''साउथाल'' इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत
अटवाल का यह चौथा उपन्यास है। इससे पूर्व उनके तीन उपन्यास - 'वन वे', 'रेत', और 'सवारी' चर्चित हो चुके हैं। ''साउथाल''
इंग्लैंड में एक शहर का नाम है जहाँ अधिकतर भारत से गए सिक्ख और
पंजाबी परिवार बसते हैं। यहाँ अवस्थित
पंजाबी परिवारों के जीवन को बेहद बारीकी से
रेखांकित करता हरजीत अटवाल का यह उपन्यास इसलिए दिलचस्प और महत्वपूर्ण है क्योंकि
इसके माध्यम से हम उन भारतीय लोगों की पीड़ा से रू-ब-रू होते हैं जो काम-धंधे और
अधिक धन कमाने की मंशा से अपना वतन छोड़ कर विदेशों में जा बसते हैं और वर्षों वहाँ
रहने के बावजूद वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।
साउथाल
हरजीत
अटवाल
हिंदी
अनुवाद : सुभाष नीरव
48
तारिक़ के साथ झगड़े के बाद प्रदुमण सिंह, मीका और निम्मा वापस फैक्टरी
आ जाते हैं। मीका कहने लगता है-
“मैंने तो सोचा, साला तारिक़ कुछ अड़ेगा, पर वह तो एक ही मुक्के की मार
निकला। और फिर मेरा यह मुक्का कुछ हल्का ही था। मैंने उसकी ताकत देखकर ही मारा था।“
प्रदुमण सिंह शाबाश कहने के
अंदाज़ में मीका की तरफ़ देख रहा है। निम्मा कहता है-
“मैं तो अभी बाजू ही चढ़ा रहा
था। मेरी तैयारी तो यूँ ही गई। जितने भी बंदे अंदर से निकले, सारे ही चड्डियों में पूंछ दबाकर भाग निकले।“
“लड़को, इस
सुल्ले ने हमारे आगे क्या खड़ा होना है।“
“अंकल, मैंने
रोक लिया अपने आप को। नहीं तो यह सुल्ला मेरे हाथों मर जाता। अंकल, अब ऐसे ही किसी दिन मैं अपने भाई को देखूँगा- हरामखोर, एक मारूँगा साले के जबाड़े पर और धरती पर पड़ा मिट्टी चाटेगा।“
प्रदुमण सिंह ‘हाँ’ में सिर हिलाता रहता है। वह जानता है कि मीका
का अपने भाई से पुराना झगड़ा है। शराब पीकर उसको बुरा-भला बोलता रहता है। कई बार
फोन पर भी गालियाँ निकालने लगता है। उसको पता है कि मीका गप्पी है। आज वाली उसकी
हिम्मत की उसको आशा नहीं थी। फिर अचानक प्रदुमण सिंह को लगने लगता है कि तारिक़ के
साथ मारपीट नहीं करनी चाहिए थी। सिर्फ़ गालियों-धमकियों तक ही सीमित रहना चाहिए
था। अब कहीं पुलिस में रिपोर्ट ही न कर दे। मीका के पास तो कोई पेपर भी नहीं। वे
उठाकर सीधा इंडिया ही फेंक देंगे। वह कहता है-
“मीके, तू
इधर-उधर हो जा। तारिक़ कहीं पुलिस न बुला ले।“
मीका भी चिंतित हो जाता है।
फिर एक पैग और पीकर कहने लगता है-
“अंकल, मैं
कहाँ डरता हूँ। आने दे पुलिस को।“
पर फिर वहाँ से चल देता है।
पीछे वाली सड़कों पर से होता हुआ तारे के कमरे में जा पहुँचता है। ऐसे ही निम्मा भी
खिसक जाता है। प्रदुमण फैक्टरी में ही बैठा रहता है। सारा स्टाफ भी चला जाता है।
वह सोचता है कि अगर पुलिस आई तो उसको यहीं फैक्टरी में ही मिलना चाहेगा। उसको
मिलने के लिए पुलिस घर आए, यह उसको पसंद नहीं। वह स्वयं को
पुलिस के सामने बयान देने के लिए तैयार भी कर लेता है कि वह सारी बात की
जिम्मेदारी अपने सिर पर ले लेगा। मीके या निम्मा को बीच में नहीं आने देगा। वह छह
बजे तक बैठा रहता है, पर पुलिस नहीं आती। वह समझ जाता है कि
मुसीबत टल गई। उठकर घर की ओर चल देता है, पर भीतर से वह बहुत
डर रहा है कि यूँ ही पंगा ले लिया।
उसका मोबाइल बजता है। अनजाना
सा नंबर है कोई। वह ऑन करता है। दूसरी तरफ़ फरीदा है। वह कहती है-
“सरदार जी, आपने यह क्या किया। मेरे मियां को मारना था ?“
“सॉरी फरीदा, मेरा मतलब इसको इतना मारना नहीं था।“
“सॉरी कैसे सरदार जी, अगर वो मर जाता तो मैं विधवा हो जाती।“
“कैसा है तारिक़ अब ?“
“वैसे तो ठीक है, पुलिस बुलाना चाहता था, पर मैंने बड़ी मुश्किल से
रोका। बड़ी मिन्नतें कीं कि नया नया बिजनेस है, पुलिस कचेहरी
के चक्कर में बरबाद हो जा सी।“
“फरीदा, तेरी बहुत मेहरबानी, पर अब अपने सरदार को भूल न
जाना। मुझे अपना कोई फोन नंबर दे, जहाँ तेरे से बात कर लिया
करूँ।“
“मैं अपने सरदार को कभी न भुल
सां। और फोन भी मैं खुद कर सां।“
फरीदा के यह बताने पर प्रदुमण
राहत की साँस लेता है। अब उसका पछतावा और भी बढ़ जाता है कि यदि तारिक़ पुलिस केस
बना देता तो उसकी बहुत बदनामी होती। वह राहत अनुभव करता है।
अगले दिन निम्मा और मीका भी
वापस लौट आते हैं। जब उनको पता चलता है कि तारिक़ ने उनकी मार को झेल लिया है तो
मीका की शेखी में इज़ाफ़ा हो जाता है। वह चौड़ा होकर चलने लगता है। काम पर औरतों की
ओर इस प्रकार देखता है जैसे कोई बड़ी जंग जीत कर आया हो। उसकी छेड़खानी, मखौलबाज़ी बढ़ जाती है और वह कहता रहता है कि कोई बंदा कुटवाना हो तो बताओ।
एक दिन निम्मा कुछ समोसे वापस
ले आता है। उनमें से बाल निकला है। ऐसे कभी-कभार समोसे में से बाल निकल आए तो
प्रदुमण सिंह की आफत आ जाती है। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार यह बहुत बड़ी लापरवाही
है। वे जु़र्माना कर सकते हैं। ज्यादा हो तो फैक्टरी भी बंद करवा सकते हैं। मीका
बाल निकालकर एक एक औरत के बालों से उसका मिलान करके देख रहा है कि किसका बाल है।
सबने ही सिरों पर टोपियाँ पहन रखी है। फिर वह कहता है-
“अंकल, कहीं
तुम्हारा ही तो नहीं।“
“नहीं भाई, मेरा कैसे हो सकता है। मैं तो जाली बाँध कर रखता हूँ।“
“पर यह तो लगता है जैसे रंगा
हुआ हो।“
“यहाँ सारी बुढ़ियाँ बाल रंगे
फिरती हैं।“ प्रदुमण सिंह कहता है।
उसको लगता है कि चोर पकड़ने की
बजाय वह खुद ही चोर बनता जा रहा है। मीका निम्मे से कहता है-
“तू कल जाकर शॉपकीपर से कह
देना कि बालों से नहीं डरते, यह तो सिंहों का ट्रेड मार्क
है।“
उसके पास खड़ी औरतें हँस पड़ती
हैं। एक कहने लगती है-
“मीके, वो
कहेगा कि अगर यह बाल तुम्हारा ट्रेड मार्क है तो हर समोसे में डाला करो। फिर क्या
जवाब देगा ?“
“इसका जवाब भी है कि हरेक
समोसे में बाल डालकर हमें क्या गंजा होना है।“
सभी हँस पड़ते हैं। बाल निकलने
वाली गंभीरता गुम हो जाती है। प्रदुमण सिंह सोचता है कि मूड ठीक हुआ तो सभी की
ख़बर लेगा कि दुबारा समोसे में से बाल नहीं निकलना चाहिए।
उसको फरीदा का फिर फोन आता
है। ऊपर से फरीदा हालाँकि अभी भी गुस्से में है, पर अंदर से
खुश है कि तारिक़ को ऐसे मार पड़ी। उसे तारिक़ से दिल से नफ़रत है। इंग्लैंड से जाकर
पैसे के ज़ोर पर ही उसको ब्याह लाया था, नहीं तो उस बूढ़े
तारिक़ से उसका क्या मेल था। फरीदा फैक्टरी के अंदर की हर ख़बर प्रदुमण को देती है
कि कितनी औरतें अंदर काम करती हैं। कितने समोसे रोज़ बनते हैं। कितने ड्राइवर
डिलीवरी के लिए जाते हैं। प्रदुमण सिंह इस बात पर खुश है, पर
वह फरीदा से अब पहले की तरह नहीं मिल पाता। भाग-दौड़कर कभी राह में ही मिल सकते
हैं। अब तारिक़ हर समय फैक्टरी में ही होता है और फरीदा भी उसके साथ ही होती है।
उसको रहना ही पड़ता है। कभी कभी घर में सफ़ाई का बहाना बनाकर वह घर चली जाती है और
प्रदुमण सिंह को बुला लेती है, परंतु कभी कभी ही।
तारिक़ के साथ झगड़े के बाद एक
बात तय हो गई है कि वह अब प्रदुमण सिंह की दुकानों पर अपने समोसे रखने नहीं जाता
और जो दुकानें तारिक़ ने तोड़ ली हैं, उन्हें वापस लेने की
जिद्द प्रदुमण सिंह नहीं कर रहा। थोड़े से झटके खाकर ज़िन्दगी अपनी गति से चल पड़ती
है। प्रदुमण सिंह समझ लेता है कि तारिक़ जितनी भी सिरदर्दी बन सकता था, बन चुका है, इससे अधिक मुसीबत नहीं खड़ी करेगा।
तारिक़ वाली सिरदर्दी हालाँकि
किसी हद तक ख़त्म हो गई हो, पर बलबीर उसके लिए नई मुसीबत खड़ी
कर देता है। अब उसने प्रदुमण सिंह की दुकानों पर अपना माल रखना प्रारंभ कर दिया
है। उसने अपने समोसे का वज़न भी प्रदुमण सिंह के समोसे से दस ग्राम बढ़ा दिया है।
प्रदुमण सिंह एक सौ चालीस ग्राम का समोसा बनाता है जबकि बलबीर एक सौ पचास ग्राम का
बनाने लगा है। उसने समोसे की कीमत भी दो पैनी प्रदुमण सिंह से कम कर दी है।
एक बार तो प्रदुमण सिंह को
लगता है कि सारा बिजनेस हाथ से निकल गया। वह बलबीर को फोन करता है। बलबीर कोई जवाब
नहीं देता। वह उससे मिलने उसकी फैक्टरी में जाता है तो बलबीर एक तरफ़ हो जाता है।
प्रदुमण सिंह स्वयं एक एक दुकान पर जाता है। दुकानदारों को अपने पुराने संबंधों की
याद दिलाता है। उन्हें बढ़िया सर्विस देने के वायदे करता है। अपना कारोबार किसी हद
तक बचाने में वह सफल हो जाता है।
वह मीका को बलबीर से लड़ने के
लिए तैयार करने लगता है। इस पर मीका कहता है-
“अंकल, बलबीर
को कूटने के वह पाँच हज़ार पौंड लेगा।“
“कोई अक्ल की बात कर मीका !
पाँच हज़ार कैसा ? तू तो कई बार कह चुका है कि कोई बंदा
कुटवाना हो तो बताना।“
“अंकल, वो
तो मैं बंदों के लिए कहा करता हूँ और बलबीर कोई बंदा है, वह
तो मेरा पुराना यार है।“
(जारी…)
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