समकालीन पंजाबी साहित्य की उत्कृष्ट कृतियों की तलाश

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Friday, August 30, 2013

पंजाबी उपन्यास



''साउथाल'' इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत अटवाल का यह चौथा उपन्यास है। इससे पूर्व उनके तीन उपन्यास - 'वन वे', 'रेत', और 'सवारी' चर्चित हो चुके हैं। ''साउथाल'' इंग्लैंड में एक
शहर का नाम है जहाँ अधिकतर भारत से गए सिक्ख और पंजाबी परिवार बसते हैं। यहाँ अवस्थित पंजाबी परिवारों के जीवन को बेहद बारीकी से रेखांकित करता हरजीत अटवाल का यह उपन्यास इसलिए दिलचस्प और महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से हम उन भारतीय लोगों की पीड़ा से रू-ब-रू होते हैं जो काम-धंधे और अधिक धन कमाने की मंशा से अपना वतन छोड़ कर विदेशों में जा बसते हैं और वर्षों वहाँ रहने के बावजूद वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।

साउथाल
हरजीत अटवाल

हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव


47

रेडियो पर ख़बर आ रही है कि साउथाल में क़त्ल हो गया है। लोग ध्यान से ख़बर सुन रहे हैं और फिर एक-दूजे की ओर रहस्यमयी दृष्टि से देखने लगते हैं। जगमोहन काम पर है। कुछ लोग समूह बनाकर खड़े खड़े बातें कह रहे हैं। जगमोहन शीघ्रता से करीब से गुज़रने लगता है। कोई उसको रोकता है।
            जग्गे, रात में साउथाल में मर्डर हो गया।
            अच्छा! अब साउथाल में मर्डर भी आम-सी बात हो गई।कहते हुए वह आगे बढ़ जाता है।
           
            वापस लौटते हुए कार के रेडियो पर फिर वही ख़बर आ रही है। वह सोचने लगता है कि ऐसी कौन-सी बात हो गई इस क़त्ल में। काम पर भी लोग ग्रुप बनाकर खड़े थे। वह ध्यान से सुनता है। पत्नी ने पति का क़त्ल कर दिया है। वह मन ही मन कहता है कि यह दिलचस्पी वाली बात अवश्य है, नहीं तो पति ही पत्नियों की हत्या करते आ रहे हैं। वह घर पहुँचता है। मनदीप कहती है-
            सुनी, आज की ख़बर ?“
            सुन ली, सुन ली कि तेरे जैसी तेज़ औरत ने आदमी मार दिया।
            कोई ज्यादा ही दुखी होगी, मेरे जैसी बेचारी।
            मनदीप कहक़र उसकी तरफ़ देखती है। वह मुस्कराता है। मनदीप फिर कहती है-
            भूपिंदर का दो-तीन बार फोन आया था। कहता था कि ज़रूरी काम है।
            नया ड्रामा खेलना होगा, और क्या!
            अब तुम्हारी ड्रामों की उम्र नहीं रही।
            मैंने ड्रामे खेले ही कहाँ हैं, बस बातें की हैं।
            मनदीप कुछ बोले बग़ैर उसके लिए जूस लेने रसोई में चली जाती है। जगमोहन गेम खेलते हुए बेटों की गेम में हिस्सा लेने लगता है।
            वह जूस का घूंट भरता हुआ फोन उठा लेता है। भूपिंदर का फोन नंबर याद करता हुआ डायल करने लगता है। उधर से भूपिंदर उतावला-सा उससे पूछता है-
            तूने मोबाइल क्यों नहीं रखा हुआ ?“
            ज़रूरत नहीं पड़ती।
            आज तो पड़ गई न।
            क्या बात हो गई, ख़ैर तो है ?“
            समाचार नहीं सुन रहा ?“
            यह जो वाइफ़ ने अपने हसबैंड का मर्डर कर दिया ?“
            पता है, कौन है यह वाइफ़ ?“
            कौन है ?“
            प्रीती! अपनी प्रीती!
            क्या!
            हाँ, प्रीती ने गुरनाम को स्टैब कर दिया। बता रहे हैं कि एक ही वार में गुरनाम वहीं का वहीं ढेर हो गया।
            यह कैसे हो गया ?“
            कैसे क्या होना है। तुझे पता ही है प्रीती की क्या हालत बना रखी थी गुरनाम ने। एक कुतिया को भी तुम कोने में किए जाओ तो अंत में वह तुम्हें उछल कर पड़ती है। फिर प्रीती तो प्रीती थी।भूपिंदर कह रहा है।
            जगमोहन से बोला नहीं जा रहा। भूपिंदर पूछता है-
            पिछले दिनों कोई राबता हुआ था उससे ?“
            नहीं, कभी भी नहीं।
            मैंने एक दिन फिर देखा था उसको। मैं तो हैरान था कि इतना कुछ कैसे सहती जा रही थी। मुझे कई बार लगता भी था कि कुछ न कुछ होगा, पर इतना कुछ होगा, इसकी आस नहीं थी।
            जगमोहन फोन रखता है। उसका उतरा हुआ चेहरा देखकर मनदीप पूछती है-
            क्या हुआ ? यह कौन-सी और पैदा हो गई तुम्हारे मामे की धी ?“
            वह प्रीती है।
            कौन प्रीती ?“
            तू नहीं जानती। मैं भी बहुत साल पहले एक आध बार ही मिला था, जब ड्रामे के चक्कर में आई थी भूपिंदर के पास।
            फिर इतना वरी करने वाली कौन-सी बात है ?“
            तू पत्थर दिल है। तेरे लिए यह कुछ नहीं, पर मुझे यह बहुत बड़ी बात लगती है। ख़ास तौर पर यदि तुम किसी को थोड़ा-बहुत जानते हो तो फील तो होता ही है।
            कहते हुए जगमोहन ख़ामोश हो जाता है। मनदीप कुछ देर उसकी ओर देखती रहती है। फिर कहती है-
            लो जी, एक और चुड़ैल चिपट गई।... चलो उठो, शॉपिंग करके आएँ, तुम्हारा मूड दूसरी तरफ़ हो।
            नहीं, तू अकेली ही हो आ। लड़कों को भी मम्मी की तरफ़ छोड़ आ।वह कहता है।
            आम तौर पर वह लड़कों को अपने साथ ही रखा करता है। ससुराल वालों की तरफ़ भेजकर अधिक खुश नहीं होता, पर आज उसका दिल चाह रहा है कि उसको अकेला छोड़ दिया जाए। मनदीप कुछ कहे बग़ैर तैयार होने लगती है और लड़कों को संग लेकर चली जाती है।
            वह उठकर ग्रेवाल के घर जाता है। ग्रेवाल घर पर नहीं है। भूपिंदर की ओर जाता है। वह भी कहीं जा चुका है। वह सिस्टर इनहैंड्ज़ के दफ़्तर जाता है। वहाँ भी कोई नहीं मिलता। वह वापस घर आकर सिगरेट सुलगाकर बैठ जाता है। एक बार तो उसका दिल करता है कि पॉर्क का चक्कर लगाकर आए ताकि उसका ध्यान दूसरी तरफ़ हो, पर उससे उठा नहीं जा रहा। वह बैठे-बैठे सारी घटना को अपने मन में दुबारा साकार करने लगता है कि गुरनाम हर रोज़ प्रीती को नीचा दिखाकर उसके मन में घटियापन का अहसास पैदा करता रहता होगा। उसके बच्चे भी उसके खिलाफ़ कर दिए होंगे। ऐसी शिक्षा दी होगी कि बच्चे भी प्रीती को नहीं बुलाते होंगे। प्रीती मन ही मन में विष के घूंट पीती रहती होगी। उस दिन प्रीती रसोई में कुछ कर रही होगी कि गुरनाम आकर उस पर रौब झाड़ने लगा होगा, कुछ ग़लत बोला होगा। हो सकता है कि मारपीट ही कर दी हो। प्रीती ने हाथ वाला चाकू ही गुरनाम के मार दिया होगा। चाकू सीधा जिगर में जा बजा होगा। प्रीती इतने गुस्से में होगी कि पगला गई होगी। उसको तो उस वक़्त पता भी नहीं होगा कि वह क्या कर रही है।
            यह सोचते हुए वह एकदम उठ बैठता है। वह मन में कहता है कि इसका अर्थ यह कि प्रीती दोषी नहीं है। उस वक़्त उसकी मानसिक स्थिति तो ऐसी थी कि उसको पता ही नहीं कि वह क्या कर रही है। उसके मन की उदासी कुछ कम होती है। प्रीती बच सकती है। प्रीती बच जाएगी। ऐसे केसों में पिछले दिनों दो स्त्रियाँ और एक आदमी रिहा हुए हैं। वह ग्रेवाल को फोन करके देखता है कि शायद घर आ गया हो। ग्रेवाल घर पर ही है। वह फोन पर इस ख़बर के बारे में बताता है। ग्रेवाल उसके मन की अवस्था को समझते हुए कहता है-
            तू इधर आ जा, बैठ कर बात करते हैं।
            वह ग्रेवाल के पास पहुँच जाता है। ग्रेवाल कहता है-
            तू इतना सीरियस क्यों हुआ फिरता है ?“
            क्योंकि मैं प्रीती को जानता हूँ, उसकी फिक्र है मुझे।
            यह बात तो मैं समझ रहा हूँ, पर तू अपनी सेहत का भी ध्यान कर। तेरा अपना परिवार भी है। और फिर क्या करेगा इतनी चिंता करके ?“
            मैं सोचता हूँ कि उसको कोई सज़ा न हो।
            अगर क़त्ल किया है तो सज़ा तो होगी ही।
            नहीं, यह क़त्ल नहीं है सर जी, यह क़त्ल नहीं। यह मर्डर नहीं, यह मैन स्लॉटर है। आपको पता है कुछ डिमिनिशिंग मार्जिनल रेस्पोंसबिलिटि के बारे में... पिछले साल दो औरतों की सज़ा माफ़ हुई थी या कम हुई थी।
            ग्रेवाल याद करने लगता है। जगमोहन फिर कहता है-
            जब इन्सान ने ज़ुर्म करते समय मानसिक तवाज़ुन खो रखा हो और यह तवाज़ुन भी मक़तूल के कारण खोया हो तो जु़र्म का उसकी जिम्मेदारी पर फ़र्क़ पड़ जाता है।
            यह तो वकीलों वाला नुक्ता है।
            आपको पता है, कैंट में एक इंडियन ने अपनी वाइफ़ मार दी थी और मामूली-सी सज़ा हुई थी, इसी बिना पर।
            पर तुझे क्या पता कि प्रीती ने किस हालात में क़त्ल किया है।
            यही हालात होंगे। और क्या वो प्रोफेशनल क़ातिल है ?“
            जो कुछ भी है जगमोहन, पहले तो तू रिलैक्स हो। मनदीप ठीक कहती है कि तुझे चुड़ैलें एकदम चिपट जाती हैं।
            जगमोहन मुस्कराता है और फिर कहता है-
            मैं सिस्टर इनहैंड्ज़ की ओर भी गया था, पर वहाँ कोई नहीं था। सोचता हूँ कि फोन करके वक़्त ले लूँ और मिलकर आऊँ। इस बार तो मैं उनके पीछे पड़ जाऊँगा कि कुछ न कुछ करें वे।
            अगले दिन काम से लौटते हुए जगमोहन ग्रीन रोड पर पहुँच जाता है। दिन में कई बार फोन करने के बाद अनीता पटेल मिली थी और उसने आज ही मिलने का समय दे दिया है। यद्यपि अनीता पटेल मर्दों की बात बहुत कम सुनती है, पर जगमोहन के नाम से उनका पूरा दफ़्तर परिचित है, इसलिए उसको समय दे देते हैं। अनीता उसकी प्रतीक्षा कर रही है। वह कहती है-
            हमें आपकी दोस्त से हमदर्दी है।
            अनीता जी, हमदर्दी नहीं चाहिए, हैल्प चाहिए।
            हैल्प तब तक नहीं कर सकते, जब तक केस नहीं चलता। अभी कल यह इन्सीडेंट हुआ हे, केस तो साल तक चलेगा।
            अनीता जी, केस जब चले सो चले, पर प्रीती को मिलने की ज़रूरत है। उससे बात करने की ज़रूरत है। उसको हौसला देना चाहिए।
            यह काम तो आप भी कर सकते हैं।
            मैं जो कर सकता हूँ, मैं करूँगा। मगर आप की इस इंस्टीच्युशन का यह काम है।
            जगमोहन जी, हमें यह मत समझाइए कि हमारा क्या काम है। आप अपना काम कीजिए और हमें अपना करने दीजिए।
(जारी…)

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