समकालीन पंजाबी साहित्य की उत्कृष्ट कृतियों की तलाश

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Thursday, July 19, 2012

पंजाबी उपन्यास



''साउथाल'' इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत अटवाल का यह चौथा उपन्यास है। इससे पूर्व उनके तीन उपन्यास - 'वन वे', 'रेत', और 'सवारी' चर्चित हो चुके हैं। ''साउथाल'' इंग्लैंड में एक शहर का नाम है जहाँ अधिकतर भारत से गए सिक्ख और पंजाबी परिवार बसते हैं। यहाँ अवस्थित पंजाबी परिवारों के जीवन को बेहद बारीकी से रेखांकित करता हरजीत अटवाल का यह उपन्यास इसलिए दिलचस्प और महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से हम उन भारतीय लोगों की पीड़ा से रू-ब-रू होते हैं जो काम-धंधे और अधिक धन कमाने की मंशा से अपना वतन छोड़ कर विदेशों में जा बसते हैं और वर्षों वहाँ रहने के बावजूद वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।

साउथाल
हरजीत अटवाल

हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

। पैंतीस ॥




प्रदुमण सिंह के चलते बिजनेस से यदि किसी को ईर्ष्या है तो वह है कारा। कारा पहले से ही सैटिल है। लाखों की बात करता है पर प्रदुमण पुन: ए.बी.सी. से ज़िन्दगी प्रारंभ करके उसके बराबर जा खड़ा होता है। उसको अच्छा नहीं लग रहा। अब उसे यह इंश्योरेंस का काम छोटा लगने लग पड़ा है।


      इस काम में उसका मन नहीं लग रहा। कई बार वह दफ्तर भी नहीं जाता। दफ्तर के काम के लिए एक अंग्रेज मैनेजर रखा हुआ है। एक लड़का और एक लड़की भी है। फिर उसकी पत्नी सुरजीत भी आ जाती है। स्वयं तो वह खाली-सा ही रहता है। साउथाल की अंदरूनी सियासत में सक्रिय रहता है, पर उभर कर बाहर नहीं आता।
      पर जब प्रदुमण सिंह किसी औरत को संग बिठाकर उससे मिलता है तो उसकी ईर्ष्या और अधिक बढ़ जाती है। वह कहने लगता है-
      ''दुश्मन, ये क्या हारी-सी औरतें लिए घूमता है। जा, जाकर मसाज करवा, कोई नई दुनिया देख।''
      ''नहीं भाई कारे, उन औरतों के पास रोज़ के पचास लोग आते हैं।''
      ''हाँ, ये तो सिर्फ तेरे लिए ही पैदा हुई हैं। दुश्मन, बात सर्विस की है, पैसे ख़र्च कर और बढ़िया सर्विस ले। ज़िन्दगी सिर्फ़ पेट घिसाई ही नहीं है।''
      प्रदुमण सिर्फ़ मुस्करा भर देता है। उसने पैसे बहुत मेहनत से कमाए हैं। इतनी मुश्किल से कमाये पैसों को बर्बाद कैसे कर सकता है। कारा को बड़े-बड़े रेस्तरांओं में या बीयर-बारों में जाने का शौक है, पर प्रदुमण ऐसी जगहों पर जाने से बचता है। वह यूँ भी कारा के दायरे वाले दोस्तों में जाने से झिझकता रहता है। वे सभी बड़े-बड़े लोग हैं, बड़ी बातें करने वाले।
      कारा का एक दोस्त है मनीष पटेल। वह एक दिन कहता है-
      ''मिस्टर राय, एक होटल बिकाऊ है। फिफ्टी रूम्ज़। बेअज़ वॉटर के एरिये में।''
      ''कितने में ?''
      ''एक मिलियन।''
      ''बहुत ज्यादा है।''
      ''हाँ, बट इट'स अपोजिट टू हाइड पॉर्क। पता है न उस जगह पर क्या प्राइसेज हैं प्रॉपर्टी के ?''
      ''हाँ, पर...।''
      वह बात बीच में ही छोड़ देता है। होटल खरीदने के बारे में तो वह काफ़ी सयम से सोच रहा है। होटल के मालिक को होटलियर कहते हैं। उसकी तमन्ना रही है कि लोग कहें -''वह है बलकार सिंह राय, होटलियर।'' इस होटल की कीमत उसकी पहुँच से बाहर की है, पर वह भीतर से बहुत उत्सुक बल्कि उत्तेजित है। वह पूछता है-
      ''पटेल, तुमने देखा है क्या ?''
      ''देखा है, मैं लेना भी चाहता हूँ, मगर मेरे अकेले के लिए कठिन है।''
      कारे का एकदम से मन बन जाता है कि देखी जाएगी, जो होगा। वह कहता है-
      ''तो फिर फिफ्टी-फिफ्टी ?''
      ''डन।''
      ''चलो, होटल देखते हैं, किसी एक्सपर्ट की राय लेते हैं।''
      ''वो तो अकाउंट्स हैं पिछले पाँच साल के, उसी से आमदनी का पता चल जाएगा।''
      ''ठीक है अकाउंट्स तो अकाउंटेंट को दिखा देंगे, पर किसी एक्सपर्ट की राय भी चाहिए।''
      अगले दिन ही वे एजेंट से जा मिलते हैं। एजेंट कहता है -
      ''मि. राय, जाकर मार्केट की स्टडी करो, यह होटल हॉफ मिलियन सस्ता है।''
      ''सस्ता क्यों है ?''
      ''क्योंकि यह कंपनी इस मुल्क में स्थित अपने सभी होटल बेच रही है और अमेरिका मूव हो रही है।''
      मनीष पटेल और कारा पूरा होटल घूम कर देखते हैं। अधिकतर कमरे भरे हुए हैं। जो कमरे खाली हैं, उनको वे अन्दर से देखते हैं। उन्हें सब ठीक लगता है। कारा तो यही सोचता जा रहा है कि एक कमरा वह अपने लिए सुरक्षित रखेगा जहाँ वह दुम्मण जैसों को बुलाकर अपना रौब डाला करेगा। थोड़ा काम चला तो मनीष से उसका हिस्सा खरीद लेगा या फिर अपना हिस्सा उसको बेचकर दूसरा होटल ले लेगा। अपने पुत्र को भी इसी बिजनेस में ही सैटल करेगा।
      मनीष कहता है-
      ''चलो, किसी ऐसे आदमी से एडवाइज़ लेते हैं जिसको इस काम की जानकारी है।''
      ''मेरा एक दोस्त है मि. आनन्द, उसके पास दो होटल हैं। उससे बात करते हैं, उसको दिखाते हैं।''
      कारा मि. आनन्द से बात करके उस एजेंट को फोन करता है जिसके माध्यम से यह होटल बिक रहा है। वह कहता है-
      ''हमें होटल देखने के लिए एप्वाइंटमेंट चाहिए। हम किसी दोस्त को दिखलाना चाहते हैं।''
      ''बताओ कब आना चाहते हो ? पर एक बात बता दूँ कि यह होटल सस्ता बिक रहा है, यदि किसी ने आपसे अधिक रकम की पेशकश की तो हम उसको बेच देंगे।''
      कारा समझ जाता है कि एजेंट का इशारा है कि यदि किसी अन्य को होटल दिखलाया गया तो हो सकता है कि वही हमसे अधिक रकम की पेशकश कर दे। फिर मि. आनन्द तो है ही तेज़ आदमी। मनीष पटेल भी किसी अन्य से सलाह करने के हक में नहीं है। वह कहता है-
      ''राय, तुम अपने बैंक से बात करो, मैं अपने से करता हूँ। देखते हैं कि कितना लोन मिल सकता है।''
      ''ओ भाई, लोन की वरी मत कर, साले मैनेजर को इतनी पार्टियाँ किसलिए देता हूँ।''
      कारा का बैंक वैस्टमिनस्टर बैंक है और उसका मैनेजर डेविड कैलाहन कारा का खास दोस्त है। डेविड भारतीय खानों का शौकीन है और कारा अक्सर उसको किसी न किसी रेस्ट्रोरेंट में ले जाया करता है। इस पर डेविड कहा करता है-
      ''मि. राय, कोई बड़ा काम कर, हंड्रेड परसेंट लोन दिला दूँगा।''
      वह डेविड कैलाहन के साथ एप्वाइंटमेंट बनाता है। उसको मिलने के लिए जाते समय सोच रहा है कि क्यों न वह अकेला ही यह होटल खरीद ले, पर सोचता है कि यदि बिजनेस चौपट हो गया तो फिर क्या होगा। मनीष पटेल साथ होगा तो सौ तरीके खोजे जा सकते हैं। फिर मनीष को वह वर्षों से जानता है, वह बुरा व्यक्ति नहीं है। उसने कुछ बात तो डेविड कैलाहन से फोन पर ही कर ली है। वह बैंक में तय किए समय पर पहुँच जाता है। डेविड की हैलो में पहले जितनी गर्मजोशी नहीं है। कारा समझ जाता है कि उसने पूरे का पूरा लोन मांगा है इसलिए ही डेविड अधिक खुश नहीं होगा। पर उसको यकीन है कि वह अपनी बात पर दबाव डाल सकेगा।
      वह तैयार की गई फाइल डेविड के सम्मुख रख देता है, जिसमें होटल के सारे पेपर और अकाउंट्स हैं, बिजनेस प्रपोजल है। डेविड पेपर उलटता-पलटता है, बीच बीच में पढ़ रहा है और कहता है-
      ''हंड्रेड परसेंट लोन नहीं मिल सकेगा।''
      ''क्यों नहीं मिल सकता ? तू खुद ही तो कहा करता था।''
      ''हाँ, पर यह प्रोजेक्ट बहुत बड़ा है और इसमें रिस्क बहुत है।''
      ''क्या रिस्क है ? होटल की कीमत तो पहले ही कम है।''
      ''हाँ, पर पिछले दिनों आए रिसैशन ने सब कुछ बदल दिया है। लोन देने का सिस्टम भी। और फिर मेरे हाथ में कुछ नहीं है, दफ्तर में ऊपर से पास करवाना पड़ेगा।''
      ''डेविड, मैंने तो तुझे कितनी बार लोन देते हुए देखा है।''
      ''छोटे लोन देते हुए देखा होगा, बड़ी रकम मेरे अधिकार में नहीं है।''
      ''कितना है तेरे अधिकार के अधीन।''
      ''फिफ्टी परसेंट... आधा।''
      ''आधा तो कोई भी बैंक दे देगा, फिर तेरी दोस्ती का क्या फायदा !''
      ''सॉरी मि. राय, मैं इतना भर ही कर सकता हूँ।''
      ''यह तो गलत है डेविड। मैंने हिसाब लगाया है कि मिलियन पौंड की आठ हज़ार महीने की किस्त बनती है और खर्च निकालकर होटल की आमदनी दस हज़ार पौंड है। किस्त तो आसानी से निकल जाएगी।''
      ''आमदनी तो कल कम भी हो सकती है। तुझे तो पता है कि बैंक लोन कैसे वर्क करता है। बैंक ने यह देखना है कि यदि तू कल को लोन नहीं लौटा सकता तो उस स्थिति में यह होटल कितने का बिकेगा। क्या बैंक के पैसे पूरे भी होंगे?''
      ''डेविड, मुझे यकीन नहीं था कि तू ऐसा भी कर सकता है।''
      ''राय, एक और तरीका है, अगर तू चाहे तो।''
      ''वो कौन सा ?''
      ''तू अपनी सारी जायदाद इस लोन में लिखवा दे।''
      ''यू आर ए जोकर डेविड।''
      कहते हुए कारा गुस्से में उठ खड़ा होता है और अपनी फाइल उठा लेता है। चलते हुए कहता है -
      “मि. कैलाहन, मैंने तेरे पर इतने पैसे फिजूल ही खर्च किए हैं।''
      उसको निराश लौटा देखकर मनीष सारी बात समझ जाता है। वह कहता है-
      ''फिक्र न कर राय, मैं लोन का इंतज़ाम करता हूँ। अपने बैंक में कोशिश करता हूँ।''
      मनीष पटेल की ग्रोसरी की तीन दुकानें हैं। तीनों ही हाई स्ट्रीट पर हैं। मैनेजर रखे हुए हैं। दुकानों में जगह-जगह वीडियो लगे हुए हैं ताकि कोई कर्मचारी चोरी न कर सके। होटल का काम उसको फिट भी बैठता है क्योंकि समय काफी होता है। वह भी कारा की तरह घाटे से डरकर अकेला हाथ नहीं डाल रहा। उसका बैंक लंडन बैंक है। छोटा बैंक है। अपने काम को बढ़ाने के मकसद से बड़े लोन को भी हाथ डाल लेता है। मनीष पटेल की दुकानों की सारी कमाई इस बैंक में ही जाती है। जब मनीष पटेल अपनी बिजनेस प्रपोजल बैंक मैनेजर के सामने रखता है तो वह एकदम 75 परसेंट कर्जे के लिए मान जाता है। इसके अलावा, दस परसेंट डिपोज़िट के तौर पर भी बैंक की ओर से मिल जाता है। इस हिसाब से पचासी फीसदी कर्ज़ा बैंक दे देता है। बाकी का इंतज़ाम वे दोनों खुद कर लेते हैं।
      करीब तीन महीने बाद होटल की चाबी मिल जाती है। कारा सातवें आसमान पर है। वह मनीष से कहता है-
      ''एक कमरा मेरी अय्यासी के लिए।''
 (जारी…)

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