''साउथाल'' इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत अटवाल का यह चौथा उपन्यास है। इससे पूर्व उनके तीन उपन्यास - 'वन वे', 'रेत', और 'सवारी' चर्चित हो चुके हैं। ''साउथाल'' इंग्लैंड में एक शहर का नाम है जहाँ अधिकतर भारत से गए सिक्ख और पंजाबी परिवार बसते हैं। यहाँ अवस्थित पंजाबी परिवारों के जीवन को बेहद बारीकी से रेखांकित करता हरजीत अटवाल का यह उपन्यास इसलिए दिलचस्प और महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से हम उन भारतीय लोगों की पीड़ा से रू-ब-रू होते हैं जो काम-धंधे और अधिक धन कमाने की मंशा से अपना वतन छोड़ कर विदेशों में जा बसते हैं और वर्षों वहाँ रहने के बावजूद वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।
साउथाल
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
॥ पन्द्रह ॥
प्रदुमूण समोसे बनाने के लिए ऐसी जगह की तलाश आरंभ कर देता है जो कि कानूनी तौर पर सही हो। व्यापारिक कुकिंग करने के लिए काउंसल से मंजूरी लेनी पड़ती है। काउंसल का स्वास्थ्य विभाग बताता है कि कुकिंग वाली जगह कैसी हो और उस में कौन कौन से उपकरण लगे हों। सब कुछ उनकी कानूनी मांग के अनुसार ही सही हो तभी पास करते हैं। इसके अलावा और बहुत कुछ झंझट होते हैं। वह पहले ही सही तरीके से काम आरंभ करना चाहता है ताकि बाद में कोई चक्कर न पड़े। वह ऐसी जगह की तलाश के लिए एक एस्टेट एजेंट से परामर्श करता है। इंडस्ट्रीयल एरिया में कोई यूनिट ही ठीक रहेगा। कई यूनिट किराये पर लगे हुए हैं। ऐक्टन, वैंबली, ईलिंग में तो काफ़ी यूनिट हैं। कुछेक जगहें दुकानों के पीछे भी मिल रही हैं, जहाँ समोसे तैयार किए जा सकते हैं। लेकिन वह चाहता है कि साउथाल में ही हो। घर के नज़दीक हो और साउथाल में कामगार स्त्रियाँ भी सरलता से मिल जाती हैं जो कि सस्ती भी होती हैं। कैनाल रोड पर कैनाल इंडस्ट्रीयल एस्टेट है। वहाँ अनेक यूनिटें हैं। छोटी भी और बड़ी भी। इतनी बड़ी भी कि फैक्ट्री लगी हुई हैं। वहाँ एक यूनिट मिल रहा है जहाँ पहले केक बना करते थे। अब बन्द पड़ी है पर इसका किराया बहुत है। प्रदुमण सिंह हिसाब लगाकर देखता है कि यह तो बहुत महंगा पड़ेगा। वह तलाश जारी रखता है। पुराने साउथाल के इंडस्ट्रीय एरिये का भी चक्कर लगाता है परन्तु मनपसंद कुछ भी नहीं मिल रहा। ऊपर से, काउंसल वालों की घर चैक करने की तारीख करीब आ रही है। उसकी चिंता बढ़ रही है।
विलम्ब होते होते 12 मार्च आ जाती है। आज काउंसल के प्रतिनिधियों ने आना है। किसी पड़ोसी की शिकायत पर उसके घर का मुआयना करना है। लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं है। उधर, यूनिट आदि मिल नहीं रही। वे सवेरे ही घर में ताला लगाकर निकल जाते हैं ताकि कोई आए तो खुद ही घंटी बजा बजाकर लौट जाए। बच्चों को भी जल्दी भेज देते हैं और कामवाली को भी नहीं बुलाते। एक दिन माल तैयार नहीं होगा तो न सही, कम से कम जुर्माने से तो बच जाएँगे। शाम को जब घर लौटते हैं तो लैटर-बॉक्स में फेंका गया एक सख्त-सा चेतावनी पत्र मिलता है। काउंसल वाले परेशान होकर लौट गए हैं। एक और तारीख़ दे गए हैं जो कि नज़दीक की ही है।
वह कैनाल इंडस्ट्रीयल एस्टेट के मैनेजर हैनरी के पास जाता है। हैनरी की लम्बी घनी मूंछें और भारी भरकम आवाज़ उसका स्वागत करती हैं। वह दस बी नंबर किराये पर ले लेता है। खास लिखा-पढ़ी नहीं है। एक फॉर्म ही भरना है। घर के अथवा किसी अन्य जायदाद के मालिक होने का सुबूत देना है और फिर दो महीने का किराया। एक महीने का डिपोजिट के तौर पर और एक महीने का एडवांस। सारी कार्रवाई निपटा कर हैनरी उसे दस बी यूनिट की चाबियाँ पकड़ा कर मूंछों में मुस्कराता हुआ हाथ मिलाता है। प्रदुमण अधिक खुश नहीं है। आठ सौ पौंड महीने का किराया है और दो सौ पौंड जनरल रेट। ये हजार पौंड महीने का अधिक निकालना पड़ेगा। वह मन को तसल्ली देने के लिए सोचता है कि समोसे की कीमत बढ़ा देगा। जब वह यूनिट को खोलता है तो अधिक किराये का दुख कम होने लगता है। जगह काफ़ी है। समोसे बनाने के लिए दो मेज पड़े हैं। दो भट्ठियाँ भी हैं। स्टील के दो बड़े मेज भी हैं। यूनिट के ऊपर एक मंज़िल बनाकर दफ्तर बनाये हुए हैं और स्टाफ के बैठने के लिए एक कमरा भी है। प्रदुमण भट्ठियों और कैनपी पर धुऑं निकालने के लिए लगे पंखों से अधिक खुश नहीं है। लेकिन काम चलाया जा सकता है। एकदम काम चलाने के लिए यह सब ठीक है। सो, वह सोचता है कि आहिस्ता-आहिस्ता सब कुछ नया लगवा लेगा, एक बार काम चलता हो जाए।
ब्रॉडवे से लेडी मार्ग्रेट रोड पर पड़कर कार्लाईल रोड वाला राउंड अबाउट पार करके बाये हाथ पर पॉर्क रोड है। यह रोड स्पाईक्स पॉर्क के दूसरी तरफ जाकर जुड़ती है और इसमें से ही बायीं ओर को कैनाल रोड मुड़ती है जो कि रुआइसलिप रोड को भी जा मिलती है। कैनाल रोड पर ही यह कैनाल इंडस्ट्रीयल एस्टेट है। इस एस्टेट के दूसरी तरफ ग्रैंड यूनियन कैनाल है। यह बहुत पुरानी एस्टेट है हालांकि इमारतें गिराकर नई बना दी गई हैं। जिन दिनों में लंदन की माल ढुलाई नहरों द्वारा हुआ करती थी, उन दिनों की ही है यह इंडस्ट्रीयल एस्टेट। पुराने नक्शों में भी यह नाम पढ़ने को मिल जाता है। वैसे तो लेडी मार्ग्रेट से अन्य कई सड़कें भी कैनाल रोड पर निकलती हैं, पर वे सब छोटी सड़कें हैं। पॉर्क रोड और फिर कैनाल रोड बड़ी सड़कें हैं जहाँ से लॉरी भी निकलती है और अन्य ट्रैफिक भी काफ़ी हो जाता है। प्रदुमण सिंह का घर इस यूनिट से दसेक मिनट की पैदल दूरी पर स्थित है। उसकी रोड, हारटली रोड पॉर्क रोड से सीधा ही आकर मिलती है।
अधिक किराये वाला कांटा यद्यपि अभी भी चुभ रहा है, पर प्रदुमण अब खुश है। वह ज्ञान कौर को लाकर नई जगह दिखलाता है तो वह तुरन्त कह उठती है-
''इतनी जगह हमने क्या करनी है !''
''काम बढ़ाएँगे। अगर सबकुछ ठीकठाक रहा तो यह जगह भी छोटी पड़ जाएगी, तू देखती जा।''
वे यूनिट में सामान ले जाना आरंभ कर देते हैं और आते सोमवार को वहीं काम शुरू कर देते हैं। बूढ़ी अजैब कौर भी वहीं आने लगती है। घर में दस तारीख़ से पहले ही डेकोरेटर को काम पर लगा देता है। पेपर पेंट करा कर घर को एकदम नया-नकोर बना देता है। काउंसल वाले मुआयना करके लौट जाते है। प्रदुमण मन ही मन हँसता है -साँप तो निकल गया अब लकीर को क्या पीटेंगे !
(जारी…)
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1 comment:
जिन्दगी को जीने के लिए रास्ते तो ढूंढ़ने ही पड़ते हैं। काउंसल वालों से निपटने का यह तरीका दरअसल जिन्दगी को जीने के लिए रास्ता ढूँढ़ना है।
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