''साउथाल'' इंग्लैंड में अवस्थित पंजाबी कथाकार हरजीत अटवाल का यह चौथा उपन्यास है। इससे पूर्व उनके तीन उपन्यास - 'वन वे', 'रेत', और 'सवारी' चर्चित हो चुके हैं। ''साउथाल'' इंग्लैंड में एक शहर का नाम है जहाँ अधिकतर भारत से गए सिक्ख और पंजाबी परिवार बसते हैं। यहाँ अवस्थित पंजाबी परिवारों के जीवन को बेहद बारीकी से रेखांकित करता हरजीत अटवाल का यह उपन्यास इसलिए दिलचस्प और महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके माध्यम से हम उन भारतीय लोगों की पीड़ा से रू-ब-रू होते हैं जो काम-धंधे और अधिक धन कमाने की मंशा से अपना वतन छोड़ कर विदेशों में जा बसते हैं और वर्षों वहाँ रहने के बावजूद वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा नहीं बन पाते हैं।
साउथाल
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
।। इकतीस ॥
एक दिन जगमोहन किंग मार्केट में जाता है। आई.डब्ल्यू.ए. के दफ्तर में उसको कोई काम है। काम से फुसरत पाकर वह कार पार्क की ओर जा रहा है कि उसको सामने से प्रीती जाती हुई दिखाई देती है। वह उसकी ओर बढ़ने लगता है। नज़दीक पहुँचकर उसको लगता है कि यह प्रीती नहीं है। वह और अधिक करीब होता है। उसके एकदम करीब पहुँच जाता है। वह औरत भी उसकी ओर देखे जा रही है। जगमोहन पूछता है-
''इज इट यू प्रीती ?''
वह औरत कुछ नहीं बोलती और तेज़ तेज़ चलने लगती है। जगमोहन धीमा हो जाता है बल्कि खड़ा हो जाता है कि किसी औरत के पीछे-पीछे चलते देखकर लोग क्या कहेंगे। औरत प्रीती की तरह ही चल रही है। जगमोहन देखता जा रहा है। वह औरत कुछ आगे जाकर मोड़ पर रुक जाती है और जगमोहन की ओर देखने लगती है। जगमोहन फिर उसके पास पहुँच जाता है। पूछता है-
''प्रीती, तुझे क्या हो गया ?''
''कुछ भी नहीं।''
''तेरी खाली आँखें, खुश्क बाल, चेहरे की चमड़ी भी अजीब सी लगती है। तू ठीक तो है ?''
''मैं बिलकुल ठीक हूँ, तू कैसा है ?''
''मैंने तो तुझसे कई बार मिलना चाहा।''
''यदि चाहा होता तो तुझे पता ही था कि मैं कहाँ रहती हूँ।''
''पर तेरा हसबैंड !... मैं नहीं चाहता था कि तेरे लिए कोई संकट पैदा हो।''
जगमोहन कह रहा है। प्रीती कुछ नहीं बोलती। फिर वह पूछता है-
''घर में तो सब ठीक है न ? तेरे बच्चे ? तेरा पति ?''
''हाँ, सब ठीक है।''
''तेरी एक्टिंग कैसी चल रही है ?''
''एक्टिंग तो मैंने छोड़ दी।''
''क्यों ?''
''एक्टिंग से आदमी की नैचुरल फीलिंग्स फेड-आउट हो जाती हैं।''
''व्हट ?''
''एक्टिंग करते करते आदमी को असल और नकल के फर्क की समझ कम हो जाती है।''
''प्रीती, कैसी बातें कर रही है। एक्टिंग करते हुए तो असल और नकल की पहचान होती है।''
''नहीं, जो असल और नकल में महीन-सा पर्दा होता है, उसकी खासियत खत्म हो जाती है एक्टिंग से।''
''अजीब से विचार बनाए बैठी है तू।''
''नहीं जगमोहन, यह सच है। स्टेज पर एक्टिंग करके घर पहुँचें तो फीलिंग्स में वो आरिजनैल्टी नहीं रहती।''
''कौन बताता है यह सब तुझे ?''
''मेरा हसबैंड।''
''और तू सुनती है ?''
''हाँ, मेरे बच्चे भी उसी की सुनते हैं।''
''तू सब गलत सुने जाती है प्रीती, क्या तू अपने दिल की बात सुननी भूल गई है ?''
''ओ.के. जगमोहन, मैं चलती हूँ। कोई देख लेगा, मेरा हसबैंड गुस्सा होगा, मेरा मजाक उड़ाएगा। मेरे बच्चे मुझ पर हँसेंगे।''
कहती हुई प्रीती चली जाती है। जगमोहन हैरान-सा खड़ा उसको जाते हुए देखता रहता है। उसको याद आता है कि एक बार पहले भी प्रीती को उसने उसी मोड़ पर उतारा था। वह कार पॉर्क में आ जाता है। अपनी कार में बैठ जाता है। कार स्टार्ट भी कर लेता है पर उससे कार आगे बढ़ाई नहीं जाती। वह सोचता जा रहा है कि क्या हो गया प्रीती को। इसका जवाब किसके पास होगा। सिस्टर्स इनहैंड्ज के दफ्तर तो वह जाती ही नहीं। और कौन होगा प्रीती का परिचित जिससे यह सब मालूम कर सके। उसको भूपिंदर का ख़याल आता है। पिछली बार उसने भूपिंदर के साथ फोन पर बात की थी जब उसने उसकी एक हिंदी फिल्म देखी थी। अब भूपिंदर को फिल्मों में छोटे-मोटे रोल मिलने लग पड़े हैं। कारण यह है कि बम्बई के प्रोडयूसर अपनी फिल्मों की शूटिंग लंदन में करने आते हैं और लोकल कलाकारों को भी काम दे देते हैं। भूपिंदर का नाम चल पड़ा है। वह सोचता है कि भूपिंदर को फोन करके देखे और फोन पर ही सबकुछ पूछ ले। परन्तु उसके पास तो जैसे फोन करने का समय ही नहीं है। वह कार को भूपिंदर के घर की तरफ दौड़ा लेता है। भूपिंदर के घर की डोर बेल बजाता है। भूपिंदर ही दरवाज़ा खोलता है। वह उसको अचानक आया देख हैरान होता हुआ पूछता है-
''जग्गे, क्या बात है ? तेरा चेहरा ऐसे क्यों हुआ पड़ा है ?''
''मैं तुझसे कुछ पूछने आया हूँ।''
''क्या ?''
''प्रीती को मिला कभी ?''
''पिछले दिनों एक दिन टैस्को में मिला था, उसका हसबैंड साथ था पर बात क्या है ?''
''तू बता कि प्रीती को क्या हुआ ?''
''अन्दर आ पहले।''
वे दोनों अन्दर जाते हैं। फ्रंट रूम में बैठते हैं। यही वह कमरा है जहाँ कभी रिहर्असलें हुआ करती थीं। जगमोहन बताने लगता है-
''मैं प्रीती की हालत देखकर घबरा गया हूँ, वह तो जैसे मेंटल हो गई है।''
''इतनी बुरी तो मुझे नहीं लगी। हाँ, ऑड-सी ज़रूर हो प्रतीत हुई थी। टैस्को में मैं शॉपिंग करने गया था, उसका पति संग था। उसका पति नहीं चाहता था कि वह ड्रामों में काम करे। उसने एक बार मुझे भी फोन पर गालियाँ निकाली थीं और सूरज आर्ट्स वालों को भी, पर फिर भी मैंने उन्हें बुला लिया। मैंने जितने सवाल पूछे, गुरनाम ने ही उत्तर दिए। प्रीती मेरी ओर टकटकी लगाकर देखती रही थी।''
''भूपिंदर, मेरी तरफ आज वह ऐसे देखती थी जैसे मेरे से कोई गिला कर रही हो।''
''मेरी ओर भी ऐसे ही देखती थी। उसका पति एक्टरों और एक्टिंग को बुरा भला बोलता रहा। उसने एक दो बार हाँ में सिर हिलाया बस।''
''इसका मतलब कि उसका पति उसको लीड कर रहा है, किसी न किसी तरह उसके मन में यह सब डाल रहा है। इसका अर्थ, उसको मिलने की ज़रूरत है। वी शुड मीट हर।''
''यॅस, यू कैन। पर इसके नतीजे उसके लिए बहुत बुरे होंगे। लेकिन तू उसको लेकर चिंता क्यों कर रहा है। तुझे पता है, शी इज़ ए स्ट्रांग वुमैन। वह खुद ही हालात के साथ डील कर लेगी।''
''मुझे तो नहीं लगता कि स्ट्रांग है, मुझे तो हारी हुई लगती है।''
''देख जैग, हम कुछ नहीं कर सकते। हम मसले को उलझा ही सकते हैं।''
भूपिंदर कह रहा है। जगमोहन कहता है -
''सिस्टर्स इनहैंड्ज तो जा सकते हैं उनके पास। मैं अभी उनके दफ्तर जाता हूँ।''
वह ग्रीन रोड पर आता है। सिस्टर्स इनहैंड्ज के दफ्तर में कोई नहीं है। शाम को फिर चक्कर लगाने के बारे में सोचता है, पर उसका चित्त स्थिर नहीं है। वह वहीं कार में बैठकर प्रतीक्षा करने लगता है कि कोई तो आएगा इस दफ्तर में। वह सिगरेट पर सिगरेट फूंक रहा है। इतनी सिगरेटें उसने कभी नहीं पीं। काफ़ी समय तक कार में बैठा रहता है। कोई नहीं आता। विवश होकर वह घर लौट आता है। दोनों बेटे उसके दायें-बायें बैठ जाते हैं जैसे नित्य बैठा करते हैं। उसका उखड़ा हुआ मूड देखकर मनदीप कहती है -
''जाओ, जॉगिंग कर आओ।''
उसकी बात पर जगमोहन हँस पड़ता है। वह जानती है कि यदि कुछ दिन वह जॉगिंग न करें तो उसका स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाया करता है। इसलिए मनदीप ने कहा है। वह कहने लगता है-
''यह बात नहीं, यह तो प्रीती का मसला है।''
''कौन-सी प्रीती का ?''
वह पूछती है और जगमोहन पूरी कहानी सुनाता है। मनदीप कहती है-
''तुम्हें तो चुड़ैलें ही चिपटी रहती हैं। ये प्रीती जीते जी आ चिपटी।''
''यह नहीं चिपटती, मैं सारा केस बड़ी चुड़ैलों को दे दूँगा।''
कहकर हँसता है। मनदीप फिर कहती है-
''अगर उसका हसबैंड चाहता है कि वह ड्रामे न खेले तो तुमको ज़रूरी खिलाने हैं। यह तो दूसरे का घर बर्बाद करने वाली बात हुई।''
''यहाँ बात ड्रामों की नहीं है, उसकी हालत की है। वह ऐसी क्यों हो गई, यह है प्रॉब्लम।''
''मैं तो यह जानती हूँ कि तुम कोई न कोई राह जाती मुसीबत ले बैठते हो।''
''मैंने तुझे कहा न कि मुझे प्रीती के बारे में सिस्टर्स इनहैंड्ज के साथ बात करनी है, वे खुद देखेंगी।''
वह ग्रेवाल को फोन घुमाता है। सारी बात उससे करता है। ग्रेवाल कहने लगता है-
''मुझे लगता है कि उसका पति सॉयक्लॉजीकली उसको डोमीनेट करने की कोशिश कर रहा है। हो सकता है, उसके मन में हर वक्त हीन भावना भरने का यत्न करता रहता हो। उसको हर वक्त तुच्छ दिखा रहा हो और उसको यकीन भी दिला दिया हो। और किसी तरह से बच्चे भी अपनी तरफ कर लिए हों।''
(जारी…)
साउथाल
हरजीत अटवाल
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
।। इकतीस ॥
एक दिन जगमोहन किंग मार्केट में जाता है। आई.डब्ल्यू.ए. के दफ्तर में उसको कोई काम है। काम से फुसरत पाकर वह कार पार्क की ओर जा रहा है कि उसको सामने से प्रीती जाती हुई दिखाई देती है। वह उसकी ओर बढ़ने लगता है। नज़दीक पहुँचकर उसको लगता है कि यह प्रीती नहीं है। वह और अधिक करीब होता है। उसके एकदम करीब पहुँच जाता है। वह औरत भी उसकी ओर देखे जा रही है। जगमोहन पूछता है-
''इज इट यू प्रीती ?''
वह औरत कुछ नहीं बोलती और तेज़ तेज़ चलने लगती है। जगमोहन धीमा हो जाता है बल्कि खड़ा हो जाता है कि किसी औरत के पीछे-पीछे चलते देखकर लोग क्या कहेंगे। औरत प्रीती की तरह ही चल रही है। जगमोहन देखता जा रहा है। वह औरत कुछ आगे जाकर मोड़ पर रुक जाती है और जगमोहन की ओर देखने लगती है। जगमोहन फिर उसके पास पहुँच जाता है। पूछता है-
''प्रीती, तुझे क्या हो गया ?''
''कुछ भी नहीं।''
''तेरी खाली आँखें, खुश्क बाल, चेहरे की चमड़ी भी अजीब सी लगती है। तू ठीक तो है ?''
''मैं बिलकुल ठीक हूँ, तू कैसा है ?''
''मैंने तो तुझसे कई बार मिलना चाहा।''
''यदि चाहा होता तो तुझे पता ही था कि मैं कहाँ रहती हूँ।''
''पर तेरा हसबैंड !... मैं नहीं चाहता था कि तेरे लिए कोई संकट पैदा हो।''
जगमोहन कह रहा है। प्रीती कुछ नहीं बोलती। फिर वह पूछता है-
''घर में तो सब ठीक है न ? तेरे बच्चे ? तेरा पति ?''
''हाँ, सब ठीक है।''
''तेरी एक्टिंग कैसी चल रही है ?''
''एक्टिंग तो मैंने छोड़ दी।''
''क्यों ?''
''एक्टिंग से आदमी की नैचुरल फीलिंग्स फेड-आउट हो जाती हैं।''
''व्हट ?''
''एक्टिंग करते करते आदमी को असल और नकल के फर्क की समझ कम हो जाती है।''
''प्रीती, कैसी बातें कर रही है। एक्टिंग करते हुए तो असल और नकल की पहचान होती है।''
''नहीं, जो असल और नकल में महीन-सा पर्दा होता है, उसकी खासियत खत्म हो जाती है एक्टिंग से।''
''अजीब से विचार बनाए बैठी है तू।''
''नहीं जगमोहन, यह सच है। स्टेज पर एक्टिंग करके घर पहुँचें तो फीलिंग्स में वो आरिजनैल्टी नहीं रहती।''
''कौन बताता है यह सब तुझे ?''
''मेरा हसबैंड।''
''और तू सुनती है ?''
''हाँ, मेरे बच्चे भी उसी की सुनते हैं।''
''तू सब गलत सुने जाती है प्रीती, क्या तू अपने दिल की बात सुननी भूल गई है ?''
''ओ.के. जगमोहन, मैं चलती हूँ। कोई देख लेगा, मेरा हसबैंड गुस्सा होगा, मेरा मजाक उड़ाएगा। मेरे बच्चे मुझ पर हँसेंगे।''
कहती हुई प्रीती चली जाती है। जगमोहन हैरान-सा खड़ा उसको जाते हुए देखता रहता है। उसको याद आता है कि एक बार पहले भी प्रीती को उसने उसी मोड़ पर उतारा था। वह कार पॉर्क में आ जाता है। अपनी कार में बैठ जाता है। कार स्टार्ट भी कर लेता है पर उससे कार आगे बढ़ाई नहीं जाती। वह सोचता जा रहा है कि क्या हो गया प्रीती को। इसका जवाब किसके पास होगा। सिस्टर्स इनहैंड्ज के दफ्तर तो वह जाती ही नहीं। और कौन होगा प्रीती का परिचित जिससे यह सब मालूम कर सके। उसको भूपिंदर का ख़याल आता है। पिछली बार उसने भूपिंदर के साथ फोन पर बात की थी जब उसने उसकी एक हिंदी फिल्म देखी थी। अब भूपिंदर को फिल्मों में छोटे-मोटे रोल मिलने लग पड़े हैं। कारण यह है कि बम्बई के प्रोडयूसर अपनी फिल्मों की शूटिंग लंदन में करने आते हैं और लोकल कलाकारों को भी काम दे देते हैं। भूपिंदर का नाम चल पड़ा है। वह सोचता है कि भूपिंदर को फोन करके देखे और फोन पर ही सबकुछ पूछ ले। परन्तु उसके पास तो जैसे फोन करने का समय ही नहीं है। वह कार को भूपिंदर के घर की तरफ दौड़ा लेता है। भूपिंदर के घर की डोर बेल बजाता है। भूपिंदर ही दरवाज़ा खोलता है। वह उसको अचानक आया देख हैरान होता हुआ पूछता है-
''जग्गे, क्या बात है ? तेरा चेहरा ऐसे क्यों हुआ पड़ा है ?''
''मैं तुझसे कुछ पूछने आया हूँ।''
''क्या ?''
''प्रीती को मिला कभी ?''
''पिछले दिनों एक दिन टैस्को में मिला था, उसका हसबैंड साथ था पर बात क्या है ?''
''तू बता कि प्रीती को क्या हुआ ?''
''अन्दर आ पहले।''
वे दोनों अन्दर जाते हैं। फ्रंट रूम में बैठते हैं। यही वह कमरा है जहाँ कभी रिहर्असलें हुआ करती थीं। जगमोहन बताने लगता है-
''मैं प्रीती की हालत देखकर घबरा गया हूँ, वह तो जैसे मेंटल हो गई है।''
''इतनी बुरी तो मुझे नहीं लगी। हाँ, ऑड-सी ज़रूर हो प्रतीत हुई थी। टैस्को में मैं शॉपिंग करने गया था, उसका पति संग था। उसका पति नहीं चाहता था कि वह ड्रामों में काम करे। उसने एक बार मुझे भी फोन पर गालियाँ निकाली थीं और सूरज आर्ट्स वालों को भी, पर फिर भी मैंने उन्हें बुला लिया। मैंने जितने सवाल पूछे, गुरनाम ने ही उत्तर दिए। प्रीती मेरी ओर टकटकी लगाकर देखती रही थी।''
''भूपिंदर, मेरी तरफ आज वह ऐसे देखती थी जैसे मेरे से कोई गिला कर रही हो।''
''मेरी ओर भी ऐसे ही देखती थी। उसका पति एक्टरों और एक्टिंग को बुरा भला बोलता रहा। उसने एक दो बार हाँ में सिर हिलाया बस।''
''इसका मतलब कि उसका पति उसको लीड कर रहा है, किसी न किसी तरह उसके मन में यह सब डाल रहा है। इसका अर्थ, उसको मिलने की ज़रूरत है। वी शुड मीट हर।''
''यॅस, यू कैन। पर इसके नतीजे उसके लिए बहुत बुरे होंगे। लेकिन तू उसको लेकर चिंता क्यों कर रहा है। तुझे पता है, शी इज़ ए स्ट्रांग वुमैन। वह खुद ही हालात के साथ डील कर लेगी।''
''मुझे तो नहीं लगता कि स्ट्रांग है, मुझे तो हारी हुई लगती है।''
''देख जैग, हम कुछ नहीं कर सकते। हम मसले को उलझा ही सकते हैं।''
भूपिंदर कह रहा है। जगमोहन कहता है -
''सिस्टर्स इनहैंड्ज तो जा सकते हैं उनके पास। मैं अभी उनके दफ्तर जाता हूँ।''
वह ग्रीन रोड पर आता है। सिस्टर्स इनहैंड्ज के दफ्तर में कोई नहीं है। शाम को फिर चक्कर लगाने के बारे में सोचता है, पर उसका चित्त स्थिर नहीं है। वह वहीं कार में बैठकर प्रतीक्षा करने लगता है कि कोई तो आएगा इस दफ्तर में। वह सिगरेट पर सिगरेट फूंक रहा है। इतनी सिगरेटें उसने कभी नहीं पीं। काफ़ी समय तक कार में बैठा रहता है। कोई नहीं आता। विवश होकर वह घर लौट आता है। दोनों बेटे उसके दायें-बायें बैठ जाते हैं जैसे नित्य बैठा करते हैं। उसका उखड़ा हुआ मूड देखकर मनदीप कहती है -
''जाओ, जॉगिंग कर आओ।''
उसकी बात पर जगमोहन हँस पड़ता है। वह जानती है कि यदि कुछ दिन वह जॉगिंग न करें तो उसका स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाया करता है। इसलिए मनदीप ने कहा है। वह कहने लगता है-
''यह बात नहीं, यह तो प्रीती का मसला है।''
''कौन-सी प्रीती का ?''
वह पूछती है और जगमोहन पूरी कहानी सुनाता है। मनदीप कहती है-
''तुम्हें तो चुड़ैलें ही चिपटी रहती हैं। ये प्रीती जीते जी आ चिपटी।''
''यह नहीं चिपटती, मैं सारा केस बड़ी चुड़ैलों को दे दूँगा।''
कहकर हँसता है। मनदीप फिर कहती है-
''अगर उसका हसबैंड चाहता है कि वह ड्रामे न खेले तो तुमको ज़रूरी खिलाने हैं। यह तो दूसरे का घर बर्बाद करने वाली बात हुई।''
''यहाँ बात ड्रामों की नहीं है, उसकी हालत की है। वह ऐसी क्यों हो गई, यह है प्रॉब्लम।''
''मैं तो यह जानती हूँ कि तुम कोई न कोई राह जाती मुसीबत ले बैठते हो।''
''मैंने तुझे कहा न कि मुझे प्रीती के बारे में सिस्टर्स इनहैंड्ज के साथ बात करनी है, वे खुद देखेंगी।''
वह ग्रेवाल को फोन घुमाता है। सारी बात उससे करता है। ग्रेवाल कहने लगता है-
''मुझे लगता है कि उसका पति सॉयक्लॉजीकली उसको डोमीनेट करने की कोशिश कर रहा है। हो सकता है, उसके मन में हर वक्त हीन भावना भरने का यत्न करता रहता हो। उसको हर वक्त तुच्छ दिखा रहा हो और उसको यकीन भी दिला दिया हो। और किसी तरह से बच्चे भी अपनी तरफ कर लिए हों।''
(जारी…)
1 comment:
आपका यह प्रयास अच्छा है। पर इंटरनेट पर उपन्यास को किस्तों में पढ़ने के लिए धैर्य रख पाना मुश्किल होता है। शुभकामनाएं।
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