बॉदर नहीं करती। कितने बच्चे हैं तुम्हारे ?''
''तीन। बड़ी छह की, दूसरी चार की और लड़का अभी दो साल का है।''
''कौन लुक-आफ्टर करता है ?''
''कोई फ्रैंड है मेरी सैंपथाइज़र। उसके पास ही छोड़ कर आई हूँ।''
''तुम्हारा हसबैंड ?''
''उसकी शाम की शिफ्ट है इसलिए तो वक्त निकाल सकी हूँ। नहीं तो वह मुझे कहाँ आने देता।''
बात करते हुए उसका मन भर आता है। जगमोहन आहिस्ता से कहता है-
''सॉरी प्रीती जी, मेरा मतलब तुम्हें हर्ट करने का नहीं था।''
''नहीं, मैं हर्ट नहीं हुई।''
कहकर प्रीती खामोश हो जाती है और बाहर देखने लगती है। जगमोहन भी खामोश है। प्रीती पूछती है-
''भूपिंदर भाई साहब ने कितने प्ले किए हैं ?''
''दो प्ले इसके स्टेज हुए हैं पर चले नहीं। फिल्म पर भी काफी नुकसान करे बैठा है। मेरे हिसाब से तो तुम्हें सूरज आर्ट्स वालों तक अप्रोच करनी चाहिए।''
''करूँगी, ज़रूर करूँगी, गुरनाम को मना लूँ।'' कहते हुए प्रीती चुप हो जाती है। कुछ देर बाद जगमोहन पूछता है-
''तुम्हारे काम का कोई वीडियो है ?''
''हाँ, एक वीडियो है। किसी दिन दिखाऊँगी। जिसने भी देखा, खुश हो गया। मैं तो शान्त होकर बैठ गई थी, यह तो एक दिन सुनीता से मेरी मुलाकात हुई तो उसने ही दुबारा हौसला दिया।''
''सुनीता कौन है ?''
''सुनीता को नहीं जानते ? यह सिस्टर्स इन्हैंड्ज़ की सेक्रेटरी है। सिस्टर्स इन्हैंड्ज को तो जानते हो न ?''
''हाँ, जो संस्था औरतों की समस्याओं की बात करती है।''
''हाँ।''
''यह तो ठीक है कि यह संस्था काफी काम कर रही है, पर सुखी मर्डर केस में कुछ नहीं किया तुमने।''
''क्यों नहीं किया। जब फैसला होना था तो ओल्ड बेली के सामने उन्होंने प्रदर्शन किया था ताकि जज गलत फैसला न कर दे। ज्यूरी को भी सही सोचने के लिए मज़बूर किया।''
''ठीक है, पर लोगों में इस सो काल्ड ऑनर किलिंग के खिलाफ़ जाग्रति लाने के लिए तुम्हारी संस्था कुछ नहीं कर रही।''
''जगमोहन जी, यह काम तो पूरी सोसाइटी का है।''
''सोसाइटी क्या करेगी कुछ, सोसाइटी ने तो सुखी की मौत का अफ़सोस भी नहीं मनाया।''
(जारी…)
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6 comments:

Dr. Zakir Ali Rajnish said...


दीप्ति जी, आपके प्रयास की जितनी सराहना की जाए कम है।

…………..
अद्भुत रहस्य: स्टोनहेंज।
चेल्सी की शादी में गिरिजेश भाई के न पहुँच पाने का दु:ख..।

सुनील गज्जाणी said...

सम्मानिया दीप्ती जी ,
सादर प्रणाम !
श्री हरजीत साब को भी प्रणाम एक एक अच्छे विषय को शब्दों में पिरोने के लिए , साथ ही श्री सुभाष नीरव जी को आभार कि हम तक हिंदी में अनुवाद कर एक अच्छे सृजन को सामने रखा !
साधुवाद

उमेश महादोषी said...

उपन्यास अच्छा चल रहा है ...........

हरकीरत ' हीर' said...

सुभाष जी अनुवाद के क्षेत्र में जो उपलब्धता साहिल की है काबिले तारीफ है .....
अब पिता की रूचि में आपको भी शामिल देख ख़ुशी हुई ......
बेटियाँ बेटों से कम नहीं होती ....!!


हरजीत जी को उनके इस चौथ उपन्यास 'साउथाल' की बहुत बहुत बधाई .....!!

Sanjeet Tripathi said...

umesh ji se ti sehmat hu lekin upar wale anya sajaano ke kathan se aur bhi jyada sehmat hu.

Subhash Rai said...

अनुवाद एक जटिल रचनात्मक विधा है. अच्छे अनुवाद के लिये जिस रचनात्मक प्रतिभा की जरूरत होती है, मेरे ख्याल से सुभाष जी में वह है. साफ सुथरी और सरल भावगम्य भाषा बताती है कि यह सिर्फ भाषांतर नहीं भावांतर भी है. यह आप के सफलता है. बधाई.