''साउथाल''
इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत अटवाल का यह चौथा उपन्यास
है। इससे पूर्व उनके तीन उपन्यास - 'वन वे', 'रेत', और 'सवारी' चर्चित हो चुके हैं। ''साउथाल'' इंग्लैंड में एक शहर का नाम है जहाँ अधिकतर भारत से गए सिक्ख और पंजाबी
परिवार बसते हैं। यहाँ अवस्थित पंजाबी परिवारों के जीवन को बेहद बारीकी से
रेखांकित करता हरजीत अटवाल का यह उपन्यास इसलिए दिलचस्प और महत्वपूर्ण है क्योंकि
इसके माध्यम से हम उन भारतीय लोगों की पीड़ा से रू-ब-रू होते हैं जो काम-धंधे और
अधिक धन कमाने की मंशा से अपना वतन छोड़ कर विदेशों में जा बसते हैं और वर्षों वहाँ
रहने के बावजूद वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।
साउथाल
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
।। उनतालीस ॥
ज्ञान कौर इंडिया
चली जाती है। राजविंदर को वह साथ चलने के लिए ज़ोर डालती है, पर वह नहीं जाता। इंडिया जाने का उसका मकसद सबसे मिलना-जुलना
ही है और वह अपने गाँव वाले घर की सफाई भी करवाना चाहती है। उसका जाने का कार्यक्रम
तो राजविंदर को ब्याहने की बात पर बनना प्रारंभ हुआ है, पर वह
नहीं मानता। ज्ञान कौर मानसिक तौर पर इंडिया के लिए तैयार हो चुकी होने के कारण चली
जाती है, नहीं तो उसको पीछे लड़कियों की भी चिंता रहती है। प्रदुमण
अब राजविंदर के विवाह की चिंता भी कम करने लगा है। बल्कि अब उसकी चिंता है कि लड़का
समलिंगी न निकल जाए। कभी उसको यह डर भी सताता है कि वह ड्रग ही न लेने लग जाए,
परंतु अभी तक उसको ऐसी कोई बात नहीं दिखाई दी जिससे लगता हो कि राजविंदर
ड्रग लेने लगा है। उसने कभी अधिक पैसों की मांग भी नहीं की। उसके पास से वो गंध भी
नहीं आती हो ड्रग के आदी लोगों से आया करती है। ज्ञान कौर उसके कपड़े धोते समय उसकी
जेबों की तलाशी भी लेती रहती है। प्रदुमण सिंह अब उसको अधिक डांटता-फटकारता नहीं। कई
बार शाम को बैठकर उसके संग छोटी-छोटी बातें करने लगता है। एक दिन राजविंदर कहता है-
''डैड, मुझे
कार ले दो।''
''घर में इतनी वैनें खड़ी हैं,
जो मर्जी चला। बल्कि किसी न किसी ड्राइवर के साथ राउंड पर चला जाया कर।''
''ये काम बहुत प्रैशर का है,
मैं कोई दूसरा काम करना चाहता हूँ।''
''घर बैठे तो काम मिलेगा नहीं।''
''दैट्स वॉय, आय नीड कार। वर्क फाइंड करने के लिए दूर जाना पड़ता है।''
एक पल के लिए तो प्रदुमण सिंह
को भ्रम-सा होता है कि शायद राजविंदर ठीक रास्ते पर आ चला है। वह कहता है-
''तू विवाह करवा लेता तो तुझे
कार भी ले देते।''
''डैड, मुझे
विवाह नहीं करवाना अभी।''
''चल ऐसा कर। कार मैं तुझे कोई
छोटी-मोटी ले दूँगा, पर कोई गर्ल-फ्रेंड तलाश पहले।''
''गर्ल-फ्रेंड तो मैं कल ही ले
आऊँ।''
''वो तो तू कोई ड्रगी-सी लड़की
पकड़ लाएगा, प्रोपर गर्ल-फ्रेंड हो जो तेरे साथ दो महीने रहे,
फिर लेकर दूँगा।''
न राजविंदर कोई लड़की खोज सका है
और न उसको कार मिलती है। इंडिया जाने के लिए भी ज्ञान कौर उसको कई लालच देती है कि
वहाँ जाकर कोई लड़की पसंद कर ले, मंगनी करवा ले। वहाँ से आते ही
उसको कार ले देंगे, पर राजविंदर इसके लिए तैयार नहीं है।
प्रदुमण सिंह को पत्नी का इंडिया
जाना पहले तो अच्छा लगता है कि अब वह अपनी मनमर्जी कर सकेगा। कुलबीरो पर भी ट्राई मारेगा।
कुलबीरो करीब छह महीने से उनके पास काम कर रही है। उसकी ज्ञान कौर के साथ अच्छी बनती
है। कुलबीरो चुपचाप अपने काम में लगी रहती है। कम बोलती है, पर
काम बहुत करती है। दो औरतों जितना काम कर जाती है। उसके काम को देखते हुए ही ज्ञान
कौर उसको फोरलेडी बना देती है ताकि उसके इंडिया जाने पर वह आगे बढ़कर काम को चलाएगी।
अब भी कुलबीरो के सिर पर ही घर का चक्कर लगाती रहती है और कभी-कभी छुट्टी भी कर लेती
है। प्रदुमण सिंह ने कई बार उसको टटोल कर देखा है, वह प्रत्युत्तर
में हुंकारा नहीं भरती। अब पत्नी के न होने पर वह कुलबीरो की ओर एक कदम और उठा सकेगा।
एक दिन शिंदर कौर कहती है-
''अंकल जी, घर वाले नहीं तो हमें किसी का डर नहीं, पर इन तिलों में
तेल है नहीं।''
उसका इशारा कुलबीरो की तरफ है।
प्रदुमण सिंह फीकी-सी हँसी हँसते हुए कहता है-
''शिंदर कौर, तू तो अब सीधे मुँह बात भी नहीं करती।''
''मैं औरत हूँ, सौ बातों का ध्यान रखना पड़ता है। और फिर आप तो लगे हुए हो, रंग-बिरंगे भोजन का स्वाद लेने में, पर एक बात बताऊँ
कि यह न समझना कि आंटी को कुछ पता नहीं। वह सब जानती है और पता नहीं किस बात के कारण
चुप है।''
एक बार तो प्रदुमण सिंह को झटका-सा
लगता है, पर फिर सोचता है कि शिंदर कौर उसको डरा रही है। वह उसकी
बात पर अधिक ध्यान नहीं देता और सोचने लगता है कि उसको ज़रा बचकर चलने की ज़रूरत है।
ज्ञान कौर यूँ तो सीधी-सी है, पर हर बात पर नज़र रखती है।
फरीदा के पति तारिक को उसने ड्राइवर
रखा हुआ है। वह एक राउंड लगाता है। उसको मोबाइल फोन भी लेकर दिया हुआ है ताकि उसकी
ख़बर रहे कि वह कहाँ तक पहुँचा है। उसके पीछे वह फरीदा के साथ उसके घर में जा घुसता
है। अब ज्ञान कौर यहाँ नहीं होगी तो उसका यह खेल और आसान हो जाएगा।
तारिक आयु में तो फरीदा से काफ़ी
बड़ा है, पर इतना बूढ़ा नहीं है जितना फरीदा कहती रही है। सेहत
ज़रा कमज़ोर है। फरीदा के काम का बेशक न हो, पर प्रदुमण का काम
ठीकठाक और पूरी जिम्मेदारी से कर रहा है।
ज्ञान कौर के इंडिया जाने को लेकर
वह काफ़ी उत्साहित है, पर उसके जाने के दूसरे दिन ही वह उसको मिस
करने लगता है। रात में वह अकेला ही बैड पर पड़ा ज्ञान कौर के बारे में सोचता रहता है।
कपबोर्ड में टंगे उसके कपड़ों को ध्यान से देखने और सूंघने लगता है। शाम के वक्त बड़ी
बेटी सतिंदर रोटी बना रही होती है तो उसको ज्ञान कौर का भ्रम होता है। बड़ी बेटी माँ
पर गई है और छोटी पवनदीप उस जैसी है। इसी तरह बड़ा बेटे राजविंदर के नयन-नक्श ज्ञान
कौर से मिलते हैं और छोटे बेटे बलराम के उससे।
एक दिन वह कुलबीरो से कहता है-
''तू ज़रा दफ्तर में आना ऊपर।''
''क्यों अंकल जी ?''
''ज़रा हिसाब लगाएँ कल के माल का।''
''कल के माल का हिसाब तो मेरे
पास है, बीस ट्रे लगेंगे टोटल, दस वैजी
के, पाँच चिकन और पाँच लैंब के और फ्रोजन कर बनेंगे।''
कुलबीरो ज़रा ऊँचे स्वर में कह
रही है ताकि अन्य औरतें भी सुन लें। प्रदुमण सिंह झिझकता-सा पगड़ी पर हाथ फेरते हुए
ऊपर दफ्तर में चला जाता है। वह सोचता है कि कुछ अधिक ही चालाक बन रही है ये। वह एक
हद में रहते हुए ही आगे बढ़ना चाहता है। फैक्टरी में काम करती सभी औरतें ही उसके किरदार
को जानती हैं, पर शिंदर कौर की तरह मुँह से कोई नहीं बोलती। सबको
अपनी नौकरी प्यारी है। फिर प्रदुमण सिंह उनके लिए इतना खतरनाक भी नहीं है कि किसी को
जबरन हाथ लगा ले। कोई झिड़क दे तो चुप हो जाता है। अब कुलबीरो के यूँ ऊँची आवाज़ में
बोलने में उसको खतरे की झलक दिखाई देती है।
कुछ देर बाद कुलबीरो दफ्तर में
आ जाती है। प्रदुमण सिंह खुश हो जाता है। वह पूछता है-
''ऐ लड़की, घर में किसी से लड़ कर तो नहीं आई ?''
''नहीं अंकल जी, लड़ना किसके साथ है।''
''तू तो इतना खीझ कर बोलती है,
क्या पता तेरा।''
''नहीं अंकल जी, खीझकर तो नहीं बोलती। मैंने तो बताया कि माल की तो पूरी तैयारी है। आपने मुझे
कल ही बता दिया था कि क्या तैयार करना है।''
प्रदुमण सिंह कुछ नहीं बोल रहा।
उसकी ओर घूरते हुए देखे जा रहा है। कुलबीरो की छातियों पर नज़र दौड़ाता है। कुलबीरो को
जैसे उसकी नज़रें चुभ रही हों। वह बाहों का क्रॉस बनाकर छातियों को छिपा लेती है और
कहती है-
''बताओ अंकल जी, और क्या कहना चाहते हो।''
''यही कि लैंब का मीट मंहगा हो
गया है, मसाले में मिक्स वैजीटेबल की मात्रा ज़रा बढ़ा दो।''
''देख लो, जैसी आपकी मर्जी, पर पहले ही लैंब कम और वैजी ज्यादा
होती है, आपके ग्राहक न खराब हो जाएँ।''
''यह भी ठीक है।''
''मैं जाऊँ अंकल जी।''
''हाँ जा, पर एक बात बता, तू अकड़ में बहुत रहती है। मानते हैं कि
तू सुन्दर है, समझदार है।''
''अंकल जी, ऐसी बातें न करो। मैं तो आपकी बहुत रिसपैक्ट करती हूँ, आप तो मेरे बड़े हो।''
''यह भी ठीक है, पर तू चुपचाप और उखड़ी-उखड़ी क्यों रहती है ?''
''अंकल जी, हर किसी का स्वभाव होता है और हर किसी की प्रॉब्लम होती हैं।''
''तेरी क्या प्रॉब्लम्स हैं,
बता ज़रा।''
''क्या बताऊँ ! अंटी जी को सब
पता है। मैं अपनी बहन और जीजा के साथ रहती हूँ।''
''वही जो लाल-सी आँखों वाला तुझे
लेने आया करता है, तेरा जीजा है।''
''हाँ जी।''
''वो तो बदमाश-सा लगता है,
देखता ही टेढ़ा है।''
''वो बदमाश ही है, जेल भी जा चुका है। टैक्सी चलाता है, हर रोज़ वो क्लेश
डाले रखता है।''
''पर इसके साथ तेरा क्या वास्ता
?''
''मैं भी तो उसी घर में रहती हूँ।''
कहते हुए कुलबीरो उदास हो उठती है। उसी वक्त फ़रीदा अन्दर प्रवेश करती
है। सीढ़ियाँ चढ़ने के आवाज़ से ही प्रदुमण अंदाजा लगा लेता है कि फरीदा होगी। उससे कुलबीरो
का दफ्तर में आना झेला नहीं गया होगा। फरीदा के अन्दर घुसते ही कुलबीरो उठकर चली जाती
है। प्रदुमण कहता है-
''तेरे कदमों की आहट से ही पहचान
लिया था कि तू है।''
''मेरे पैरों की आवाज़ जुदा है
?''
''हाँ, बूढ़े
आदमी से ब्याही औरत हमेशा ही भागकर सीढ़ियाँ चढ़ा करती है।''
''सरदार जी, किस्मत ने तो मजाक किया ही था, आप भी कर लो।''
''मेरी जान, मैं तो यूँ ही कह रहा हूँ, वैसे मेरा ये मतलब नहीं।''
''ये कुलबीरो के साथ भी मजाक ही
कर रहे थे ?''
''नहीं, मेरी जान, मैं तो उसे काम वाम समझा रहा था।''
''सरदार जी, ये काम वाम तो मुझे आपकी आँखों में ही दीख रहा है।''
''ऐसा तो कुछ नहीं फरीदा,
माई डार्लिंग! तू यह बता कि तेरा मियाँ इतनी ड्राइविंग करके थक तो नहीं
जाता ?''
''सरदार जी, सच बताऊँ, वो चंदरा मुझे गाली बहुत देता है। अगर मैं
खुश होऊँ तो पूछता है कि मैं किस यार से मिलकर आई हूँ और अगर उदास होऊँ तो कहता है
कि किस यार की याद आ रही है।''
''तू मेरा नाम ले लिया कर।''
''एक दिन सचमुच ही ले दूँगी,
बता दूँगी की अपने सोहणे सरदार से मिलकर आई हूँ।''
''फिर तो मेरा दुश्मन बन जाएगा।''
''दुश्मन तो अब भी बन जाएगा।''
''वो कैसे ?''
(जारी…)
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