''साउथाल''
इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत अटवाल का यह चौथा उपन्यास
है। इससे पूर्व उनके तीन उपन्यास - 'वन वे', 'रेत', और 'सवारी' चर्चित हो चुके हैं। ''साउथाल'' इंग्लैंड में एक शहर का नाम है जहाँ अधिकतर भारत से गए सिक्ख और पंजाबी
परिवार बसते हैं। यहाँ अवस्थित पंजाबी परिवारों के जीवन को बेहद बारीकी से
रेखांकित करता हरजीत अटवाल का यह उपन्यास इसलिए दिलचस्प और महत्वपूर्ण है क्योंकि
इसके माध्यम से हम उन भारतीय लोगों की पीड़ा से रू-ब-रू होते हैं जो काम-धंधे और
अधिक धन कमाने की मंशा से अपना वतन छोड़ कर विदेशों में जा बसते हैं और वर्षों वहाँ
रहने के बावजूद वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।
साउथाल
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
।। सैंतीस ॥
एक दिन मनदीप कहती
है-
''जैग, स्वीमिंग
जाना बंद क्यों कर दिया ?''
''यूँ ही, आलस-सा आता रहता है।''
''वो तुम्हारे मामा की बेटी तो
दुबारा बच्चा पैदा करके भी स्वीमिंग जाने लग पड़ी होगी।''
''मूर्खों वाली बात न कर। मैं
जॉगिंग जाता हूँ इसलिए स्वीमिंग की ज़रूरत नहीं पड़ती।''
''इन लड़कों के बारे में क्यों
भूले जाते हो, ये स्वीमिंग भूल बैठेंगे।''
''स्वीमिंग कोई नहीं भूला करता,
हाँ प्रैक्टिस तो चाहिए ही।''
जगमोहन कहता है और सोचने लग पड़ता
है कि वह इस तरफ से क्यों बेपरवाह हो गया। उसे खुद भी तो स्वीमिंग गए को कई महीने हो
गए हैं। मनदीप ठीक कहती है। वह अपनी जिम्मेदारी को भुलाए बैठा है। वह उसी पल फैसला
करता है कि वह कल से ही लगातार स्वीमिंग जाना आरंभ करेगा।
अगले रोज़ वह दोनों लड़कों के स्वीमिंग-सूट बैग में डाल लेता है और साथ ही अपना भी। दो तौलिये रखता है। पैरीवेल स्वीमिंग
पूल के कार पॉर्क में कार पॉर्क करता है। यह स्वीमिंग पूल पिछले वर्ष ही बनकर तैयार
हुआ है। यह नया है और इसका नाम भी बहुत है क्योंकि यह आधुनिक किस्म का स्वीमिंग पूल
है। परन्तु कुछेक नस्लवादी घटनाएँ घटित होने के कारण एशियन लोग यहाँ कम ही आते हैं।
ग्रेवाल का कहना है कि जब हम गोरों से पृथकता पैदा कर लेते हैं, उनसे दूर रहने लग पड़ते हैं तो इन नस्लवादियों को बढ़ावा मिलता है। ये उत्साहित
होते हैं। नस्लवादियों का मुकाबला करने के लिए इनके बीच में रहना बहुत ज़रूरी है। यही
कुछ सोच जगमोहन कार में से उतरते हुए नवजीवन और नवकिरण को भी उतारता है। सामान वाला
बैग कंधे पर लटका कर चल पड़ता है।
प्रवेश द्वारा पर फॉर्म भरकर सदस्यता
लेता है। पाँच पौंड मेंबरशिप है। बच्चों का दाख़िला मुफ्त है। लॉकर की चाबी लेकर वह
कपड़े बदलने चला जाता है। दोनों बेटों के कपड़े संभालता है और अपने भी। स्वीमिंग पूल
के किनारे खड़े होकर आसपास का निरीक्षण करता है। स्वीमिंग पूल के तीन हिस्से हैं। एक
बच्चों और माँओं के लिए। दूसरा उससे कुछ गहरा है, करीब तीन फुट
पानी होगा। और एक हिस्सा आम पूल की तरह अधिक गहरा है। वह दोनों लड़कों को गहरे पूल में
नहीं जाने दे रहा यद्यपि वे दोनों अच्छे-भले तैराक हैं। वह स्वयं भी उधर नहीं जाता।
इस पूल में उनका पहला दिन है। वह वातावरण से परिचित होना चाहता है। वह जानता है कि
आसपास के लोग कैसे हैं। दिन अच्छा होने के कारण काफ़ी लोग आए हुए हैं। कुछ लोग बड़े पूल
के फट्टे पर चढ़कर पूल में छलांगे भी लगा रहे हैं। उसका भी मन होता है कि फट्टे पर चढ़कर
कलाबाजियाँ खाता हुआ पानी में गोता लगाए। फिर पूल के चार चक्कर लगाए, तेज़ तेज़ तैरते हुए। पर वह सोचता है कि अगली बार सही, अब वह निरंतर आया करेगा।
वह देखता है कि फट्टे पर खड़ी एक
लड़की पूल में अपने साथियों को हाथ हिलाकर छलांग लगाने की तैयारी के बारे में बता रही
है। लड़की की आँखें पंजाबी है। बाल ऊपर की ओर खिंचे हुए हैं। टांगें गोल हैं और पिंडलियाँ
भारी। सुडौल स्तनों पर ब्रॉ भी कसकर बाँधे हुए है। जगमोहन को सुखी का भ्रम होता है।
इसी प्रकार सुखी फट्टे पर जा खड़ी हुआ करती थी और बाहर खड़े हुसैन को हाथ हिलाया करती
थी। हुसैन स्वीमिंग पूल में कम ही घुसता था। वह बाहर ही खड़ा रहता। खड़े-खड़े सुखी की
ओर देखता रहता। जब सुखी पर हमला हुआ तो भाग उठा। वह सुखी से अपना ध्यान हटा कर उस लड़की
की तरफ देखने लगता है जो छलांग लगाने के लिए फट्टे को नीचे की ओर दबाने की यत्न कर
रही है। उसे यूँ लगता है मानो लड़की को कहीं देखा हुआ है। लड़की फिर हँसती है। हाथ हिलाती
है और कलाबाजी खाती छलांग लगा देती है। फिर पानी में मछली की तरह तैरती हुई अपने साथियों
के पास जा निकलती है। लड़की जगमोहन की ओर देखती है। उसकी तरफ हाथ हिलाती है। वह जवाब
देता है। उसे एकदम स्मरण हो आता है कि यह तो मनिंदर है। अंकल पाला सिंह की बेटी। वह
कितनी ही बार उससे मिला है। अभी कुछ ही दिन पहले आंटी नसीब कौर के निधन के समय वह उनके
घर लगभग रोज़ ही जाता रहा है। उससे पहले भी उनके पारस्परिक संबंध रहे हैं। उसको बहुत
अच्छा-अच्छा लगा रहा है। मनिंदर एक अन्य लड़की और लड़के के साथ फट्टे पर जा चढ़ती है।
जगमोहन उसकी तरफ देखे जा रहा है। वह फिर जगमोहन की ओर हाथ हिलाती है। जगमोहन को निरंतर
देखे जाने की अपनी गलती का अहसास होता है। उसको सुखी याद आ रही है। स्वीमिंग से फुर्सत
पाकर मनिंदर उसके करीब आकर कहती है-
''हैला भाज ! हाउ आर यूँ ?''
''आय एम फाइन।''
वह इतना ही कह पाता है। पहले भी
मनिंदर उसको भाजी या भाज कहकर संबोधित होती रही है। मनिंदर चली जाती है। जगमोहन के
अन्दर एक लहर-सी दौड़ने लगती है। स्वीमिंग पूल के फट्टे पर खड़ी मनिंदर उसको सुखी जैसी
प्रतीत होती है। उसको डर है कि सुखी जैसी किस्मत न ले बैठे मनिंदर को। वह पाला सिंह
को भलीभाँति जानता है। मूँछों को ऐंठता पाला सिंह मानो साक्षात उसके सामने आ खड़ा हुआ
हो।
उसके अन्दर एक बेसब्री-सी है।
किसी के साथ बात करने की बेसब्री। एक बेचैनी-सी हो रही है उसको। वह सोच रहा है कि किसके
साथ बात करे। ग्रेवाल छुट्टियों पर गया हुआ है। इस ‘सर जी’ को भी तभी छुट्टियों पर जाना होता है जब उसको उसकी ज़रूरत होती है। मनदीप के
साथ करेगा तो वह कहेगी कि तुझे एक और चुड़ैल चिपट गई। उसको अपने ऊपर गुस्सा आ रहा है
कि अब उसके ऐसे दोस्त बहुत कम हैं जिसके साथ वह दिल की बातें कर सके। दोस्ती वक्त मांगती
है और वह वक्त दे नहीं सकता। गुरचरन, सोहनपाल आदि उसके पुराने
मित्र हैं, पर दिल की बातें कर सकने वाली उनसे दोस्ती नहीं है।
फिर मनिंदर तो अंकल पाला सिंह की बेटी है। उसकी अपनी बहन-सी। उसके बारे में आम लोगों
के संग बात नहीं कर सकता। एक अजीब-सा डर उसके अन्दर घर करने लगता है।
शाम को वह ग्लोस्टर जाता है। शायद
कोई मित्र मिल जाए। कई बार अंकल पाला सिंह यहाँ होता है, पर आज
वह वहाँ नहीं है। वह सोचता है कि शायद लाइटों वाले पब में हो। वह एक गिलास यहाँ पीकर
लाइटों वाले पब की ओर चल पड़ता है। वहाँ भी पाला सिंह नहीं है। फिर वह सोचने लगता है
कि वह पाला सिंह को क्यों खोज रहा है। अगले दिल पाला सिंह इसी पब में एक मेज़ पर बैठा
मिल जाता है। उसका गिलास खत्म होने को है। वह मूंछों को मरोड़ा दे रहा है। जगमोहन को
देखते ही खुश हो जाता है। उसकी ओर हाथ बढ़ाते हुए पूछता है-
''सुना भतीजे, किधर रहता है ?''
''बस इधर उधर ही अंकल जी।''
''मैं देखता हँ कि तूने पब में
आना कम कर दिया है। ग्रेवाल की सोहबत का असर हो गया लगता है। ग्रेवाल तुझे कुछ नहीं
सिखा सकेगा।''
एक पल के लिए तो जगमोहन को गुस्सा-सा
भी आता है। ग्रेवाल के संग उसको घूमते देख कर कभी-कभी प्रदुमण
सिंह भी ताना-सा मार जाता है। इन्हें नहीं पता कि ग्रेवाल की संगत में उसको क्या मिलता
है, पर जगमोहन कुछ बोले बिना मुस्करा देता है। पाला सिंह फिर
कहता है-
''ग्रेवाल ने अपनी औरत छोड़ दी
भाइयों के खातिर, भाइयों ने उसको छोड़ दिया पैसों की खातिर।''
''अंकल, ग्रेवाल ठीक बंदा है, शांत और बढ़िया सलाहकार।''
जगमोहन ग्रेवाल के विरुद्ध और
कुछ नहीं सुनना चाहता, पर पाला सिंह रुकता नहीं और आगे कहता है-
''बस ये शांत ही है, करने-कराने लायक कुछ नहीं है। इसमें तो इतनी हिम्मत भी नहीं कि भाइयों से अपना
हिस्सा मांग सके।''
''अंकल, हिस्से की उसको ज़रूरत ही क्या है, अच्छी भली नौकरी है।''
''है तो सबकुछ भाइयों की खातिर
ही, पर इसने अपनी ज़िन्दगी तो खराब कर ली। उस बेचारी की भी कर
दी। कहते हैं कि एक लड़की भी है इसकी।'' पाला सिंह अपना गिलास खत्म करते हुए कहता है और फिर उठते हुए पूछता है,
''लागर ही पी रहा है ?''
जगमोहन 'हाँ' में हल्का-सा सिर हिलाता है। पाला सिंह गिलास भरवा
लाता है और बैठते हुए कहने लगता है-
''चल छोड़ यह सब, मैं तो तुझे ही फोन करने के बारे में सोच रहा था। एक सलाह लेनी थी।''
''बताओ।''
''यही वसीयत के बारे में। विल
तो तेरी आंटी के समय हमने बनाई थी, पर अब दिल करता है कि बदल
दूँ, तू जानता है कुछ इस बारे में ?''
''आपकी विल है, जब चाहो नई लिखो। सोलिसिटर के जाना पड़ता है।''
''उसके पास जाने से ही तो बचता
हूँ। पैसे ही बहुत मांगते हैं।''
''कोई बात नहीं अंकल, कोई सस्ता राह ढूँढ़ लेते हैं, मैं पता करता हूँ।''
जगमोहन उसको हौसला देते हुए कहता है। पाला सिंह बताता है-
''हमने तो यह किया था कि घर दोनों
बेटों के नाम और बाकी कैश और गहने आदि के तीन हिस्से। इंडिया वाली ज़मीन भी लड़कों के
नाम ही।''
''और अब क्या सोचा है ?''
''अब घर मनिंदर का और गहने सारे
लड़की के ही। रहा कैश तो उसके तीन हिस्से, इंडिया की ज़मीन लड़कों
की।''
''ठीक है, जैसा कहो। पर मनिंदर के साथ लड़के झगड़ा न करने लगे घर को लेकर। आप तो जानते
ही हैं कि इस तरह के कई केस होते हैं, बाद में बहुत पंगा पड़ता
है।''
''कोई बात नहीं, पड़ता है तो पड़े। लड़के साले नालायक हैं, कहना नहीं मानते।
तू देखता ही है कि सारी उम्र मूंछ खड़ी रखी है हमने। लड़का खो दें तो खो दें,
पर मूंछ नीची नहीं होने देंगे।''
''ऐसी भी क्या बात हो गई ?''
''यही तो बात है भतीजे। बड़े ने
पहले तो घर इलफोर्ड में लिया और छोटी-सी लड़की लिए फिरता है। लड़की ऐसी कि मैं बगल में
उठा दो मील का चक्कर लगा आऊँ। खैर, मैंने कहा, इंडिया चल, ऐसी लड़की ढूँढ़ूंगा कि हाथ लगाए मैली हो। कहता
है, मैं नहीं मानता।''
''कोई गर्लफ्रेंड होगी,
कौन सा विवाह करवाने जा रहा है।''
''जग्गे, मैंने तो कहा था कि चार दिन ऐश कर ले, जब मन भर जाए तो
छोड़ देना। मुझे कहता है कि ये तो उम्रों के सौदे हो गए, विवाह
भी नहीं करवाना, पर रहना इसके संग ही है और बच्चे भी पैदा करने
हैं। मैंने कहा, हम इंडियन लोग हैं और हम लोग ऐसा नहीं किया करते।
इस पर कहता है कि मैं इंडियन नहीं हूँ, मैं तो ब्रिटिश हूँ...
साला, ब्रिटिश कहीं का।''
(जारी…)
1 comment:
Atwal jee ko padnaa achchha lagtaa hai,kam se kam Britain men pali badi bhartiya sanskariti se pehchaan ho jaati hai,jo kaphi mahatvpoorn hai.
ashok andre
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