''साउथाल'' इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत अटवाल का यह चौथा उपन्यास है। इससे पूर्व उनके तीन उपन्यास - 'वन वे', 'रेत', और 'सवारी' चर्चित हो चुके हैं। ''साउथाल'' इंग्लैंड में एक शहर का नाम है जहाँ अधिकतर भारत से गए सिक्ख और पंजाबी परिवार बसते हैं। यहाँ अवस्थित पंजाबी परिवारों के जीवन को बेहद बारीकी से रेखांकित करता हरजीत अटवाल का यह उपन्यास इसलिए दिलचस्प और महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से हम उन भारतीय लोगों की पीड़ा से रू-ब-रू होते हैं जो काम-धंधे और अधिक धन कमाने की मंशा से अपना वतन छोड़ कर विदेशों में जा बसते हैं और वर्षों वहाँ रहने के बावजूद वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।
साउथाल
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
।। छब्बीस ॥
प्रदुमण सिंह देखता है कि बलबीर कुछ खीझा-खीझा-सा रहने लगा है। पिछले महीने उसका विवाह हुआ है। रिश्तेदारों ने लड़की ढूँढ़ी और यह कारज कर दिया। विवाह करने से उसके यहाँ स्थायी होने के अवसर बढ़ गए हैं। वैसे तो सभी कहते हैं कि इमीग्रेशन कानून एक डर्टी गेम है, पता नहीं यह किधर को चल पड़ेगा। वह सोचता है कि शायद उसने ही बलबीर को कुछ कह दिया हो। या फिर तनख्वाह बढ़ाने का कोई बहाना खोज रहा हो। कई कामगर अपना वेतन बढ़वाने के लिए अक्सर ऐसा ही करते हैं। कहने लगते हैं कि वे काम छोड़ रहे हैं। वह सोचने लगता है कि बलबीर बढ़िया ड्राइवर है। यदि अधिक करेगा तो हफ्ते के दस पौंड बढ़ा देगा। बजाय इसके कि नया ड्राइवर ढूँढ़ा जाए, फिर उसे ट्रेंड किया जाए, दस पौंड बढ़ाना आसान है। बलबीर पूरे काम को बाखूबी संभाल रहा है। एक दो दिन देखकर वह स्वयं ही बलबीर से पूछता है -
''बेटा, ठीक हो ?''
''हाँ, अंकल बिलकुल ठीक हूँ।''
''फिर मुँह क्यों चारा खाती भैंस की तरह बना रखा है ?''
''असल में बात यह है अंकल कि मैं अपना काम शुरू करना चाहता हूँ।''
''अच्छा, किस चीज़ का ?''
''यही, समोसों का। मेरी वाइफ़ भी तेज है, सास ने भी यह काम किया हुआ है। उनकी गैरज बहुत बड़ी है, खाली पड़ी है।''
बात सुनकर प्रदुमण सिंह घबरा उठता है। घर में ही शरीक पैदा हो रहा है। उसी से सीखकर उसके बराबर ही खड़े होने की कोशिश कर रहा है। अपने समोसे बनाएगा, फिर उसकी दुकानों पर जाकर रखने का यत्न करेगा। दुकानदार को एक समोसे के पीछे तीन पैनियाँ कम करके अपनी तरफ कर सकता है। यह लड़का बेशक चुप-सा है पर अन्दर से तेज़ है। बलबीर चला जाता है, परन्तु प्रदुमण सिंह सोच में डूब जाता है कि क्या किया जाए। बलबीर को कैसे रोका जाए।
अगले दिन वह चेहरे पर खुशी दिखलाता हुआ बलबीर से कहता है-
''यह तो अच्छी बात है कि तू अपना काम शुरू करने के बारे में सोच रहा है।''
''अच्छा ! अंकल मैं तो डर रहा था कि आप गुस्सा करोगे।''
''गुस्सा कैसा भई, बेटे जवान होकर पिता के बराबर खड़ा हुआ ही करते हैं। बल्कि तुझे किसी हैल्प की ज़रूरत हो तो बताना।''
''ठीक है अंकल।''
''पर एक बात और है बलबीर।''
''कौन सी ?''
''तू अपना राउंड खड़ा कर ले। समोसे मैं तुझे कोस्ट प्राइज़ पर दिए जाऊँगा। तू यूँ ही भट्ठियों वगैरह पर खर्च करता फिरेगा।''
''कितने का समोसा दोगे ?''
''यह तो तुझे पूरी तरह कैलकुलेट करके बताऊँगा। आजकल हम दुकानदार को पैंतालीस पैंस का एक मसौसा देते हैं। हमें अंदाजन कोस्ट करीब पच्चीस पैंस करेगा और करीब दो पैनियाँ मैं कमाकर, तुझे अट्ठाइस पैस का देता रहूँगा, पर मुझे हिसाब करके देख लेने दे।''
शाम को प्रदुमण सिंह हिसाब लगाकर देखता है कि एक समोसा कितने का पड़ता है। पहले तो यह सस्ता ही था, वह दुकानदारों को भी तीस पैंस का बेचता रहा था, पर अब पैंतालीस का देता है। अब समोसा पैकेट में बन्द और लेबल लगा होने के कारण खर्चा बढ़ चुका है। वह हिसाब लगाता है। समोसा अभी भी बीस पैनी के अन्दर अन्दर ही पड़ता है।
अगले दिन उसकी बातचीत बलबीर से अट्ठाईस पैनी के हिसाब से पक्की हो जाती है। बलबीर को भी यह सौदा गलत नहीं प्रतीत होता। इतने दिन घूमकर अपना काम शुरू करने की राह में आती तकलीफ़ें उसने देख ही ली हैं। सबसे बड़ा चक्कर तो हैल्थ वालों का है। वे बहुत चैक करते हैं। अब यदि वह समोसे प्रदुमण सिंह से लेता रहे तो जिम्मेदारी भी उसी की होगी। बलबीर कहता है-
''पर अंकल, अगर कल को तुम समोसे देने बन्द कर दो तो ?''
''ऐसा कभी नहीं होगा, पर शर्त एक ही है कि हमारी दुकान या स्टोर आदि पर न जाना, नई जगह खोजना। तू तो जानता ही है कि लंदन तो समुद्र है, जितनी मर्ज़ी मछलियाँ पकड़े जाओ।''
''ठीक है, फिर ड्राइवर का इंतज़ाम कर लो।''
बलबीर खुश है। प्रदुमण सिंह भी खुश है। उसे पता है कि माल सप्लाई करना या सेल्समैंनशिप करना बहुत कठिन है। माल तैयार करने का क्या है, कोई भी कर करा सकता है। वह सोच रहा है कि बलबीर जितना भी काम बढ़ाएगा, उतना ही वह भी कमाएगा। यदि बलबीर जैसे एक दो व्यक्ति और उसके पास से माल लेकर आगे सप्लाई करने लग पड़े तो उसके वार-न्यारे ही हो जाएँ। काम बहुत बढ़ जाए। अब उसे नये ड्राइवर को तलाशने की चिन्ता है। वह हर मिलने वाले से पूछताछ करने लगता है यह बताते हुए कि उसको एक ड्राइवर की ज़रूरत है। बहुत बार तो लोग काम की खोज में उसकी फैक्टरी तक ही आ पहुँचते हैं, पर ड्राइवर मिलने बहुत कठिन हो जाते हैं। ड्राइवर की तलाश में वह संधू वकील से भी बात करता है। संधू आगे मीके को बताता है जिसने ड्राइविंग टैस्ट पास करके लाइसेंस ले लिया है। मीका एक दिन आकर ‘सतिश्री अकाल’ बुलाता है। कहता है -
''मुझे शराबी वकील ने बताया कि तुम्हें ड्राइवर चाहिए।''
प्रदुमण सिंह मीका को पैरों से लेकर सिर तक निहारता है और पूछता है-
''लाइसेंस है ?''
''तो और क्या मैं मुँह दिखाने आया हूँ ?''
''अपना ही है ?''
''नहीं, बिन में से ढूँढ़ा था ?''
कहकर मीका हँसने लगता है। प्रदुमण सिंह भी हँसता है। मीका जेब में से लाइसेंस निकाल कर दिखलाते हुए कहता है -
''अंकल, तुम्हें मसखरी बहुत सूझती है।''
''पूछ-पड़ताल तो करनी ही पड़ती है। लोग एक दूसरे का लाइसेंस ही इस्तेमाल किए जाते हैं। क्या नाम है तेरा ?''
''मीका।''
''मीका क्या ? पूरा क्या है ?''
''मीके से ही काम चलाये चलो।''
मीका हँसता हुआ कहता है। प्रदुमण सिंह लाइसेंस पर से उसका नाम और पता पढ़ने लगता है और फिर कहता है -
''तीस पौंड दिहाड़ी के हिसाब से देंगे, जब तक काम सीखेगा, तब तक पच्चीस पौंड। पाँच दिन ड्राइवरी के और दो दिन अन्दर के काम के, अगर लगाने हुए तो।''
''मैं तो सोचता था कि ईश्वर ने सात दिन क्यों बनाए हैं, बेशक दस बना देता। हमें कोई फ़र्क़ नहीं।''
मीका बलबीर के साथ राउंड सीखने लग पड़ता है। बलबीर सिटी की तरफ निकलता है और गुरमीत दरिया पार करके वाटरलू के एरिये में समोसे देने जाता है। बलबीर मीके से कहता है -
''दो हफ्ते लग जाएँगे, तुझे काम सीखते हुए।''
''यारा, तेरी मैं दो दिन में तसल्ली करवा दूँगा।''
''मेरी नहीं, अंकल की तसल्ली चाहिए।''
''अंकल की तसल्ली भी करवा दूँगा। अगर ऐसे नहीं हुई तो हमें दूसरी तरह भी करवानी आती है।''
मीका बात करते हुए कमीज़ के कॉलर खड़े कर लेता है। बलबीर थोड़ा-सा उसको जानता है कि वह गप्पी है। बलबीर कहता है -
''मुझे लगता है, तेरा काम करने का इरादा नहीं।''
''काम तो मुझे करना है, काम की तो ज़रूरत है। पर जहाँ कहीं भी काम करूँ, कोई न कोई पंगा पड़ जाता है साला।''
''यहाँ भी पंगा डाल लेगा अगर जीभ पर काबू नहीं रखा तो।''
''नहीं, यहाँ नहीं पड़ता। इस अंकल को मैं सोध कर रखूँगा। मुझे इसका सारा पता है, ये औरतों का शौकीन है और मैं इसको रणजीत कौर का पता दे दूँगा, नहीं तो किसी दूसरे तरीके से काणा कर लूँगा।''
मीका उत्साहित होकर कहता है। उसने दो दिन में तो राउंड क्या सीखना है, दो हफ्ते में भी नहीं सीख सकता। बहाना करते हुए कहता है -
''असल में बात यह है कि लंदन में गोरी औरतें बहुत खूबसूरत हैं, काली औरतें भी कम नहीं। गोरियों का आगा और कालियों का पीछा, बस यही देखने लग पड़ता हूँ, इसलिए राह याद नहीं हो पा रहा।''
करते-कराते मीका तीन सप्ताह राउंड सीखने में लगा देता है। वैसे मीका काम से मुँह नहीं चुराता है। कुछेक बार तो प्रदुमण सिंह को उसका व्यवहार बहुत बुरा लगता है, उसका दिल करता है कि हटा दे, पर फिर उसके काम को देखकर सोचने लगता है कि उसको वश में कर ले तो उससे अधिक से अधिक काम ले सकता है। ऐसे आदमी प्रशंसा सुनकर ज़्यादा काम करते हैं और ऐसा ही होता है। वह मीके को थोड़ी-सी फूंक दे देता है और मीका काम के लिए उड़ा फिरता है।
डिलीवरी के काम में मीका ठीक चल रहा है। फैक्टरी के अन्दर भी दो दिन लगा लेता है। अपने खुले मुँह के कारण कइयों को नाराज़ भी कर लेता है और सबका दिल भी लगाए रखता है। कोई औरत धीमे काम करती है तो कह देता है -
''क्यों बीबी, दिहाड़ी पर कपास चुगने आई हुई हो जो धीरे-धीरे काम कर रही हो।''
कोई पैरों के बल बैठी हो तो वह कह देता -
''बीबी, जंगल के लिए टॉयलेट उधर है।''
कई बार अपने खाने के लिए पकौड़े भी निकलवा लेता है। एक दिन कहीं से भांग खोज लाता है और पकौड़ों में डलवा कर अपने साथ-साथ औरतों को भी खिला देता है। कभी कोई पूछती है -
''रे मीके, तेरा पूरा नाम क्या है ?''
''क्यों बीबी ? मीके से काम नहीं चलता ?''
''चलता तो है, पर फिर भी ?''
''अभी मैं बिजी हूँ बीबी, अभी मीके से ही काम चलाई चल।''
(जारी…)
प्रदुमण सिंह देखता है कि बलबीर कुछ खीझा-खीझा-सा रहने लगा है। पिछले महीने उसका विवाह हुआ है। रिश्तेदारों ने लड़की ढूँढ़ी और यह कारज कर दिया। विवाह करने से उसके यहाँ स्थायी होने के अवसर बढ़ गए हैं। वैसे तो सभी कहते हैं कि इमीग्रेशन कानून एक डर्टी गेम है, पता नहीं यह किधर को चल पड़ेगा। वह सोचता है कि शायद उसने ही बलबीर को कुछ कह दिया हो। या फिर तनख्वाह बढ़ाने का कोई बहाना खोज रहा हो। कई कामगर अपना वेतन बढ़वाने के लिए अक्सर ऐसा ही करते हैं। कहने लगते हैं कि वे काम छोड़ रहे हैं। वह सोचने लगता है कि बलबीर बढ़िया ड्राइवर है। यदि अधिक करेगा तो हफ्ते के दस पौंड बढ़ा देगा। बजाय इसके कि नया ड्राइवर ढूँढ़ा जाए, फिर उसे ट्रेंड किया जाए, दस पौंड बढ़ाना आसान है। बलबीर पूरे काम को बाखूबी संभाल रहा है। एक दो दिन देखकर वह स्वयं ही बलबीर से पूछता है -
''बेटा, ठीक हो ?''
''हाँ, अंकल बिलकुल ठीक हूँ।''
''फिर मुँह क्यों चारा खाती भैंस की तरह बना रखा है ?''
''असल में बात यह है अंकल कि मैं अपना काम शुरू करना चाहता हूँ।''
''अच्छा, किस चीज़ का ?''
''यही, समोसों का। मेरी वाइफ़ भी तेज है, सास ने भी यह काम किया हुआ है। उनकी गैरज बहुत बड़ी है, खाली पड़ी है।''
बात सुनकर प्रदुमण सिंह घबरा उठता है। घर में ही शरीक पैदा हो रहा है। उसी से सीखकर उसके बराबर ही खड़े होने की कोशिश कर रहा है। अपने समोसे बनाएगा, फिर उसकी दुकानों पर जाकर रखने का यत्न करेगा। दुकानदार को एक समोसे के पीछे तीन पैनियाँ कम करके अपनी तरफ कर सकता है। यह लड़का बेशक चुप-सा है पर अन्दर से तेज़ है। बलबीर चला जाता है, परन्तु प्रदुमण सिंह सोच में डूब जाता है कि क्या किया जाए। बलबीर को कैसे रोका जाए।
अगले दिन वह चेहरे पर खुशी दिखलाता हुआ बलबीर से कहता है-
''यह तो अच्छी बात है कि तू अपना काम शुरू करने के बारे में सोच रहा है।''
''अच्छा ! अंकल मैं तो डर रहा था कि आप गुस्सा करोगे।''
''गुस्सा कैसा भई, बेटे जवान होकर पिता के बराबर खड़ा हुआ ही करते हैं। बल्कि तुझे किसी हैल्प की ज़रूरत हो तो बताना।''
''ठीक है अंकल।''
''पर एक बात और है बलबीर।''
''कौन सी ?''
''तू अपना राउंड खड़ा कर ले। समोसे मैं तुझे कोस्ट प्राइज़ पर दिए जाऊँगा। तू यूँ ही भट्ठियों वगैरह पर खर्च करता फिरेगा।''
''कितने का समोसा दोगे ?''
''यह तो तुझे पूरी तरह कैलकुलेट करके बताऊँगा। आजकल हम दुकानदार को पैंतालीस पैंस का एक मसौसा देते हैं। हमें अंदाजन कोस्ट करीब पच्चीस पैंस करेगा और करीब दो पैनियाँ मैं कमाकर, तुझे अट्ठाइस पैस का देता रहूँगा, पर मुझे हिसाब करके देख लेने दे।''
शाम को प्रदुमण सिंह हिसाब लगाकर देखता है कि एक समोसा कितने का पड़ता है। पहले तो यह सस्ता ही था, वह दुकानदारों को भी तीस पैंस का बेचता रहा था, पर अब पैंतालीस का देता है। अब समोसा पैकेट में बन्द और लेबल लगा होने के कारण खर्चा बढ़ चुका है। वह हिसाब लगाता है। समोसा अभी भी बीस पैनी के अन्दर अन्दर ही पड़ता है।
अगले दिन उसकी बातचीत बलबीर से अट्ठाईस पैनी के हिसाब से पक्की हो जाती है। बलबीर को भी यह सौदा गलत नहीं प्रतीत होता। इतने दिन घूमकर अपना काम शुरू करने की राह में आती तकलीफ़ें उसने देख ही ली हैं। सबसे बड़ा चक्कर तो हैल्थ वालों का है। वे बहुत चैक करते हैं। अब यदि वह समोसे प्रदुमण सिंह से लेता रहे तो जिम्मेदारी भी उसी की होगी। बलबीर कहता है-
''पर अंकल, अगर कल को तुम समोसे देने बन्द कर दो तो ?''
''ऐसा कभी नहीं होगा, पर शर्त एक ही है कि हमारी दुकान या स्टोर आदि पर न जाना, नई जगह खोजना। तू तो जानता ही है कि लंदन तो समुद्र है, जितनी मर्ज़ी मछलियाँ पकड़े जाओ।''
''ठीक है, फिर ड्राइवर का इंतज़ाम कर लो।''
बलबीर खुश है। प्रदुमण सिंह भी खुश है। उसे पता है कि माल सप्लाई करना या सेल्समैंनशिप करना बहुत कठिन है। माल तैयार करने का क्या है, कोई भी कर करा सकता है। वह सोच रहा है कि बलबीर जितना भी काम बढ़ाएगा, उतना ही वह भी कमाएगा। यदि बलबीर जैसे एक दो व्यक्ति और उसके पास से माल लेकर आगे सप्लाई करने लग पड़े तो उसके वार-न्यारे ही हो जाएँ। काम बहुत बढ़ जाए। अब उसे नये ड्राइवर को तलाशने की चिन्ता है। वह हर मिलने वाले से पूछताछ करने लगता है यह बताते हुए कि उसको एक ड्राइवर की ज़रूरत है। बहुत बार तो लोग काम की खोज में उसकी फैक्टरी तक ही आ पहुँचते हैं, पर ड्राइवर मिलने बहुत कठिन हो जाते हैं। ड्राइवर की तलाश में वह संधू वकील से भी बात करता है। संधू आगे मीके को बताता है जिसने ड्राइविंग टैस्ट पास करके लाइसेंस ले लिया है। मीका एक दिन आकर ‘सतिश्री अकाल’ बुलाता है। कहता है -
''मुझे शराबी वकील ने बताया कि तुम्हें ड्राइवर चाहिए।''
प्रदुमण सिंह मीका को पैरों से लेकर सिर तक निहारता है और पूछता है-
''लाइसेंस है ?''
''तो और क्या मैं मुँह दिखाने आया हूँ ?''
''अपना ही है ?''
''नहीं, बिन में से ढूँढ़ा था ?''
कहकर मीका हँसने लगता है। प्रदुमण सिंह भी हँसता है। मीका जेब में से लाइसेंस निकाल कर दिखलाते हुए कहता है -
''अंकल, तुम्हें मसखरी बहुत सूझती है।''
''पूछ-पड़ताल तो करनी ही पड़ती है। लोग एक दूसरे का लाइसेंस ही इस्तेमाल किए जाते हैं। क्या नाम है तेरा ?''
''मीका।''
''मीका क्या ? पूरा क्या है ?''
''मीके से ही काम चलाये चलो।''
मीका हँसता हुआ कहता है। प्रदुमण सिंह लाइसेंस पर से उसका नाम और पता पढ़ने लगता है और फिर कहता है -
''तीस पौंड दिहाड़ी के हिसाब से देंगे, जब तक काम सीखेगा, तब तक पच्चीस पौंड। पाँच दिन ड्राइवरी के और दो दिन अन्दर के काम के, अगर लगाने हुए तो।''
''मैं तो सोचता था कि ईश्वर ने सात दिन क्यों बनाए हैं, बेशक दस बना देता। हमें कोई फ़र्क़ नहीं।''
मीका बलबीर के साथ राउंड सीखने लग पड़ता है। बलबीर सिटी की तरफ निकलता है और गुरमीत दरिया पार करके वाटरलू के एरिये में समोसे देने जाता है। बलबीर मीके से कहता है -
''दो हफ्ते लग जाएँगे, तुझे काम सीखते हुए।''
''यारा, तेरी मैं दो दिन में तसल्ली करवा दूँगा।''
''मेरी नहीं, अंकल की तसल्ली चाहिए।''
''अंकल की तसल्ली भी करवा दूँगा। अगर ऐसे नहीं हुई तो हमें दूसरी तरह भी करवानी आती है।''
मीका बात करते हुए कमीज़ के कॉलर खड़े कर लेता है। बलबीर थोड़ा-सा उसको जानता है कि वह गप्पी है। बलबीर कहता है -
''मुझे लगता है, तेरा काम करने का इरादा नहीं।''
''काम तो मुझे करना है, काम की तो ज़रूरत है। पर जहाँ कहीं भी काम करूँ, कोई न कोई पंगा पड़ जाता है साला।''
''यहाँ भी पंगा डाल लेगा अगर जीभ पर काबू नहीं रखा तो।''
''नहीं, यहाँ नहीं पड़ता। इस अंकल को मैं सोध कर रखूँगा। मुझे इसका सारा पता है, ये औरतों का शौकीन है और मैं इसको रणजीत कौर का पता दे दूँगा, नहीं तो किसी दूसरे तरीके से काणा कर लूँगा।''
मीका उत्साहित होकर कहता है। उसने दो दिन में तो राउंड क्या सीखना है, दो हफ्ते में भी नहीं सीख सकता। बहाना करते हुए कहता है -
''असल में बात यह है कि लंदन में गोरी औरतें बहुत खूबसूरत हैं, काली औरतें भी कम नहीं। गोरियों का आगा और कालियों का पीछा, बस यही देखने लग पड़ता हूँ, इसलिए राह याद नहीं हो पा रहा।''
करते-कराते मीका तीन सप्ताह राउंड सीखने में लगा देता है। वैसे मीका काम से मुँह नहीं चुराता है। कुछेक बार तो प्रदुमण सिंह को उसका व्यवहार बहुत बुरा लगता है, उसका दिल करता है कि हटा दे, पर फिर उसके काम को देखकर सोचने लगता है कि उसको वश में कर ले तो उससे अधिक से अधिक काम ले सकता है। ऐसे आदमी प्रशंसा सुनकर ज़्यादा काम करते हैं और ऐसा ही होता है। वह मीके को थोड़ी-सी फूंक दे देता है और मीका काम के लिए उड़ा फिरता है।
डिलीवरी के काम में मीका ठीक चल रहा है। फैक्टरी के अन्दर भी दो दिन लगा लेता है। अपने खुले मुँह के कारण कइयों को नाराज़ भी कर लेता है और सबका दिल भी लगाए रखता है। कोई औरत धीमे काम करती है तो कह देता है -
''क्यों बीबी, दिहाड़ी पर कपास चुगने आई हुई हो जो धीरे-धीरे काम कर रही हो।''
कोई पैरों के बल बैठी हो तो वह कह देता -
''बीबी, जंगल के लिए टॉयलेट उधर है।''
कई बार अपने खाने के लिए पकौड़े भी निकलवा लेता है। एक दिन कहीं से भांग खोज लाता है और पकौड़ों में डलवा कर अपने साथ-साथ औरतों को भी खिला देता है। कभी कोई पूछती है -
''रे मीके, तेरा पूरा नाम क्या है ?''
''क्यों बीबी ? मीके से काम नहीं चलता ?''
''चलता तो है, पर फिर भी ?''
''अभी मैं बिजी हूँ बीबी, अभी मीके से ही काम चलाई चल।''
(जारी…)
2 comments:
Aap aur subhash neerav ji panjabi
sahitya ko hindi mein anuwaad
karke khoob khidmat kar rahe hain.
shobhasharma said..........upnyas achha lag raha hai bhejne ke liye thanks......1sep,2011
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